Wednesday, April 7, 2010

भाजपा के समारोह से नामवर सांसद नदारद!


(sansadji.com)

अटल, आडवाणी, सुषमा, सिर्फ जेटली और अंत में गडकरी। बात हो रही है दिल्ली में भाजपा के 30वेंस्थापना दिवस समारोह की। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लंबे समय अस्वस्थ चल रहे हैं, इसलिएसमारोह में नहीं पहुंचे। सांसद एवं पूर्व उप प्रधानमंत्री उत्तराखंड की यात्रा से लौटे थे, थके हुए थे, इसलिए समारोह मेंनहीं पहुंचे। संसद में विपक्ष की नेता एवं विदिशा से सांसद सुषमा स्वराज किसी जरूरी मीटिंग में व्यस्त थीं, इसलिए समारोह में नहीं पहुंच पाईं। आखिर बात क्या हो सकती है? राज बड़े गहरे हैं। लेकिन कोई तो कह रहा थाकि सुषमाजी राजनाथजी के साथ देवीलाल स्मृति समारोह में दिखी गई थीं! फिर? फिर क्या, रही होगी कोई औरव्यस्तता। जवाब पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी से शुरू होकर उन्हीं पर खत्म भी हो जाते हैं। तो क्या कहा जासकता है देश की इस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के स्थापना दिवस समारोह के इस हाल के बारे में। आडवाणीजीउत्तराखंड नहीं जाते तो कुछ पता ही नहीं चलता कि कहां वह इन दिनों। अपने ब्लॉग पर जरूर पढ़ने को मिल जातेहैं। सुषमाजी मध्य प्रदेश की लंबी यात्रा से लौट कर व्यस्त हो चुकी हैं। गडकरीजी भी लगातार कभी जम्मू-कश्मीर, कभी गोहाटी, कभी जलगांव चले जा रहे हैं। दिल्ली दरबार में कोई नाक-मुंह फुलाए डोल रहा है, कोई हवा मेंहाथ-पैर पटक रहा है। वजह क्या हो सकती है। कुछ भी कहना उपयुक्त होगा। जब कोई पूछता है कि टीम गडकरीका घाव अभी मिटा नहीं है क्या, उन दिनों तो कहा जा रहा था कि टीम गठन में सांसद राजनाथसिंह और लालकृष्णआडवाणी की इच्छानुसार पदाधिकार दिए गए हैं, फिर स्थापना दिवस समारोह में भी ऐसी नदारदगी क्यों? हां उनदिनों सुषमा जी के बारे में जरूर मीडिया ने ये बताकर चौंकाया था कि गडकरी ने टीम गठन में उनसे कोई विचार-विमर्श नहीं किया! इन दिनो दिल्ली भाजपा अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्षबनने-बिगड़ने की चर्चाएं भी तो खूब गर्म हैं, हो सकता है, ऐसी ही कोई अंदरूनी खुन्नस भीतर-ही-भीतरफफक-फफक कर फफोला बन चुकी हो! सो, जताने-बताने की पड़ी हो कि दिल्ली में हैं तो क्या हुआ, नहीं आतेसमारोह में, नहीं आते क्योंकि........! गडकरी जी परेशान हैं। इसीलिए उमाजी इस्तीफा देकर त्रिशंकु की तरहहाशिये पर पड़ी हैं। गोविंदाचार्य और कल्याण सिंह सोच रहे होंगे कि जब उमाजी का ये हाल है तो पूत के पांव पालनेसे झलक मार रहे। अपुन का दाखिला तो होने से रहा। लंबी लाइन थी दाखिला लेने वालों की। सब तरह मायूसी काआलम है। आखिर बेचारे गडकरी रें भी क्या!

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