Thursday, December 10, 2009

मीडिया : सत्ता का क्रूर प्रचार तन्त्र /अनिल चमड़िया


अगर आप बिना दूध की चाय पीते हों और उसे शीशे के गिलास में पीते हो तो आपको आसानी से शराबी कहा जा सकता है. दिन में कई बार ऐसी चाय पीते हों और कई लोगों के साथ पीते हो तो आपके घर को शराबियों के अड्डे के रूप में प्रचारित किया जा सकता है. हमारे समाज में प्रचार का गहरा असर है. प्रचार का एक ढाँचा है जिस पर समाज में वर्चस्व रखने वालों का नियंत्रण हैं. बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए जब गणेश की मूर्तियों के दूध पीने के करिश्मे को वास्तविकता के रूप में दुनिया के बड़े हिस्से में कई घंटों में स्थापित कर दिया गया था. यह काम किसी मीडिया के प्रचार के जरिये नहीं हुआ था. मीडिया के मंच प्रचार के माध्यम तो हैं लेकिन हर तरह के प्रचार मीडिया द्वारा ही स्थापित नहीं होते हैं. जैसे किसी भी छोटे बड़े संस्थान में किसी के बारे में किसी तरह के प्रचार को जब स्थापित किया जाता है तो उसमें किस माध्यम की भूमिका होती है?
दरअसल प्रचार अनिवार्य तौर पर किसी राजनीति से जुड़ा होता है. इसमें सच को देखना बेहद मुश्किल काम होता है.अमेरिका ने इराक के राष्ट्रपति शहीद सद्दाम के खिलाफ लंबे समय तक अभियान चलाया. अमेरिका ने कहा कि इराक के पास जनसंहारक रासायनिक हथियार हैं और उससे पूरी दुनिया में तबाही लाई जा सकती है. यह अभियान लगातार चलता रहा और जब से ये अभियान शुरू हुआ तब से उसे सच मानने वालों की संख्या तब तक बढ़ती रही जबतक कि अमेरिका ने सबसे पुरानी सभ्यताओं के बीच विकसित देश इराक को तबाह नहीं कर दिया. बाद में यह पता चला कि इराक के पास ऐसे हथियार नहीं थे . इस प्रचार का मकसद केवल सद्दाम हुसैन को खत्म करना था और सीना तानकर खड़े होने वाले इराक जैसे देश को झुकना सिखाना था. बाद में दुनिया भर की जनवादी ताकतें हाथ मलती रहीं लेकिन उससे क्या होता है.
प्रचार के ढांचे को समझने के लिए एक चीज जरूरी होती है कि किसी भी तरह के प्रचार को किस तरह से खड़ा किया जा सकता है. एक उदाहरण के जरिये इसे समझा जा सकता है. यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने वाली एक संस्था की समिति के एक सदस्य ने एक दिन कई लोगों के बीच खड़े होकर संस्था की अध्यक्ष से कहा कि वो उन्हें अकेले में यौन उत्पीड़न की एक शिकायत पर की गई जांच की रिपोर्ट को नहीं दिखा सकता है. अध्यक्ष जांच समिति के उस सदस्य को भौचक देखती रही. उसे आश्चर्य हुआ कि समिति का सदस्य उसे ऐसा क्यों कह रहा है जबकि उन्होंने तो कभी भी उस सदस्य से उस रिपोर्ट को दिखाने के लिए नहीं कहा. अकेले या दुकेले की बात ही कहाँ से उठती है. दरअसल समिति का सदस्य जिसके खिलाफ शिकायत थी उसके प्रति सहानुभूति रखता था. वह दो बातों को ध्यान में रखकर अपने प्रचार की सामग्री को बड़े दायरे में भेजना चाहता था. पहली बात तो वह तकनीकी रूप से गलत नहीं बोल रहा है इसके प्रति सावधनी बरत रहा था. दूसरे वह यह संदेश भेजना चाहता था कि संस्था की अध्यक्ष इस मामले में कुछ खास व्यक्तिगत दिलचस्पी ले रही है. जिन लोगों ने समिति के सदस्य से संस्था की अध्यक्ष से यह कहते सुना उन्होंने तत्काल ही दूसरे लोगों से कहना ये शुरू कर दिया कि संस्था की अध्यक्ष जाँच समिति की रिपोर्ट को अकेले देखना चाहती थी. इस तरह से एक प्रचार अभियान की शुरुआत होती है . जाहिर सी बात है कि जो इस तरह का प्रचार अभियान विकसित करना चाहता है वह इस बात को लेकर अपनी पक्की अवधरणा बनाए हुए है कि समाज में प्रचार का जो ढाँचा विकसित है यह सामग्री उसकी खुराक के रूप में इस्तेमाल हो जाएगी. लेकिन अध्यक्ष इस तरह के प्रचार की बारीकियों को नहीं समझती थी और केवल अपने आदर्श और नैतिकता के तहत जाँच को एक अंजाम तक पहुँचते देखना चाहती थी. इस तरह के प्रचार बड़े स्तर पर किस तरह से विकसित किए जाते हैं इसे संसद की रिपोर्टिंग के दौरान भी इस लेखक ने अनुभव किया. संसद में अक्सर सवाल उठाए जाते हैं कि फलां समाचार पत्रा में इस आशय के समाचार प्रकाशित हुए हैं. सरकार को इस पर जवाब देना चाहिए. दूसरी तरफ स्थिति यह है कि समाचार पत्रा यदि किसी भी तरह के समाचार को प्रकाशित करता है तो वह गलत भी हो सकता है और बेबुनियाद भी हो सकता है. लेकिन वह इसके लिए किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है. उसे जवाबदेह होना चाहिए ये एक अपेक्षा है और ये एक दूसरी बात है.अब अखबार में छपने के बाद संसद का सदस्य उसे अपना आधर बना लेता है. प्रचार का आधर किस तरह से विकसित किया जा रहा है इसे समझना जरूरी होता है. फिर संसद में पूछे गए सवाल पर अखबार ये समाचार बना सकता है कि संसद में ये सवाल पूछा गया. संसद में सवाल के पहुंचने के बाद प्रचार को विश्वसनीयता का भी एक आधर मिल जाता है. संसद के प्रति समाज का एक भरोसा है. इस तरह बार बार उलटपफेर से एक प्रचार अभियान विकसित होता है. समाज और सत्ता पर वर्चस्व रखने वाले लोग इसी तरह से प्रचार के ढाँचे का इस्तेमाल करते हैं. माध्यमों से वे अपने प्रचार की गति को तेज करते हैं. मीडिया ने इस काम में बहुत मदद की है.
समाज में खबरें सुनना, पढ़ने और देखने की आदत का विकसित होना ही महत्वपूर्ण नहीं होता है बल्कि उसमें किसी भी उस तक पहुँचने वाली सामग्री के भीतर देख पाने की क्षमता का विकास भी जरूरी होता है. वह किसी भी सामग्री का विश्लेषण करने की क्षमता का विकास नहीं करेगा तो वह हर वक्त शासकों के प्रचार अभियान का शिकार होगा. काली चाय शराब के रूप में उसे दिखाई जाएगी वह उसे मानने के लिए अभिशप्त होगा. मीडिया के विस्तार और उसके बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर तो समाज से और भी गहरी दृष्टि विकसित करने की अपेक्षा की जाती है.