Tuesday, April 6, 2010

संसद तक बार-बार गूंजा नक्सलवाद!


(sansadji.com)

नक्सली हमले के बाद पीएम मनमोहन सिंह ने सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई। केंद्र सरकार विचलित है। मामला काफी गंभीर हो चुका है। नक्सलवाद और संसद-सांसद की चर्चाएं भी सुर्खियों में रही हैं। सांसद कबीर सुमन से लेकर सांसद बलिराम कश्यप तक। गृहमंत्री पी.चिदंबरम से गृह राज्यमंत्री अजय माकन तक। दिल्ली से रायपुर तक। ये प्रसंग भी जान लेने जरूरी हैं।
ताजा सूचना है कि दंतेवाड़ा हमले पर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने सुरक्षा स्थिति का जायजा लेने तथा नक्सल हिंसा से निबटने के लिए रणनीति की समीक्षा करने के वास्ते अपने आवास पर राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की एक आपात बैठक बुलाई। बैठक में वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी, गृहमंत्री पी.चिदंबरम्, रक्षामंत्री ए.के. एंटनी, गृह सचिव जी.के. पिल्लई, गुप्तचर ब्यूरो तथा सुरक्षा बलों के प्रमुख हिस्सा ले रहे हैं। उल्लेखनीय है कि विगत 20 फरवरी को पश्चिम बंगाल के जादवपुर लोकसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस के सांसद कबीर सुमन ने कहा था कि वह नक्सल निरोधी अभियान का संसद में विरोध करेंगे, भले ही उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाए। पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी को नक्सलियों के खिलाफ जारी सुरक्षा बलों की कार्रवाई का विरोध करना चाहिए। हमने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) का हिस्सा होते हुए भी लालगढ़ में सुरक्षा बलों के संयुक्त अभियान का विरोध किया था। इसी तरह हमें आपरेशन ग्रीन हंट का भी विरोध करना चाहिए। हमें अपनी पूरी विनम्रता के साथ ऑपरेशन ग्रीन हंट का विरोध करना चाहिए। ममता को इस अभियान की निंदा करनी चाहिए। लोकसभा में हमारे मुख्य सचेतक सुदीप बंदोपाध्याय ने मुझे लिखा है कि मैं सत्र शुरू होने के तत्काल बाद आयोजित होने वाली तृणमूल के संसदीय दल की बैठक में अपने विचार रख सकता हूं। पार्टी अपने विचार रखेगी। मैं अपना काम करूंगा। इसी क्रम में एक बात और गौरतलब लगती है कि बीते माह मार्च के दूसरे सप्ताह में पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में किसानों पर हुई पुलिस गोलीबारी की तीसरी बरसी पर प्रमुख विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की मुहिम को झटका लगा था, क्योंकि इस मसले पर उन कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने खुद को ममता बनर्जी के रुख से अलग करना शुरू कर दिया, जिन्होंने एक समय इस मुद्दे पर सत्ताधारी वामपंथी मोर्चे के खिलाफ माहौल बनाने में उनका साथ दिया था। तीन साल पहले पुलिस ने नंदीग्राम के निहत्थे किसानों पर गोलियां चलाई थीं, जिसमें 14 लोगों की जान चली गई थीं। सरकार के समर्थन से किसानों पर इस क्रूर हमले से लोग स्तब्ध रह गए थे और शहरी मध्य वर्ग के एक बड़े खेमे ने इस मसले पर किसानों का साथ दिया था और सरकार की कड़ी आलोचना की थी। सरकार नंदीग्राम में एक रासायनिक केंद्र की स्थापना के लिए जमीन का अधिग्रहण करना चाह रही थी, जिसका किसान विरोध कर रहे थे। इस मसले पर सरकार की बड़ी किरकिरी हुई, जिसका खामियाजा उसे पिछले लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ा। तीन साल बाद विगत मार्च में जब हजारों की संख्या में नंदीग्राम के किसान जुटे और उस क्रूर घटना की बरसी पर पुलिस की गोलीबारी में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दे रहे थे, उसमें तृणमूल कांग्रेस की बड़ी भागीदारी रही। केंद्रीय मंत्री मुकुल रॉय और स्थानीय सांसद शुभेंदु अधिकारी कुछ अन्य स्थानीय नेताओं के साथ यहां मौजूद रहे। उससे पहले 26 सितंबर2009:। नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में जगदलपुर के पैरागुड़ा गाँव में बालाघाट के भाजपा सांसद बलिराम कश्यप के बेटे की हत्या कर दी थी। वही छत्तीसगढ़, जहां 24 सितंबर 09 को नक्सल ऑपरेशन शुरू होने के साथ ही सांसदों और विधायकों पर भी नक्सली हमले का अंदेशा जताया गया था। पुलिस को इस तरह की सूचनाएं मिली थीं कि हमले से बौखलाए नक्सली जनप्रतिनिधियों पर हमला कर सकते हैं। उस समय गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने कहा था कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र के विधायकों और सांसदों को सतर्क रहना चाहिए। कहा गया कि वे क्षेत्र में जाएं तो अपने जिले के कलेक्टर और एसपी को पहले से सूचना देकर। कलेक्टर और एसपी की सलाह को नजरअंदाज न किया जाए। पांच जिले बस्तर, कांकेर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और नारायणपुर के विधायकों के अलावा राजनांदगांव जिले के चार विधानसभा क्षेत्र, रायपुर के गरियाबंद और मैनपुर, सरगुजा के अंदरुनी इलाकों के विधायकों को विशेष सतर्कता बरतने के लिए कहा गया था। आज मंगलवार की सुबह जिस दंतेवाड़ा इलाके में हमला हुआ, जहां करीब 500 जवानों ने नक्सलियों के सुरक्षित गढ़ ईसुलनार में चौतरफा हमला बोलकर दावा किया था आठ नक्सलियों को मार गिराया गया है। हालांकि नक्सली अपने साथियों का शव लेकर भाग गए थे। इस कार्रवाई में कोई पुलिस वाला हताहत नहीं हुआ था। उस अभियान में दंतेवाड़ा पुलिस की भी मदद ली गई थी। पूरी कार्रवाई को एसटीएफ के जवान और जिला पुलिस के जवानों ने अंजाम दिया था। वह अभियान एक दिन का ही था। रात में नक्सली हमले का अंदेशा था। पुलिस अफसरों के अनुसार ईसलपुर और आसपास के तीन-चार गांवों में नक्सलियों ने पिछले कई सालों से अपना अड्डा बना रखा था। घने जंगल के कारण अब तक पुलिस के जवान वहां जाने से कतराते रहे थे। दंतेवाड़ा सिंगनमड़गू और पालाचलमा में क्षेत्र में बड़ा ऑपरेशन चलाने के बाद पुलिस ने राजनांदगांव और महाराष्ट्र की सीमा से लगे जंगल में अभियान चलाकर नक्सलियों के कैंप में खलबली मचा दी। उसी कड़ी में बीजापुर में भी अभियान चला। संसद-सांसद से जुड़ी एक घटना 14 अक्टूबर 2009 की। उड़ीसा के मयूरभंज जिले में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सांसद सुदाम मरांडी पर संदिग्ध नक्सलियों द्वारा किए गए हमले में 3 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई थी। मरांडी बारीपदा से 35 किलोमीटर दूर बंदम गांव में एक फुटबाल मैच समारोह में हिस्सा लेने के बाद वापस लौट रहे थे। उसी वक्त उन पर हमला किया गया। अब याद करते हैं दिल्ली का 8 जुलाई 2009 का दिन। गृह राज्यमंत्री अजय माकन ने राज्यसभा को एक लिखित उत्तर में बताया था कि प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में कुछ माओवादी गतिविधियां तेज हुई हैं। हमे राज्य और केंद्र स्तर से सतर्कता और पर्याप्त सावधानी बरतनी होगी।

2 comments:

Jandunia said...

नक्सलवाद का फन कब कुचला जाएगा सरकार इस बारे में कुछ बोलती क्यों नहीं।

Jandunia said...

कब मिटेगा नक्सलवाद का आतंक।