Friday, September 3, 2010

दुनिया को बनाने वाला कोई भगवान नहीं...... स्टीफन हॉकिंग


स्टीफन हॉकिंग


लंदन........ दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में गिने जाने वाले स्टीफन हॉकिंग ने कहा है कि इस दुनिया को बनाने वाला कोई भगवान नहीं है। यह दुनिया भौतिकी के नियमों के मुताबिक अस्तित्व में आई। उनके मुताबिक बिंग बैंग गुरुत्वाकर्षण के नियमों का ही नतीजा था। स्टीफन हॉकिंग ने अपनी नई किताब में ये बातें कही हैं। गौरतलब है कि स्टीफन हॉकिंग ने 1988 में छपी अपनी बहुचर्चित किताब 'ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम' में कहा था कि ईश्वर का अस्तित्व अनिवार्य तौर पर विज्ञान का विरोधी नहीं है। दुनिया के बनने में ईश्वर की भूमिका को परोक्ष रूप से स्वीकार करते हुए उन्होंने उस पुस्तक में कहा था, 'अगर हम संपूर्ण थियरी खोज सकें तो वह मानवीय तर्क की सबसे बड़ी जीत होगी। तभी हम ईश्वर का दिमाग समझ पाएंगे।', अपनी नई किताब 'द ग्रैंड डिजाइन' में उन्होंने ईश्वर की किसी भी भूमिका की संभावना खारिज करते हुए कहा कि ब्रह्मांड का निर्माण शून्य से भी हो सकता है। हॉकिंग की इस नई किताब धारावाहिक रूप में लंदन के 'द टाइम्स' में छप रही है। स्टीफन हॉकिंग मौजूदा दौर के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में माने जाते हैं। एक बीमारी से पीड़ित होने की वजह से हॉकिंग खुद चल-फिर या बोल-सुन भी नहीं सकते। फिर भी, अपनी इच्छाशक्ति और संकल्प की बदौलत उन्होंने न केवल अपनी पढ़ाई और रिसर्च जारी रखी बल्कि विज्ञान की सीमाओं को भी विस्तारित किया। इस नई किताब में अपनी पुरानी धारणा से आगे बढ़ते हुए हॉकिंग ने न्यूटन के इस सिद्धांत को गलत बताया है कि बेतरतीब अव्यवस्था से ब्रह्मांड का निर्माण नहीं हो सकता। अपने इस मत की पुष्टि के लिए हॉकिंस ने 1992 में हुई उस खोज का हवाला दिया है, जिसमें हमारे सौरमंडल से बाहर एक तारे के चारों ओर घूमते ग्रह के बारे में पता चला था। हॉकिंग ने इस खोज को ब्रह्मांड की समझ में बदलाव लाने वाला क्रांतिकारी मोड़ बताया है।

Thursday, August 26, 2010

जन्तर मन्तर पर 10 हजार किसान... दिल्ली में यातायात प्रभावित



उत्तर प्रदेश में यमुना एक्सप्रेस के लिए जमीन अधिग्रहण के एवज में ज्यादा मुआवजे की मांग को लेकर किसानों ने गुरुवार सुबह जन्तर मन्तर पर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। किसान सुबह से ही धरनास्थल पर इकट्ठे होने लगे और दोपहर 12 बजे तक भारी संख्या में जुट चुके थे। किसानों का यह आंदोलन राजनीतिक दल राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के जुड़ जाने से और व्यापक हो गया है। किसानों की मांग है कि यमुना एक्सप्रेस वे के लिए उनकी जमीन अधिग्रहित की जा रही है लेकिन इस एवज में उन्हें समुचित मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। सभा को भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली, रालोद के अध्यक्ष अजित सिंह, बीजू जनता दल के अर्जुन चरण सेठी, तेलुगूदेशम पार्टी के नागेश्वर राव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एबी वर्धन, जनता दल (यू) के शरद यादव, लोकजनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान और अकाली दल के रत्न सिंह अजनाला संबोधित कर रह है। अपनी जमीन के बदले कम मुआवजे का विरोध कर रहे करीब 10 हजार किसान दिल्‍ली में जुटे हैं। आंदोलन को अजित सिंह का पूरा समर्थन है।

राहुल गांधी ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर निशाना साधते हुए कहा है कि उन्होंने इस मुद्दे से पीएम मनमोहन सिंह को अवगत करा दिया है। किसानों की भूमि अधिग्रहण का यह मामला बेहद गंभीर है।

दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में किसान रैली के अलावा जगह जगह पानी भरने के चलते यातायात में बाधा पहुंची। दिल्ली यातायात पुलिस के अनुसार आईएसबीटी के निकट हनुमान सेतु को वाहन संचालन के लिए बंद कर देने के चलते वाहनों के रूख को शांतिवन-राजघाट उपमार्ग की ओर मोड़ दिया गया है। किसान रैली के चलते अजमेरी गेट, रामलीला मैदान से रणजीत सिंह फलाईओवर, बाराखंभा रोड, टॉलस्टाय रोड, केजी मार्ग, जनपथ और संसद मार्ग सहित विभिन्न रास्तों पर यातायात प्रभावित हुआ है।


Wednesday, August 25, 2010

सुर्वे रिपोर्ट दैनिकभास्कर... सांसदों के काम की तुलना में ज्‍यादा है वेतन बढ़ोतरी

बुधवार को लोकसभा में सांसदों की वेतन बढ़ोतरी का विधेयक पेश कर दिया गया। इस दौरान कोई हंगामा नहीं हुआ। विधेयक आसानी से पारित हो जाएगा और सांसदों का मूल वेतन 16 हजार रुपये प्रति महीने से बढ़ कर 50 हजार रुपये प्रति महीने हो जाएगा। उनके भत्‍ते में भी 10 हजार रुपये की बढ़ोतरी हो जाएगी। सांसद तो 80 हजार रुपये मासिक मूल वेतन की मांग पर अड़े थे, पर जनता 300 फीसदी बढ़ोतरी के भी खिलाफ लगती है। dainikbhaskar.com के एक सर्वे में शामिल 64 प्रतिशत पाठकों ने राय दी कि सांसदों के काम के अनुपात में प्रस्तावित वेतन बढ़ोतरी बिलकुल गलत है। सांसदों के वेतन बढ़ोतरी का फैसला होते ही विधायकों ने भी ऐसी ही मांग शुरू कर दी। दिल्‍ली से यह सिलसिला शुरू हो चुका है, जहां विधायकों का वेतन बढ़ाने पर सहमति भी हो गई है। महाराष्ट्र में भी इस संबंध में प्रस्ताव तैयार हो गया है। डर है कि दूसरे राज्‍यों में भी यह मांग जोर पकड़ेगी। और तो और, सर्वे में शामिल 27 फीसदी पाठकों ने तो यह अंदेशा भी जताया कि अब नौकरशाह भी वेतन बढ़ोतरी की मांग कर सकते हैं। छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद नौकरशाहों की तनख्‍वाह पहले से ही मोटी हो गई है। सांसदों का वेतन बढ़ाने का फायदा क्‍या होगा? क्‍या सांसद बेहतर काम करेंगे या फिर इससे भ्रष्‍टाचार में कमी आएगी? सर्वे में शामिल दैनिकभास्कर के पाठकों की राय को संकेत मानें तो ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। केवल 3.4 प्रतिशत लोगों ने माना कि बढ़े हुए वेतन के साथ सांसद बेहतर काम करेंगे और जनता इनसे खुश रहेगी। इसी तरह 5.4 फीसदी पाठकों की राय थी कि सांसदों का वेतन बढ़ जाने से भ्रष्टाचार कम करने में मदद मिलेगी।

Sunday, August 22, 2010












पूर्व विदेश राज्यमंत्री और कांग्रेस सांसद शशि थरूर रविवार सुबह केरल में अपनी दोस्त सुनंदा पुष्कर के साथ विवाह बंधन में बंध गए।
दोनों की शादी थरूर के पुश्तैनी नगर पलक्कड़ में पूरे रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुई। थरूर और सुनंदा ने सुबह करीब ८.30 बजे एक दूजे के गले में जयमाल डाली। इससे पहले थरूर ने सुनंदा को मंगल-सूत्र पहनाया।




थरूर-सुनंदा के रिश्तों की बात इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) से जुड़े विवाद के दौरान सार्वजनिक हुई थी। इस विवाद की वजह से ही थरूर को मंत्री पद गवांना पड़ा था।

Friday, August 20, 2010

सांसदों का वेतन तीन गुना बढ़ाकर 50,000 रुपए


केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को सांसदों के वेतन मौजूदा 16,000 रुपए प्रतिमाह से तीन गुना बढ़ाकर 50,000 रुपए करने को मंजूरी दे दी लेकिन इसे अपर्याप्त बताते हुए विभिन्न पार्टियों के सांसदों ने हंगामा करके लोकसभा की कार्यवाही में बाधा पैदा की।
समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (युनाइटेड) तथा अन्य दलों के सांसदों ने कम वेतन वृद्धि का विरोध किया और मंत्रिमंडल द्वारा प्रस्तावित वेतन वृद्धि को वापस लेने की मांग की।
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने विरोध की शुरुआत की। उन्होंने सांसदों को सचिव के वेतन से एक रुपए अधिक 80,001 रुपए प्रतिमाह वेतन देने की मांग की।
सांसद 'हमारा वेतन वापस लो, वापस लो, वापस लो' के नारे लगाते हुए लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के आसन के समीप खड़े हो गए। लालू प्रसाद ने आरोप लगाया कि कम वेतन बढ़ाकर सरकार ने सांसदों का अपमान किया है।
मीरा कुमार ने जब लालू प्रसाद से अपनी सीट पर बैठने और प्रश्नकाल को ठीक ढंग से चलने देने को कहा तो प्रसाद ने जवाब दियाकि संसदीय समिति ने वेतन 80,001 रुपए करने की सिफारिश की थी। यह अपमान है। हम इस पर शांत कैसे बैठ सकते हैं।
अध्यक्ष ने बार-बार आग्रह किया कि इस मुद्दे को शून्यकाल के दौरान उठाया जाए लेकिन हंगामा करने वालों ने उसे अनसुना कर दिया। इसके बाद मीरा कुमार ने सदन की कार्रवाई स्थगित कर दी।
सांसदों का वेतन इस समय 16,000 रुपए प्रतिमाह है। संसदीय समिति ने उनका वेतन 80,001 रुपए प्रतिमाह करने की सिफारिश की थी। इसके विपरीत संसदीय कार्य मंत्रालय ने सांसदों का वेतन 50,000 रुपए प्रतिमाह करने का सुझाव दिया।
संसदीय समिति का कहना था कि सांसदों को सचिव के वेतन से कम से कम एक रुपए अधिक वेतन मिलना चाहिए। वेतन के अलावा सांसदों को संसद या संसदीय कार्यवाहियों में हिस्सा लेने पर हर रोज 1,000 रुपए दैनिक भत्ता मिलता है। सांसदों को प्रतिमाह 20,000 रुपए संसदीय क्षेत्र भत्ता और 20,000 रुपए कार्यालय भत्ता भी मिलता है।

Thursday, August 19, 2010

ममता बनर्जी के बयान पर राज्यसभा में हंगामा


नक्सली नेता चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद के एक मुठभेड़ में मारे जाने से जुड़े रेल मंत्री ममता बनर्जी के बयान पर गुरुवार को राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ। सदन में शून्य काल के दौरान वाम दलों के सदस्यों ने यह मसला उठाया। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी ने इस मामले पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा। येचुरी ने कहा, प्रश्न काल के दौरान प्रधानमंत्री सदन में मौजूद थे और उनसे हमने शून्य काल तक सदन में रुकने के लिए कहा था लेकिन वह चले गए। उन्हें इस समय सदन में मौजूद होना चाहिए थे। प्रधानमंत्री खुद कह चुके हैं कि नक्सली देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। अब उनके मंत्रिमंडल की एक सदस्य नक्सलियों को संरक्षण दे रही हैं। इस पर संसदीय कार्य राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, सारी बातें मीडिया में कही जा रही हैं। जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ नहीं है। इसलिए हम मीडिया रिपोर्टो के आधार कोई कदम नहीं उठा सकते। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उन्होंने ममता को टेलीविजन पर बोलते हुए देखा है। इस पर तृणमूल कांग्रेस के मुकुल रॉय और दिनेश त्रिवेदी ने आपत्ति जताई। बाद में इन दोनों से कहा गया कि वे लोकसभा के सदस्य और मंत्री भी हैं लिहाजा यहां टोकाटाकी नहीं कर सकते। आजाद के संदर्भ में दिए अपने बयान पर बुधवार को ममता ने अडिग रहने की बात कही। बीते नौ अगस्त को लालगढ़ में एक सभा में उन्होंने कहा था कि आजाद की एक सुनियोजित मुठभेड़ में हत्या की गई है।

Wednesday, August 18, 2010

कांग्रेस, बीजेपी और बीएसपी की एक साल की कमाई 8 अरब रुपये

लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस, विपक्षी पार्टी बीजेपी और उत्तर प्रदेश में शासन कर रही बीएसपी की एक साल की कमाई के आगे भारत पर वर्षों राज करने वाली ब्रिटेन की तीन प्रमुख पार्टियां कहीं भी नहीं टिकती हैं। भले ही ब्रिटेन का जीडीपी (सकल घरेलू उत्‍पाद) भारत से दोगुना है, वहां का हर नागरिक औसतन एक भारतीय से 30 गुना ज़्यादा कमाता है, लेकिन भारत की तीन प्रमुख सियासी पार्टियों की आमदनी ब्रिटेन की तीन प्रमुख पार्टियों की तुलना में 150 गुना से भी ज़्यादा है। वित्त वर्ष 2008-09 में कांग्रेस, बीजेपी और बीएसपी की साझा आमदनी करीब 786.62 करोड़ रुपये (करीब 8 अरब रुपये) रही, जबकि ब्रिटेन की तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियों- लेबर, कंजर्वेटिव और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी - ने वित्त वर्ष 2009-10 में महज करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये (पाउंड स्टर्लिंग की आज की दर के आधार पर) जुटाए। भारत के राजनीतिक दलों की माली हैसियत सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत डाली गई एक अर्जी के जरिए सामने आई है, जबकि ब्रिटिश राजनीतिक पार्टियों की कमाई का ठोस अनुमान वहां के चुनाव आयोग ने लगाया है। भारत में 702 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं। इनमें छह पार्टियां राष्ट्रीय हैं। वहीं, ब्रिटेन में 341 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं। ब्रिटेन में चुनाव कराने वाली संस्था 'द इलेक्टोरल कमिशन' की साइट पर मौजूद सूचना के मुताबिक लेबर पार्टी, कंजर्वेटिव पार्टी और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ने पिछले साल आयकर रिटर्न दाखिल नहीं किया है। लेकिन कमिशन के अंदाज के मुताबिक ये तीनों पार्टियां करीब पौने दो करोड़ रुपये सालाना की आमदनी से ज़्यादा का रिटर्न दाखिल करेंगी। अगर वास्‍तविक आंकड़ा थोड़ा ज़्यादा भी हो, तो भी उनकी आमदनी भारत की तीन सबसे अमीर पार्टियों की सालाना आमदनी के आगे कहीं भी नहीं टिकने वाली होगी है। गौरतलब है कि ब्रिटेन दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि भारत को दुनिया की 11 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था माना जाता है। दोनों देशों में प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी के आंकड़े में बड़ा अंतर है। भारत में लोग बेहद गरीब हैं, लेकिन यहां की राजनीतिक पार्टियों के पास अगाध पैसा है।

Tuesday, August 17, 2010

सांसदों के वेतन और भत्तों में वृद्धि नहीं होने से लालू नाराज


मंगलवार को लोकसभा में लालू यादव और समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह ने शून्यकाल में सांसदों के वेतन और भत्तों का मामला उठाया। सांसद लालू प्रसाद यादव वेतन वृद्धि नहीं होने से खासे नाराज हैं। उन्‍होंने सांसदों की तनख्‍वाह 300 फीसदी बढ़ाने वाले प्रस्‍ताव का विरोध करने वाले कैबिनेट मंत्रियों को आड़े हाथों लिया। बीजेपी के अलावा सभी दलों के सांसदों ने उनका साथ दिया। हंगामे के बाद सदन की कार्रवाई स्थगित करना पड़ी। सोमवार को इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए कैबिनेट की बैठक हुई, लेकिन सभी मंत्री इस पर सहमत नहीं हुए। इसके बाद निर्णय को फिलहाल टाल दिय़ा गया। राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू ने इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि जो मंत्री इसका विरोध कर रहे हैं वे करोड़पति और अरबपति हैं और आम सांसदों का दर्द नहीं समझते। कैबिनेट के जो सदस्य इस प्रस्तावित बढ़ोतरी से सहमत नहीं हैं, उनमें गृह मंत्री पी चिदंबरम और सुरक्षा मंत्री एके एंटनी, सूचना-प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी, प्रवासी मामलों के मंत्री वायलार रवि शामिल हैं, जबकि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल इसके पक्ष में हैं। जिन मंत्रियों ने प्रस्ताव का विरोध किया उनका मानना है कि वेतन बढ़ोतरी के लिए यह सही समय नहीं है। अभी सभी ओर कॉमनवेल्थ खेलों में हुए भ्रष्टाचार की चर्चा है और आम जनता तेल के दामों में बढ़ोतरी से भी खुश नहीं हैं। इसके अलावा महंगाई से भी जनता परेशान है और अभी वेतन बढ़ाने का संदेश अच्छा नहीं जाएगा। प्रस्‍तावित वेतन वृद्धि से सरकारी खजाने पर 142 करोड़ रुपए का अतिरिक्‍त बोझ पड़ेगा। सांसदों को 16,000 रुपए मूल मासिक वेतन मिलता है। इसे 50,000 रुपए करना प्रस्तावित है। सांसदों को इसके अलावा संसद के सत्र के दौरान हर दिन 1,000 रुपए का विशेष भत्ता मिलता है। इसके अलावा उन्हें 20,000 रुपए संसदीय क्षेत्र भत्ता के रूप में भी दिए जाते हैं। दिल्‍ली में निवास, हवाई व रेल यात्रा, बिजली, फोन आदि की सुविधा भी दी जाती है।वित्त मंत्री ने कहा प्रस्ताव विचाराधीनवित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने राज्यसभा में बताया कि सरकार को सांसदों का वेतन बढ़ाने संबंधी समिति की रिपोर्ट मिल गई है। इस पर विचार के बाद इसे पंद्रहवीं लोकसभा के गठन के दिन से लागू किया जाएगा।

Friday, August 13, 2010

हिन्दी में पूछे गये सवाल का जवाब अंग्रेजी में दिये जाने का विरोध

लोकसभा में आज प्रश्नकाल की कार्यवाही का अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध नहीं होने के कारण सदन को 15 मिनट के लिए स्थगित करना पड़ा। प्रश्नकाल के दौरान जब भारतीय जनता पार्टी के हंसराज अहीर ने विद्युतिकरण के मुद्दे को लेकर जब सवाल पूछा तो द्रमुक के टी आर बालू ने लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार से अंग्रेजी अनुवाद नहीं होने की शिकायत करते हुये कहा कि अक्सर प्रश्नकाल के दौरान अंग्रेजी अनुवाद सुनने की सुविधा नहीं होती है और ऐसे में हमारे यहां रहने का क्या मतलब है।लोकसभा अध्यक्ष ने इस बारे में व्यवस्था किये जाने का आश्वासन दिया, लेकिन श्री टी आर बालू एवं द्रमुक के सदस्य सदन से उठकर जाने लगे। इस पर सदन में सवालों का जवाब दे रहे विद्युत राज्य मंत्नी भरत सिंह सोलंकी ने कहा कि वह अंग्रेजी में जवाब दे रहे हैं, इस पर श्री बालू एवं अन्य सदस्य लौट आये, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और विपक्ष के ज्यादातर सदस्य अपनी सीटों पर खड़े होकर हिन्दी में पूछे गये सवाल का जवाब अंग्रेजी में दिये जाने का विरोध करने लगे।इस पर श्री सोलंकी ने कहा कि वह सवाल का जबाव पहले हिन्दी में और बाद में अंग्रेजी में देंगे। इस पर सदन में शोर शराब जारी रहा और अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही साढ़े ग्यारह बजे से पौने बारह बजे तक स्थगित करनी पड़ी।

Sunday, August 1, 2010

सांसद प्रभुनाथ लालू प्रसाद के साथ


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जदयू नेता पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह, जदयू विधायक केदार सिंह व रामप्रवेश राय समर्थकों के साथ 7 अगस्त को राजद में शामिल होंगे। छपरा में आयोजित इस मिलन समारोह में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद शिरकत करेंगे।
प्रभुनाथ सिंह का सारण प्रमंडल में एक जाति विशेष पर अधिक प्रभाव है। उनका राजद सांसद उमाशंकर सिंह के साथ मतभेद रहा है, जिनके हाथों उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। राजद सुप्रीमो ने उमाशंकर सिंह की सहमति से ही प्रभुनाथ सिंह को राजद में शामिल करने का निर्णय किया है।
दूसरी ओर बिहार में शुरू सियासी तोड़भांग के खेल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को कहा है कि लालू जदयू से रिजेक्ट माल ले जा रहे हैं। जो भूतपूर्व हो चुके हैं उनके जाने का कोई मतलब नहीं। हम वहां से वर्तमान को लाएंगे।
नीतीश कुमार ने कहा कि लालू प्रसाद का हाल बुरा है। जब भी वह कोई बात करते हैं जनता हंसती है। उनके कुशासन का दंश झेल रहे लोगों ने पहली बार सुशासन का स्वाद चखा है। जब राजद सुप्रीमो फिर से वापसी की बात करते हैं तो लोग सिहर उठते हैं। रोंगटे खड़े हो जाते हैं लोगों के।

Saturday, June 5, 2010

आपसी खींचतान से गडकरी दुखी


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भाजपा में आंतरिक कलह का परोक्ष जिक्र करते हुए पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने आज कहा कि कुछ वरिष्ठ नेताओं के बीच टकराव होने से उन्हें काफी दुख होता है।भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के दो दिवसीय सम्मलेन में गडकरी ने कहा, ‘‘ जब मैं देखता हूं कि दो बड़े व्यक्तियों के अंह टकरा रहे हैं तब मुझे बहुत दुख होता है। मैं उनके बीच मध्यस्थता का प्रयास करता हूं।’’ उल्लेखनीय है कि गडकरी को पिछले साल दिसंबर में उस समय भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था जब पार्टी में अंतर्कलह चरम पर था।उन्होंने कहा, ‘‘ हम सब को अपने मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों की अगुवाई में टीम भावना के साथ काम करना चाहिए। ’’ गडकरी ने कहा कि राष्ट्रवाद भाजपा का प्रेरणास्रोत है और यह पार्टी के राजनीतिक चरित्र को परिभाषित करता है।उन्होंने कहा कि पार्टी का मार्गदर्शन करने वाले महत्वपूर्ण व्यक्ति यहां पधारे हैं। सम्मेलन में भाजपा शासित राज्यों के 65 मंत्री और राज्य मंत्री उपस्थित थे। उनके अलावा करीब दो दर्जन पार्टी पदाधिकारी भी मौजूद थे।उन्होंने कहा, ‘‘हमने जिन सभी क्षेत्रों में काम किया, हमने साबित किया है कि हमारी पार्टी अन्य से भिन्न है और हमें इस बात पर गर्व है।’’

आज विश्व पर्यावरण दिवस है





























Thursday, June 3, 2010

अध्यक्ष के रूप में मीरा का एक साल


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लोकसभा अध्यक्ष के रूप में एक वर्ष का कार्यकाल पूरा करने पर मीरा कुमार ने आज कहा कि वह प्रश्नकाल का समय बदलने सहित सभी मुद्दों पर आम राय से चलना पसंद करेंगी ।लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष बन कर इतिहास रचने वाली मीरा कुमार ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘‘मेरा प्रयास यह सुनिश्चित करना होगा कि सदन में आपसी सम्मान की भावना बने ।’’ वह पिछले साल तीन जून को सर्वसम्मति से लोकसभा अध्यक्ष चुनी गई थीं ।प्रश्नकाल के अक्सर हंगामे की भेंट चढ़ जाने के कारण उसके समय में परिवर्तन करने की उनकी मंशा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘मेरे काम काज का ढंग यह है कि मैं उस समय तक कोई निर्णय लागू नहीं करती हूं, जब तक कि उस पर आम राय नहीं बन जाती ।’’ अध्यक्ष के रूप में उन्होंने एक बड़ा पर्वितन यह किया है कि अब कोई तारांकित प्रश्न सिर्फ इसलिए समाप्त नहीं हो जाता है कि उसे पूछने वाला सदस्य सदन में उपस्थित नहीं है । यह महत्वपूर्ण फैसला उन्होंने उस समय किया जब एक दिन असामान्य रूप से 17 सवालों के जवाब मंत्री इसलिए नहीं दे पाए कि प्रश्नकर्ता सदस्य सदन में उपस्थित नहीं थे ।उन्होंेने ऐतिहासिक व्यवस्था में अध्यक्ष को यह अधिकार दिया कि प्रश्नकर्ता सदस्य के सदन में मौजूद नहीं रहने पर भी वह मंत्री से उसका उत्तर देने को कह सकता है और मंत्री के उत्तर के बाद अन्य सदस्य उस पर पूरक प्रश्न कर सकते हैं ।एक साल के कार्यकाल के अनुभवों के बारे में पूछे जाने पर मीरा कुमार ने कहा, ‘‘पिछला एक साल चुनौती भरा होने के साथ ही बहुत संतोषजनक भी रहा क्योंकि सदन में सभी सदस्यों ने उनके प्रति सम्मान प्रकट किया ।’’

Wednesday, June 2, 2010

पश्चिम बंगाल में प्रणब मुखर्जी ने अपनी हार स्वीकार की




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पश्चिम बंगाल में हुए निकाय चुनावों की वोटों की गिनती चल रही है। निकाय


चुनाव व कोलकता वार्ड चुनाव के रुझान में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस बहुमत की तरफ आगे बढ़ रही है। ममता की भारी जीत को देखते हुए उन्होंने कहा कि जनता का फैसला मुझे स्वीकार है, साथ ही मैं ममता को ढेर सारी बधाई भी देना चाहता हूं कि जनता के दिल में जगह बनाने में कामयाब रहीं। रानीगंज, तुफानगंज सीट पर भी लेफ्ट, कटवा सीट पर कांग्रेस का कब्जा, पुरुलिया व रघुनाथपुर में तृणमूल की जीत, सोनामुखी और चन्द्रकोणा, दिनहाटा में लेफ्ट की जीत, जलपाईगुड़ी में कांग्रेस की जीत, माथाभांगी, बाली, दिनहाटा में लेफ्ट, बिसनुपुर, राणाघाट, सॉल्ट लेक, गएशरनगर, बांकरा में टीएमसी की जीत। झालदा, कूचबिहार की चारों सीटों पर लेफ्ट कब्जा। तृणमूल कांग्रेस कोलकाता में भारी बढ़त बनाए हुए है। अब के रुझानों के मुताबिक कोलकाता के 141 वार्डों में 97 वार्डों पर तृणमूल कांग्रेस आगे चल रही है, जबिक लेफ्ट को 33 सीटों पर बढ़त हासिल है। कांग्रेस यहां पर 7 वार्डों में आगे चल रही है। निकाय चुनाव में कांग्रेस और तृणमूल के बीच गठबंधन नहीं हो पाया था और दोनों पार्टियों ने अपने दम पर निकाय चुनावों में हिस्सा लिया था। ताजा रुझानों के मुताबिक बंगाल 81 निकाय सीटों में तृणमूल 31, लेफ्ट 23 और कांग्रेस 9 सीटों पर आगे चल रही है। कोलकाता से सटे विधाननगर (साल्ट) नगरपालिका में भी तृणमूल कांग्रेस बढ़त बनाए हुए है। वहां के 25 वार्डों में तृणमूल 18 वार्डों में आगे है लेफ्ट सिर्फ 7 सीटों पर आगे चल रही है। गौरतलब है कि अभी इन दोनों जगहों पर लेफ्ट का कब्जा है। कांग्रेस ने कातवा (बर्दवान) नगरपालिका सीट पर कब्जा बरकरार रखा है जबकि तृणमूल ने पुरुलिया सीट पर कब्जा जमा लिया है। पश्चिम बंगाल में पिछले रविवार को हुए निकाय चुनावों में तकरीबन 70 फीसदी लोगों ने वोटिंग की थी। इस चुनाव को अगले साल होनेवाले विधान सभा चुनावों के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है।

Tuesday, June 1, 2010

मंत्रियों का राज्यसभा कार्यकाल समाप्त


संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा की 55 सीटों के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने कैंडिडेटों की घोषणा कर चुके हैं। जिन मंत्रियों का राज्यसभा कार्यकाल समाप्त हो गया है उनमें वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा, पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश, सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी शामिल हैं। इसके अलावा आर. के. धवन, बी. के. हरिप्रसाद, मोहसिना किदवई, वेंकैया नायडू, मुख्तार अब्बास नकवी और राजीव प्रताप रूडी भी हैं। चुनाव आगामी 17 जून को होना है और नामांकन की प्रक्रिया सोमवार से शुरू हो गई है। राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों की संख्या के मुताबिक ही राज्य के राज्यसभा सदस्यों की संख्या तय होती है। यानी बड़े राज्यों से ज्यादा सदस्य आते हैं और छोटों से कम। मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश से 31 सदस्य चुने जाते हैं, तो अरुणाचल प्रदेश, गोवा और इसी तरह के 9 छोटे राज्यों से सिर्फ एक-एक सदस्य चुनकर आता है। 13 राज्यों में होने हैं चुनाव आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पंजाब, झारखंड और उत्तराखंड में राज्यसभा चुनाव होने हैं। राज्यसभा सदस्य का कार्यकाल 6 साल का होता है। एक तिहाई सदस्य हर दो साल बाद रिटायर हो जाते हैं। द्विवार्षिक चुनाव के जरिए नए सदस्य चुने जाते हैं। विधायक ही हैं वोटर विधानसभा के चुने हुए विधायक राज्यसभा सदस्यों के लिए वोट देते हैं। मतदान की प्रक्रिया आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर होती है। राज्यसभा के नेता प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह असम से राज्यसभा के सदस्य हैं तो विपक्ष के नेता अरुण जेटली गुजरात से। मगर ऐसी तस्वीर हमेशा से नहीं थी। 8 साल पहले तक राज्यसभा सदस्य बनने के लिए उस राज्य का मूल निवासी होना अनिवार्य था, पर संसद ने कानून बदल दिया। अब यह राज्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। बावजूद इसके यह अभी भी काउंसिल ऑफ स्टेट कहलाती है। कुछ सदस्य होते हैं मनोनीत ऐसा नहीं है कि राज्यसभा के सभी सदस्य निर्वाचन के जरिए ही आते हैं। 12 सदस्यों को राष्ट्रपति विभिन्न क्षेत्रों से मनोनीत करती हैं। मसलन, साहित्य, साइंस और समाज सेवा में उल्लेखनीय काम करने वालों को भी मनोनीत किया जाता है।

Monday, May 31, 2010

राज्य सभा सीटों के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू


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तमिलनाडु में छह राज्य सभा सीटों के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया आज शुरू हो गयी। इनके लिए 17 जून को चुनाव होने हैं।विधानसभा के सचिव एम. सेल्वाराज ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘नामांकन पत्र पूर्वाह्न 11 बजे से अपराह्न तीन बजे के बीच दाखिल किये जा सकते हैं और नामांकन की अंतिम तारीख दो जून होगी।’’ उन्होंने कहा कि नामांकन पत्र की जांच का काम आठ जून को किया जाएगा और नाम वापसी की अंतिम तारीख 10 जून है।सेल्वाराज ने कहा कि दो निर्दलीय विधायकों ने आज अपने नामांकन पत्र दाखिल किये।

उत्तर प्रदेश विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से राज्यसभा की दस सीटों के लिए 17 जून को दो साल के लिए हो रहे चुनाव और एक सीट के लिए हो रहे उपचुनाव के लिए शुरू हुए नामांकन के पहले दिन यानी सोमवार को बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की जिन दस सीटों के लिए आम चुनाव हो रहे हैं, उनका कार्यकाल चार जुलाई को समाप्त हो रहा है और उनमें से सात पर सपा, दो पर बीएसपी और एक पर बीजेपी का कब्जा है। नकवी ने आज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनय कटियार, प्रदेश अध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही, लखनऊ के सांसद लालजी टंडन, पार्टी विधानदल के नेता ओमप्रकाश और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी की उपस्थिति में इन चुनावों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे के समक्ष अपना पर्चा दाखिल किया। जिस एक सीट के लिए उपचुनाव हो रहा है, वह पिछले दिनों एसपी के वरिष्ठ नेता जनेश्वर मिश्र के निधन से खाली पड़ी है। चार जुलाई को उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के जिन दस सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है उनमें एसपी की जया बच्चन और भगवती सिंह, बीजेपी के अरुण शौरी तथा बसपा के सतीश चन्द मिश्र प्रमुख हैं। प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में 226 सदस्यों वाली सत्तारुढ़ बीएसपी ने दस सामान्य सीटों पर सात और एक उम्मीदवार उपचुनाव की सीट पर उतारने का फैसला किया है जबकि 87 सदस्यों वाली एसपी ने दो उम्मीदवार और 48 सदस्यों वाली बीजेपी ने एक उम्मीदवार खड़ा करने की घोषणा की है। बीएसपी ने इन चुनावों में पार्टी के प्रमुख नेता सतीश चन्द्र मिश्र को फिर से उम्मीदवार बनाने के साथ अंबेद राजन, जुगुल किशोर, सलीम अंसारी, एसपी सिंह बघेल, नरेन्द्र कुमार कश्यप और राजपाल सिंह सैनी को मैदान में उतारने का फैसला किया है, जबकि एसपी की तरफ से मोहन सिंह और रशीद मसूद की उम्मीदवारी घोषित की गयी है।

Sunday, May 30, 2010

बसपा राज में पैसा बना राजनीति का लक्ष्य : अखिलेश यादव


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समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सत्तारुढ बहुजन समाज पार्टी पर लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल डालने का आरोप लगाते हुए आज यहां कहा कि बसपा राज में राजनीति की परिभाषा हो गयी है पैसे के लिए सरकार पैसे से चलने वाली सरकार पैसे के माध्यम से सरकार है। मायावती सरकार में हर स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त होने का आरोप लगाते हुए कहा, मुख्यमंत्री सचिवालय पंचमतल पर भ्रष्टाचार की नीति बनती है और वह भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। उन्होने मुख्यमंत्री मायावती पर निशाना साधते हुए कहा कि लोगो की मूर्तियां उनके मरने के बाद लगायी जाती है मगर मुख्यमंत्री मायावती ने अपने जीवनकाल में ही अपनी सात-सात मूर्तियां लगवाई हैं।बसपा सरकार पर दो हजार एकड़ भूमि पर पार्को एवं स्मारको के निर्माण पर 20 हजार करोड रूपये खर्च कर डालने का आरोप लगाते हुए यादव ने कहा कि यदि यही पैसा गरीबो की दशा सुधारने के लिए खर्च होता तो प्रदेश की तस्वीर बदल सकती थी।अखिलेश ने देश एवं प्रदेश की तमाम समस्याओ के लिए मुख्यत: कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के मिशन 2012 की चुटकी ली और कहा कि देश में महंगाई और भ्रष्टाचार रोक पाने में विफल कांग्रेस और इसके महासचिव राहुल मिशन 2012 का ख्वाब देख रहे है।उन्होने महंगाई के साथ ही बढती बेरोजगारी के लिए भी कांग्रेस एवं केन्द्र सरकार की नीतियो को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि जनता को संप्रग सरकार से उसके काम काज का हिसाब मांगना चाहिए।

Saturday, May 29, 2010

झारखंड में कुछ हाथ नहीं लगा : शत्रु



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भाजपा के वरिष्ठ नेता और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा का मानना है कि ‘‘अवसरवादी गठबंधन’’ के जरिए संख्या का जुगाड़ करके झारखंड में सरकार बनाने के प्रयास से ‘‘दुर्गति’’ के सिवाय पार्टी के कुछ हाथ नहीं आया ।पटना साहब से पार्टी के सांसद सिन्हा ने कहा कि यशवंत सिन्हा जैसे अनुभवी और सम्मानित नेता के नेतृत्व में झारखंड में सरकार बनाने का प्रयास नहीं करके भाजपा ने बड़ी गलती की, जबकि वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ऐसा करने का सुझाव भी दिया था ।बेबाकी से अपनी बात रखने के लिए ‘शाट गन’ नाम से मशहूर सिन्हा ने प्रेट्र से कहा, ‘‘झारखंड में सरकार बनाने के दुस्साहसिक प्रयास से पार्टी की बदनामी ही हुई । पार्टी को और दुर्गति से बचाने के लिए अब इस तरह के सभी प्रयास तुरंत रोके जाने चाहिए ।’’ उन्होंने कहा कि पार्टी ने अगर इस तरह के प्रयास आगे भी जारी रखे तो इससे ‘दूसरों से अलग’ का दावा करने वाली भाजपा की छवि को गहरा धक्का लगेगा । यही नहीं, इससे इस साल के अंत में होने वाले पड़ोस के बिहार राज्य के विधानसभा चुनाव के नतीजे भी प्रभावित होंगे।

Friday, May 28, 2010

सांसद वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी गिरफ्तार


आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्नी वाई एस राजशेखर रेड्डी के पुत्न और कांग्रेस सांसद वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी को आज पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। वारंगल जिले के महमूदाबाद में शुक्रवार को कडपा के एमपी वा ईएस जगमोहन रेड्डी द्वारा ओदारपू यात्रा शुरू करने के बाद हिंसा भड़क उठी।इस यात्रा के दौरान ही एक छात्र प्रफुल्ल राजू (20) की उस वक्त मौत हो गई जब कांग्रेसी नेता के सुरक्षा गार्ड ने पूर्व मंत्री कोंडा सुरेखा पर हमला करने वाली भीड़ को हटाने के लिए रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में फायरिंग शुरू कर दी। प्रफुल्ल बहुजन स्टूडेंट फेडरेशन का सदस्य था और वह महमूदाबाद मंडल के वीएस लक्ष्मीपुरम का रहने वाला था। घटना के बाद पुलिस ने जगन को वंगापल्ली स्टेशन पर गिरफ्तार कर उन्हें हैदराबाद ले जाया गया। वारंगल के एसपी शाहनवाज कासिम ने बताया भारी हिंसा को देखते हुए यात्रा टाल दिया गया है। साथ ही शहर में भारी मात्रा में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती के आदेश दे दिए हैं।कांग्रेस आलाकमान ने जताया था विरोधकांग्रेस आलाकमान के मना करने और तेलंगाना राष्ट्र समिति तथा तेलंगाना के अन्य कई संगठनों के विरोध के बावजूद आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्नी वाई एस राजशेखर रेड्डी के पुत्न और कांग्रेस सांसद वाई एस जगनमोहन रेड्डी ने आज वारंगल में अपनी 'ओदारपू यात्ना' शुरु कर दी थी।दक्षिण मध्य रेलवे सूत्नों के अनुसार टीआरएस और उस्मानिया छात्न संघ की संयुक्त कार्रवाई कमेटी एवं कई अन्य संगठनों के श्री रेड्डी की इस यात्ना के भारी विरोध के कारण हैदराबाद-वारंगल रेल खंड पर रेल यातायात बाधित हो गया। प्रदर्शनकारियों ने कई जगह पर पटरियों से फिश प्लेटें निकाल दी हैं। इसके अलावा मार्ग पर पेड़ डाले जाने के कारण विभिन्न स्थानों पर ट्रेनों की आवाजाही रोक दी गई।सूत्नों ने बताया कि भाग्यनगर-एपी एक्सप्रेस, कृष्णा एक्सप्रेस, सतवहाना और त्निवेन्द्रम एक्सप्रेस सहित कई गाडि़यों को रोक दिया गया है जिसके कारण यात्नियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सूत्नों के अनुसार प्रदर्शनकारियों द्वारा घानपुर, रघुनाथपल्ली और माहबूबाबाद, जंगाव एवं नालगोंडा, वारंगल खंड़ पर पटरियों से फिश प्लेटें हटाई गई जिसके कारण ट्रेनें रोक दी गई। कांग्रेस के पार्टी सूत्नों ने बताया कि यात्ना श्री जगनमोहन रेड्डी ने पार्टी नेताओं की सलाह पर ध्यान नहीं दिया। पार्टी हाई कमान ने भी इस यात्ना की अनुमति नहीं दी थी और इस बारे में पार्टी के आंध्र प्रदेश के प्रभारी केंद्रीय मंत्नी वीरप्पा मोइली श्री रेड्डी को सूचित भी कर दिया था। राज्य के मुख्यमंत्नी के रोसैया ने भी कल रात इस मुद्दे पर उच्च स्तरीय बैठक बुलाई और अपने मंत्नि मंडल के सदस्य एन रघुवीर रेड्डी तथा पी सबिता इंद्रा रेड्डी को श्री जगमोहन रेड्डी के आवास पर भेजकर उन्हें यात्ना नहीं निकालने के लिए सलाह देने को कहा लेकिन श्री रेड्डी यात्ना करने की अपनी जिद्द पर अडे़ रहे।तेलंगाना के राजनीतिक दलों और संगठनों तथा पार्टी हाईकमान के सभी प्रयासों को नजर अंदाज कर श्री जगनमोहन रेड्डी आज सुबह रेल से महबूबाबाद के लिए रवाना हुए थे। इसी बीच यह खबर आई कि श्री जगनमोहन रेड्डी जिस गाड़ी से सफर कर रहे हैं उसमें बम रखा हुआ है तो रेल की पूरी तरह तलाशी लेनी पड़ी इसके साथ ही तेलंगाना से किसी व्यक्ति ने फोन कर कहा कि जिस मार्ग से श्री जगनमोहन रेड्डी जा रहे हैं उस मार्ग पर रेल पटरी की फिश प्लेट हटा दी गई है। इस सूचना के बाद रेल लाइन की पूरी जांच पडताल की गई।श्री जगनमोहन रेड्डी की यात्ना के कारण हैदराबाद वारंगल के बीच रेल यातायात पूरी तरह प्रभावित हुआ है। रेल सूत्नों ने बताया कि इस क्षेत्न से गुजरने वाली करीब 20 एक्सप्रेस टेनों सहित कई रेल गाडि़यों को रोक दिया गया।

Wednesday, May 26, 2010

जया बच्चन फिर समाजवादी पार्टी से राज्यसभा उम्मीदवार


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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अभिनेत्री-राजनेता जया बच्चन को एक बार फिर पार्टी की ओर से राज्यसभा का उम्मीदवार घोषित किया है। लखनऊ में पार्टी मुख्यालय की तरफ से बुधवार को सपा के उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष अखिलेश यादव के हवाले से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में इस बात की जानकारी दी गई। अखिलेश ने कहा कि सपा के संसदीय बोर्ड ने जया के नाम पर आखिरी मुहर लगाई। जया के साथ पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आने वाले रशीद मसूद को भी राज्यसभा का टिकट देने की घोषणा की। अमर सिंह को जब सपा से निकाला गया था तब उनके कई करीबियों जयाप्रदा, संजय दत्त, मनोज तिवारी ने सपा से नाता तोड़ लिया था। पिछले दिनों लखनऊ में अमर सिंह ने जया बच्चन के बारे में संवाददाताओं द्वारा पूछा जाने पर कहा था कि इस परिवार से मेरे पारिवारिक रिश्ते हैं और उनके बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा।

Monday, May 24, 2010

बोले manmohan

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Ladies and Gentlemen of the Media,
Let me begin by welcoming you all to this Press Conference, on the occasion of the completion of the first year of our second term in office. At the outset I express my deep condolences at the grievous loss of life that resulted from the tragic air crash in Mangalore on Saturday.
I believe that the mandate of the 2009 elections was a vote for the inclusive agenda of the UPA government that sought to give voice to all sections of the Indian people and to empower them.
The agenda for our second term seeks to strengthen the pro-people policies and programmes initiated by our government since 2004. The social and economic uplift of the Scheduled Castes and Tribes, other backward classes, minorities and women will continue to receive priority attention in our plans.
We need a rapidly growing economy to generate productive employment and also resources to finance our ambitious social and economic agenda.
Our medium term target is to achieve a growth rate of 10 percent per annum. I am convinced that given our savings and investment rates, this is an achievable target. However, its achievement will require determined efforts to increase investment in social and economic infrastructure, enhance productivity in agriculture and give a fresh impetus to the manufacturing sector.
The past couple of years have been exceptionally difficult years for the Indian economy. The year 2008 saw a global financial crisis, which threatened to push the world into a recession. We also faced a severe drought in 2009.
Inevitably, our first priority was to protect the economy from the global slowdown and ensure that the momentum of inclusive growth did not get interrupted. I leave it to you to judge how well we have done on this count. Our annual growth rate had averaged 9% for four years before the crisis. It reduced to 6.5% in 2008-09 but recovered to 7.2% in 2009-10. We expect 8.5% growth in this financial year. This is widely regarded as one of the best performances among the larger economies of the world.
This outcome is in large part due to our workers, farmers and youth, who have shown great enterprise and worked hard to keep the engine of economic growth running.
I will briefly highlight some of the important steps we have taken over the past year and also the pressing challenges that confront the nation.
Our flagship programmes such as the Bharat Nirman, the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme, the National Rural Health Mission and the Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission are progressing well. We are on a learning curve and we can and will do more to strengthen these programmes and improve delivery.
The Right to Education Act enacted last year is a historic step forward in making every Indian a literate and empowered citizen.
We are undertaking a comprehensive review of our system of higher education, including medical education. A draft National Council for Higher Education and Research Bill has already been put in the public domain.
To strengthen political inclusion, we have introduced bills to provide 50% reservation for women in all panchayats and urban local bodies.
Nearly one crore scholarships have been granted last year to students belonging to the SCs, STs, other backward classes and minorities. A large proportion of these scholarships have gone to girls.
We launched the Jawaharlal Nehru National Solar Mission in January this year. It aims to create a capacity of 20,000 MW grid solar power by 2022.
We have signed free trade agreements with ASEAN and South Korea in the last year.
We have decided to set up a National Social Security Fund for workers in the unorganized sector with an initial corpus of Rs. 1,000 crores.
A draft National Food Security Bill is under preparation.
Prices continue to be a matter of deep concern. The government attaches the highest priority to containing inflation so that there is no distress to the common man. As a result of the steps we have taken, there are signs of prices showing a moderating trend. We will closely monitor the situation and, together with state governments, take all corrective steps to bring down prices and protect the vulnerable sections of our society from the impact of high prices.
We are determined to squarely tackle the threat of terrorism and ideological extremism of various kinds. I have on earlier occasions outlined our approach to tackling Naxalism.
We are working on systemic changes in our national security system, paying due attention to the modernization and professional development of the police and security forces, investigating agencies and the law and order machinery. Judicial reform and transparency in the functioning of government will also receive priority in our agenda.
Addressing key constraints in the modernization of agriculture and in the expansion of infrastructure need long term strategies backed by stepped up investment. We have taken important steps in these areas, which will continue to receive the focused attention of the government.
In foreign policy, it is a matter of satisfaction that we have been able to improve relations with all major powers. As a member of the Group of Twenty (G-20), our views are increasingly sought and heard. The world looks at India with confidence.
The recent SAARC Summit once again underlined the fact that it is not just our shared past but also our shared future that binds this sub-continent together. Improving relations with neighbours continues to be of great importance to us. I have often said that our real challenges are at home and in our neighbourhood.
I would be the first person to admit that we could have done more. We should not be satisfied with what we have achieved. There is always room for improvement and for better outcomes. But I do believe that the record of our first year is a record of reasonable achievement.
The promise of more than a billion people, who are better educated, better fed and better equipped to be creative and enterprising members of the global community is our hope and our inspiration.
The UPA Government and all its constituents are united in their commitment to provide the country with a strong and purposeful government that can deliver on its agenda of growth, reform and empowerment.
Ladies and Gentlemen, I will be happy to answer your questions.
Thank you.

रिटायरमेंट की संभावना से मनमोहन का साफ इंकार


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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रिटायरमेंट की संभावना से साफ इंकार करते हुए कहा कि उन्हें अभी बहुत से अधूरे काम पूरे करने हैं । उन्होंने हालांकि राहुल गांधी जैसे युवा नेता को कमान सौंपने की भी पेशकश की, बशर्ते आलाकमान ऐसा चाहता हो। संप्रग-2 के एक साल पूरे होने के मौके पर यहां विज्ञान भवन में आयोजित राष्ट्रीय संवाददाता सम्मेलन में सिंह ने कहा, ‘‘ जो काम मुझे सौंपा गया है, वह अभी अधूरा है । जब तक वह पूरा नहीं हो जाता, रिटायरमेंट का सवाल ही नहीं उठता है । ’’ कार्यकाल के बीच में ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की संभावना के बारे में किये गये सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘ मैं कभी कभी महसूस करता हूं कि युवा लोगों को कमान संभालनी चाहिए और कांग्रेस आलाकमान अगर इस बारे में कोई फैसला करती है तो मुझे बहुत खुशी होगी । ’’ राहुल को कैबिनेट में शामिल करने के बारे में पूछने पर, उन्होंने कहा, ‘‘ कैबिनेट मंत्री बनने के लिए राहुल पूरी तरह योग्य हैं । उनका कैबिनेट में शामिल होना एकदम उचित है। मैंने उनसे कई बार इस बारे में बात की लेकिन उन्होंने इस बारे में कभी कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया। उनका कहना है कि कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए उन्हें अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना है।’’ जब भी राहुल इसके लिए तैयार होंगे, कैबिनेट में उनके रूप में एक उचित और योग्य आदमी और जुडेगा।

Saturday, May 22, 2010

भाजपा की याद सताती है जसवंत को


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भाजपा से निष्कासित नेता जसवंत सिंह ने आज स्वीकार किया कि उन्हें भाजपा की याद सताती रहती है और वह उससे उबर नहीं पाए हैं।सिंह ने सीएनएन आईबीएन को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैंने :भाजपा में: 32 साल गुजारे। कैसे मैं इसे अपने खून से निकालूं? लेकिन मैं :पार्टी: मंच को मिस करता हूं।’’ दार्जिलिंग से सांसद का यह बयान ऐसे समय आया है जब भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से उनके रिश्तों में सुधार की खबरें हैं।पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत की अंत्येष्टि में शरीक होने जब वह जयपुर जा रहे थे, तो उसी विमान में आडवाणी भी थे।जसवंत की इस टिप्पणी से भाजपा में उनकी वापसी को लेकर कयास आराई का सिलसिला शुरू हो गया।बहरहाल, भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि जसवंत की पार्टी में वापसी की कोई चर्चा नहीं है।रूडी ने कहा, ‘‘उनकी भारतीय जनता पार्टी में पारी बड़ी लंबी रही है। लेकिन अब तक मैं ऐसी किसी बातचीत से अवगत नहीं हूं।’’ सिंह को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ भाजपा के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक के तौर पर देखा जाता था। सिंह को गत वर्ष शिमला में पार्टी की चिंतन बैठक में आमंत्रित किये जाने के बाद निष्कासित कर दिया गया।सिंह इस बैठक में भाग लेने शिमला पहुंचे, तभी उन्हें सूचना मिली कि पार्टी के संसद बोर्ड ने उन्हें मोहम्मद अली जिन्ना पर लिखी उनकी पुस्तक के लिये निष्कासित करने का फैसला किया है।पुस्तक में सिंह ने पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना को एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति करार दिया था।

Thursday, May 20, 2010

लालू 48 के राबडी 55 की


जनगणना 2010 के लिए अपना और अपने परिवार के सदस्यों का नाम दर्ज कराते हुए राजद सुप्रीमो और पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद ने आज मजाकिया लहजे में कहा कि वे 48 के हैं और उनकी पत्नी राबडी देवी 55 की हैं।जनगणना के लिए आंकड़ा इकमहामेधाा करने पटना स्थित पूर्व मुख्यमंत्री राबडी देवी के सरकारी आवास पहुंचे जनगणना विभाग के निदेशक के. संेथिल कुमार और अन्य कर्मचारियों से लालू ने अपने को 48 का और पत्नी राबडी देवी को 55 का बताया।लालू के इस खुलासे पर वहां मौजूद मीडियाकर्मियों ने जब उनसे यह पूछा कि क्या उनकी पत्नी उम्र में उनसे बड़ी हैं, इसपर लालू ने मजाकिए लहजे में कहा कि वे इस बारे में नहीं जानते पर वे बड़ी हो सकती हैं।बाद में लालू ने लोगों की बढती जिज्ञासा को यह कहकर तुरंत स्पष्ट किया कि उनके कहने का मतलब था कि उनका जन्म 1948 में हुआ है और उनकी पत्नी राबडी का जन्म 1955 में।उन्होंने यह भी बताया कि जनगणना के लिए आंकडा इकमहामेधाा करने का यह पहला दौर है और यह इस वर्ष जुन अथवा जुलाई महीने में समाप्त होगा।राजद सुप्रीमो ने कहा कि उन्हें इस बात की उम्मीद है कि जाति के आधार पर जनगणना की शुरूआत मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद अगले वर्ष फरवरी महीने से शुरू हो जाएगा।

Friday, May 14, 2010

मुझे मालूम है कौन है 'असली कुत्ता': अमर

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गडकरी बनाम यादव की लड़ाई में अब सपा के पूर्व नेता अमर सिंह भी कूद पड़े हैं। उन्होंने अपने ब्लॉग पर बीजेपी अध्यक्ष गडकरी के कुत्ते वाले बयान पर लिखा है कि गडकरी को इस बयान पर क्षमादान दे देना चाहिए क्योंकि उन्हें भली-भांति पता है 'देश की राजनीति में असली कुत्ता कौन है।'उन्होंने लिखा है कि गडकरी के एक बयान पर जिस तरह से राजनीतिक पार्टियों में हाहाकार मचा हुआ है मुझे नहीं लगता ऐसा होना चाहिए। क्योंकि गडकरी ने खुलेआम अपने शब्द वापस ले लिए थे। लेकिन कुछ लोग तो इतने बेशर्म होते हैं कि वो गाली देकर भी सीना तान कर चलते हैं। उनका इशारा समाजवादी नेता रामगोपाल यादव की तरफ था।अमर सिंह ने लिखा कि यह सभी जानते हैं सपा के पास इस समय कोई मुद्दा नहीं है इस वजह से वह गडकरी के बयान को इतनी तूल देने में जुटी है। लेकिन जिस तरह से गडकरी ने अपने शब्द वापस लिए थे तो सपा को फिर उन्हें कुत्ता नहीं कहना चाहिए था।उन्होंने अपने आपको अपमानित करने वाले सपा नेता रामगोपाल का नाम लिए बिना लिखा है कि जिस पार्टी का मैंने दिन-रात साथ दिया उसी के एक नेता ने मुझे पागल और न जाने क्या-क्या कह डाला। हालांकि बाद में उन्होंने मुझसे फोन पर अपनी बेशर्मी की क्षमायाचना की थी। लेकिन मैंने इस माफी को सार्वजनिक कर दिया था जिसके बाद भी मुझे भयंकर गालियां दी गई थी। लेकिन मैने किसी के खिलाफ कुछ नहीं किया लेकिन अगर अब गडकरी के खिलाफ केस करने की बात की जा रही है तो यह राजनीति में अच्छी बात नहीं है। क्योंकि राजनीति में इस तरह की बात तो होती ही रहती है।

Thursday, May 13, 2010

लालू ने कहा- गडकरी कान पकडकर माफी मांगे नहीं तो...

भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और राजद प्रमुख लालू प्रसाद के खिलाफ कहे गए कथित अपशब्दों पर कडा एतराज जताते हुए लालू ने आज यहां कहा कि वह कान पकडकर माफी मांगे नहीं तो उनकी पार्टी जन-आंदोलन छेड़ेगी।सीबीआई दुरुपयोग को लेकर भाजपा द्वारा चलाए गए राष्ट्रव्यापी आंदोलन पर लालू ने आज पटना में संवाददाताओं से कहा कि मंहगाई सहित देश की कई अन्य प्रमुख समस्याओं को छोडकर सीबीआई के कथित दुरुपोग को भाजपा द्वारा प्राथमिकता दिए जाने के पीछे उनके कई नेताओं के स्विस बैंक में राशि जमा होने के मामले फंसने से जुड़ा है।लालू ने सीबीआई के दुरूपयोग का केंद्र की पिछली राजग सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि कौन कहता है कि चारा घोटाला मामले में कांग्रेस ने उनकी मदद की।चारा घोटाले से जुडे आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के मामले में निचली अदालत में राजद नेता के पक्ष में फैसला आने के खिलाफ सीबीआई के उपरी अदालत में अपील नहीं किए जाने पर लालू ने दावा किया कि उस मामले में दम ही नहीं था और क्या सभी मामले में सीबीआई अपील में जाती है।लालू ने केंद्र की पिछली राजग सरकार पर उनके और उनकी पत्नी राबडी देवी के खिलाफ सीबीआई का गलत इस्तेमाल किये जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने न केवल राबडी देवी के घर पर छापा डलवाया बल्कि उन्हें फंसाने के लिए सीबीआई के तत्कालीन निदेशक यू एन विश्वास को राज्यपाल तक बनाने का आश्वासन दिया था। जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फोन करके इस बारे में बताया तो उन्होंने इसे रोका।

Sunday, May 9, 2010

बिहार में गृहयुद्ध छेड़ना चाहते हैं नीतीश:लल्लन


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जनता दल (यूनाइटेड) के विक्षुब्ध सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन ने आज दावा किया कि बिहार में नीतीश कुमार की सरकार अगर दोबारा सत्ता में आई तो बटाईदारी बिल को लागू कर वह इस प्रदेश में गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न कर देगी। सरकार के कथित प्रस्तावित बटाईदारी बिल के विरोध में आज पटना के गांधी मैदान में आयोजित किसान महापंचायत को संबोधित करते हुए जद (यू) के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लल्लन ने नीतीश पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की राह पर चलने का आरोप लगाते हुए कहा कि लालू से किसी को व्यक्तिगत विरोध नहीं था, बल्कि उनकी कार्यशैली सही नहीं थी। उन्होंने आरोप लगाया कि चारा घोटाला मामले में आरोपी लालू सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए रिक्शा की सवारी किया करते थे, उसी प्रकार अब नीतीश बग्घी और रिक्शा पर सवार होकर यात्रा कर रहे हैं। लल्लन ने सांसद शिवानंद तिवारी, श्याम रजक और रमई राम का जिक्र करते हुए कहा कि नीतीश के दरबार में आज वही लोग हैं, जो कि कभी लालू के दरबार में शामिल थे। प्रदेश में पिछले 15 वर्षों के राजद शासन काल के दौरान समाज में जिस प्रकार से विद्वेष फैलाने का काम किया गया, उसी प्रकार नीतीश कुमार भी अपने शासन काल के दौरान अगड़ा-पिछड़ा, दलित-महादलित और मुसलमानों में पसमांदा समाज की बातकर समाज को खंडित करने में लगे हैं।

ब्रिटेन में सरकार के लिए सौदेबाज़ी
ब्रिटेन में गठबंधन सरकार बनाने के लिए कंजरवेटिव और लिबरल डेमोक्रेट्स के बीच तीसरे दिन भी कड़ी सौदेबाज़ी जारी रही। ब्रिटेन में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह पहली गठबंधन सरकार होगी, लेकिन यह बातचीत किसी भी समय गड़बड़ा सकती है क्योंकि एक टॉप सीक्रेट खत मिला है जिसमें सरकार बनाने की स्थिति में होने पर टोरी के यूरो विरोधी रुख को रेखांकित किया गया है। यह पत्र ऐसे समय लीक हुआ है, जब टोरी और लिबरल डेमोक्रेट गठबंधन सरकार बनाने के लिए रात-दिन बातचीत में लगे हैं। चुनाव में कंजरवेटिव सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। उसे 650 सदस्यीय हाउस ऑफ कॉमन्स में 306 सीटें मिली हैं। टोरी और लिबरल डेमोक्रेट नेता डेविड केमरन एवं निक क्लेग ने बीती रात लगभग 70 मिनट तक आमने सामने बैठकर बात की। उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन में छह मई को हुए चुनावों में डेविड केमरन के नेतृत्व में कंजरवेटिव पार्टी को 19 संसदीय क्षेत्रों के 16,000 मतदाताओं की वजह से पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया। कोलिन रालिंग्स और माइकल थ्रेशर ने अपनी पड़ताल में दावा किया है कि कंजरवेटिव पार्टी पूर्ण बहुमत के करीब पहुंच गई थी। प्लेमाउथ यूनिवर्सिटी स्थित चुनाव केंद्र के निदेशकों रालिंग्स और थ्रेसर के हवाले से ‘संडे टाइम्स’ ने कहा है, ‘‘कैमरन बहुत करीब पहुंच गए थे और अब बहुत दूर हैं। 19 संसदीय क्षेत्रों के महज 16000 वोट कंजरवेटिव को पूर्ण बहुमत दिला सकते थे।’’ रालिंग्स और थ्रेसर का विश्लेषण है कि निकट भविष्य में होने वाले दूसरे चुनाव में तुलनात्मक रूप से थोड़ी सी बढ़त टोरी को पूर्ण बहुमत दिला सकती है।

कैग ने की दूरसंचार विभाग की खिंचाई
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार को बढ़ावा देने के लिये एकत्रित 18,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि का इस्तेमाल नहीं करने और इस्तेमाल नहीं हुई राशि के बारे में गलत जानकारी देने पर दूरसंचार विभाग की खिंचाई की है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने केंद्र सरकार के कामकाज के पर दी गयी रिपोर्ट में कहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार सेवा के विकास के लिये वित्त वर्ष 2002-03 से 2008-09 के दौरान विशेष दायित्व शुल्क के रूप में 26,163. 96 करोड़ रुपये वसूले गये। लेकिन इस अवधि के दौरान इसमें से केवल 7,971. 44 करोड़ रुपये ही वितरित किये गये। रिपोर्ट के अनुसार सार्वभौमिक सेवा दायित्व कोष (यूएसओ) 31 मार्च 2009 तक 18,192. 52 करोड़ रुपये होने चाहिए न कि ‘शून्य’ जैसा कि दूरसंचार विभाग के खातों में दिखाया गया है। कैग ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि कोष का इस्तेमाल बजट घाटा पाटने के लिये इस्तेमाल किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार के विकास के लिये यूएसओ कोष का गठन सरकार ने 2002 में किया। इसके तहत दूरसंचार कंपनियों से उनकी समायोजित सकल आय का 5 फीसद बतौर शुल्क लिया जाता है। कोष का प्रबंधन दूरसंचार विभाग करता है। कैग ने एकत्र किये गये कोष का इस्तेमाल उसी साल करने के लिये स्कीम तैयार करने की सिफारिश की है ताकि यूएसओ लक्ष्य को पूरा किया जा सके। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने इस बात पर अफसोस जताया कि खर्च नहीं की गयी राशि का इस्तेमाल बजटीय घाटा पाटने में किया गया है। उल्लेखनीय है कि कैग इससे पूर्व दूरसंचार मंत्री ए.राजा को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर चुका है, जिस पर संसद में भी हो-हल्ला होता रहा है।

संसदीय समिति ने किया रेलवे को आगाह


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संसद की लोकलेखा समिति का मानना है कि देश भर में फैली रेलवे की जमीन पर दो लाख से ज्यादा अवैध कब्जे हो चुके हैं, परंतु रेलवे ने खरबों रूपये की अपनी जमीन को इन अवैध कब्जों से मुक्त कराने की गंभीर कोशिश नहीं की और हर साल हजारों की संख्या में अतिक्रमण हो रहे हैं। लोक लेखा समिति ने अतिक्रमण शीघ्र हटाने और नये अवैध कब्जे रोकने के लिए रेलवे से व्यापक कार्य योजना तैयार करने को कहा है। रेलवे के पास कुल दस लाख 68 हजार एकड़ भूमि है, जिसमें एक लाख 13 हजार एकड़ भूमि खाली पड़ी है जो कुल भूमि का दस प्रतिशत है। समिति का मानना है कि कतिपय समस्याओं के कारण रेलवे शीघ्र और परिणामोन्मुखी विकास के माध्यम से अपने बड़े विशाल भू-संसाधनों का वांछित उपयोग करने में असफल रहा है। समिति ने साथ ही अतिक्रमण हटाने के लिए संपदा अधिकारियों को अधिक शक्तियां प्रदान करने और उन्हें मजिस्ट्रेट का दर्जा देने के लिए कानून में संशोधन करने की आवश्यकता बताई है। साथ ही रेलवे के भूमि रिकार्डों के रखरखाव को बेहतर बनाने पर भी जोर दिया है। संसदीय समिति ने ‘भारतीय रेल में आपदा प्रबंधन और भूमि प्रबंधन’ विषय पर हाल में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण का मामला 1999 में संसद में जोरदार ढंग से उठा था। लगता है कि रेलवे ने कोई प्रभावी बेदखली अभियान शुरू नहीं किया है, क्योंकि 2004 में अतिक्रमण के दो लाख बीस हजार से ज्यादा मामले दर्ज थे और वर्ष 2004 से वर्ष 2006 के दौरान अतिक्रमण के 16 हजार नये मामले आ गये।

देश और संसद को जाति की जरूरत!


गरीब की दुश्मन जाति अमीर
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जाति की जरूरत ने अचानक संसद को इतना बेचैन क्यों कर दिया है? लोकतंत्र के पहरुओं ने जाति का जहर बुझाने की बजाय उसकी लौ जलाए रखने पर अपना जोर एक बार फिर केंद्रित कर लिया है। एक बार फिर वे काले अध्याय लिखने में मशगूल दिखते हैं। विपक्ष मांग कर रहा है कि जनगणना जाति के आधार पर होनी चाहिए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी लोकसभा को भरोसा दे चुके हैं कि मंत्रिमंडल इस बारे में जल्द कोई फैसला लेगा। उनके बयान से हालांकि साफ नहीं हुआ है कि सरकार यह मांग मानेगी या नहीं। कांग्रेस सांसद पवन बंसल कहते हैं, ठीक बात है। प्रणव मुखर्जी कहते हैं, विपक्ष की मांग जायज है। संसद की एक स्टैंडिंग कमिटी भी ओबीसी गणना की सिफारिश कर चुकी है। राजग, सपा, जद यू की राजनीति ही जाति पर टिकी है। और आग में घी डाल रही है उन संगठनों की जरूरत, जो हर बात पर जाति-जाति चिल्लाने लगते हैं। वे चाहते हैं कि जाति भी बनी रहे और सरकारी मलाई भी सबसे ज्यादा वे सरपोटते रहें। वर्ण्यव्यवस्था भी न हो और आरक्षण का लाभ भी भरपूर मिलते रहना चाहिए। आखिर ये किस किस्म का मानवाधिकार हो सकता है! खैर, हम बात कर रहे हैं जात-पांत वाली जनगणना की तो संसद के बाहर-भीतर चिल्लपों मचने के बाद अब तय सा हो चला है कि जनगणना जाति के आधार पर होगी। सब जानते हैं कि देश में हर दशक में भारतीयों की गणना होती है। वर्ष 1931 के बाद से जाति के आधार पर जनगणना नहीं हुई है। तब से मुल्क चलाने वाले जाति के आधार पर जनगणना जरूरी नहीं मान रहे थे। स्वतंत्र भारत में जातिगत जनगणना ये सोचकर नहीं कराई जा रही थी कि जाति ने ही इस देश का सबसे ज्यादा सत्यानाश किया है। अब अचानक पक्ष-विपक्ष दोनों आजादी की लड़ाई लड़ने वाले राजनेताओं से ज्यादा होशियार हो चले हैं।

अब अचानक सियासत के पेट में बड़ा जोर का जाति का मरोड़ उठा है। हकीकत ये है कि मौजूदा सिस्टम और संसदमार्गी सियासत दोनों की विश्वसनीयता खतरे में पड़ती जा रही है। जाति ही एक ऐसा अस्त्र दिख रहा है, जिससे जनता का ध्यान उसकी बुनियादी समस्याओं से हटाकर जातीय बाग-बगीची में कुछ साल टहलाया जा सकता है। इसी में पक्ष-विपक्ष दोनों को अपना भला दिखता है। अब तक सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की अलग से पहचान होती रही है। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद से पक्ष-विपक्ष दोनों को जाति होने के फायदे नजर आने लगे हैं। जाति के आधार पर जनगणना की सबसे ज्यादा बेचैनी ओबीसी में है। उन्हें ये मालूम कर लेना बहुत जरूरी लगता है कि वे संख्याबल में कितने हैं। इसके आधार पर वे अपने समुदायों के एजेंडे बनाकर सरकारी और राजनीतिक सुविधाओं में अपनी जगह बनाने की नए सिरे से शुरुआत करेंगे। लालू, मुलायम, शरद यादव कहते हैं कि उनके लोगों आबादी का ठीक-ठीक आंकड़ा अनुपलब्ध है। मंडल कमिशन ने कुल आबादी में पिछड़ों का हिस्सा 52 प्रतिशत माना था और इसके लिए 1931 की जनगणना को आधार बताया था। 2004-05 के नैशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक यह आंकड़ा 41 प्रतिशत है। सन 2002 का बीपीएल हाउसहोल्ड सर्वे इस आंकड़े को 38.5 प्रतिशत बताता है। जातिगत जनगणना के समर्थकों का कहना है कि पिछड़ों की आबादी का सही आंकड़ा मिलने के बाद ही उनके समुदायों के लिए सही योजनाओं को अंजाम दिया जा सकेगा। साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि जातिगत जनगणना से जातिवाद मजबूत होगा। देश में अनगिनत जातियां, उपजातियां और समूह-समुदाय हैं। उनकी पहचान भी साफ नहीं है। एक राज्य में जो पिछड़े हैं, दूसरे में कुछ और हैं। दिल्ली में धोबी, महाराष्ट्र में कोली, यूपी में पटुआ और एमपी में रज्झर अनुसूचित जाति की श्रेणी में आते हैं, लेकिन केंद्र के हिसाब से ये पिछड़े वर्ग के लोग हैं। इसी तरह तमिलनाडु में अनाथ और बेसहारा बच्चे पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं। अनुमान के तौर पर ऐसे लोगों के पांच से छह हजार अलग-अलग समूह हैं। अब इनकी गणना कैसे, किस आधार पर की जाए, यही सबसे बड़ी मुश्किल है। दरअसल ये सब उन सांसदों, मंत्रियों, पार्टियों को भी पता है लेकिन वे चाहते हैं कि जात-पांत का भूत मर गया तो उनकी सियासत क्या होगा! इस तरह की राजनीति करने वालों का जनाधार तेजी से खिसक रहा है। लोग जाग रहे हैं, जात-पांत से नफरत करना ज्यादा ठीक मानते जा रहे हैं। हैरत सभी राजनीतिक दल लोकतंत्र की बात करते हैं, जात-पांत को सबसे बुरा भी मानते हैं और उसके कल्याण के लिए खूब बेचैन भी हैं। वह चाहे भाजपा हो, कांग्रेस हो या सपा-राजग-जदयू आदि। प्रणव कहते हैं कि संप्रग सरकार ने इस मामले में विपक्ष की मांग को स्वीकार कर लिया है। जातिगत आधार पर जनगणना का काम वर्ष 1931 में हुआ था और देश की स्वतंत्रता के बाद भी जातिगत आधार पर जनगणना होनी चाहिए थी जबकि ऐसा नहीं हो सका था लेकिन अब संप्रग सरकार ने इसकी पहल की है। जब उनसे कहा जाता है कि इसी जात-पांत के चक्कर में तो महिला आरक्षण बिल भी ताक पर लटका दिया गया है तो वह जवाब देते हैं कि इस विधेयक पर अब लोकसभा के आगामी सत्र में विचार किया जाएगा। उधर, जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर जल्द कोई फैसला लेने के सरकार के हालिया आश्वासन के बीच, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने जनगणना फॉर्म में धर्म और भाषा का कॉलम भी जोड़ने का सुझाव दिया है। आयोग के अध्यक्ष कमाल फारुकी कहते हैं कि अगर जनगणना जाति के साथ धर्म और भाषा को भी बुनियाद बनाया जाता है तो इससे देश के अलग.अलग तबकों की असल स्थिति का पता चलेगा। नतीजतन उनके हित में योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। जाति आधारित जनगणना की हकीकत को भुलाया नहीं जा सकता कि भारतीय समाज जाति आधारित है। जाति आधारित जनगणना से मिले महत्वपूर्ण आंकड़े अलग.अलग जातियों के विकास का नया खाका तैयार करने का काम आसान कर देंगे। एक तरफ जात-पांत वाली जनगणना, दूसरी तरफ भाजपा सांसद लालकृष्ण आडवाणी कहते हैं कि राजनीति में कोई भी ‘अछूत’ नहीं है और सभी राजनीतिक दलों को इससे दूर रहना चाहिए। राजनीतिज्ञ का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय हित होना चाहिए। यदि बाहर छुआछूत होता है तो उसे मानवता के खिलाफ या पाप कहा जाता है। यही आदर्श राजनीतिक पार्टियों के लिए भी लागू होता है।
अब आइए वामपंथ की ओर नजर डालते हैं। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद सीताराम येचुरी कहते हैं कि स्वैच्छिक की बजाय आबादी की वैज्ञानिक गणना होनी चाहिए, ताकि देश में अन्य पिछडे वगो’ और बीपीएल परिवारों की वास्तविक संख्या का पता लगाया जा सके। हम जाति आधारित जनगणना के पक्षधर नहीं हैं लेकिन देश के लिए यह जानना जरूरी है कि अन्य पिछडे वर्ग के लोगों की वास्तविक संख्या क्या है। उनकी वास्तविक संख्या पता चलने पर आरक्षण के कई फायदे उन्हें मिल सकेंगे। योजना आयोग के मुताबिक देश में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले (बीपीएल) परिवारों की संख्या 6.8 करोड है जबकि राज्यों की ओर से बांटे गये बीपीएल कार्डों की संख्या 10.8 करोड़ है। ऐसे में वास्तव में बीपीएल परिवारों को कानूनी रूप से फायदा मिले, उसके लिए उनकी वास्तविक संख्या का पता करना जरूरी है। यह काम जनगणना के जरिए नहीं हो सकता। जनगणना में व्यक्ति स्वैच्छिक जानकारी देता है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इसलिए आबादी की वैज्ञानिक गणना होनी चाहिए। साथ ही वह जनगणना के कागज में ‘राष्ट्रीयता’ का कालम लिखे जाने पर सख्त आपत्ति करते हुए कहते हैं कि जनगणना की परिभाषा यही है कि भारतीयों की गणना हो, ऐसे में राष्ट्रीयता का कालम बनाने का क्या औचित्य है। उन्होंने संदेह व्यक्त किया कि एक समय जिस तरह पृथक खालिस्तान की मांग उठी थी, इससे उसी तरह की समस्याएं पेश आएंगी। संसद में हाल के दिनों में सपा, राजद और जद यू के नेताओं मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद और शरद यादव ने जाति आधारित जनगणना कराने के बारे में लोकसभा में मांग उठाई थी। उस समय भाजपा और वाम दलों ने जनगणना में गरीबों, पिछडों आदि के आंकडे शामिल किये जाने पर जोर दिया था। मुलायम ने कहा था कि जाति के आधार पर जनगणना हो। सरकार को इसमें क्या आपत्ति है। एक कालम जाति का बना दीजिए। जाति के आधार पर वस्तुत: अभी अनुमान से ही आरक्षण दिया जा रहा है। जद यू नेता शरद यादव ने कहा था कि हिन्दुस्तान में पिछडे और आदिवासी तबके हर तरह से सताये जा रहे हैं। इस देश में पेड, नदियों, बाघों आदि की गणना हो रही है। भारत में जाति हकीकत है इसलिए जाति के आधार पर जनगणना कराना अनिवार्य है। राजद नेता लालू ने कह चुके हैं कि हम आरक्षण की मांग नहीं कर रहे। जाति यथार्थ है। अभी तक अंदाज पर काम चल रहा है। जातीय आधार पर सरकार जनगणना कराये ताकि मालूम हो कि किसकी कितनी संख्या है।
दूसरी तरफ हकीकत ये है कि सरकारी खजाने पर कुंडली मारे सांपों को नहीं दिख रहा है कि गरीबी ने लोगों का क्या हाल बना रखा है। देश में सीधे तौर पर सिर्फ दो जातियां है, अमीर और गरीब। इस हकीकत से आंख चुराकर तरह-तरह के ताने-बाने बुने जा रहे हैं। कहावत वही है कि अंधेर नगरी, चौपट राजा। लेकिन गरीबी की सच्चाई और उसका गुस्सा धीरे-धीरे 'वयस्क' होने लगे हैं। लगता है कि उनके लिए लड़ाई के अलावा और कोई सपना बाकी नहीं बचा है। तरह-तरह की हरामखोरियां हद पार कर चुकी हैं। पानी नाक से ऊपर हो चला है, इसलिए अमीरों की हैवानियत के खिलाफ फिर से एकला चलो रे का नारा दिन पर दिन बुलंद होते जाना ही है। ये तूफान अब शायद ही थमे!! भविष्य में उनकी शामत आनी ही है जो 90 करोड़ गरीबों के सीने पर चढ़ कर मैट्रो और हवाई जहाज की पेंगे ले रहे हैं। उनके लिए जात-पांत ठेंगे पर। जाति सिर्फ दो.....गरीब की दुश्मन जाति अमीर।

Saturday, May 8, 2010

मुख्यमंत्री को धमकी, उपमुख्यमंत्री बाल-बाल बचे



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दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जान से मारने की धमकी मिलने के बाद उनकी सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और पथ निर्माण मंत्री प्रेम कुमार शनिवार को एक बड़े हादसे के शिकार होने से बाल-बाल बच गए। दरअसल सुशील कुमार मोदी और प्रेम कुमार एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए नार्थ इस्ट ट्रेन से पटना से कटिहार जा रहे थे। सूत्रों के अनुसार दिल्ली में पुलिस कंट्रोल रूम में एक धमकी भरा कॉल आया, जिसके बाद शीला की सुरक्षा में लगे अधिकारियों के होश उड़ गए। बाद में सीएम ऑफिस ने इस धमकी की पुष्टि भी कर दी है। चूंकि यह मामला मुख्यमंत्री से जुड़ा हुआ है इसलिए सुरक्षा को लेकर कोई भी कोताही नहीं बरती जा रही है और सीएम की सुरक्षा चाकचौबंद कर दी गई है। पुलिस धमकी भरे कॉल की जांच करने में जुट गई है लेकिन अभी तक इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई है कि यह कॉल कहां से आया था। कॉल गुरुवार देर रात को आया था। धमकी देने वाले ने सीएम को 72 घंटे में जान से मारने की धमकी दी थी। सीएम कार्यालय इस मामले को बड़ी गंभीरता से लेते हुए धमकी की जांच स्पेशल सेल को सौंप दिया है। साथ ही शीला दीक्षित के घर के बाहर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। उनके आवास पर हर आने-जाने वालों की गहन तलाशी ली जा रही है। शीला का कहना है कि वह ऐसे धमकी से नहीं डरतीं। ऐसे कॉल तो आते ही रहते हैं। उधर
बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और पथ निर्माण मंत्री प्रेम कुमार शनिवार को एक बड़े हादसे के शिकार होने से बाल-बाल बच गए। मोदी और प्रेम कुमार एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए नार्थ इस्ट ट्रेन से पटना से कटिहार जा रहे थे। उनकी ट्रेन गुजरने के ठीक 6 मीनट बाद कटिहार-बखरी आउटर रेलवे ट्रैक पर नक्सलियों द्वारा रखा गया एक बम विस्फोट हुआ। जिसकी वजह से रेलवे पटरी उखड़ गई। घटना सुबह 6 बजे हुई। घटना की सूचना उप-मुख्यमंत्री को कटिहार पहुंचे पर मिली। पथ निर्माण मंत्री प्रेम कुमार ने इस घटना की पुष्टि करते हुए कहा है कि उनके ट्रेन के गुजरने के थो़ड़ी देर बाद यह हादसा हुआ है। उन्होंने आशंका जाहिर की है कि शायद उप-मुख्यमंत्री और उन्हें ही निशाना बनाने के लिए यह विस्फाट किया गया था।

झारखंड में भाजपा सरकार


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झारखंड में पिछले एक पखवाड़े से जारी गतिरोध को समाप्त करते हुए झामुमो और आजसु ने शेष साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल के लिए आज राज्य में भाजपा के नेतृत्व में सरकार को समर्थन देने की घोषणा की। इस आशय के निर्णय पर आज भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी, पार्टी महासचिव अनंत कुमार, झारखंड के उपमुख्यमंत्री रघुवर दास, झामुमो विधायक दल के नेता हेमंत सोरेन और आजसु के अध्यक्ष सुदेश महतो के बीच हुई बैठक के दौरान सहमति बनी। सोमवार को भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में राज्य के मुख्यमंत्री के नाम को अंतिम रूप दिया जायेगा। झारखंड में झामुमो विधायक दल के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि भाजपा नेताओं के साथ हमारी लाभप्रद चर्चा हुई। हम भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार का झारखंड में समर्थन करेंगे। राज्य को राष्ट्रपति शासन से बचाने के लिए यह निर्णय किया गया है। भाजपा महासचिव अनंत कुमार ने जोर देकर कहा कि बातचीत खुशनुमा माहौल में समाप्त हुई। झारखंड में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार का गठन होगा। हम राज्य को कांग्रेस के कुशासन से बचाना चाहते हैं। राज्य के विकास को ध्यान में रखने वाली एक स्थायी सरकार का गठन होगा। हमने निर्णय किया है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। यह निर्णय विधानसभा की पूरी अवधि के लिए किया गया है। इस संदर्भ में एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम को शीघ्र अंतिम रूप दिया जायेगा। इस मामले में गडकरी एक पर्यवेक्षक को रांची भेज रहे हैं।

सांसद प्रभात झा मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष निर्वाचित
राज्यसभा सदस्य प्रभात झा को मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी का निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं म.प्र भाजपा चुनाव पर्यवेक्षक कलराज मिश्र ने भोपाल में झा के निर्वाचन की घोषणा की। मिश्रा ने बताया कि अध्यक्ष पद के लिये एक मात्र प्रभात झा का नामांकन ही प्राप्त हुआ था। झा की ओर से नामांकन पत्र के चार सेट प्राप्त हुए जिनमें प्रत्येक सेट में दस-दस सदस्यों द्वारा उनके नाम का समर्थन किया गया था। उनके समर्थकों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा वयोवृद्ध नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा शामिल हैं। मिश्रा ने झा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचन की घोषणा करते हुए बताया कि इसके अलावा राष्ट्रीय परिषद के 29 सदस्यों के लिये 31 नामांकन पत्र भी प्राप्त हुए जिनकी छानबीन का काम जारी है तथा इनके निर्वाचन की घोषणा भी आज ही कर दी जायेगी। इस अवसर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा, पूर्व केन्द्रीय मंत्री विक्रम वर्मा, प्रहलाद पटेल, निवर्तमान अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्र, अनूप मिश्रा, अजय विश्नोई सहित बड़ी संख्या में पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता उपस्थित थे।

अमर सिंह ने लिखा रामगोपाल चालीसा


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अमर सिंह किसी भी दिन मुलायम सिंह और उनके परिवार के बारे में कुछ न कहें, या न लिखें, भला ये कैसे हो सकता है! ले-देकर उनका एकसूत्री एजेंडा रह गया है सपा चालीसा। सो दनादन चल रहा है। अपनी ताजा पोस्ट में उन्होंने राज्यसभा के आखिरी दिन का रामगोपाल चालीसा-पाठ किया है। पोस्ट का शीर्षक है- राज्य सभा में अंतिम दिन।
आगे वह लिखते हैं कि-
" आज राज्यसभा का अंतिम दिन और मेरे कई पुराने साथियों के छः वर्षों के कार्यकाल का भी अंतिम दिन था. इस पूरे बजट सत्र में आज मेरा पहला दिन था. समाजवादी दल के नए दूल्हे रामगोपाल का पूरा जलवा दिख रहा था. हर विदा ले रहा समाजवादी सांसद रामगोपाल की चालीसा पढ़ रहा था. जनेश्वर जी की कुर्सी पर आखरी दिन बहैसियत नेता बने बैठे बृजभूषण तिवारी जी का कोई नाम लेवा ना था. कल मुलायम सिंह जी प्रणव मुखर्जी से मिले थे. अफवाह है रामगोपाल और अखिलेश, भाई और बेटा दोनों ही ममता बनर्जी की विदाई के हाल में यूं.पी.ए. मंत्रिमंडल के नए चेहरे बनेगे. बेचारी बहनजी, प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति बनाने के लिए मतदान दिया, सपा ने नहीं दिया; वामपंथियों को वादा देकर भले मुकरे हों, पर कट मोशन में भाग लिए, निश्चित वोट तो अबकी फिर मायावती जी ने ही यूं.पी.ए. को दिया. भाई, बेटे अगर मंत्री बने तो २०१२ के कांग्रेसी सपने का क्या होगा? हमारे जैसे आहत और घायल समाजवादी सैनिकों को मजबूरन ना चाहते हुए भी कोई दूसरा भयंकर विकल्प तलाशना होगा. सपा के मंत्रिमंडल में आते ही इस बात की क्या गारंटी कि भारतीय राजनीति की दो दुरूह महिला नेत्रियाँ माया-ममता इकट्ठी ना हो जाएँ. सत्ता के संतुलन में माया-मुलायम दोनों एक दूसरे को केन्द्रीय सत्ता के लड्डू से दूर रखने के लिए कांग्रेस का समर्थन करने को विवश है. लालू जी को चारा और नेता जी आय से अधिक संपत्ति का घोटाला भूत बन कर सता रहा है. कुछ करें या ना करें सबको बातों में उलझा कर रखें और १०१२ में खाली मैदान में राहुल गांधी के नेतृत्व में सत्ता का गोल, कम से कम योजना बनाई जाए तो मुलायम जी के साथी बराती सपाई सांसद ही करा देंगे. प्रणव दा के कमरे में प्रवेश करते ही कोची सूचना मिल गई. आदरणीय नेता जी आपके गैर कांग्रेसवाद की अब हवा क्यों निकल गई. जिस सपा ने संसद में अमर सिंह, अनिल अम्बानी, संजय डालमिया को सांसद बनाया, अतीक और अफजाल को लोकसभा भेजा, आज उसी के अवकाश ले रहे सांसद नंदकिशोर यादव पूंजीपति और अपराधी संसद में ना आयें. इसके रोकथाम के कानून की बात मनमोहन सिंह जी को गुहार लगाते हुए कह रहे थे. कथनी करनी का क्या भयंकर भेद. किसको मूर्ख बना रहे है,
“वो वक्त भी देखा है तारीख की आँखों ने,
लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई.” ..........."

सांसद ललन को मालूम है, नीतीश के पेट में कितने दांत!



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बिहार के जमुई स्थित स्टेडियम मैदान में बांका के सांसद दिग्विजय सिंह ने किसान महापंचायत तैयारी समिति द्वारा आयोजित सभा को संबोधित करते हुए कहा कि बंटाईदारी कानून को लेकर पूरे बिहार में संशय की स्थिति है। आज सरहद की हिफाजत करने वाले भी चिंतित हैं कि हमारी जमीन छिना जा रहा है। ऐसी स्थिति में देश की अखंडता कैसी बरकरार रह पायेगी। सूबे की सरकार जाति में जाति खोज रही है। बिहार की अजीब स्थिति हो चली है। जिस राज्य में एक सूई का कारखाना नहीं लगा हो, उसका मुख्यमंत्री उद्योग रत्न लेने जाता है। आगामी नौ मई को पटना में आयोजित किसान महापंचायत में पहुंचने का लोगों से आह्वान करते हुए सांसद ने कहा कि चुनौती जनता के सामने है। जनता का दायित्व है कि उजड़े हुए बिहार को संवारे। मुंगेर सांसद ललन सिंह ने कहा कि किसान-बंटाईदार में लड़ाई लगाकर नीतीश कुमार समाज को तोड़ना चाहते हैं। इस पाप का जब उन्हें पता चला तो उन्होंने साथ छोड़ दिया। इस कानून में न तो किसान न ही बंटाईदारों को लाभ है। अगर सरकार की मंशा साफ है तो इस अनुशंसा को रद करे। नीतीश कुमार के साथ रहे दिनों का हवाला देते हुए श्री सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार के पेट में कौन-कौन सी जगह दांत है, हमें मालूम है, इसकी हम सर्जरी कर देंगे। मुख्यमंत्री अगर वेश बदलकर थाने जायें तो बिना घूंस लिये उनका भी मामला दर्ज नहीं होगा। उन्होंने उपस्थित समूह को सचेत करते हुए कहा कि दूसरा लालू पैदा हो रहा है। लालू व नीतीश एक ही संस्कृति के हैं।

ए. राजा की अंतरात्मा साफ है??


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कथित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के संसद तक गूंज लेने के बाद केंद्रीय संचार मंत्री ए राजा कहते हैं कि इस मुद्दे पर मेरी अंतरात्मा साफ है। इतना नहीं, वे यहां तक कह जाते हैं कि वह सिर्फ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं द्रमुक अध्यक्ष एम करुणानिधि के प्रति जवाबदेह हैं। लोकतांत्रिक देश में एक सांसद और केंद्रीय मंत्री के इस कथन के भला क्या मायने हो सकते हैं!

पहला मायने यानी पहला प्रश्नः
क्या ए राजा जनता के प्रति जवाब देह नहीं हैं?

दूसरा मायने (प्रश्ऩ)
क्या ए राजा संसद में विपक्ष के प्रति जवाबदेह नहीं हैं?

तीसरा मायने (प्रश्न)
क्या ए राजा उस विभाग के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं, जिसके मंत्रालय (दूर संचार) की बागडोर उनके हाथ में है?

जब हम इस तरह के सवालों पर नजर दौड़ाते हुए ए राजा के चेन्नई में दिए गए ताजा बयान की गहराइयों में जाते हैं तो साफ-साफ सुनाई देता है कि जोड़-गांठ (संप्रग गठबंधन) कर कुर्सी पर सवार हो लेने के बाद हमारे मंत्री कितने बेलगाम और दबंगों की भाषा बोलने लगते हैं। जबकि ऐसे लोगों को देश के भाग्यनिर्माता का ओहदा मिला हुआ है। ए राजा कोई नई बात नहीं कर रहे। ज्यादातर मंत्रियों की कुंडली खंगालें तो इसी तरह की बातें प्रतिध्वनित होती हैं। जनभाषा में ए राजा के कथन का निहितार्थ लें तो डंके की चोट पर एक मंत्री की गर्वोन्नति देश को अचंभित करने वाली लगती है। ए राजा कहते हैं कि वह सिर्फ करुणानिधि और मनमोहन सिंह के प्रति जवाबदेह हैं। करुणानिधि के प्रति इसलिए जिम्मेदार हैं कि उन्होंने मंत्री की कुर्सी दिलवाई है और मनमोहन सिंह के प्रति इसलिए जिम्मेदार हैं कि हल्का सा हया का पर्दा रखना जरूरी है। हकीकत में तो उनकी गर्वोन्नति से लगता है कि वह पीएम के प्रति जो जवाबदेही की बात करते हैं, कोरी बकवास है। वह पीएम का भी लिहाज नहीं कर रहे हैं। पिछले दिनो वह ऐसा साफ-साफ कह भी चुके हैं। उनके कहने का मतलब साफ है कि वे संप्रग गठबंधन के मंत्री हैं और गठबंधन में उनकी पार्टी की भूमिका महत्वपूर्ण है। वह उसके बूते ही मंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं। और जब तक द्रमुक अध्यक्ष उनसे कुछ नहीं कहते, तब तक वह किसी के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं। द्रमुक अध्यक्ष का मतलब सिर्फ करुणानिधि नहीं, ए राजा का वह देश है, जो उनके अनुसार सिर्फ करुणानिधि के बूते चल रहा है।

अपने ताजा बयान में ए राजा आगे कहते हैं कि ‘मैं, मेरे प्रधानमंत्री और मेरे नेता करुणानिधि के प्रति जवाबदेह हूं। मेरी अंतरात्मा साफ है। मुझे 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बारे में कुछ नहीं कहना। दिल्ली में अपने हालिया दौरे में करुणानिधि ने मजबूती से राजा का बचाव करते हुए कहा था कि प्रभावशाली शक्तियां उनके (राजा के) खिलाफ द्वेषपूर्ण आरोप लगा रही हैं क्योंकि वह दलित हैं। सवाल उठता है कि करुणानिधि भी 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बारे में पार्टी की ओर से कोई तथ्यपरक बात कहने की बजाय दलित होने की दुहाई क्यों देते हैं? क्या किसी के दलित होने का यही मतलब होता है कि वह सिर्फ करुणानिधि के प्रति जिम्मेदार होगा, सिर्फ कथित तौर पर पीएम के प्रति जिम्मेदार होगा, वह देश के प्रति, उस सदन के प्रति जिम्मेदार नहीं होगा, जिसके लिए वह और राज्य के नियम-कानून जिम्मेदार हैं। क्या ए राजा देश की विधायिका, कानून व्यवस्था से भी ऊपर हैं? यदि हैं तो इस तरह के गैरजिम्मेदाराना बयान के लिए पड़ने वाली ऐसी परिपाटी के लिए सबसे ज्यादा दोषी संप्रग मुखिया सोनिया गांधी और देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को माना जा सकता है। संप्रग की मुश्किल ये है कि एक-एक कर उसके मंत्री निशाने पर आते जा रहे हैं। संसद में विपक्ष के हमलों से बचने के लिए उसे कभी दूसरी दलित नेता उन मायावती से कटौती प्रस्ताव पर मदद लेनी पड़ती है, जिन पर कुछ ही दिन पहले कांग्रेस माला प्रकरण पर निशानेबाजी करती दिखती है। वह पार्टी कटौती प्रस्ताव पर बसपा को गले लगा लेती है, जिसके युवराज बसपा के खिलाफ उत्तर प्रदेश की जनता (दलितों) को जगाने के अभियान पर निकल पड़ते हैं। ये सब क्या हो रहा है! यदि कांग्रेस को लगता है कि जनता ये सब नहीं समझ रही है तो ये उसकी बहुत बड़ी नासमझी हो सकती है। जब अपने पहले कार्यकाल में ए राजा ने अपनी करतूतों से एहसास करा दिया था कि पुनः वही कुर्सी उन्हें देने से पूर्व की कड़ी में कुछ और अवांछित अध्याय जुड़ जाने लाजिमी हैं, फिर उन्हें वह विभाग जानबूझ कर क्यों सौंपा गया? यदि ऐसा करना संप्रग सुप्रीमो सोनिया गांधी की मजबूरी थी तो उससे देश या विपक्ष को क्या लेना-देना? ऐसी ही नासमझियां कभी देश को इमेरजेंसी के दहाने तक ले गई थीं। ऐसी ही नासमझियां देश में बार-बार कांग्रेस का तख्ता पलट चुकी हैं। ऐसी ही नासमझियों ने राजग को भी बता दिया था कि ज्यादा मंदिर-मंदिर न चिल्लाएं, मंदिर से पेट नहीं भरता है, इसलिए राज्य की बागडोर हाथ में थामे हैं तो लोकतांत्रिक देश की जनता के हितों की बात करें। जनता के कहने का मतलब ये है कि न तो ए राजा, न उनके नेता करुणानिधि, न मनमोहन सिंह, न उनकी नेता सोनिया गांधी इस देश की खुदा हैं, जो इस तरह डंके की चोट पर हैरतअंगेज किस्म के बयानों से डराने की कोशिश करें। जनता की दिक्कत सिर्फ ये है कि वह करुणानिधि को झटकने के बाद जय ललिता की चौखट पर खड़ा होने को मजबूर हो जाती है और जय ललिता ने जिस तरह का यश कमाया है, वह भी लोकतांत्रिक देश के सबसे शर्मनाक वाकयों में से एक है।

यहां उल्लेखनीय है कि भाजपा, माकपा और अन्नाद्रमुक समेत विपक्षी दलों ने राजा के इस्तीफा की मांग करते हुए उन पर निशाना साध रखा है। ऐसे ही प्रहारों से घिरकर शशि थरूर से इस्तीफा लिया जा चुका है। ऐसे ही आरोपों से घिरकर केंद्रीय कृषि मंत्री और उड्डयन मंत्री तक सवालों की जद में आ चुके हैं। अब ए राजा निशाने पर हैं। इससे कांग्रेस की किरकिरी हो रही है। जब कर्म ऐसे हैं तो किरकिरी तो होगी ही, क्योंकि यह देश या इस देश का लोकतंत्र न तो इंदिरा गांधी की इमेरजेंसी की वंदना करने के लिए बना था, न मौजूदा सरकार के मंत्रालय संभाल रहे सोनिया-मनमोहन के सिपहसालारों के भ्रष्टाचार भोगने की करतूतों को वंदनीय मान कर चुप रह लेगा। यदि इस देश के विपक्ष में दम है तो सरकार को ए राजा पर उठे सवालों का जवाब देना ही होगा। यदि ऐसा नहीं तो देश में इतना दम है कि वह चार साल और झेलते हुए ए राजा समेत पूरे संप्रग गुट आने वाले चुनावों में इसका इकट्ठा जवाब दे डाले!! ए राजा या मायावती को सिर्फ दलित होने के नाते कुछ भी करने की छूट नहीं मिल जाती। देश, राज्य, मंत्रालय, देश का कोष, सब कुछ जनता का है, ए राजा या करुणानिधि या मायावती या संप्रग या सोनिया गांधी या किसी भी पक्ष-विपक्ष की पुश्तैनी जायदाद नहीं।

Friday, May 7, 2010

सांसदों की एक और बल्ले-बल्ले


sansadji.com

जैसीकि रघुकुली रीति सदा चलि आई है....संसद के भीतर या बाहर जनहित की कम, अपने हित की बातें ज्यादा हो रही हैं। मसलन, सांसद जी की तनख्वाह बढ़ी की नहीं बढ़ी, सांसद निधि पर कोर्ट ने क्या फैसला दिया, केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश के लिए सांसद कोटा बहाल हुआ या नहीं हुआ आदि-आदि। तो सुनने में आ रहा है कि सब OK-ok चल रहा है। सांसद निधि पर कोर्ट ने हरी झंडी दे दी है। तनख्वाह पर प्रणब मुखर्जी विचार करने का मुलायम सिंह को आश्वासन दे चुके हैं और केंद्रीय विद्यालयों में कोटा बहाली भी बल्ले-बल्ले।
केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय विद्यालयों में छात्रों के प्रवेश के लिए सांसद कोटा बहाल करने का फैसला किया है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने राज्यसभा में प्रश्नोत्तर काल में बताया है कि संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य अब फिर दो-दो छात्रों के नामांकन की सिफारिश कर सकेंगे। सिब्बल ने कांग्रेस के पी.जे. कुरियन के एक सवाल पर कहा है कि दोनों सदनों के सदस्यों की मांगों को देखते हुए उन्होंने गुरूवार को ही केन्द्रीय विद्यालय संगठन की एक बैठक में सांसद कोटा बहाल करने का फैसला किया। हालांकि, सिब्बल ने खुद मानव संसाधन मंत्री तथा सांसद के तौर पर भी छात्रों के प्रवेश के लिए नामांकन का अपना कोटा छोड़ने का निर्णय लिया है। हाल ही में समाप्त किए गए इस कोटे की बहाली की घोषणा का सभी दलों के सदस्यों ने स्वागत किया।