Saturday, August 23, 2008

ऐ हरामियों! तुमको इससे क्या!!

मैं पागल हूं,
मैं मरता हूं,
जो जी आता है
करता हूं
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

बहुत दूर हूं,
बेसऊर हूं,
मैं रिक्शा हूं
हंसिया और हथौड़ा हूं,
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

बोलचाल में, ठाट-बाट में
चाहे जितने आगे हो,
पढ़ते रहो
निराला, तुलसी, मुक्तिबोध को,
खेत छोड़कर तुम सब
दिल्ली भागे हो,
मैं मनुष्य हूं, लड़ना मेरा पेशा है
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

होगा तेरे बाप का धंधा,
कोठी-कूलर-एसी-पंखा,
मैं तो दफ्तर-दफ्तर
भरी दुपहरी में
चप्पल-चप्पल घिसता
और घिसाता हूं,
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

मैं औलादी
मैं फौलादी
बख्तरबंद अंधेरे में
तरकस के सौ-सौ तीर चलाता हूं
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

हैवानो से दिल्ली,
कैसे-कैसे शैतानों से भरी मुंबई,
चक्क चेन्नई,
कलकत्ता में टाटा जी के लखटकिया से
वामपंथ पर फिल्म बनाता हूं
ऐ हरामियों!
तुमको इससे क्या!!

Thursday, August 21, 2008

मारे गए फलाने जी

बात बढ़ी तो मारे गए फलाने जी।
चढ़ा-चढ़ी में मारे गए फलाने जी।

फूल के कुप्पा हुए जा रहे थे यूं ही,
आन पड़ी तो मारे गए फलाने जी।

धीर-वीर-गंभीर मुखौटा हटते ही
तड़ातड़ी में मारे गए फलाने जी।

सन् सैंतालिस से एके-47 थे,
एक छड़ी में मारे गए फलाने जी।

छोटी-छोटी में तो बात-बहादुर थे,
बड़ी-बड़ी में मारे गए फलाने जी।

मुर्ग-मुसल्लम में पूरी जिंदगी कटी,
दाल-कढ़ी में मारे गए फलाने जी।