Thursday, April 15, 2010

संसदीय राजनीति बनाम फिल्मी सांसद-एक



(sansadji.com)

फिरोजाबाद (यूपी) के कांग्रेस सांसद है बब्बर
फिल्मों से आने वाले जाने चले जाते हैं कहां?


लंबे अवकाश के बाद आज से संसद के दोनों सदनों में शेष बजट सत्र की चहल-पहल शुरू हो चुकी है। इसी के साथ शुरू करने का मन हुआ है 'संसदीय राजनीति बनाम फिल्मी सांसद' विषय पर कुछ छूते-अछूते प्रसंगों का सिलसिला क्रमशः। ऐसा करना अनायास नहीं। प्रसंग को ताजा पृष्ठभूमि या दिशा मिली है सांसद राज बब्बर की व्यावसायिक गतिविधियों से। बब्बर प्रोडक्शन के बैनर तले उनका महत्वाकांक्षी महाराजा रंजीत सिंह सीरियल टेलीविजन पर शुरू हो चुका है। अब इसी विषय पर वह 125 करोड़ रुपये से फिल्म बनाने की तैयारी में हैं। ये सूचना पढ़ने-सुनने के बाद सबसे पहला खुराफाती सवाल मेरे दिमाग में कौंधा- क्या तमाम समस्याओं से जूझ रही किसी संसदीय क्षेत्र की जनता के जिम्मेदार प्रतिनिधि को इतना समय मिल जाता है कि वह फिल्मों-धारावाहिकों की दुनिया में नदारद रहे? जबकि क्षेत्र ही नहीं, सांसद सदन की कार्यवाहियों के लिए भी जवाबदेह होता है! दूसरा सवाल ये कौंधा कि फिल्म इंडस्ट्रीज में करोड़ों अरबों (सांसद जया बच्चन की कुल संपत्ति अरबों में है) की संपदा जोड़-जुटा लेने के बाद क्या कथित 'सितारे' सचमुच जनता की सेवा के ही उद्देश्य से संसद पहुंचने के लिए बेताब हो जाते हैं? अपना सीरियल तैयार हो जाने के बाद सांसद राज बब्बर चंडीगढ़ में मीडिया को बताते हैं कि फिल्म बनाने के लिए 125 करो़ड़ की जरूरत है। मैं पीछे नहीं हटूंगा। जल्द ही अपने इस सपने को भी हकीकत में बदल दूंगा। कोई सांसद राज बब्बर से पूछे कि आप तो अपने सपने हकीकत में बदलने में अवश्य कामयाब हो जाएंगे, फीरोजाबाद (उ।प्र।) की उस जनता की जरूरतों और सपनों के बारे में आपके की क्या मंशा है, जिसने आपको सिर पर बिठाकर देश की सर्वोच्च पंचायत में पहुंचाया है? मालूम होना चाहिए कि फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े और फटेहाल जिलों में से एक है। राज बब्बर पहले वहीं बगल की कांस्टीट्यूएंसी आगरा से निर्वाचित हो रहे हैं। पिछले चुनाव में आगरा मंडल के ही फतेहपुरसीकरी लोकसभा क्षेत्र से खड़े हुए तो बसपा प्रत्याशी से हार गए। फिर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के पुत्र, प्रदेश सपा अध्यक्ष एवं कन्नौज के सांसद अखिलेश यादव द्वारा अपनी दूसरी विजेता सीट फिरोजाबाद खाली कर देने पर उनकी पत्नी डिंपल यादव के खिलाफ खड़े हुए और वहां से जीत गए। जहां तक राज बब्बर के बारे में दूसरी तरह की काबिलियतों का सवाल है, वह छात्र जीवन से ही जुझारू रहे हैं। उनके सामाजिक या राजनीतिक जीवन पर वैसा कोई दाग भी नहीं है, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह से लेकर मुलायम सिंह तक के साथ राजनीति में सक्रिय रहते आए हैं, लेकिन एक सवाल उनसे आगरा की जनता पूछती रही है और अब फिरोजाबाद की भी जनता पूछने लगी है कि जीत जाने के बाद राज बब्बर कहां चले जाते हैं? संसद में अवकाश हो तो उन्हें आगरा अथवा फिरोजाबाद रहना चाहिए लेकिन कहा जाता है कि वह तो शूटिंग में व्यस्त हो जाते हैं और क्षेत्र में रह जाता है उनका कोई प्रतिनिधि। पहले उनके एक इसी तरह के प्रतिनिधि हुआ करते थे, जो विधायक बनने के बाद बसपा में चले गए। खैर। राज बब्बर इसी तरह अपने क्षेत्र की जनता की प्रतिनिधि पर छोड़ कर फिल्मी दुनिया में लौट जाते हैं। कलाकार होने के नाते उनमें बोलने की कला भरपूर है ही, सो यदा-कदा क्षेत्र में पहुंच कर बोल-बात से लोगों का पेट भर आते हैं। जब आगरा सीट सुरक्षित घोषित हुई थी तो सबसे ज्यादा राज बब्बर का ही राजनीतिक जीवन डांवाडोल हुआ था। सीकरी से लड़े और हार गए। कांग्रेस की शरण लेनी पड़ी। जीत गए। अब फिर वही रवैया। सीरियल और फिल्म बनाने में व्यस्त, क्षेत्र से नदारद। पिछले दिनो लोकसभा में 14 अप्रैल तक अवकाश घोषित हो जाने के बाद वह सुर्खियों में आए तो अपने सीरियल के साथ। एक सुर्खी और उनके प्रतिनिधि ने रिलीज की कि सांसदजी अलीगढ़ में एक दिन में आठ कार्यक्रमों को संबोधित करेंगे। यहां फिरोजाबाद की समस्याएं गिनाई जाएं तो अनंत हैं। अपनी उन्हीं मुश्किलों और जनप्रतिनिधियों के इसी तरह के खेल-तमाशों के चलते लोगों ने मुलायम सिंह जैसे दिग्गज को उनके गढ़ में मात दे दी थी। राज बब्बर की जीत सिर्फ और सिर्फ उसी की प्रतिक्रिया थी, वरना राज बब्बर ने फिरोजाबाद के लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया था, जिससे कि वहां के लोग उन्हें चुन कर संसद में भेज देते। सिर्फ इतना भर उनका इस जिले का इतिहास है कि उनके पिता यही टूंडला रेलवे स्टेशन पर नौकरी करते थे। पिछले चुनाव में इस भावावेग को भी खूब भुनाया गया था। ऐसा ही कुछ कांग्रेस के दूसरे पूर्व सांसद सांसद गोविंदा के बारे में सुना-कहा जाता रहा है। और तीसरे पूर्व सांसद अमिताभ बच्चन भी ऐसी ही फिल्मी आदतों के चलते इलाहाबाद से भाग खड़े हुए थे। ऐसे राजनेताओं की लिस्ट और कहानी दोनों लंबी है......(क्रमशः)

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