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कटौती प्रस्तवा पर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने संप्रग का साथ देकर देश की भावी सियासत का नए सिरे मूल्यांकन करने की गुंजायश बना दी है। उधर, लखनऊ में मायावती प्रेस कांफ्रेस कर अपने ताजा रुख का खुलासा कर रही थीं, इधर राजधानी में सपा, भाजपा, राष्ट्रीय जनता दल ही नहीं, कांग्रेस के भी रणनीतिकार हक्के-बक्के थे। सबकी चर्चाओं के केंद्र में था सिर्फ एक सवाल कि मायावती ने ऐसा क्यों किया? जहां तक इकहरी राजनीति का सवाल है, सपा और राजग भी आहिस्ते से वामदलों और भाजपा को गच्चा दे अप्रकट तौर पर संप्रग के साथ खड़ी हो गईं लेकिन बसपा की दुंदभी ने कांग्रेस के दिग्विजय सिंह समेत तमाम उन रणनीतिकारों के मिजाज डगमगा दिए हैं, जो पिछली 14 अप्रैल को यूपी के अंबेडकरनगर से राहुल का रथ रवाना करने के बाद सूबे की जनता, खासतौर से दलित वर्ग में अपने सपने हसीन होते देखने लगे थे। हसीन होने तो दूर, माया ने शब्दबेधी चलाकर महीने भीतर ही कांग्रेस की साफगोई की हवा निकाल दी है। इस रणनीति का सबसे गहरा आघात यूपी में राहुल गांधी की राजनीति पर माना जा रहा है (और सच कहें तो सबसे ज्यादा फायदा भी)। आरोपों और जांचों से घिरे मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव की ही त्यौरी अख्तियार कर मायावती ने भविष्य में कांग्रेस को यह कहने का मौका दे दिया है कि भ्रष्टाचार का डर सिरहाने ही नहीं, पायताने भी है। बेदाग दम पर किसी ललकार गूंज सकती है तो भाजपा की, लेकिन वह भी आईपीएल मामले में दोहरा रुख बनाकर देश के बौद्धिक तबके की आलोचनाओं से बच नहीं सकी है।
कुछ दिन पहले कहा गया था कि कांग्रेस सीबीआई को उन मामलों में सधे तरीके से इस्तेमाल कर रही है, जो पार्टी प्रमुखों के खिलाफ हैं। लालू यादव, मुलायम सिंह और अब मायावती उन्हीं दबावों के चलते खुले-छिपे तौर पर कांग्रेस की मेहरबानियों की तलबगार बनी हैं। इससे और सदन में आज कटौती प्रस्ताव ध्वस्त होने के बाद सबसे बड़ा निष्कर्ष ये सामने आ चुका है कि तिसरा मोरचा तो बनने से रहा। बन भी गया तो महाबुद्धू मतदाता को भी समझते देर न लगेगी कि उस पर आखिर किस मुंह से भरोसा करें। इसी तरह पिछले लोकसभा चुनाव से पहले बसपा को पटाने में थर्डफ्रंटवादी विफल हो चुके थे। आज एक बार फिर मामला फुस्स हो गया। ये वही मायावती हैं और वही कांग्रेस, जिनका वाक्युद्ध रैली वाली माला पर सारे देश ने सुना था।
मायावती ने आज प्रेस क्रॉन्फ्रेंस में कहा कि बीएसपी ने कट मोशन पर यूपीए सरकार का इसके बावजूद समर्थन किया है कि केन्द्र सरकार की नीतियां सही नहीं हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने यूपी के विकास के लिए अपेक्षित मदद नहीं की, लेकिन वह केंद्र सरकार को अस्थिर करके देश की सांप्रदायिक ताकतों के मंसूब पूरे नहीं होने देंगी। इसे महज खोखला बहाना ही कहा जा सकता है। और कुछ नहीं। लोकसभा में 21 सदस्यों वाली बीएसपी के रुख में अचानक आए बदलाव से विपक्ष के कटौती प्रस्ताव की हवा निकल गई। लालू प्रसाद यादव के आरजेडी ने भी साफ कुछ नहीं कहा। इस परिवर्तन पर माना जा रहा है कि यूपीए सरकार द्वारा आय से अधिक संपत्ति और अन्य मामलों में बीएसपी प्रमुख मायावती को राहत देने के बाद कांग्रेस और बीएसपी में रणनीतिक समझौता हुआ है। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में आय से अधिक संपत्ति के मामले में मायावती के खिलाफ अपील नहीं करने का फैसला किया है। वैसे बसपा सांसदों ने तो कल ही उस समय अपने आज के इरादे का संकेत दे दिया था, जब लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगह विपक्ष फोन टैपिंग पर हंगामा कर रहा था और बीएसपी सदस्य शांत बने रहकर सरकार को राहत दे रहे थे।
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