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कांग्रेस पर तो जैसे आफत आई हुई है। आफत क्या, संसद में एक-एक कर भ्रष्टाचार में मंत्रियों की संलिप्तता के मामले उछलते जा रहे हैं। पहले विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर को आईपीएल भ्रष्टाचार मामले में कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद उसकी सरकार में प्रमुख सहयोगी एनपीसी मंत्री प्रफुल्ल पटेल और शरद पवार पर इसी कड़ी में आरोप उछले। आज संसद में एक और मंत्री ए.राजा को विपक्ष ने निशाने पर ले लिया।
देश में 2008 के दौरान 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में हुए करोडों रूपये के कथित घोटाले में एक निगमित दबाव समूह के शामिल होने की खबर के परिप्रेक्ष्य में आज संसद में दूरसंचार मंत्री ए. राजा विपक्ष विशेषकर अन्नाद्रमुक के निशाने पर आये और उन्हें बर्खास्त करने की मांग उठी। एक दैनिक अखबार में छपी खबर के बाद अन्नाद्रमुक, भाजपा और वाम दलों ने लोकसभा और राज्यसभा में राजा को निशाना बनाया। ये लोग अखबार की प्रतियां दिखाते नजर आये, जिसमें लिखा गया था कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पास यह दर्शाने के लिए पक्के सबूत हैं कि एक हाईप्रोफाइल महिला जनसंपर्क हस्ती ने करोडों रूपये के 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में मध्यस्थ की भूमिका निभायी है। हंगामे के दौरान राजा दोनों ही सदनों में मौजूद नहीं थे। द्रमुक नेता टी. आर. बालू और उनके सहयोगियों ने दूरसंचार मंत्री के खिलाफ लगाये गये आरोपों पर लोकसभा में कड़ी आपत्ति दर्ज करायी। अन्नाद्रमुक और वाम दलों के सदस्य लोकसभा में आसन के सामने आकर नारेबाजी करने लगे। कुछ सदस्य अखबार की प्रतियां लहराते भी नजर आये। वे इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण की मांग कर रहे थे।
उल्लेखनीय है कि इस माह के प्रारंभ में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने आरोप लगाया था कि दूरसंचार मंत्री ए राजा ने देश को 26,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का चूना लगाया है। है। कैग ने बताया था कि तमाम विशेषज्ञों की सलाह दरकिनार करते हुए राजा ने नए दूरसंचार लाइसेंस जारी करने के लिए गलत और पुरानी पड़ चुकी नीति अपनाई, जिससे सरकारी खजाने को चपत लगी। कैग ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा कि पिछले कुछ महीनों में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते पद से हटाए जाने की मांग के असर से बच निकलने वाले राजा ने उस नीति पर चलते रहने का निर्णय अकेले ही किया जिसके कारण सरकारी राजस्व को 26,685 करोड़ रुपए का झटका लगा। सीबीआई दूरसंचार विभाग में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही है। सीबीआई दूरसंचार लाइसेंस दिए जाने के तौर-तरीकों की जांच कर रही है। विभाग ने साल 2008 में 1,651 करोड़ रुपए में अखिल भारतीय लाइसेंस जारी किए थे जबकि यह भाव 2001 में तय किया गया था। कैग ने अपने निष्कर्षों पर दूरसंचार विभाग से जवाब तलब किया। कैग के आरोपों पर बार-बार प्रयास करने के बावजूद दूरसंचार मंत्री का जवाब हासिल नहीं किया जा सका। विपक्षी दलों ने पिछले साल तब राजा के इस्तीफे की मांग की थी, जब सीबीआई ने स्पेक्ट्रम आवंटन की जांच शुरू की। हालांकि, राजा तब बच गए क्योंकि यूपीए गठबंधन की अहम सहयोगी दमुक राजा का पुरजोर समर्थन करने लगी। कैग ने कहा कि दूरसंचार नीति में साफ कहा गया है कि उपलब्धता के आधार पर ही रेडियो स्पेक्ट्रम का आवंटन होगा और वायरेलस लाइसेंस जारी किया जाएगा। हालांकि अगर अनुपलब्धता के चलते लाइसेंसधारक को स्पेक्ट्रम का आवंटन न हो सके तो वह वायरलाइन तकनीक के जरिए सेवाएं देने का कदम उठा सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि लाइसेंस के आवेदन पर तब भी विचार किया जा सकता है, जब स्पेक्ट्रम उपलब्ध न हो। ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया कि लिहाजा स्पेक्ट्रम उपलब्ध न होने के कारण आवेदनों पर कदम न बढ़ाने का निर्णय लाइसेंस जारी करने के नीतिगत दिशानिर्देशों के उलट था और इसके चलते एंट्री फी के रूप में सरकार को 26,685 करोड़ रुपए से हाथ धोना पड़ा। कैग ने यूएएस लाइसेंस जारी करने में भी खामी पाई थी। उसका कहना था कि मौजूदा प्रावधानों में संशोधन किए बगैर ऐसा करना गलत था। यूएएस लाइसेंस दूरसंचार सेवाएं मुहैया कराने का समग्र लाइसेंस होता है। रिपोर्ट में कहा गया कि दूरसंचार सचिव सहित तमाम विशेषज्ञों ने सुझाव दिया था कि एंट्री फी में 2001 से कोई बदलाव नहीं किया गया है, लिहाजा नए लाइसेंस जारी करने पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। सीबीआई ने पहले ही सरकार को 22,000 करोड़ रुपए का चूना लगाने के लिए दूरसंचार विभाग के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का आरोप लगाया। सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा कि विभाग के तौर-तरीकों पर सवाल उठाने वाली कैग की यह रिपोर्ट सीबीआई का पक्ष और मजबूत करेगी। प्रवर्तन निदेशालय ने भी इस प्रक्रिया के तहत लाइसेंस पाने वाली दो दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
साथ ही, पिछले महीने 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के निष्कर्ष पर किसी हस्तक्षेप से इंकार कर देने के बाद अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयाललिता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा को बर्खास्त करने की मांग की थी। जयललिता ने एक विज्ञप्ति में कहा था कि न्याय के हितों की रक्षा तभी हो सकती है जब राजा को केंद्रीय मंत्री पद से बर्खास्त किया जाए। अब उनके पास राजा को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का समर्थन भी है, ऐसे में उन्हें राजा को बर्खास्त करने में झिझकना नहीं चाहिए। दूरसंचार कंपनी एसटेल की ओर से दायर मामले पर विस्तार से चर्चा करते हुए जयललिता ने कहा था कि कंपनी ने दूरसंचार मंत्रालय द्वारा टूजी आवंटन की तारीखों को मनमाने ढंग से आगे बढ़ाने के कारण अदालत का रूख किया। इस मामले में 12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने दूरसंचार मंत्रालय और राजा के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट के निष्कर्ष पर हस्तक्षेप करने से इनकार किया था।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के पिछले कार्यकाल में भी पक्षपात के ज्यादातर आरोप राजा के मंत्रालय पर ही लगे थे। इसीलिए शुरुआती दौर में राजा को दूरसंचार मंत्रालय देने से इनकार के बाद प्रधानमंत्री फिर तैयार हो गए थे, जबकि ज्यादातर लोगों को यकीन था कि राजा की दूसरी पारी सरकार के सामने और शर्मनाक स्थिति लेकर आएगी। पहली पारी में राजा ने अपनी पसंदीदा फर्मों को बाजार कीमत से काफी कम पर पर्याप्त मात्रा में स्पेक्ट्रम दिया बजाय इसके कि यह सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को दिया जाता। इससे सरकार को 10 अरब डॉलर का चूना लगा, लेकिन इस वजह से और भी नुकसान हुआ। उन्होंने स्पेक्ट्रम के साथ-साथ लाइसेंस ऐसी फर्मों को दिया जो इसका इस्तेमाल करने में फिलहाल सक्षम नहीं थे क्योंकि नेटवर्क स्थापित करने के लिए उनके पास अरबों डॉलर नहीं थे। किसी भी सूरत में ये कंपनियां बड़े पैमाने पर भारती एयरटेल जैसी कंपनियों से प्रतिद्वंदिता नहीं कर सकती थीं। जिन्हें स्पेक्ट्रम दिया गया, वे इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती और भारती एयरटेल व वोडाफोन जैसी कंपनियां स्पेक्ट्रम के मामले में भूखी रही। तार्किक रूप से भारती व वोडाफोन ने स्पेक्ट्रम पाने वाली उन कंपनियों से ऊंचे प्रीमियम पर इसे खरीद लिया होता। लेकिन यह साबित करने के लिए कि प्रतिद्वंद्विता बढ़ाने की खातिर सक्षम बनाने के लिए लाइसेंस दिए गए थे, राजा ने विलय व अधिग्रहण के नियमों में फेरबदल कर दिया, जिसके तहत तीन साल तक इसे बेचना प्रतिबंधित कर दिया गया।
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जिन्दा लोगों की तलाश!
आपको उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की इस तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को हो सकता है कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आपको उक्त टिप्पणी प्रासंगिक लगे या न लगे, लेकिन हमारा आग्रह है कि बूंद से सागर की राह में आपको सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी आपके अनुमोदन के बाद प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप को सारथी बनना होगा। इच्छा आपकी, आग्रह हमारा है। हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी जिनमें हो, क्योंकि भगत ने यही नासमझी की थी, जिसका दुःख आने वाली पढियों को सदैव सताता रहेगा। हमें सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह और चन्द्र शेखर आजाद जैसे आजादी के दीवानों की भांति आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने वाले जिन्दादिल लोगों की तलाश है। आपको सहयोग केवल इतना भी मिल सके कि यह टिप्पणी आपके ब्लॉग पर प्रदर्शित होती रहे तो कम नहीं होगा। आशा है कि आप उचित निर्णय लेंगे।
समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है, बल्कि हो ही चुका है। सरकार द्वारा जनता से हजारों तरीकों से टेक्स (कर) वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया गया है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा लोगों से पूछना चाहता हँू कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरों द्वारा सत्ता मनमाना दुरुपयोग करना और कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666, E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
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