उनके पास दिखाने के लिए और कुछ नहीं है. मुंबई हमले के एक महीने पूरे हो गए. वे चैनल वाले हैं. उनके पास दिखाने के लिए और कुछ नहीं है. मुंबई हमले के वही दृश्य घुमा-फिरा कर परोसे जा रहे हैं.
आज रात देखा कि किस तरह मनोज वाजपेयी एनडीटीवी पर लच्छेदार और लटपटिया जुबान से तान-तान कर बता रहा है कि छत्रपति शिवा जी रेलवे स्टेशन पर किस तरह आज भीड़ है और किस तरह 26 नवंबर की रात यहां आतंकवादियों ने अब तक छप्पन यानी छप्पन लोगों को भून दिया था. बीच-बीच में विज्ञापनों की छौंक, फिर उसी तरह मुंह बनाते हुए मनोज वाजपेयी की जुमलेबाजी.
हद है. ये बेशर्म कुछ भी बेंचने से बाज नहीं आएंगे. इनके लिए ऐसी लोमहर्षक घटनाएं में शेयर बाजार की तरह सिर्फ माल हैं.
इसी तरह सन 57 से सन 47 तक देश के स्वतंत्रता सेनानियों के लड़ने के बाद बेशर्म नेता सेठों-साहुकारों और लुटेरे उद्योगपतियों की गोद में बैठकर भगत सिंह की शहादत को बेचने-खाने लगे थे. दनादन फिल्मे बनाने लगे थे. कभी अजय देवगन भगत सिंह के वेश में अंग्रेजी टोपी लगाकर नमूदार होता तो कभी बॉबी देओल. इससे पहले मनोज कुमार उर्फ भारत ऐसी ही नौटंकियां किया करता था.
आजादी की लड़ाई में किस तरह अंग्रेजों ने बहादुर हिंदुस्तानियों को चुन-चुन कर मारा था, उसी तरह आज देश की जनता को चुन-चुन कर पराजित करने वाले लुटेरे बेंच खा रहे हैं. पूंजी और पैसे की जरूरतों ने, मुंबई-दिल्ली में रहने के शौक ने उन्हें कितना बेशर्म बना दिया है. इन दिनों वे सब-के-सब आतंकवाद को बेंचकर खा रहे हैं. चैनल आजतक (फक्क) हो या स्टान न्यूज (फ्यूज), पाठकों को बेवकूफ समझते हुए अपनी टीआरपी की लड़ाई में व्यस्त हैं. थूह.......
ये सचमुच कफन फरोश हैं.
मुंबई के हमलावरों से ज्यादा क्रूर और स्वार्थी हैं.
इन्हें पहचानो.
ये आज के हिंदुस्तान के सौदागर हैं.
कल के हिंदुस्तान के जयचंद और मीर जाफर हैं.
इन्हें पहचानो.
ये बलबोले आधुनिक शिखंडी हैं.
आतंकवाद तक को बेंच-खाने वाले बिना देह के रंडी हैं.
चुनाव आ रहा है तो
वे मुल्क फरोश आतंकवाद के नाम पर अलग ही दुंदभी बजा रहे हैं
बता रहे हैं
कि सीमा पर लड़ाकू विमान मंडरा रहे हैं.
जबकि होगा कहीं कुछ नहीं.
उधर जरदारी होगा.
इधर अपना मदारी होगा.
दोनों नीरो हैं, चैन की बंशी बजाएंगे,
मरते दम तक ऐसे ही नजर आएंगे.
आतंकवाद को भी बेंच-खाएंगे.