Sunday, April 25, 2010

संसद में सरकार के मुश्किलों भरे सोम, मंगल, बुधवार!


sansadji.com
संसद के बजट सत्र का अगला सप्ताह सरकार के लिए कड़े परीक्षा की घड़ी होगा, जिसमें समूचे विपक्ष सहित सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे कुछ दलों ने उसके खिलाफ कटौती प्रस्ताव रखने का ऐलान किया है। ऐसे में सरकार को अपना बहुमत साबित करना तलवार की धार पर चलने के समान होगा।
भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कटौती प्रस्ताव पर अन्य दलों से तालमेल करके सरकार गिराने के इरादे पर रहस्य बनाए रखते हुए सिर्फ इतना कहा है कि हम कटौती प्रस्ताव ला रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या विपक्ष मिल कर सरकार गिराने का इरादा रखता है, उन्होंने कहा कि पता नहीं। यह पूछे जाने पर कि क्या कटौती प्रस्ताव पेश करने का उद्देश्य केवल सरकार को असहज स्थिति में डालना है, भाजपा अध्यक्ष ने प्रश्न को टालते हुए कहा कि कटौती प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार को बढ़ी हुई कीमतों को वापस लेने के लिए मजबूर करना है। पहले हमें सरकार को बढ़ी कीमतों को वापस लेने पर झुकने को मजबूर करने दीजिए। अभी हम कीमतों को कम कराना चाहते हैं। यह पूछे जाने पर कि कटौती प्रस्ताव के दौरान अगर सरकार गिर गई तो क्या भाजपा चुनाव के लिए तैयार है, गडकरी ने इसका उत्तर देने से इंकार कर दिया। कटौती प्रस्ताव लाने के अलावा विपक्ष ने आईपीएल विवाद की जांच संयुक्त संसदीय दल से कराने का दबाव सरकार पर बना ही रखा था, इसी बीच कुछ राजनीतिकों के फोन टैपिंग का इल्ज़ाम भी उभर कर सामने आने से उसकी मुश्किलों की लिस्ट लंबी होती जा रही है। माकपा के नेतृत्व में 13 दलों के साथ ही भाजपा नीत राजग के कुल मिलाकर 18 राजनीतिक दल कटौती प्रस्ताव पेश करके उस पर पेट्रोल और डीज़ल के बढ़े दामों को वापस लेने का दबाव बनाएंगे। ये कटौती प्रस्ताव विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की अनुदान मांगों पर 27 अप्रैल को लोकसभा में मंजूरी के लिए पेश करने के समय रखे जाएंगे। विपक्ष के कटौती प्रस्तावों को मंजूरी मिल जाने की अवस्था में सरकार बड़े संवैधानिक संकट में घिर जाएगी। एक ओर माकपा ने जहां इस मुद्दे पर सपा, राजद, बीजद, अन्ना द्रमुक, तेलगु देशम, नेलोद, जदयू एस, भाकपा, फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी जैसे 13 दलों को लामबंद किया है, वहीं शिव सेना, जदयू और अकाली दल जैसे राजग से जुड़े दलों को भाजपा ने। गौरतलब है कि विपक्ष ऐसे समय में कटौती प्रस्ताव लाने की योजना बना रही है, जब सरकार पहले से आईपीएल विवाद की जांच के लिए जेपीसी के गठन और कथित टेलीफोन टैपिंग घोटाले से जूझ रही है। अगर आईपीएल को लेकर छाये विवाद की जांच के लिये संयुक्त संसदीय समिति गठित करने का फैसला होता है तो यह राकांपा प्रमुख शरद पवार के लिये एक अजीब इत्तफाक होगा क्योंकि पिछली बार गठित जेपीसी के अध्यक्ष वह खुद थे और इस बार आईपीएल में उनकी भूमिका भी जांच के घेरे में हो सकती है। पवार ने जिस जेपीसी की अध्यक्षता की थी वह चौथी समिति थी। पिछली बार संसद ने 22 अगस्त 2003 को जांच समिति का गठन किया था। उस समय पवार विपक्ष में थे और सत्ता में राजग था। बहरहाल, इस बार पवार और उनके पार्टी सहयोगी प्रफुल्ल पटेल की केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफे की मांग की पृष्ठभूमि में जेपीसी से जांच कराये जाने की मांग उठ रही है। जब आईपीएल शुरू हुआ था तब क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष पवार ही थे और तभी ललित मोदी को लीग का आयुक्त बनाया गया था। इससे पहले शीतल पेय पदार्थों, फलों के रस और अन्य पेय पदार्थों में कीटनाशक तत्व होने के आरोपों की जांच और सुरक्षा मानकों की चिंताओं को देखते हुए चौथी संयुक्त संसदीय जांच समिति का गठन किया गया था। जनता ने भी इस तरह के शीतल पेय पदार्थों का उत्पादन करने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। इस समिति ने 17 बैठकें कीं और अपनी रिपोर्ट चार फरवरी 2004 को सौंपी थी।
फोन टैपिंग पर लालकृष्ण आडवाणी ने तो इसकी तुलना आपातकाल से कर दी है। वह अपने ब्लॉग पर लिखते हैं कि यह एक हिला देने वाली रिपोर्ट है, जिसमें खुलासा किया गया है कि भारत सरकार कैसे नवीनतम फोन टैपिंग तकनीक का इस्तेमाल प्रमुख राजनीतिक नेताओं के बीच की टेलीफोनिक बातचीत को रिकार्ड करने में कर रही है। इन प्रमुख नेताओं में नीतीश कुमार जैसे मुख्यमंत्री, शरद पवार जैसे केन्द्रीय मंत्री, प्रकाश करात जैसे कम्युनिस्ट नेता और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जैसे सत्तारूढ़ पार्टी के अपने पदाधिकारी शामिल हैं। पुराने पड़ चुके टेलीफोन अधिनियम को समाप्त किए जाने की मांग करते हुए आडवाणी ने नागरिकों की निजता की संरक्षा के लिए एक नया कानून बनाए जाने की वकालत की है। उनकी मांग है कि समस्या की सभी पहलुओं से पड़ताल करने, बेकार हो चुके भारतीय टेलीफोन अधिनियम 1885 को समाप्त करने तथा आम नागरिक की निजता की सुरक्षा के लिए इसके स्थान पर नया कानून बनाने के लिए ब्रिटेन में ब्रिकेट समिति की तर्ज पर एक संसदीय समिति गठित की जाए। आम नागरिकों की निजता की सुरक्षा करे, लेकिन जो औपचारिक रूप से केवल अपराध, घोटाले तथा जासूसी के मामलों में ही राज्य को नवीनतम आईटी तकनीक के इस्तेमाल को मान्यता दे। इस कानून में सांविधिक सुरक्षा मानक अवश्य हों जो सरकार के लिए राजनीतिक कार्यकर्ताओं तथा मीडियाकर्मियों के खिलाफ इस कानून की शक्तियों का दुरूपयोग असंभव बना दें। यह मुझे 25 साल पुरानी एक घटना की याद दिलाता है, जिससे मेरा वास्ता पड़ा था। 1985 की एक सुबह, एक अजनबी मेरे घर पर आया, जिसके हाथ में कागजों से भरा एक ब्रीफकेस था। उसने कहा कि इस ब्रीफकेस में डायनामाइट है, जो इस सरकार को उड़ा सकता है। उसने अपना ब्रीफकेस खोला और करीब 200 पन्नों का ढ़ेर लगा दिया, जिनमें कई अति विशिष्ट हस्तियों की टेलीफोन बातचीत का रिकार्ड दर्ज था। इनमें से कुछ कागजों में उनकी अटल बिहारी वाजपेयी से हुई बातचीत का ब्यौरा था। अधिक हैरानी यह जानकार हुई कि इन दस्तावेजों में न केवल विपक्षी नेताओं की आपसी बातचीत को रिकॉर्ड किया गया था, बल्कि कुछ ख्यातिनाम पत्रकार और ज्ञानी जैल सिंह जैसी हस्तियों की बातचीत भी रिकार्ड थी। उन्होंने ये भी लिखा है कि 25 जून 1985 का एक संवाददाता सम्मेलन भी शामिल था। इस दिन आपातकाल की दसवीं वर्षगांठ थी जिसमें वाजपेयी ने आपातकाल की न केवल अन्य ज्यादतियों का जिक्र किया था, बल्कि 19 महीने की इस अवधि में बड़े पैमाने पर हुई फोन टैपिंग घटनाओं का भी उल्लेख किया था। उस संवाददाता सम्मेलन में वाजपेयी ने कहा, मुझे लंबे समय से पता है कि मेरे तथा मेरे पार्टी सहयोगी आडवाणी के फोन पर नजर रखी जा रही है। वाजपेयी ने कहा कि लेकिन बाद में मुझे पता चला कि चौधरी चरण सिंह, जगजीवनराम और चंद्रशेखर जैसे वरिष्ठ नेताओं, जीके रेडडी, अरूण शौरी, कुलदीप नायर तथा जीएस चावला जैसे पत्रकारों के फोन भी नियमित रूप से टेप किए जा रहे हैं। लेकिन इससे भी अधिक सदमा मुझे यह जानकार लगा कि खुफिया ब्यूरो ने राष्ट्रपति और प्रधान न्यायाधीश तक के फोन टेप किए हैं। यह सब न केवल राजनीतिक रूप से अनैतिक है बल्कि असंवैधानिक और गैरकानूनी भी है। 1996 में जब देवगौड़ा प्रधानमंत्री थे, उस समय पूर्व गृह मंत्री एसबी चव्हाण की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने उनसे शिकायत की कि पीवी नरसिंहा राव तथा कई अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के फोन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा टेप किए जा रहे हैं।

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