Saturday, August 30, 2008

मरहूम अहमद फराज की कलम से

दुनिया भर में मशहूर पाकिस्तानी शायर अहमद फराज (जन्म जनवरी 1931) इसी महीने की 25 अगस्त को दुनिया से विदा हो गए। रचना जगत से जुड़े लोगों के लिए यह दुख की घड़ी रही। उस मशहूर शायर की याद में उसकी पांच लोकप्रिय रचनाएं यहां प्रस्तुत हैं.................




1
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें

तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बड़ता है शरबें जो शराबों में मिलें

आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें

अब न वो मैं हूँ न तु है न वो माज़ी है "फ़राज़"
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें

2
अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन
ज़ख़्म फूलों की तरह महकेंगे पर देखेगा कौन

देखना सब रक़्स-ए-बिस्मल में मगन हो जायेंगे
जिस तरफ़ से तीर आयेगा उधर देखेगा कौन

वो हवस हो या वफ़ा हो बात महरूमी की है
लोग तो फल-फूल देखेंगे शजर देखेगा कौन

हम चिराग़-ए-शब ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना
रात थी किस का मुक़द्दर और सहर देखेगा कौन

आ फ़सील-ए-शहर से देखें ग़नीम-ए-शहर को
शहर जलता हो तो तुझ को बाम पर देखेगा कौन

3
बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है
के ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है

कहाँ वो क़ुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे
तेरे फ़िराक़ का आलम भी ख़्वाब जैसा है

मगर कभी कोई देखे कोई पढ़े तो सही
दिल आईना है तो चेहरा किताब जैसा है

वो सामने है मगर तिश्नगी नहीं जाती
ये क्या सितम है के दरिया सराब जैसा है

"फ़राज़" संग-ए-मलामत से ज़ख़्म ज़ख़्म सही
हमें अज़ीज़ है ख़ानाख़राब जैसा है

4
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत* का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम* न सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है, तो ज़माने के लिए आ

एक उमर से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया* से भी महरूम
ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ


5
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू
कहाँ गया है मेरे शहर के मुसाफ़िर तू

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

मेरी मिसाल कि इक नख़्ल-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा हूँ
तेरा ख़याल कि शाख़-ए-चमन का ताइर तू

मैं जानता हूँ के दुनिया तुझे बदल देगी
मैं मानता हूँ के ऐसा नहीं बज़ाहिर तू

हँसी ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है
ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू

"फ़राज़" तूने उसे मुश्किलों में डाल दिया
ज़माना साहिब-ए-ज़र और सिर्फ़ शायर तू

Thursday, August 28, 2008

आगरा में पत्रकारों पर लगातार हमले


सुलहकुल की नगरी में चौथे खंभे पर एक और हमला।कानून व्यवस्था पर एक और सवालिया निशान। मीडियाजगत में आक्रोश की लहर। पुलिस और प्रशासनतमाशबीनों की कतार में। पूरा शहर खौफजदा।




1...
दो दिन पहले हॉस्टल में सहारा समय, ईटीवी आदि के पत्रकारों, फोटो ग्राफरों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया।
2...
आज 28 अगस्त को दोपहर में सेंट जांस के सामने निशा नरेश के पत्रकार के पेट में चाकू भोंक दिया गया।

जागता शहर....जंग हमारी जारी है



भ्रष्टाचार के विरुद्ध
करेगा युद्ध

भ्रष्टाचार के विरुद्ध
करेगा युद्ध

भ्रष्टाचार के विरुद्ध
करेगा युद्ध


जागता शहर
न्यूज वीकली
आगरा से शीघ्र प्रकाशित

इस जंग में
आपके
रुपये सिर्फ 5

प्रदेश 3
मंडल 9
जिले 31
दिन 7
रुपये 5


.....जंग जारी है, जंग जारी रहेगी

Tuesday, August 26, 2008

जागता शहर....मीडिया की ताजा अंगड़ाई

नारा है....
जो जागे, सो आगे

भ्रष्टाचार के विरुद्ध
हम करेंगे युद्ध.....

जागता शहर
नाम है उस ताजा जुनून का, जो उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के कुल इकत्तीस जिलों में भ्रष्टाचार केखिलाफ मीडिया-हुंकार भरने जा रहा है।
जागता शहर नाम है उस साप्ताहिक न्यूज मैग्जीन का, जिसके भीतर छिपी आग की लपटें अभी से सुदूर तक नएतरह के जन-कोलाहल का संकेत देने लगी हैं।
जागता शहर हिंदी समाचार साप्ताहिक के संपादक है अनिल शुक्ला, जिनकी खोजी रपटों ने किसी जमाने में रविवार के पन्नों से ठहरे वक्त को ललकारा था।
वह जमाना था जाने-माने पत्रकार और रविवार के संपादक एसपी सिंह का, जिन्होंने राजेंद्र माथुर के बाद हिंदी पत्रकारिता को नयी दशा-दिशा का एहसास कराया था।
अमर उजाला आगरा से कुछ ही समय बाद मुंह मोड़ कर अनिल शुक्ला एसपी सिंह की टीम में शामिल हो गए थे, फिर संडे मेल, दूरदर्शन आदि में कुछ समय रहे।
अनिल शुक्ला, जिन्होंने यह कहते हुए संडे मेल से त्यागपत्र दे दिया था कि मैं मूर्ख संपादकों को झेलते-झेलते आजिज आ गया हूं, उनकी चाकरी नहीं करूंगा।
जागता शहर के संपादक अनिल शुक्ला ने रविवार के लखनऊ, जयपुर ब्यूरो प्रमुख का दायित्व संभालने के दौरान ही लिया था रिजनल न्यूज मैग्जीन का संकल्प।
रीजन फोकस न्यूज मैग्जीन, सप्ताह में एक बार, महीने में चार बार उत्तर प्रदेश के नौ मंडलों, राजस्थान के चार जिलों और मध्य प्रदेश के तीन जिलों में पहुंचेगी।
उत्तर प्रदेश में जागता शहर का पाठक वर्ग होगा वेस्ट यूपी के 26 जिलों में...आगरा, मथुरा, फीरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, फर्रुखाबाद, एटा, कांसीराम नगर, हाथरस, अलीगढ़, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मुरादाबाद-बरेली मंडल।
राजस्थान में जागता शहर के पाठक होंगे धौलपुर, बयाना, भरतपुर, बाड़ी के लोग और मध्य प्रदेश में ग्वालियर, भिंड, मुरैना आदि के पाठक इसे पढ़ सकेंगे।
जागता शहर सिर्फ साप्ताहिक न्यूज मैग्जीन नहीं, संपादक अनिल शुक्ला के जीवन का वह आखिरी मोर्चा है, जिसका नारा है, भ्रष्टाचार के विरुद्ध हम करेंगे युद्ध।
जागता शहर में होंगी ऐसी स्टोरी, जो उसके पाठक वर्ग ने कभी किसी अखबार या चैनल पर देखी-सुनी नहीं होगी, साथ में यूथ, महिलाओं और खेल के पन्ने भी।
जागता शहर का नारा है..जो जागे सो आगे। उसकी खोजी रपटें उन लोगों को झकझोरेंगी, जगाएंगी जो व्यवस्था की मार से थकने और ऊंघने लगे हैं।
जागता शहर में हर हफ्ते खुलेगी उनकी पोल, जो अजगर की तरह अपने आसपास को लपेटे हुए हैं। अजगर अफसर, मंत्री, नेता, अपराधी।
जागता शहर यानी जनतंत्र का प्रहरी, ढुलमुलाते लोकतंत्र की आवाज, भ्रष्ट नौकरशाहों और राजनेताओं का दुश्मन और आम आदमी की जुबान।
जागता शहर अपने जन्म से पहले ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए मीडिया-परिदृश्य की तरह सुलगने लगा है। उसकी चिंगारियां अटकलों में गूंजने लगी हैं।
जागता शहर के संपादक अनिल शुक्ला की संपादकीय टीम में हैं ऐसे पत्रकार, जिन्हें सेठों और उनके पायताने बैठे समर्पणकारियों की चाटुकारिता रास न आयी।
उन पत्रकारों की टीम, जिन्होने जीवन भर देश के चार बड़े हिंदी अखबारों के भीतर समय गुजारते हुए भी अपनी सोच और शब्द-संपदा को सुरक्षित रखा।
वे पत्रकार, जिन्होंने बड़े-से-बैनर को बात-बात पर ठोकरें मारीं, कभी उनकी झांसा-पट्टियों में नहीं आए। वे जहां भी रहे, पेशे की लड़ाई लड़ते रहे।
...तो ऐसा है जागता शहर परिवार। पत्रकारिता में नयी संभावनाओं का वारिस। पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूरे प्रदेश और फिर चार राजधानियों तक होगा उसका सफर।
इसी संकल्प के साथ वेस्ट यूपी में नयी कोलाहल पैदा करने जा रहा है जागता शहर। अपने करोड़ों पाठकों की उम्मीदों की सुबह लिये आ रहा है वह शीघ्र सितंबर में.....