Tuesday, November 3, 2009
हिंदुस्तान शशि शेखर से रहे सावधान
और हिंदुस्तान पहुंचते ही चुग्गा डालना शुरू कर दिया। चुगने वाले भी कतार में लग गए। पहला झटका अमर उजाला नोएडा के सीनियर को हिंदुस्तान में बैठाकर दिया। इसके बाद लखनऊ से चुके-चुकाए मोहरे अशोक पांडेय को कानपुर की डोर सौंप दिया। अभी आगरा के पुष्पेंद्र शर्मा दो नाव की सवारी कर रहे हैं. देर-सवेर उन्हें मेरठ हिंदुस्तान का हेड बनाने की अफवाह कम, ठोस चर्चाएं ज्यादा हैं। अमर उजाला आगरा प्रबंधन ने पुष्पेंद्र का विकल्प चुपचाप तैयार कर रखा है। अमर उजाला कानपुर, बरेली, गोरखपुर, इलाहाबाद, बनारस के हेड में जी भैया जी प्रणाम करने में जुटे हुए हैं।
पते की बात ये कि हिंदुस्तान के मालिक लोग यानी शोभना भरतिया जरा सावधान हो जाएं। हिंदुस्तान में अमर उजाला का ये भेड़ियाधंसान उन्हें उस समय गच्चा दे जाएगा, जब उनके प्रधान संपादकश्री किसी और दरवाजे की शरण लेंगे। तो पीछे से जीभैयाजी लोग भी चले जाएंगे। दैनिक जागरण, भाष्कर इससे बहुत पहले सबक लेकर संपादकश्री से जान बची तो लाखों पाए की कहावत पर अमल किए हुए हैं। जहां तक संपादकश्री की वजह से हिंदुस्तान का सर्कुलेशन और मार्केट उठान का प्रश्न है, वह तो सात जनम में नहीं होना। अमर उजाला इसीलिए माथा पीट रहा है कि कहां का ठीकरा अपने माथे फोड़ लेने की गलती कर ली थी।
------बाकी खबर मीडिया विस्फोट के हवाले से
अब हिंदुस्तान के ब्यूरो और सिटी प्रमुखों को प्रतिदिन एडवांस खबरों की लिस्ट भेजनी होगी। शशिशेखऱ की भाषा में अगर बात करे तो इन एडवांस खबरों में से ही एक अगले दिन छपकर आने वाले अखबार के लिए एक बुलबुला होगा जिससे शहर और प्रदेश में हलचल मचेगी। अमर उजाला में रिर्पोटरों की बैठकों के दौरान वे एडवांस बुलबुले पर खूब भाषण देते थे। दिलचस्प बात है कि शशिशेखर के अमर उजाला में रहते कई एडवांस बुलबुले को बतौर लीड छापा गया पर देश या प्रदेश के बड़े अधिकारी या राजनेता कहीं हिलते नजर नहीं आए।
उधर हिंदुस्तान में इस एडवांस बुलबुले पर जोरदार बहस चल रही है। अधिकतर रिर्पोटरों का कहना है कि अगर रात में कार्यालय से बाहर जाते हुए एडवांस खबर देनी है तो सुबह की मीटिंग का कोई मतलब नहीं है। फिर प्रतिदिन हर रिर्पोटर के पास कोई विशेष या एडवांस खबर नहीं होती है। खबर तो सामान्य रुप से घटनाक्रम पर ही बन जाती है। यही कारण था कि शशिशेखर के एडवांस बुलबुले अमर उजाला में रिर्पोटरों की फर्जी खबरें बन गई थी। रिर्पोटर दो-तीन साल पहले की कोई खबर को उठाता था, उसमें वर्तमान और भविष्य को जोड़ता था और एडवांस बुलबुला बना देता था। इस फर्जीवाड़े को शशिशेखर समझते थे। शशिशेखर के एडवांस बुलबुले को मैं भी अमर उजाला में काम करते हुए समझते रहा और खुद इस तरह के बुलबुले भेजता रहा। कभी-कभी उन बुलबुलों को पंजाब, हरियाणा एडीशन के पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पेज पर लीड भी बनाकर छापा गया।
हिंदुस्तान के रिर्पोटरों के लिए एक सलाह भी है। वे अपने स्थानीय संपादकों को भी इस एडवांस बुलबुले में बेवकूफ बना सकते है। क्योंकि हिंदुस्तान के भी कुछ स्थानीय संपादक उसी कैटेगरी के है जिस कैटेगरी के स्थानीय संपादक अमर उजाला में है। कई स्थानीय संपादकों को स्थानीय मुद्दों, सरकार की नीतियों आदि की समझ नहीं होती है। फिर इन स्थानीय संपादकों को खबरों से ज्यादा अखबार की राजनीति में दिलचस्पी होती है। इसलिए एडवांस बुलबुला भेजते हुए कुछ प्वाइंट पर ध्यान रखेंगे तो सफल रहेंगे। एडवांस बुलबुले रूपी खबरों में शशिशेखर आंकड़ों पर ज्यादा जोर देते है। एक मुख्य खबर के साथ दो तीन बाक्स हो तो काफी बढ़िया। इस बाक्स में सरकार या इंटरनेट से आंकड़े उठा कर डाल दीजिए, तो आप सफल रिपोर्टर है। अगर इंटेलिजेंस या पुलिस की रिर्पोट के आधार पर कोई फर्जी खबर को भी आप एडवांस में लिस्ट कर भेजेंगे तो शशिशेखर आपसे काफी प्रसन्न होंगे। अगले दिन इसे शशिशेखऱ लीड भी छाप सकते है। इस तरह की खबरें अमर उजाला में मैनें काफी छपते हुए देखा है। हालांकि ये इंटेलिजेंस रिर्पोट फर्जी भी हो सकती है या खुद रिर्पोटर ने अपनी तरफ से बनायी हो सकती है। क्योंकि सामान्य रुप से इंटेलिजेंस रिर्पोट को गोपनीयता के आधार पर रिर्पोटर उपलब्ध होने से इंकार कर देते है। वे अपने संपादक को बता देते है कि अधिकारी ने रिर्पोट पढ़ा दी थी लेकिन देने से मना कर दिया। अपराध की खबरों को एडवांस बुलबुला बनाकर भेजेंगे तो शशिशेखर काफी प्रसन्न होंगे। क्योंकि उन्हें अपराध की खबरें काफी पसंद है। सामान्य रुप से अपराध की रूटीन खबर लिखते हुए भी दो से तीन साल का आंकड़ा एक बाक्स के साथ आप पेश करेंगे तो आप सफल है। इसमें आपको कोई खास मेहनत करने की जरूरत नहीं है। कंप्यूटर पर आंकड़ों की फीड रखे और कंट्रोल पेस्ट करते रहे। आप काबिल और सफल रिर्पोटर हो गए।
जहां तक मुझे याद है शशिशेखर के अमर उजाला में रहते हुए एडवांस बुलबुलों में फर्जी खबरें काफी लिखी गई। अलकायदा, तालिबान, माओवाद पर खूब फर्जी खबरें छपी। सारी खबरें इंटेलिजेंस की रिर्पोट के आधार पर छापी गई। हालांकि पिछले दस सालों में अलकायदा, तालिबान या माओवादी भारत में गोपनीय नहीं है। हर आदमी को पता है, अलकायदा, तालिबान और माओवाद के भारत में प्रवेश के बारे में। पर शशिशेखर के अमर उजाला में रहते हुए इंटेलिजेंस के रिर्पोट के आधार पर इन खबरों को बतौर लीड छापा गया। बहती गंगा में दो से तीन बार हाथ तो मैंने भी धोया। शशिशेखर के कुछ खास शिष्य तो अमर उजाला में इस तरह की फर्जी रिर्पोट लिखने में माहिर थे। अब तो समय ही बताएगा एडवांस रुपी बुलबुला हिंदुस्तान में कितना सफल होगा?
हिंदी में भी होंगे वेबसाइटों के नाम
फ़िलहाल इंटरनेट एड्रेसेज़ में "ए से ज़ेड" तक के लैटिन कैरेक्टर ही इस्तेमाल होते हैं. लेकिन अब इसमें अन्य लिपियों के कैरेक्टर भी इस्तेमाल होंगे जिसे चार दशक पहले शुरू हुए इंटरनेट की दुनिया में बड़ा बदलाव माना जा रहा है. वेब पते तय करने वाली संस्था इंटरनेट कॉर्पोरेशन फ़ॉर एसाइन नेम एंड नंबर (आईसीएएएन) ने सियोल में अपनी सालाना बैठक में ग़ैर लैटिन लिपियों के प्रयोग से जुड़े प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी.
आईसीएएएन के अध्यक्ष पीटर डेनगेट थ्रश ने कहा, "अब तक ए से ज़ेड तक के ही कैरेक्टर इस्तेमाल हो रहे हैं. लेकिन जल्द ही ऑनलाइन डोमेन नामों के लिए दूसरी भाषाओं के एक लाख कैरेक्टरों को इस्तेमाल किया जाएगा." इसके लिए फ़ास्ट ट्रैक प्रोसेस नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया गया है. यह कार्यक्रम 16 नवंबर से शुरू हो रहा है जिसके बाद वेबसाइटों के पतों में आपको हिंदी, अरबी और हिब्रू जैसी भाषाओं के अक्षर भी दिखेंगे. संस्था के सीईओ रॉड बेकस्ट्राम कहते हैं, "यह पहला क़दम है, लेकिन बहुत बड़ा क़दम है. कह सकते हैं कि इंटरनेट के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में यह ऐतिहासिक क़दम है."
विशेषज्ञों का कहना है कि आईसीएएनएन के इस फैसले से इंटरनेट का दायरा और बढ़ेगा क्योंकि यूज़र्स के लिए अपनी भाषा में वेब पते होना और सुविधाजनक होगा. उधर एक रिसर्च संस्था गार्टनर के मुख्य शोध विश्लेषक दीपतरूप चक्रवर्ती का कहना है, "इंटरनेट में हमेशा से अंग्रेजी का बोलबाला रहा है और मुझे नहीं लगता कि निकट भविष्य में कोई बड़ा बदलाव होगा. लेकिन अब इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोग भी बदल रहे हैं. ऐसे में यूज़र लैटिन भाषा को छोड़ दूसरी भाषा में भी इसका उपयोग कर सकते हैं."