![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6U-nP4IVF8GqO0jFcOEQ1_bJWMgXd8f8T6lqemvYD4iCKc12RcacNpP-Hu_mf3WfkxA9SH9TvjuZjDWNH0LU6FetCiRUBC9KlgwH1O6Id1HGgo3_PSqNIeYCiTEb2P2UdEoRNeRBmT3c/s320/Katyayani.jpg)
कात्यायनी....चाहत
ख़ामोश उदास घंटियों की
बज उठने की सहसा उपजी ललक,
घास की पत्तियों का
मद्धम संगीत
रेगिस्तान में गूँजती
हमें खोज लेने वाले की विस्मित पुकार,
दहकते जंगल में
सुरक्षित बच रहा
कोई नम हरापन ।
यूँ आगमन होता है
आकस्मिक
प्यार का
शुष्कता के किसी यातना शिविर में भी
और हम चौंकते नहीं
क्योंकि हमने उम्मीदें बचा रखी थीं
और अपने वक़्त की तमाम
सरगर्मियों और जोख़िम के
एकदम बीचोंबीच खड़े थे ।
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अनामिका......अयाचित
मेरे भंडार में
एक बोरा ‘अगला जनम’
‘पिछला जनम’ सात कार्टन
रख गई थी मेरी माँ।
चूहे बहुत चटोरे थे
घुनों को पता ही नहीं था
कुनबा सीमित रखने का नुस्खा
... सो, सबों ने मिल-बाँटकर
मेरा भविष्य तीन चौथाई
और अतीत आधा
मज़े से हज़म कर लिया।
बाक़ी जो बचा
उसे बीन-फटककर मैंने
सब उधार चुकता किया
हारी-बीमारी निकाली
लेन-देन निबटा दिया।
अब मेरे पास भला क्या है ?
कुछ है जो मेरी इन हड्डियों में है अब तक
मसलन कि आग
तो आओ
अपनी लुकाठी सुलगाओ।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvSynnqYmUN7IY9GwtLgDVlnqDiHZ20YK4Je8d386_KMEX8amzVaNcvziqB8rX54th7L6iRJxMCxAgIfbjswGyspJ2prO30NE1EELf8rzsobMfXlPxDlBtG1MyLG34UCSrCp3l-iEs9PQ/s320/140px-Aruna_rai.jpg)
मेरा यह आईना
शीशे का नहीं
जल का है
यह टूट कर
बिखरता नहीं
बहुत संवेदनशील है यह
तुम्हारे कांपते ही
तुम्हारी छवि को
हजार टुकडों में
बिखेर देगा यह
इसलिए
इसके मुकाबिल होओ
तो थोडा संभलकर
इसमें अपना अक्श
देखने के लिए
थोडा झुकना पडता है
यह आंखों के तरल
जल का आईना है
रेखा....
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhh-nCS_HjNWRXtET8moPsj1xL2_csD2PCs9gbX1viPj3VFfU_mE0y49clLdak_kv15IxQMOYFoVsYDr113igVRdWVPBDhaSzZgNVTz9bcUTEGXej4t3aVRCheuyF6rVfschGckLdXoy0E/s320/Rekha.jpg)
हैरान हूँ यह सोचकर
कहाँ से आती हैं बार-बार
कविता में बेटियाँ
बाजे बजाकर
देवताओं के साक्ष्य में
सबसे ऊँचे जंगलों
सबसे लम्बी नदियों के पार
छोड़ा था उन्हें
अचरज में हूँ
इस धरती से दूर
दूसरे उपग्रहों पर चलीं गई वे बेटियाँ
किन कक्षाओं में
घूमती रहती है आस-पास
नये-नये भाव वृत्त बनाती
घेरे रहती हैं
कैसे जान
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7AMHAOg6V7r4eI5gGOvu-F-UJuNRxpG2Vzo8NyDO_yFQy_8LNWB_unL9YE_TswHwNVao1ZAGKljS3rABZs6tFW68l8Oq4FJCRun3KHV1mtUn10PljFwcEi1eaoNoXfmrcB6gxqehm53s/s320/140px-Lavanya.jpg)
लावण्या शाह....मां मुझे फिर जनो
देखो, मँ लौट आया हुँ !
अरब समुद्र के भीतर से,
मेरे भारत को जगाने कर्म के दुर्गम पथ पर सहभागी बनाने,
फिर, दाँडी ~ मार्ग पर चलने फिर एक बार शपथ ले,
नमक , चुटकी भर ही लेकर हाथ मँ,
प्रण ले, भारत पर निछावर होने
मँ, मोहनदास गाँधी,फिर, लौट आया हूँ !