Thursday, August 27, 2009

सुनो ! सुनो !! सुनो !!!

स्वामी मार्क्सानंद ने कहा था कि जिस तरह कांग्रेस वाले गांधी, नेहरू, पटेल को, भाजपा वाले राम-कृष्ण आदि 33 करोड़ देवी-देवताओं को, सपा वाले लोहिया को, बसपा वाले अंबेडकर को बेंच-खा रहे हैं, उसी तरह तुम लोग केरल से कलकत्ता तक हमें बेंच खाना. हे सेंचुरी जी, करैत जी, दुर्बुद्ध देव जी हमें बेंचते-खाते समय लेनिनवाद को खूब लतियाना, स्टालिनवाद को खूब गरियाना, माओवाद को बेशर्मों की तरह घोल कर पी जाने के बाद खूब उल्टियां करना..क्योंकि तुम्हारे भी अंत निकट हैं!

गुरु गोर्की ने कहा था कि हे निठल्ले नामवर, राजेंद्र, उदय प्रकाश, मैनेजर पांडेय, आंडे-बांडे-सांडे आदि-आदि इतना प्रगतिशील हो जाना कि हिंदी साहित्य की प्रगति ही पानी मांगने लगे. ऐसी आलोचनाएं करना कि जयचंद भी शरमा जाए, ऐसी कहानियां लिखना कि अफवाहें भी लाज से गड़ जाएं. दिल्ली में छककर पुआ-पुड़ी उड़ाते हुए गरीबी का तब तक सस्वर पाठ करते रहना, जब तक कि हिंदुस्तान के एक-एक किसान-मजदूर की हुकूमत चमड़ी न उधेड़ डाले.

भगवान पराड़कर ने कहा था कि हे मेरे देश के अखबारनबीसों पूंजीपतियों के अखबारों में रात-दिन खटते हुए बाल-बच्चे पालते रहना, जाम पर जाम ढालते रहना, सूचनाएं बेचते रहना, फालतू के पेंच पेंचते रहना. बिल्डरों के चैनल चलाते रहना, बीच-बीच में हिरोइने नचाते रहना, विदेशी निवेश के लिए मालिकों की दलाली करते रहना, नेताओं के चिलम भरते रहना. यह सब तब तक करते रहना, जब तक कि चौथा खंबा धमधमा कर बैठ न जाए.

नागार्जुन, मुक्तिबोध और शमशेर

इस लेखे संसद-फंसद सब फिजूल हैं/ नागार्जुन

इसके लेखे संसद=फंसद सब फ़िजूल है
इसके लेखे संविधान काग़ज़ी फूल है
इसके लेखे
सत्य-अंहिसा-क्षमा-शांति-करुणा-मानवता
बूढ़ों की बकवास मात्र है
इसके लेखे गांधी-नेहरू-तिलक आदि परिहास-पात्र हैं
इसके लेखे दंडनीति ही परम सत्य है, ठोस हकीक़त
इसके लेखे बन्दूकें ही चरम सत्य है, ठोस हकीक़त
जय हो, जय हो, हिटलर की नानी की जय हो!
जय हो, जय हो, बाघों की रानी की जय हो!
जय हो, जय हो, हिटलर की नानी की जय हो!

तीनों बन्दर बापू के

बापू के भी ताऊ निकले
तीनों बन्दर बापू के !
सरल सूत्र उलझाऊ निकले
तीनों बन्दर बापू के !
सचमुच जीवनदानी निकले
तीनों बन्दर बापू के !
ग्यानी निकले, ध्यानी निकले
तीनों बन्दर बापू के !
जल-थल-गगन-बिहारी निकले
तीनों बन्दर बापू के !
लीला के गिरधारी निकले
तीनों बन्दर बापू के !
सर्वोदय के नटवरलाल
दुनिया भर में जाल
जियेंगे ये सौ साल
घर घोडे की चाल
पूछो तुम इनका हाल
के नटवरलाल


पूंजीवादी समाज के प्रति / मुक्तिबोध
इतने प्राण, इतने हाथ, इनती बुद्धि
इतना ज्ञान, संस्कृति और अंतःशुद्धि
इतना दिव्य, इतना भव्य, इतनी शक्ति
यह सौंदर्य, वह वैचित्र्य, ईश्वर-भक्ति
इतना काव्य, इतने शब्द, इतने छंद –
जितना ढोंग, जितना भोग है निर्बंध
इतना गूढ़, इतना गाढ़, सुंदर-जाल –
केवल एक जलता सत्य देने टाल।
छोड़ो हाय, केवल घृणा औ' दुर्गंध
तेरी रेशमी वह शब्द-संस्कृति अंध
देती क्रोध मुझको, खूब जलता क्रोध
तेरे रक्त में भी सत्य का अवरोध
तेरे रक्त से भी घृणा आती तीव्र
तुझको देख मितली उमड़ आती शीघ्र
तेरे ह्रास में भी रोग-कृमि हैं उग्र
तेरा नाश तुझ पर क्रुद्ध, तुझ पर व्यग्र।
मेरी ज्वाल, जन की ज्वाल होकर एक
अपनी उष्णता में धो चलें अविवेक
तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ
तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ।

वाम वाम वाम दिशा/ शमशेर बहादुर सिंह
वाम वाम वाम दिशा,
समय साम्यवादी।
पृष्ठभूमि का विरोध अन्धकार-लीन। व्यक्ति ...
कुहास्पष्ट ह्रदय - भार, आज हीन।
हीनभाव, हीनभाव
मध्यवर्ग का समाज, दीन।

किन्तु उधर
पथ-प्रदर्शिका मशाल
कमकर की मुट्ठी में - किन्तु उधर:
आगे आगे जलती चलती है
लाल-लाल
वज्र- कठिन कमकर की मुट्ठी में
पथ-प्रदर्शिका मशाल।

भारत का
भूत-वर्तमान औ भविष्य का वितान लिए
काल- मान- विज्ञ मार्क्स-मान में तुला हुआ
वाम वाम वाम दिशा,
समय : साम्यवादी।

अंग - अंग एकनिष्ठ
ध्येय - धीर
सेनानी
वीर युवक
अति बलिष्ठ
वामपन्थगामी वह ...
समय: साम्यवादी।

लोकतंत्र-पूत वह
दूत, मौन, कर्मनिष्ठ
जनता का:
एकता-समन्वय वह ...
मुक्ति का धनंजय वह
चिरविजयी वय में वह
ध्येय-धीर
सेनानी
अविराम
वाम-पक्षवादी है ...
समय : साम्यवादी।

Monday, August 24, 2009

चमड़िया-चौबे और भूमिहार-वामपंथ, ठाकुर-वामपंथ, यादव-वामपंथ





ठाकुर-वामपंथ और भूमिहार-वामपंथ की ताजा
जुगलबंदी। विभूति नारायण राय, नामवर सिंह आदि। उनके झांसे में आ कर गच्चा खा गए बेचारे अनिल चमड़िया, कृपाशंकर चौबे।
प्रकाश उर्फ करैत जी, आचार्य उर्फ भट्ट जी, सीता उर्फ राम उर्फ येचुरी जी ने वामपंथ का जैसा हाल राजनीति में कर रखा है, थकेला प्रगतिशील बूढ़ों ने वहीं हाल साहित्य में कर दिया है। एक हैं वीएन राय। पूरा नाम विभूति नारायण राय। और एक है वर्धा यूनिवर्सिटी। बेचारे बापू के नाम पर चल रही है. उस के वाइस चांचलर हैं राय साहब और उसी के बड़का महाचांसलर हैं नामवर सिंह. राय साहब को जैसे ही कुर्सी मिली, तरह-तरह की कुर्सियों पर भूमिहार बिरादरी को ठूंस डाला है। दो चार रेवड़ियां इधर-उधर भी फेंक दी ताकि चादर एकदम से काली-काली नजर न आए। जैसे, रविंद्र कालिया दोस्त हैं तो उनकी पत्नी कथाकार ममता कालिया को नौकरी दे दी. बहुत दिनो से अनिल चमड़िया की आत्मा दिल्ली में डांवाडोल चल रही थी, उन्हें भी वर्धा बुला कर एक कुर्सी पर बिठा लिया। कृपाशंकर चौबे अच्छी खासी हिंदुस्तान हिंदी दैनिक की कोलकाता में नौकरी कर रहे थे, छोड़कर वह भी पहुंच गए भूमिहार टोले-मोहल्ले में.
बाद में पता चला कि चौबे जी बीमार हो गए। इन दिनों भी काफी अस्वस्थ हैं. कहां पचास-साठ हजार रुपये मिल रहे थे, अब सिर्फ बत्तीस हजार की सेलरी। चमड़िया जी भी फंस गए हैं। क्यों? द
रअसल बात ये पता चली है कि वामपंथी भूमिहार वीसी साहब ने दोनों के सिरहाने एक भूमिहार भाई को हेड बनाकर चेंप दिया है। चमड़िया-चौबे इस आश्वासन पर वर्धा पहुंचे थे कि कम से कम अस्सी हजार रुपये हर महीने सेलरी मिलेगी। अब अस्सी हजार वाला पैकेज दे दिया गया है भूमिहार भाई सीनियर को। चमड़िया-चौबे को कहा गया है कि तीस-बत्तीस आपको भी मिल जाएंगे। चौबे जी तभी से बुरी तरह अस्वस्थ चल रहे हैं।
वामपंथी भूमिहार साहब ने बेरोजगार भूमिहार भाइयों को तीन स्तरों पर खपाया है। कुछ को वर्धा यूनिवर्सिटी में, कुछ को दिल्ली में आफिस खोलकर बैठा दिया। कुछ को इलाहाबाद में दफ्तर खोलकर घुसा लिया है. इसे कहते हैं जातिवादी वामपंथ। उसी जातिवादी वामपंथ अर्थात सठियाये वामपंथ की राह चल रहे हैं जनाब नामवर सिंह, जिन्होंने अपने भाई काशीनाथ सिंह को सबसे बड़का कहानीकार घोषित कर रखा है. नामवर भाई को ठाकुर बिरादरी से बड़ा प्यार है। तो ये ठाकुर-वामपंथ और भूमिहार-वामपंथ की ताजा जुगलबंदी। राजेंद्र यादव जाति को वर्ग बहुत पहले ही घोषित कर चुके हैं। जय हो जातिवादी वामपंथ की!! धिक्कार है जातिवादी वामपंथ को। तो बेरोजगार ठाकुर, भूमिहार, यादव भाइयों से विनम्र निवेदन है कि रोजगार-पानी पाने के लिए तत्काल इन जातिवादी वामपंथियों का पुछल्ला बन जाएं, भगवान उनका भी भला करेगा।





Sunday, August 23, 2009

बेचारे नामवर सिंह



भैया मुझे कपिल सिब्बल के घर छोड़ देना। उनसे मिलना है. हाथ में लिफाफा। लिफाफे से पोस्ट कार्ड निकालते हुए महानआलोचक() नामवर सिंह अपूर्व जोशी से फरमा रहे हैं. अपूर्वजोशी! अरे वही पाखी पत्रिका के संपादक. आज शाम दिल्लीआईटीओ के हिंदी भवन में पाखी का विशेष प्रोग्राम था।कथाकार संजीव, कवि शैलेय समेत पांच लोगों का सम्मान।राजेंद्र यादव मंच से नीचे. नामवर सिंह, संजीव, अपूर्व जोशी, कहानीकार सूर्यबाला, विश्वनाथ त्रिपाठी आदि मंच पर।कार्यक्रम दो सत्रों में हुआ. पहला सत्र तो पाखी के गुणगान में गुजर गया। .....ये किया, वो किया, ये कहा था, वो कहाथा.......अब ये करेंगे, वो करेंगे आदि-आदि. अहा-अहा....वाह-वाह.....तालियां-तालियां।
जैसा कि नामवर सिंह अक्सर झूठ बोलने में माहिर माने जाते हैं, यहां भी पत्रिका पाखी को बार-बार साखी बोलतेहुए बोलने लगे कि संजीव जैसा महान कथाकार उनकी आलोचना के दायरे से बचा कैसे रह गया. अब संजीव परलिख कर ही इस अपराधबोध का प्रायश्चित करूंगा. झूठ ये कि नामवर सिंह बिना किसी की कहानी, कविता, उपन्यास पढ़े उस पर टिप्पणी करने के लिए मशहूर (कुख्यात) हैं. खैर।
मंच के नीचे बैठे राजेंद्र यादव घुटे-घुटाए-से टुकर-टुकर सब कुछ सुनते जा रहे थे. जैसे ही कार्यक्रम समाप्त हुआ, झट पिछले दरवाजे से पहुंच गए पाइप वाला सुट्टा लगाने। सीढ़ी के सहारे सुट्टा-पर-सुट्टा। नामवर की बकवादको धुंआ में उड़ाते हुए। उधर नामवर बउआए-से बढ़ लिए गेट की ओर। दिल्ली हाईकोर्ट में प्रेक्टिस करने वाला एकवकील उनके कान से मुंह सटाए जा रहा है.....जनाब, मुझ नाचीज को शायर फलाने कहते हैं. दो चार लाइने चेंप दीं. दांत चिआरे नामवर चुपचाप झेलते रहे, बीच-बीच में अगल-बगल वालों से पूछते जा रहे कि अरे वो पान वालाआया कि नहीं? उधर, अपूर्व जोशी बार-बार अपने शागिर्द से पूछ रहे, अरे वो आया कि नहीं! कोई नहीं समझ पारहा कि माजरा क्या है. लेकिन दो-चार मिनट में ही माजरा समझ में गया। गई एक लंबी-काली-सी कार. टन्न एसी वाली. नामवर ने जेब से लिफाफा निकाला। अपूर्व जोशी के कान फुसफुसाए। अपूर्व जोशी झट ड्राइवर केकान में फुसफुसाए....हां-हां, वहीं, कपिल सिब्बल के घर!
....तो नामवर जी को कपिल सिब्बल के घर जाना था. वर्धा यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति जो हैं. कोई टांका भिड़ानाहोगा। सिब्बल मानव संसाधन मंत्री हैं न। बेचारे अर्जुन सिंह का काम सिब्बल के मत्थे। सुना है कि अर्जुन सिंहसारा काम पहले ही निपटा गए हैं. स्कूलों में एक एडमिशन तक नहीं करा पा रहे। मुंह खोलें तो खबर बन जाएगी, सो चुपचाप सारी जलालत पिए जा रहे हैं. तो आज शाम की जलालत का घूंट नामवर सिंह के नाम।...बेचारे नामवरसिंह!! हिंदी आलोचना गई चूल्हे भाड़ में. भाई काशीनाथ को महान कथाकार बना ही चुके। अब काहे की आलोचना. वर्धा से दुहने में जुटे हुए हैं। पहले सहारा को दुह रहे थे। दिग्गज मार्क्सवादी आलोचक। धन्य हैं. धिक्कार है. इससेतो बढ़िया रामचंदर शुक्ला जी ही थे।