अखबारों के घाट पर भई माफिया भीड़।
पत्रकार लेखनी घिसैं, मजा करैं धनवीर।।
खबरों के मस्तूल पर विज्ञापन के ठाट।
मालिक खर्राटा भरै, बिनैं खबरची खाट।।
बिल्डर चैनल खोलकर चैन से पान चबाय।
कपटी संपादक हुआ, रोज नौकरी खाय।।
रोजी-रोटी के लिए दिन भर थककर चूर।
खबर-खबर खबरा रहे हैं बंधुआ मजदूर।।
पैसा के सब दास हैं, इसको करो प्रणाम।
मंदिर में पैसा धरौ, खुश होंगे भगवान।।
Saturday, September 12, 2009
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