सपने में तिरबेनी काका
ऐसा-कैसा चिल्लाते हैं??
सपने में तिरबेनी काका
पैसा-पैसा चिल्लाते हैं???
आंय-बांय अब कोउ नाय है,
दांय-बांय सब सांय-सांय है
नेहरू जी की चांय-चांय है
गांधी जी की कांय-कांय है
झूमा-झटकी झांय-झांय है
मची चुनावी ठांय-ठांय है
चोर-चपाटी, गुंडा-सुंडा अब तो जन-गण-मन गाते हैं
सपने में तिरबेनी काका पैसा-पैसा चिल्लाते हैं.....
कूकर के दो आगे कूकर
कूकर के दो पीछे कूकर
आगे कूकर, पीछे कूकर
जनता पूछे- कितने कूकर
लोकतंत्र कुकराता जाये,
दुरदुर दुम दुबकाता जाये,
दिल्ली की बिल्ली के दम पर शोहदे मालपुआ खाते हैं
सपने में तिरबेनी काका पैसा-पैसा चिल्लाते हैं.....
बिना मौत अभिमन्यु मर रहे
पंचाली बेजार रो रही,
छंटे-छंटाये बेशर्मों की
हैं राते गुलजार हो रहीं,
गांधारी धृतराष्ट्र के लिए
दुर्योधन की नब्ज टो रही,
कौरव हथियारों की धुन पर जंगल में मंगल गाते हैं,
सपने में तिरबेनी काका पैसा-पैसा चिल्लाते हैं.....
Saturday, August 9, 2008
इसका चिट्ठा, उसका चिट्ठा
मैं ब्लॉगर हूं
भट-नागर हूं
कलमकार हूं
कथाकार हूं
हीहीहीही
अगड़म-बगड़म मैं लिखता हूं
अखबारों में भी दिखता हूं
अहा-अहा मैं हुआ महान
नाचूं-गाऊं तोड़ूं तान
हीहीहीही
इसका चिट्ठा, उसका चिट्ठा
पढ़ते-पढ़ते हुआ पनिट्ठा
गीत-गौनई, कबाड़खाना
हुआ चवन्नी छाप जमाना
हीहीहीही
क्या करता लेखक बेचारा
जो मन आया, सो लिख मारा
कोई सिर मत चढ़े ठेंग से
पढ़े-पढ़े, मत पढ़े ठेंग से
हीहीहीही
जो मैं लिखूं, वही सुस्वाद
बाकी का लिक्खा बकवाद
कितना अच्छा लगता हूं मैं
अखबारों में छपता हूं मैं
हीहीहीही
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