Thursday, December 4, 2008

नीरो की बांसुरी







नीरो के होठ देखो. उनमें विल्स फिल्टर लरज रहा है. आंखें देखो. उनमें कुर्सियां डांस कर रही हैं. हाथ देखो. नोकिया एन-70 बज रहा है. नीरो अपने लैपटॉप पर दुनिया भर में चैटिंग करता है. सुबह-सुबह अखबारों में आबकारी टेंडर खंगालता है. शाम का सूरज डूबते ही अगवा बच्चों को सुलगती तीलियों से दागता है. और आधी रात विधायक भवन की बगल में टेलीफोन बूथ पर पार्टियों में तोड़फोड़ के गणित लगाता है. इससे जो समय बचता है, रात बारह बजे के बाद.....क्या करता है नीरो....दुनिया जानती है. नीरो को भी मालूम है कि उसके दिल की तरह उसका आईना भी साफ है. उसमें उसका चेहरा कुछ इस तरह दिखाई देता है........











इससे पहले नीरो एक छोटे से कस्बे में कच्ची शराब का ठेका चलाता था. कुछ साल बाद कस्बे के बगल के गांव का प्रधान हो गया. पांच साल ग्राम प्रधान रहा. अगली बार ब्लॉक प्रमुख, उसके बाद विधायक चुन लिया गया. अवैध हथियारों की तस्करी करने लगा. बहुत बड़ा माफिया डान हो गया. एक दिन ऐसा आया जब वह जनता की आंखों में धूल झोंकता हुआ सीधे देश की सर्वोच्च सदन के लिए निर्वाचित हो गया. उन दिनों वह कु इस तरह तन गया था......












पूरा देश जानने लगा कि नीरो कौन है? नीरो भी अपने भीतर के शैतान की अकूत ताकत पहचान चुका था. अब इंटरनेशनल क्राइम नेटवर्क का सरदार बना. अपराधी राष्ट्राध्यक्षों का मुंहलगा हो गया. बराबर विदेश यात्राओं पर रहने लगा. पार्टी की चिंता बढ़ी, दबाव पड़ा तो नीरो ने अलग पार्टी बना ली और अपने धड़े के साथ सत्तादल में साझीदार हो गया. मिनिस्ट बन गया. अब तक वह अपनी उम्र के 55 बसंत पार कर चुका था. अय्याशियां करने लगा. तब वह कुछ इस तर नजर आता था.......







एक दिन रोम में आग लग गई. उन दिनों रोते-रोते रोम वाले मुंबई को रोम कहते थे. जब रोम जल रहा था, उन दिनों रोम की राजधानी दिल्ली में रोम बांसुरी बजा रहा था............बस दुनिया को आज इतना भर याद है कि नीरो बांसुरी बहुत अच्छी बजाता था. सारे चैनल उसे महीनो चिल्ला-चिल्ला कर प्रसारित करते थे.........



आतंकवाद के मुकाबिल इला अरुण और बप्पी लहरी...उफ्








इतने भयावह आतंकी हमले के बाद अब इला अरुण और बप्पी लहरी सरीखे लोग बताने लगे हैं कि आतंकवाद के खिलाफ हमें क्या करना चाहिए. एक के ललाट पर फूलन देवी जैसा टीका और दूसरे के गले में मूंगा-मोतियों का हार. दोनो अयोध्या के साधू-सधुआइन जैसे. खून से सनी मुंबई की सड़कों पर कैंडल जुलूस में नमूदार होते हैं दोनों. फिल्मी मेजर साब जाने कहां हैं. हजारों आतंकियों को दनादन मार गिराने वाले चैंपियन फाइटर सुनील सेट्ठी, शाहरुख खान, गोविंदा, नाना पाटेकर का भी कुछ अता-पता नहीं है. जिनका पता है, वे कैंडल जुलूसों में जोकरई कर रहे हैं.



काश इन कैंडल जुलूसों में कोई रिटायर्ड सेनाध्यक्ष या सेवानिवृत पुलिस कमिश्नर या सीमा पर दुश्मनों को मार गिराने वाला सैनिक होता. मति ऐसी मारी गई है कि अब भी ठिकाने आने का नाम नहीं ले रही. ऐसे संगीन दौर में भी खिलंदड़ी सूझ रही है. चैनल वाले तो खिलंदड़ी कर ही रहे हैं, नेता नपुंसक बयान दे ही रहे हैं, जरूरी है जनता का जागना और इन जोकरों को अपने यहां घुसपैठ न करने देना.



Wednesday, December 3, 2008

हाय टीआरपी...हाय टीआरपी...








अरे...ये तो खूब बिक रही है.


धड़ाधड़ बिक रही है.


हाथोहाथ बिक रही है.


बेचो-बेचो. सब बेच डालो.


.....आओ-आओ, मिट्टी के मोल ले लो, दोबारा मौका मिले-न-मिले. जो खरीदे उसका भी भला, जो न खरीदे उसका भी. मुंबई का माल है. पाकिस्तान से आया है. वतनफरोशो ने मंगाया है. दाऊद ने पठाया है. हम चैनल वाले इन दिनो रात-दिन बेच रहे हैं. ले लो, ले लो....दनादन बिक रही है, धड़ाधड़ बिक रही है. खबर है खबर. मुंबई की कौन कहे, पूरी दुनिया की बेंच डालेंगे. काश आतंकी यूं ही हमारे देश आते रहें और हमारे चैनल चनाजोर गरम दिनरात गरमाते रहें. किसी का खून खौल रहा है तो खौले. किसी के आंसू नहीं थम रहे तो न थमें. हमे खबर बेचने से मतलब है. हम चीख-चीख कर बेंचेंगे. कूद-कूद कर बेंचेगें. नाच-नाच कर बेंचेगें. बांच-बांच कर बेंचेगें. खूब बिक रही है. टकर-टकर बिक रही है. भकर-भकर बिक रही है. धकाधक बेचो. बेच डालो, बेच डालो.


खबर ले लोोोोोोो.


मुंबई की खबर ले लोोोोोोो.


विज्ञापन दे दोोोोोोोो. विज्ञापन दे दोोोोोोोो.


टीीीीीीी आरपीीीीीीी.


हाय टीआरपी


हाय टीआरपी


हाय टीआरपी


हाय टीआरपी....खबर ले लोोोोोोो. विज्ञापन दे दोोोोोोोो.


उफ्.


अरे...ये तो खूब बिक रही है.
धड़ाधड़ बिक रही है.
हाथोहाथ बिक रही है.
बेचो-बेचो. सब बेच डालो.............

Sunday, November 30, 2008

ठाकुर प्रसाद सिंह, वसीम बरेलवी, भावना कुंअर



भावना कुंअर की रचना

लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराजाँ दे गया
दिल गया धड़कन गयी और जाने क्या-२ ले गया।
वो जो चिंगारी दबी थी प्यार के उन्माद की
होठ पर आई तो दिल पे कोई दस्तक दे गया ।
उम्र पहले प्यार की हर पल ही घटती जा रही
उसकी आँखों का ये आँसू जाने क्या कह के गया।
प्यार बेमौसम का है बरसात बेमौसम की है
बात बरसों की पुरानी दिल पे ये लिख के गया ।
थी जो तड़पन उम्र भर की एक पल में मिट गयी
तेरी छुअनों का वो जादू दिल में घर करके गया।
ठाकुर प्रसाद सिंह का गीत

पाँच जोड़ बाँसुरी
बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी
पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी
वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा
मन उठ चलने को हो रहा
धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन
आधे अँचरा पर पिय सो रहा
मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी

वसीम बरेलवी की गजल

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है।
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है।
थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है।
बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है।
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है।



वेस्ट यूपी के चहेता

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जागता शहर अंक 8 नवंबर













जागता शहर अंक 22 नवंबर