Friday, June 6, 2008

यारो, ऐसे-वैसे लोग!

झटपट रंग बदल लेते हैं
कैसे मतलब वाले लोग।
मुंह के जितने भोले-भाले
मन के उतने काले लोग।

जब तक चुटकी में रहते हैं
जूठन को प्रसाद कहते हैं
चढ़ी कड़ाही, फिर तो पांचों
उंगली घी में डाले लोग।

यारों, ऐसे-वैसे लोग,
जाने कैसे-कैसे लोग,
हाथों की रेखा हो जाते हैं
पांवों के छाले लोग।

कसौटियों पर उल्टे-सीधे
उनके भी क्या खूब कसीदे
खुद ही खींच-खांच लेते हैं
अपने-अपने पाले लोग।

गूंगों की बस्ती में ठहरे,
थोड़े अंधे, थोड़े बहरे,
खेल रहे कुर्सी-कुर्सी
हाथों में लिये मशालें लोग।


Thursday, June 5, 2008

मारो थप्पड़ तान के....

दुश्मन हिंदुस्तान के।
मारो थप्पड़ तान के।

मिलें जो रात-बिरात में,
दिल्ली या गुजरात में,
पाकिस्तानी पांत में,
दाउद की बारात में,
मारो थप्पड़ के तान के.....

घूम रहे हैं देश में,
जोगीजी के भेष में,
कोई मुश का साथी है,
कोई बुश का नाती है,
मारो थप्पड़ तान के......

मीट-चिकन की बोरियां,
नंग-धड़ंग अघोरियां,
शैतानों की छोरियां,
गा रही हैं लोरियां,
मारो थप्पड़ तान के......

महंगाई की नोक पर,
ताल-तबेला ठोंक कर,
पैसा मारे भोंक कर,
चिदंबरम के जोक पर
मारो थप्पड़ तान के......

ओपेक की अठखेलियां,
झम्म झमाझम थैलियां,
साधू बने बहेलिया,
गाने लगे पहेलियां,
मारो थप्पड़ तान के....


Wednesday, June 4, 2008

उनमें हिंदुस्तान के चार बड़े बटमार...

नेता करे चाकरी, अफसर करे काम।
दास मलूका कह गए सबके दाता राम।


देश के इन महान नमकहरामियों और संभ्रांत गुंडा-मवालियों के नाम अपनी भी कुछ पंक्तियां लोकतंत्र के योगदानस्वरूप.....

महंगाई की मार से है जनता हैरान।
नेता तोड़ें कुर्सियां, अफसर तोड़ें तान।

हुई रोम में भुखमरी पर एफओ की मीट।
कहा जैक ने, शस्त्र पर मत कर कुकर-घसीट।

नाबदान में बह रहा है खरबों का अन्न।
उधर, विश्व में भूख से लाखों मरणासन्न।

शस्त्रों के बाजार पर लट्टू हैं जैकाल।
दो सौ खरब लुटा रहे डालर में हर साल।

बारह खरब दे रहे लेने को खाद्यान्न।
लोग भूख से मर रहे. मस्ती में शैतान।

दुनिया में हैं दस बड़े जो सरमायेदार।
उनमें हिंदुस्तान के चार बड़े मटमार।

उड़ा रहे कुछ भेड़िये सारा मोहनभोग।
बीस टका में जी रहे सत्तर फीसद लोग।

Tuesday, June 3, 2008

मुहफट की चंद लुभाइयां

इक्का.......

झूठ-साच की
धुनी रमाने,
एक फलाने,
सूद कमाने,
चले शहर कलकत्ता।

रुपया-पैसा खूब कमाकर
पूंछ की तरह मूंछ बढ़ाकर
मंकी-कट कंटोप लगाकर
और एक दिन कूट-कुटाकर
घर को आये
मुंह बनाये
लगे बीनने लत्ता।...

पीछे से बंगालिन आयी
संग में मोड़ी-मोड़ा लायी
बिरादरी में छिड़ी लड़ाई
हाथापाई, मार-पिटाई।
मेहरी-लरिका आगे-आगे
फिर से गांव छोड़कर भागे
ठाट-बाट की
गई गांठ की
हुलिया हुआ चकत्ता।....


दुक्का....

ओक्का-बोक्का
तीन चलोक्का।

एक चलोक्का दिल्ली में,
अपने पिल्ला-पिल्ली में,
मस्त है डंडा-गिल्ली में,
छमछम नाचै टीवी में,
पब्लिक मरै गरीबी में...तुनतुन तारा।

एक चलोक्का अफसर है,
जैसे लाल टमाटर है,
लाल हुआ कमाकर है,
डाकू जैसा सुंदर है,
खुला बैंक में लॉकर है....तुनतुन तारा।

एक चलोक्का साधू है,
मन का बड़ा सवादू है,
लगा पेंच-में-पेंच रहा,
जमकर दमड़ी खेंच रहा,
छुरा-तमंचा बेंच रहा,....तुनतुन तारा।

मालामाल हरामी नाचैं....

आगे-आगे कौवा नाचैं।
पीछे से गुह-खौवा नाचैं।
हौवी नाचै, हौवा नाचैं।
पी के अद्धा-पौवा नाचैं।

वीबी नाचै, सैंया नाचै।
संग में सोन चिरैया नाचै।
भौजी नाचै, भैया नाचै।
छमछम, ताता-थैया नाचै।

सीधे, कबौं बकइयां नाचै।
कचाकच्च गलबइयां नाचै।
चड्ढी में मुंबइया नाचै।
चोली बीच रुपइया नाचै।

लट्टू ऊपर लट्टू नाचैं।
राजनीति के टट्टू नाचैं।
चारो ओर निखट्टू नाचैं।
कुर्सी पर मुंह-चट्टू नाचैं।

महंगी उचक अटारी नाचै।
एमए पास बेकारी नाचै।
घर-घर में लाचारी नाचै।
दिल्ली तक दुश्वारी नाचै।

गा-गाकर कव्वाली नाचैं।
बजा-बजाकर ताली नाचैं।
गुंडा और मवाली नाचैं।
औ उनकी घरवाली नाचैं।

शहर-शहर उजियारी नाचैं।
गांव-गांव अंधियारी नाचै।
कूकर खद्दरधारी नाचैं।
अफसर चोर-चकारी नाचैं।

गाल बजावत मल्लू नाचै।
सिंहासन पर कल्लू नाचै।
ठोकैं ताल निठल्लू नाचै।
मंत्री बन के लल्लू नाचै।

छूरा नाचै, चाकू नाचै।
पट्टी पढ़े-पढ़ाकू नाचैं।
चुटकी-मार तमाकू नाचै।
साधु वेश में डाकू नाचै।

रात-रात भर टामी नाचै।
मामा के संग मामी नाचै।
उजड़े हुए असामी नाचैं।
मालामाल हरामी नाचैं।

ताकधिनाधिन...ताकधिनाधिन...ताकधिनाधिन...त्ता-आआआ।

Monday, June 2, 2008

आंख के अंधे रुक्का भाई

रुक्का भाई
रुक्का भाई
पुक्का मत फाड़ो।
रुक्का भाई
रुक्का भाई
अंग्रेजी मत झाड़ो।

लाखों पुक्का फाड़ रहे
करोड़ो अंग्रेजी झाड़ रहे
पुक्का वाले तेरे संघाती हैं
बाकी हिटलर के नाती हैं।

रुक्का भाई
रुक्का भाई
बासी खबर मत बेंचो।
रुक्का भाई
रुक्का भाई
चोरी का घर मत बेंचो।

अखबार नहीं हिरोइन के लहंगे हैं
दोखो, इतने बड़े-बड़े घर बड़े महंगे हैं
अखबार वाले तेरे संघाती हैं
बाकी हिटलर के नाती हैं।

रुक्का भाई
रुक्का भाई
अच्छे-अच्छे काम करो।
रुक्का भाई
रुक्का भाई
जग में रहकर कुछ नाम करो।

नाम वाले भी बदनाम हैं
आदमी के भेष में झाम हैं
नाम वाले तेरे संघाती हैं
बाकी हिटलर के नाती हैं।

रुक्का भाई
रुक्का भाई
आंख के अंधे मत बनो
अक्ल के गंदे मत बनो
आंख वाले तेरे संघाती हैं
बाकी हिटलर के नाती हैं।

Sunday, June 1, 2008

पहाड़ पर पांच प्रेतात्माएं

बात सच्ची-सच्ची। सचमुच की। आंखो देखी। पहाड़ पर कानोकान सुनी। दावे किए जाते हैं कि इस वैज्ञानिक युग में प्रेतात्माओं की बात करना बेवकूफी है। अंधविश्वास है। कूपमंडूकता है। जो वाकये यहां दुहराये जा रहे हैं, उनमें एक भी ऐसा नहीं, जिसे कोई झुठला सके या पढ़ने-जानने के बाद कहे पर यकीन न कर सके।

प्रेतात्मा-एक

कोई विश्वास कर सकता है कि प्रेतात्माएं भी पैसे की भूखी होती हैं! लेकिन नहीं, ऐसा ही हुआ उस दिन। एक प्रेतात्मा अपने बिरादरों के साथ पर्वत-बहुल प्रदेश की एक मशहूर घाटी में मीटिंग करते देखी गई। उनमें आपसी चर्चा का विषय था कि चाहे जैसे भी, दो का चार, चार का आठ और आठ का सोलह किया जाये। सरकार और प्रशासन उनकी बात मानें न मानें। उन्हें किसी भी तरह अपने लक्ष्य तक पहुंचना है। और अगले दिन समस्त शेयर बाजार पहाड़ से लुढ़कते-पुढ़कते एक राजनीतिक दल के प्रदेश मुख्यालय में जा गिरे। नेताओं में हड़कंप मच गया। क्या हुआ, क्या हुआ? चारो तरफ शोर-शराबा। अगले दिन प्रेतात्माओं के प्रतिनिधि मंडल को राज्य के मुख्यमंत्री का बुलावा आया कि समाधान कर लिया गया है। मुलाकात तो बस औपचारिक रही। प्रेतात्माओं के नेतृत्व में अगले दिन से जंगल सफाई अभियान शुरू हुआ और प्रेतात्माएं मालामाल हो गईं।


प्रेतात्मा-दो

एक प्रेतात्मा ने फिल्म निदेशकों को खत लिखा कि देश के सिनेमाहालों में ताले लगने जा रहे हैं क्यों कि नयी फिल्मों में अभिनेत्रियां लिबास में दिखने लगी हैं। जितना जल्दी हो सके, प्यार-मोहब्बत के नाम पर उन्हें पर्दे पर पूर्णतः निर्वस्त्र परोसा जाए। फिल्मों में ज्यादातर दृश्य स्नानागार या समुद्र तटीय स्थलों गोवा आदि के होने चाहिए। बॉक्स आफिस पर मुर्दानगी छायी हुई है। यदि देसी अभिनेत्रियां इसके लिए सहमत नहीं होती हैं तो विदेशी देह-कलाकारों को उपलब्ध कराने में हमारी प्रेत-मंडली पूरा-पूरी सहयोग करेगी। अगले साल से देश के सारे मॉल टाकीज, सिनेमाल फुल चलने लगे। उसकी अपार सास्कृतिक सफलता पर प्रेतात्माओं ने राहत की सांस ली।

प्रेतात्मा-तीन

प्रेतात्माओं के कुल लगभग ग्यारह प्रतिनिधि मंडल तीन महीने से अफगानिस्तान, इराक और म्यांमार के दौरे पर हैं। इन देशों से मानव-खोपड़ियां जुटाने के बाद वे अमेरिका और ब्रिटेन के दौरे पर निकलेंगी।


प्रेतात्मा-चार

देश भर में प्रेतात्माओं के एनजीओ इन दिनों जोर-शोर से विकास और स्वास्थ्य मिशन में जुटे हुए हैं। उन्हें व्यापक सफलता और सम्मान मिल रहा है। साथ ही लाखों-करोड़ों का बजट भी। देश में क्रांतिकारी बदलाव लाना उनका एक मात्र उद्देश्य है।


प्रेतात्मा-पांच

देश में अनेक प्रेतात्मा संप्रदाय राजनीति के क्षेत्र में भी अपनी किस्मत आजमाने में जुटे हुए हैं। उन्हें भी मालूम है कि चुनाव सिर पर है। कौन जाने, कल को उनके संप्रदायों का गठबंधन केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हो जाये। तब खुलकर श्मशान-नृत्य समारोह आयोजित हो सकेंगे...गुजरात से नंदीग्राम तक।


रिश्ते-नाते पालतू के......हजार सवाल फालतू के

एक तो अपनी घरेलू मेढक कुदान, ऊपर से मिस कॉल वालों की कोंच। जान आफत में डाल रखा है। एक और मुफ्त की फजीहत मोबाइल कंपनियों की। दे मैसेज, मैसेज। फालतू के। उनका तो जब भी मैसेज आए, दिमाग भन्ना जाता है।
तो पहले मिस काल मारने वालों का हाल सुनें।
कोई मामा लड़का गांव में बेरोजगार पड़ा है, पड़ोसी शर्मा जी के मोबाइल से सुबह होते ही मिस काल मारने लगता है। नौकरी चाहिए। उससे पहले उसके काल का भुगतान भी हमे ही करना है।
मौसी की छोटी बेटी शादी लायक हो गयी है। कोई ढंग का लड़का नहीं मिल रहा है। हमे ही जिम्मा सौंप रखा है कि कोई दिखे तो बताना। यह जिम्मा रोजाना हमारे मोबाइल पर तीन-चार मिस काल मार कर सौंपा जाता है। लगता है, साल-दो-साल यूं ही चला तो आधा दहेज बाया मिस काल ही चुकता हो जाएगा।
फूफा जी के बड़े बेटे का बीए में दाखिला होना है। पहले उसके रिजल्ट को लेकर मिस काल आते थे। अब दाखिले के लिए मदद चाहिए, वो भी बाया मिस काल।
ये तो रही नाते-रिश्ते के एक-दो लोगों की बातें। अब सुनिए उनकी, जो हर महीने कुछ न कुछ कमा-धमा लेते हैं। बाकी काम अपने पैसे से लेकिन मोबाइल सेवा फ्री चाहिए। इन बेशर्मों ने तो ऐसा तंग कर रखा है कि बार-बार मना करने के बावजूद नहीं मार रहे। वे ब्लाग-स्लाग तो पढ़ने-से रहे। तंग आकर मैं अपनी खीझ जरूर यहां इस पोस्ट के बहाने मिटा ले रहा हूं।
ये बेशर्म अगर गलती से फोन पर अटेंड हो गए तो पहले फर्जी निकटता जताते हुए बालबच्चों का हाल पूछेंगे, मेरा काम-धाम कैसे चल रहा है, पूछने को और कुछ नहीं तो ...इसी तरह के कुछ अन्य सवालों से काम चला लेते हैं
मसलन....
भाई साब और क्या हो रहा है
भाई साब आजकल रोज मौसम बदल रहा है
महंगाई बढ़ती जा रही है
आजकल बच्चे बड़े बेकाबू होते जा रहे हैं
भाई साब और कोई दिक्कत हो तो बताइएगा
आजकल आपकी ड्यूटी का टाइम क्या वही पुराना वाला है
भाई साब सुबह कितने बजे तक उठ जाते हैं
शाम को तो टीवी सीवी देखकर ही सोते होंगे

....रिश्ते-नाते पालतू के......हजार सवाल फालतू फालतू के
सोचता हूं, क्यों न अपना मोबाइल सेट तोड़ताड़ कर चूल्हे में झोंक दूं। चूल्हा भी गैस वाला। तो अब क्या करूं?