Friday, April 17, 2009
गुरू! वो देखो चुनाव हो रिया हइ..हीहीहीही
1
जैसे ही
चुनाव आयोग ने
चुनाव आचार संहिता का बिगुल बजाया
तो
नेता जी के शैतानी दिमाग़ ने
अपना अलग रास्ता बनाया
और
नेता जी को समझाया
अब छोडो मेरा साथ ,मेरा कहना
और कुछ दिन केवल
दिल के अधीन ही रहना
नेता जी
जो कभी-कभी
कविता लिखने का शौंक फरमाते थे
और
कभी-कभी अपने दिमाग़ के कारण
समीक्षक भी कहलाते थे
वही दिमाग
अब नेता जी को समझाता है
अरे !
चुनाव अभियान में
समीक्षक नहीँ
कवि ही काम आता है
कवि हो
तो उसका फायदा क्यो नहीँ उठाते
कुछ ऐसे नारे क्यों नहीँ बनाते
जिसमे हो
कुछ झूठे वादे,कसमे और लारे
जिसमे
फँस जाएँ भोले-भाले लोग बेचारे
बस
कुछ दिन मे तो
चुनाव खतम हो जायेगी
और
तेरी-मेरी फिर से
मुलाकात हो जाएगी
फिर
हम दोनो मिलकर करेंगे राज
और करेंगे दिल के मरीजों का इलाज
नेता जी
घबराये और बोले
तेरे बिना मै क्या कर पाऊँगा?
यूँ ही दिल के हाथो मर जाऊँगा
अरे!
मेरे होते तू क्यों घबराता है?
नेता का दिल भी तो
उसका दिमाग़ ही चलाता है
बस
फरक सिर्फ इतना है
कि दिल को थोड़े दिन्
रखना दिमाग से आगे
और
देखना लोग आएँगे
तुम्हारे पीछे भागे-भागे
बस
उनको दिल कि बातों से
बस में करना
और
दिमाग से नामान्कन भरना
होगा
तो वही जो तुम चाहोगे
पहले भी
लोगो को मूर्ख बनाया
आगे भी बनायोगे
जीतोगे
और तुम्हे सम्मान भी मिल जायेगा
लोगों की मूर्खता का
प्रमाण मिल जायेगा
लेकिन
इस बार नेता जी के
दिमाग़ ने धोखा खाया
लोगो ने अपना दिमाग चलाया
और
नेता जी को
बाहर का रास्ता दिखाया
नेता जी
जो स्वयम को समझते थे
समाज का आईना
अब
स्वयम को
समाज के आईने मे पाया
(हिंद युग्म से साभार)
2.
आजकल राजनीति एक रैलगाडी बन गई है
जिसका आने- जाने का टाइम टेबल तो है
टाइम टेबल तो.. सिर्फ दिखावे के लिए है
हक़ीकत मे.. रेलगाड़ी घंटो लेट आ रही है
इसी तरह.... राजनीति मे रोज़ राजनेता
जनता जनार्दन को.......मूर्ख बनाते है
नित .नए - नए सब्ज़ बाग़ दिखा रहे है
गर चुनाव मे जीत गए... समझा रहे है
तो ये करवा देंगे तो..... वो करवा देंगे
तो ये दिलवा देंगे तो.... वो दिलवा देंगे
चुनाव जीतने के बाद ...राजनेता फिर से
राजनीति की..गाड़ी के ड्राईवर बन जाते है
देश मे यहा वहां नाचते गाते मौज मनाते है
अगले चुनावो तक क्षेत्र से..ग़ायब रहते है
चुनाव आते ही नकली मुखैटा चेहरे पर लगाकर
जनता को चराने धोखा देने हाज़िर हो जाते है.
(nirantar से साभार एक अनाम लेखक की कविता)
3
मदारी: जमूरे!
जमूरा: हाँ उस्ताद.
मदारी: खेल दिखायेगा?
जमूरा: सच्चा की झूठा?
मदारी: झूठा तो बहुत देखा पब्लिक ने. अब सच्चा दिखा.
जमूरा: फिर तो फरमाईशी कार्यक्रम होगा. बोल उस्ताद क्या दिखाऊँ?
उस्ताद, इलेक्शन का टाइम है, कुछ उसी पर दिखा.
जमूरा: उस्ताद, इलेक्शन का नाम मत लो (..और रोने लगता है).
मदारी: अब्बे, क्या हो गया? बाप मर गया या माँ भाग गयी?
जमूरा: बाप तो तू ही है और तेरी बीवी भागे तो मेरे ठेंगे से.
मदारी: तो क्या हुआ?
जमूरा: मैं इलेक्शन में खडा होने वाला था पर अब नहीं.
मदारी: बाप से मजाक करता है?
जमूरा: नहीं उस्ताद, सच कह रहा हूँ. मैं इलेक्शन में खडा होने वाला था.
मदारी: चल मान लेता हूँ, फिर क्या हुआ?
जमूरा: मैंने पब्लिक को बोला मैं हिन्दू हूँ, पब्लिक की बहन ने अन्दर कर दिया.
मदारी: ये तो बुरा हुआ. चल जाने दे. खेल दिखा.
जमूरा: अब तो मैं जेल में हूँ. (कह कर भाग खड़ा होता है).
मदारी: जमूरे!
जमूरा: हाँ उस्ताद.
मदारी: तुमने सुना?
जमूरा: क्या उस्ताद?
मदारी: चुनाव होने वाला है.
जमूरा: हाँ उस्ताद, मैं भी खड़ा हूँ.
मदारी: मजाक मत कर.
जमूरा: वो तो पब्लिक से करूंगा.
मदारी: क्या सोच कर खड़ा हुआ?
जमूरा: प्रधानमंत्री बनना है.
मदारी: औकात में रह.
जमूरा: उस्ताद, एक बात बोलूँ?
मदारी: बोल.
जमूरा: एक प्रधानमंत्री जमूरा बन गया तो एक जमूरा प्रधानमंत्री क्यों न बने?
मदारी: खेल ख़त्म हुआ पैसे मांग.
जमूरा: नहीं मिलता है उस्ताद अभी रिसेस्सन है
मदारी: स्विस बैंक से मांग
जमूरा: पच्चीस लाख करोड़ तो अपने हैं, वही न उठा कर दे दें.
(परिचर्चा से साभार)
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