शिवसेना के मानस पुत्र राज ठाकरे ने एक बार फिर यूपी और बिहार वालों पर शर्मनाक टिप्पणियों से प्रहार किया है। उसने कहा है कि ऐ यूपी और बिहार वालों मुंबई-महाराष्ट्र में तुम लोग सिर्फ पानी-पुरी बेचो। और कोई काम तुम्हारे वश का नहीं। पानी-पुरी बेचकर अपने बाल-बच्चों को पालो-पोषो। राजनीति मत करो। राजनीति करना तुम लोगों के वश की बात नहीं है। महाराष्ट्र में राजनीति तो मराठी ही करेंगे। राज के जहर उगलने से एक बार फिर हिंदी पट्टी के मुंबईवासियों का खून खौल उठा है।
कौन नहीं जानता कि राज ठाकरे समय-समय पर यूपी-बिहार वालों के खिलाफ विष वमन करता रहता है। बाल ठाकरे से उसने इसी तरह की राजनीति सीखी है। इसी तरह की राजनीतिक फसल काट-काट कर पिता-पुत्र ने अरबों-करोड़ों की संपत्ति बना ली है। बरगलाने वाले उसके बयानों ने मुंबई में कई बार आग लगाई है। अभी कुछ ही दिन पहले जब बिहार की अदालत ने बाल ठाकरे की एक ऐसी ही टिप्पणी पर सुनवाई करते हुए बाल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया तो उसके दूसरे पुत्र उद्धव ठाकरे ने न्याय पालिका को ललकार दिया कि कोई बाल ठाकरे को गिरफ्तार तो कर दिखाए! एक तो चोरी, दूसरे सीना जोरी, वह भी हिंदुस्तान की न्याय पालिका के साथ। सचमुच ही क्या हिंदुस्तान सरकार में इतनी हिम्मत है जो न्याय पालिका को ललकारने वाले, हिंदुस्तानी कौमों को ललकारने वाले, फिरकापरस्ती, नस्लभेद का जहर उगलने वाले इन फासीवादी पिता-पुत्रों की जुबान पर लगाम लगा सकती है? जवाब है, कभी नहीं, क्योंकि सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।
Sunday, September 13, 2009
एक थीं शिवानी गौरा पंत पहाड़ की
कहिए मृणाल जी!
अब क्या हैं हाल जी!!
कपटी कानाफूंसी
नटी छीना-झपटी
अब कौन बैठा बैताल
आपकी डाल जी!
शेखरःएक जीवनी
क्या पढ़ी कभी आपने?
शोभना भरतिया को
छुआ नहीं शाप ने,
पाल लिया आंभी,
जयचंद-जंजाल जी!
अब क्या हैं हाल जी!!
घुट-घुट कर कितना जिया
मीडिया का माहुर पिया
तिकड़म न जाना
फिर भी कर दिया रवाना
कई खोज रहे नौकरी को
हुए निढाल जी!
अब क्या हैं हाल जी!!
एक थीं शिवानी
गौरा पंत पहाड़ की,
जहां कभी बाढ़ नहीं आती,
सांप केंचुल छोड़ता
और देवता बन जाता है
अब तो बस लोकसभा
चैनल का आसरा बचा
देते रहिए ताल जी!
अब क्या हैं हाल जी!!
अब क्या हैं हाल जी!!
कपटी कानाफूंसी
नटी छीना-झपटी
अब कौन बैठा बैताल
आपकी डाल जी!
शेखरःएक जीवनी
क्या पढ़ी कभी आपने?
शोभना भरतिया को
छुआ नहीं शाप ने,
पाल लिया आंभी,
जयचंद-जंजाल जी!
अब क्या हैं हाल जी!!
घुट-घुट कर कितना जिया
मीडिया का माहुर पिया
तिकड़म न जाना
फिर भी कर दिया रवाना
कई खोज रहे नौकरी को
हुए निढाल जी!
अब क्या हैं हाल जी!!
एक थीं शिवानी
गौरा पंत पहाड़ की,
जहां कभी बाढ़ नहीं आती,
सांप केंचुल छोड़ता
और देवता बन जाता है
अब तो बस लोकसभा
चैनल का आसरा बचा
देते रहिए ताल जी!
अब क्या हैं हाल जी!!
Subscribe to:
Posts (Atom)