Friday, February 13, 2009

बड़ी बदबू मार रही गुलाबी चड्ढी


मांस का लोथड़ा,
लोथड़े के नीचे हड्डी,
और ऊपर से गुलाबी चड्ढी.

पैसे का थैला,
थैले के भीतर मैला,
मैले से लदी साहब-सूबे की गड्डी.

जानवरों की जेल
जेल के भीतर खेल
और दोनों तरफ से कबड्डी-कबड्डी.
तब था परमाणु करार,
अब लोकसभा चुनाव की रार,
जनता के लिए वे खोदने वाले हैं गड्ढा-गड्ढी.

दादी से बड़े दादा,
दादा बड़े हरामजादा,
डाई से दादा के बाल काले और दादी बुड्ढी.

आयो रे, आयो रे,
वैलेंटाइन डे भायो रे,
मेढक कुदान पर उजड्ढा-उजड्ढी.

गडमड से गड़बड़
मचाए बड़ी हड़बड़
कविता के बहाने अकल गडमड्डी.......
और ऊपर से बस्सा रही गुलाबी चड्ढी.

Thursday, February 12, 2009

बापू का चश्मा, घड़ी चप्पल बिकाऊ है


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की घड़ी, चश्मा और चप्पल नीलाम होने वाली है. है कोई खरीदार? बापू के आदर्श तो पहले ही नीलाम हो चुके हैं. उसे नीलाम किसने किया है? बापू के फर्जी अनुयायियों को मालूम होगा. घड़ी, चश्मा और चप्पल ही नहीं, बापू का कटोरा, कटोरी, चम्मच भी नीलाम होने वाली है. चश्मा कहीं पड़ा है, घड़ी कहीं पड़ी, चप्पल कहीं और है. किसी भी शहर में चले जाइए, जहां बापू की मूर्तियां लगी हों. जरा करीब से देखिएगा, उनकी क्या हालत है. पीएम, सीएम, जीएम, डीएम के कमरों में टंगी बापू की तस्वीरें बेशर्मों से सवाल करती रहती हैं कि अरे पापियों अपने सिरहाने क्यों टांग रखा है मुझे. मुझसे अच्छा तो भगत सिंह था जांबाजी से फांसी पर टंग गया. मुझे कब तक टांग कर मेरे आदर्शों की नीलामी करते रहोगे? सवाल सुनने वाले बेशर्मी से मुस्करा कर चल देते हैं.
जिस चश्मे ने अंग्रेजों से जूझते भारत को देखा था, जिस चश्मे से वह अपनी उम्मीदों का इंडिया देखना चाहते थे, जिस चश्मे से दलित, मुस्लिम, स्त्री वर्ग को खुशहाल देखना चाहते थे. वैसा तो देख न सके, अब उनका वही चश्मा जरूर नीलाम हो रहा है. जो चप्पल पहन कर उन्होंने दांडी मार्च किया था, नमक सत्याग्रह किया था, चंपारन से लाहौर तक सड़कें नापी थीं, वह चप्पल भी नीलाम हो रही है.
नीलाम होने के बाद वही हाल बापू के इन सामानों का भी होगा, जो उनकी प्रतिमाओं और चित्रों का हो रहा है. अब तो वतन भर बिकने यानी देश दोबारा नीलाम होने की बारी है. बारी क्या है, नीलाम हो ही रहा है.

र से राम और राजनीति

...सज्जनों एक बार किष्किंधा पर्वत पर बालि ने सुग्रीव से और दूसरे पर्वत पर काग ने भुसुंडी से कहा कि-
राम नाम सुंदर तरकारी।
संशय नहीं, उड़ाओ हाली।।
लोकभाषा में हाली का अर्थ जल्दी होता है.

राम-राम कहि जे जमुहाहीं।
तिन्हहिं न वोटर जी समुहाहीं।
जमुहाहीं का अर्थ जम्हाई, तिन्हहिं का अर्थ उनको, समुहाहीं का अर्थ समर्थन से है.

जा की राजनीति हो सोई।
ता पर कृपा राम की होई।।
लोकभाषा में सोई का अर्थ नींद होता है.

होइ है सोइ जो राम रचि राखा।
पुनः नागपुर में रस चाखा।।
अभी तो बालकांड चल रहा है, सुंदर कांड बाकी है.

सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
कुर्सी बिना अकल गई मारी।।
कुर्सी मिली तो मंदिर बनाएंगे, जैसे (मुर्ख) बनाते आ रहे हैं.

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।
दिल्ली दूर बहुत है राजा।।
अबकी लार न टपकाओ. मतदाता कचूमर निकाल लेंगे.

उघरहिं अंत न होइ निबाहू।
मांगैं वोट केतु औ राहू।।
एक टकला जी, दूसरे रथयात्रा वाले.

कुफल मनोरथ होहुं तुम्हारे।
राम-लखन सुन भए सुखारे।।
मतगणना के दिन पता चल जाएगा कि कितना उल्लू बनाया.

राम-राम जपना।
पराया माल अपना।।
लोकभाषा में इन सभी शब्दों के अर्थ साफ हैं.

चित्रकूट के घाट पर भइ दुर्जन की भीड़।
दंगाई चंदन घिसैं, तिलक करैं धनवीर।।
राजनीतिक शब्दावली में अर्थ एकदम साफ है.

बंदउं गुरुपद पदुम परागा।
दंगाई कुर्सी ले भागा।।
पदुम माने कमल. लोकसभा चुनाव फिर आ रहा है.

राम सकल नामन्ह से अधिका।
फिर कुर्सी ले भागा बधिका।।
नामन्ह का अर्थ नाम, अधिका यानी अधिक, बधिका यानी बधिक.

तो सज्जनों....इतनी रामायण सुनते ही किष्किंधा पर्वत पर बालि-सुग्रीव और दूसरे पर्वत पर काग-भुसुंडी मूर्च्छित हो गए. जय श्रीराम...जय श्रीराम

Wednesday, February 11, 2009

जब वे प्रेम करते थे


जब वे प्रेम करते थे
तब उनके आस-पास हिलकती थी नदी
दोनों इतने पारदर्शी थे
कि न तो वे दिखते थे न दिखती थी नदी
हवा में हिलते हुये धूप
उनके कपडों पर तितली की तरह मंडराती थी
इतने हल्के थे उनके वस्त्र
जैसे मछली की नर्म पूँछ होती है
बस उतनी ही सलवटें,
उतनी ही धारियाँ,
उतनी ही नमी होती थी उन पर
जब वे प्रेम करते थे
तब मुस्कुरातीं थी मछलियाँ
मछलियों के मुस्कुराने पर
मछुए भी मुस्कुराते थे
मछुओं की मुस्कान काँटे की तरह
तिरछी हुआ करती थी
जिसे न वे जानते थे
न जानती थीं मछलियाँ
वे दोनों नदी के भीतर रहते थे
जैसे उन दोनों के भीतर रहती थी नदी
जब वे मरे…
तब जमीन स्वंय ले कर गई उन्हें श्मशान
भूमि-पेड़ चल कर आए उनकी चिता बनने
अग्नि की लपटों की तरह
पेडों से निकली पत्तियाँ हरहरा कर
जिसमें चिडियों ने अपने घोसले का
एक तिनका
और अपने डैनों का एक पंख
उनकी अंतिम यात्रा के लिए रखा
हवा एक गिलहरी की साँसों मे
शोकगीत गाने लगी
जिसका कोरस मैने अपनी साँसों में भी सुना
पानी जब उनकी अस्थियाँ लेने आया
तो मिट्टी का एक पात्र
लकडी की एक नाव
और सूत का वस्त्र
चुपचाप उसके साथ चला आया
यूँ हुआ उनका अंतिम-संस्कार
जो करते थे प्रेम
कि उनके बाद मछलियों ने
अपने बच्चों के नाम रखे
उनके नाम पर
और उस दिन मछुआरों ने
नहीं डाला नदी में जाल.

Tuesday, February 10, 2009

प्रेम करें ऐसे


प्रेम में न धोखाधड़ी

प्रीति में न झांसा.

प्रेम करें ऐसे

जैसे कटहल का लासा.


Monday, February 9, 2009

विज्ञान ने खोली प्रेम-संबंधों के ढोल की पोल


प्यार-व्यार लव-रसायन
जब विज्ञान चुटकी भर प्यार की पोल खोल दे तो क्या यह संत वेलेन्टाइन की तौहीन होगी. शायद नहीं. प्रेम राजा देखता है, रंक. यह किसी को भी, किसी से भी, किसी भी उम्र में हो जाता है. नेशनल जियोग्राफ़िक चैनल अपने नेकिड साइंस कार्यक्रम में मानवीय प्रेम का वैज्ञानिक तौर पर विश्लेषण करते हुए बताता है कि प्रेम कोई दिखावे की फितरत नहीं. दिमाग़ में होने वाला केमिकल परिवर्तन है. जब कोई प्रेमासक्त होता है, उसके दिमाग़ के एक ख़ास हिस्से में अलग तरह की रासायनिक क्रियाएँ होती हैं. जैसी कि कोकीन खाने से. दोनों के लक्षण समान होते हैं. इसी तरह समाधि भी कोई पराभौतिक क्रिया नहीं. ध्यान से दिमाग़ में रासायनिक परिवर्तन होते हैं. जिन लोगों की खोपड़ी में ये रासायनिक परिवर्तन ज़्यादा हो जाते हैं, वे ऐनलाइटेण्ड कहलाते हैं. उन्हें कुछ अजीब तरह की अनुभूति होती है. वैसी अनुभूति टेम्परेरी तौर पर एलएसडी नामक ड्रग के सेवन से भी होती है. प्रेमासक्ति के दौरान मस्तिष्क में दो प्रकार के रसायनों की भरमार होती है. करीब आने पर ऑक्सीटोसिन और दूर जाने पर डोपामिन. रोलर कोस्टर राइट के दौरान ऑक्सीटोसिन लड़ने की ताकत देता है और इसके स्राव के ठीक बाद डोमामिन का सीक्रेशन होता है. डोपामिन की तरलता में दो प्रेमियों का प्यार पलता है. कहा जाता है कि आदमी तीन जगह सर्वाधिक मूर्खताएं करता है. गोद में बैठे बच्चे के साथ, गोद में रखे शीशे के साथ और गोद में पसरी प्रेमिका के साथ. तीनों अवस्थाओं में आदमी की बुद्धि कुंद हो जाती है. ऐसा ही कुछ शेक्सपीयर कहता है कि प्रेमी मीठी बेवकूफियां करते हैं और उनके अलावा सभी लोगों को ये बेवकूफियां दिखती हैं.
आज भी वैज्ञानिकों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम मानव मस्तिष्क के अध्ययन से यह जानने के लिए प्रयासरत है कि उसमें दूसरे लिंग के प्रति लगाव की भावना कैसे जागृत होती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रेम वास्तव में एक ड्रग के समान है, जिससे नशा चढता है. यानी एक समय ऐसा सकता है, जब इस तरह की गोली या स्प्रे विकसित कर लिया जाए, जिससे प्रेम की अनुभुति जागृत हो. इस विषय पर कई शोध हुए हैं. एक शोध से यह साबित हुआ है कि ऑक्सीटोशीन हार्मोन के स्प्रे से इंसान के अंदर दूसरे लिंग के व्यक्ति के प्रति लगाव की भावना उत्पन्न होती है, शायद वह दिन दूर नहीं, जब बाजार में इस तरह केलव स्प्रेभी वैलेनटाइन डे पर बिकने लगें. कहते हैं कि प्रेम दिल से होता है लेकिन विज्ञान ने साबित कर दिखाया है कि प्रेम मस्तिष्क की एक अवस्था का नाम है. प्रेम हो जाए तो एक-दूसरे के बिना जीना दुश्वार हो जाता है. खुशबू की तरह प्रेम को छिपाया नहीं जा सकता. प्रेमिका अपने प्रेमी के बदन की खुशबू को पहचान लेती हैं. बदन की खुशबू उसके जींस पर निर्भर करती है. खुशबू सेक्स हॉर्मोन फेरोमोन्स का उत्पाद है. ओव्यूलेशन की क्रिया के दौरान महिलाओं के सूंघने की शक्ति बढ़ जाती है. तब प्रेमिका को प्रेमी की गंध आकर्षित करती है. विशेष देह गंध इस्ट्रोजन के स्तर को बढ़ा कर सेक्स की इच्छा में इजाफा कर देती है. लोग कहते हैं कि आदमी प्रेम हो जाने पर बौरा जाता है. वैज्ञानिक सच तो यह है कि ऐसी अवस्था में वह पहले की अपेक्षा ज्यादा समझदार हो जाता है. जिस प्रकार हम किसी मादक पदार्थ या दवा के आदी हो जाते हैं और उसके मिलने पर शरीर के हॉर्मोनल स्त्रावों में परिवर्तन होने लगता है, उसी प्रकार प्रेमावस्था में शरीर में हार्मोनल परिवर्तन होते हैं. प्रेम भावना मस्तिष्क की स्थिरता और विवेक में चमत्कारिक परिवर्तन ला देती है. प्रेम बंधन में बंधने के बाद किसी के संबंध ही नहीं, स्वास्थ्य में भी सुधार होता है. प्रेम करने वाले लोग उन लोगों के मुकाबले शारीरिक रूप से ज्यादा स्वस्थ और खुश रहते हैं, जो अविवाहित और प्रेम से अनजान हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार प्रेम-संबंध हृदय रोग के खतरे टालने में मददगार होते हैं.

मस्तिष्क में श्रृंखलाबद्ध क्रिया
प्रेमासक्ति के दौरान मस्तिष्क अलग तरह से सक्रिय होता है. दिल, दिमाग पर हावी हो जाता है. इसके वैज्ञानिक प्रमाण सामने चुके हैं. योरपीय मनोचिकित्सक डोरोथी टेनाय ने 400 लोगों का अध्ययन कर यह जानने की कोशिश की कि पहला प्यार होने पर उन्हें कैसा महसूस हुआ था. सभी ने माना कि उस अनुभूति के समय वह जैसे हवा में उड़ रहे थे. पूरे शरीर में नशा- सा फैलने लगा. प्रिय के पास पहुँचते ही दिल की धड़कन में खास तरह का बदलाव महसूस हुआ. शोधकर्ताओं ने प्यार होते समय इस पूरी श्रृंखलाबद्ध क्रियाओं को समझने की कोशिश की. 'फिनाइल इथाइल एमाइन' यानी 'पीईए' रसायन को 'लव रसायन' के रूप में जाना जाता है. यही वह रसायन है जो रोमांस के समय दिमाग में सुरूर पैदा करता है. प्रेमासक्ति के दौरान इस रसायन का स्राव पूरे शरीर में होता है. इंद्रियाँ इतनी क्रियाशील हो जाती हैं कि कम रोशनी में भी सब कुछ साफ-साफ दिखाई पड़ने लगता है, जिस समय आप घर में ऊँघ रहे होते हैं, उस समय अजीब चुस्ती-फूर्ती का अहसास होता है. इस रसायन की एक गैररोमांटिक खुराक शरीर में सक्रिय हो जाती है. जिस तरह कि तेज झूला झूलते समय, ऊँचाई से नदी में छँलाग लगाते हुए, चॉकलेट खाने या तेज मोटरसाइकल चलाते समय शरीर में एक विशेष प्रकार की उत्तेजना होती है. शोधकर्ता मानते हैं कि यह आनंद ऐसे ही रसायन के कारण ही होता है. 'पीईए' से एक अवयव न्यूरोकैमिकल डोपामाइन भी निकलता है. प्रेमासक्ति में इसकी क्या भूमिका होती है? इस पर रोचक प्रयोग हो चुके हैं. चूहों में सूँघकर पता लगाने की असाधारण क्षमता होती है. तमाम रोगों के अलावा अपने साथी को प्रजनन के उपयुक्त होने होने का पता भी चूहे सूँघकर लगा लेते हैं. एक प्रयोग में शोधकर्ताओं को पता चला कि जिस भी चूहे को डोपामाइन की अतिरिक्त मात्रा इंजेक्शन दी गई, मादा चुहिया ने उसे चुन लिया. इससे साफ था कि उसके अंदर डोपामाइन का अतिरिक्त रिसाव हो रहा था. इसी डोपामाइन से ऑक्सीटोन नामक रसायन निकलता है. महिलाओं में खास परिस्थितियों में इस रसायन का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. शोधकर्ता मानते हैं कि प्रेमियों के आपस में एक-दूसरे को बाँहों में भर लेने और चूमते समय निकलने वाले ये रसायन वास्तव में महिलाओं को मातृत्व की तैयारी करवा रहे होते हैं. इन रसायनों को पालन-पोषण करने वाला रसायन भी कहा जाता है. इसी तरह शोधकर्ताओं ने प्यार करने वालों के दिल में धक्‌-धक्होने का वैज्ञानिक कारण भी खोज निकाला है. जब युवा उसके पास पहुँचते हैं, जिसे वे दिलोजान से ज्यादा चाह रहे होते हैं तो उनका दिल ऐसे धड़कने लगता है जैसे वह उछलकर बाहर जाएगा. विशेषज्ञ कहते हैं कि इस समय मस्तिष्क में नोरेपाइनफ्रीन नामक सरायन का स्राव हो रहा होता है. यही रसायन एड्रेरनालाइन हारमोनों को उत्तेजित कर देता है. इसके ही प्रभाव से जब प्रेमी अथवा प्रेमिका एक-दूसरे के पास पहुँचते हैं तो उनका दिल तेजी से धड़कने लगता है. हम अपने सामान्य क्रियाकलापों के लिए दिमाग के 'कोरटेक्स' क्षेत्र का इस्तेमाल करते हैं जबकि भावनात्मक निर्णयों के लिए 'लिम्बिक तंत्र' जिम्मेदार होता है. रोमांस के समय मनुष्य के अंदर जिस पीईए रसायन के स्राव की बात करते हैं वस्तुतः ये सब रसायन लिम्बिक तंत्र में ही अपना असर दिखाते हैं. योद्धाओं को जब बहादुरी दिखाने का समय आता है तो ऐसे ही कुछ अन्य तरह के रसायन मस्तिष्क के लिम्बिक तंत्र को अपनी पकड़ में ले लेते हैं. भावनात्मक संबंधों के समय मनुष्य का लिम्बिक तंत्र वाला हिस्सा अचानक सक्रिय हो उठता है. वैज्ञानिक दृष्टि से कहा जाए तो वहाँ दिल, दिमाग में नहीं बल्कि छाती में पसलियों के बीच कहीं पंप की तरह खून धौंकने में लगा होता है. धीरे-धीरे दिमाग इन रसायनों का आदी हो जाता है या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कुछ सालों बाद नई मुलाकात की तरह प्रेमी-प्रेमिकाओं का दिल नहीं धड़कता.
'डोपामाइन' से उथल-पुथल
प्रेम में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ होती हैं. वैज्ञानिकों ने इस बात का भी पता लगा लिया है कि जब किसी को प्रेम होता है तो उसके दिमाग़ पर क्या असर होता है. उन्होंने ऐसे पुरुषों और महिलाओं की रासायनिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया, जिनके नए-नए प्रेम संबंध बने थे. सोसायटी फ़ॉर न्यूरोसाइंस के इस शोध में मस्तिष्क के उन हिस्सों में उथल-पुथल का पता चला, जो ऊर्जा से संबद्ध हैं. स्कैन करने पर महिलाओं के दिमाग़ में भावनात्मक प्रभाव देखा गया और पुरुषों के दिमाग़ में कुछ ऐसी हलचल थी जो यौनोत्तेजना से जुड़ी हुई थी. शोधकर्ताओं ने 17 युवा लड़कों और लड़कियों के दिमाग़ की स्कैनिंग करके यह देखने का प्रयास किया कि प्यार होने पर उनके दिमाग़ में क्या बदलाव आता है. उन्हें बारी-बारी ऐसे लोगों के चित्र दिखाए गए जिनसे वे प्रेम करते थे और वे भी जिनके साथ उनका भावनात्मक जुड़ाव नहीं था. बीच-बीच में उन्हें ऐसे काम भी बताए गए जिनसे उनका ध्यान बंटता रहे. पाया गया कि प्रेम होने पर उनके मस्तिष्क में 'डोपामाइन' का स्तर बढ़ा. 'डोपामाइन' दिमाग़ में बनने वाला एक रसायन है जो संतोष और आनंद की भावनाओं को जन्म देता है. जब इसका स्तर बढ़ जाता है तो ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है और इंसान आमतौर पर उत्साहित महसूस करता है. लेकिन पुरुषों और महिलाओं में प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग थीं. अधिकतर महिलाओं में दिमाग़ के उस हिस्से में बदलाव देखा गया जो भावनाओं से संबद्ध होता है. लेकिन अधिकतर पुरुषों में उत्तेजना बढ़ाने वाले बदलाव नज़र आए. अब शोध चल रहा है कि जिन लोगों को उनके प्रेमी या प्रेमिकाओं ने ठुकरा दिए, उनके दिमाग़ की क्या स्थिति होती है?
बेवफ़ा बना देने वाला जीन
वैज्ञानिक कहते हैं कि बेवफाई भी जीन की माया होती है. बेवफ़ाई शरीर के विशेष जीनों का नतीजा होती है. यह दावा लंदन के सेंट थॉमस अस्पताल के ट्विन रिसर्च यूनिट को प्रोफ़ेसर टिम स्पेक्टर ने किया. उन्होंने महिलाओं पर अध्ययन किया. प्रोफ़ेसर स्पेक्टर के अनुसार यदि जुड़वां बहनों में से एक अपने पार्टनर के साथ बेवफ़ाई करती हो तो इस बात की 55 फ़ीसदी संभावना है कि दूसरी भी ऐसा ही करेगी. प्रयोगों से पता चला कि 100 में से 23 महिलाएं अपने पार्टनर के साथ पूरी तरह वफ़ादार नहीं रहीं. प्रोफ़ेसर स्पेक्टर ने यह भी पाया कि जुड़वां में से दोनों बहनों या दोनों भाइयों के वफ़ादार या बेवफ़ा होने की बराबर की संभावना रही. स्पेक्टर को लगा कि जीनों का एक समूह ऐसी चारित्रिक विशेषताओं के लिए ज़िम्मेदार होता है. किसी एक जीन को वफ़ादारी या बेवफ़ाई से नहीं जोड़ा जा सकता. जीन का सिद्धांत देने के साथ-साथ स्पेक्टर ने यह भी कहा कि बेवफ़ाई जीनों के अलावा कई सामाजिक कारकों पर भी निर्भर करती है. सामाजिक मनोवैज्ञानिक डॉ. पेट्रा बॉयन्टन भी सामाजिक कारकों के सिद्धांत से सहमत हैं. बॉयन्टन कहते हैं कि यदि एक बच्चे के रूप में किसी को देखने को मिले कि कैसे उसकी माँ उसके पिताजी को धोखा दे रही है तो उस आचरण की नकल करना उसके लिए आसान हो जाता है.
प्यार-व्यार में हो गए अंधे
प्यार अंधा होता है, यह कहावत मात्र नहीं. वैज्ञानिक तथ्यों ने यह साबित कर दिया है. यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन के एक अध्ययन के अनुसार प्रेमालाप से मस्तिष्क की उन हरकतों पर अंकुश लग जाता है, जो किसी को आलोचनात्मक नज़र से देखती हैं. उस व्यक्ति के क़रीब होने पर दिमाग़ ख़ुद--ख़ुद यह तय करने लगता है कि उसके चरित्र और व्यक्तित्व का कैसे आकलन किया जाए. शोधकर्ताओं ने यह भी जान लिया है कि मस्तिष्क पर इस तरह का असर रोमांस के दौरान भी होता है और ममता जाग उठने पर भी. माँ की ममता भी बच्चे की अच्छाइयां ही देख पाती है. माँ का बच्चे से लगाव भी कुछ इसी तरह का प्रभाव पैदा करता है. उस समय नकारात्मक भावनाएं दब जाती हैं. शोधकर्ताओं के दल ने 20 युवा माताओं के दिमाग़ का उस समय अध्ययन किया, जब उन्हें उनके अपने बच्चों और उनके परिचितों के बच्चों के चित्र दिखाए गए. उन्होंने पाया कि उस समय मस्तिष्क की गतिविधियाँ कुछ ऐसी ही थीं, जैसी रोमांटिक युगल की होती हैं. दोनों अध्ययनों से पता चला कि उस समय दिमाग़ की कुछ ऐसी ही स्थिति होती है जैसी अचानक धन मिल जाने या अच्छा खाने-पीने के समय होती है. इसी तरह के परिणाम जानवरों में भी देखने में आए. अनुसंधान से यह भी पता चला कि रोमांटिक और ममता से जुड़ी भावनाओं में एक बुनियादी फ़र्क़ है. प्रेमी-प्रेमिका के दिमाग़ के उस हिस्से में भी गतिविधियाँ तेज़ हो जाती हैं जो सेक्स उत्तेजना से संबद्ध हैं.
पहली नजर में प्यार-व्यार
वैज्ञानिकों की खोज पर यकीन करना ही होगा. उन्हें इस बात के सबूत मिले हैं कि वास्तव में प्यार पहली नजर में होता है. एक-दूसरे से मिलने के दौरान कुछ ही मिनट में युगल फ़ैसला कर लेते हैं कि वे एक-दूसरे के साथ किस तरह का रिश्ता चाहते हैं. 'जर्नल ऑफ़ सोशल एंड पर्सनल रिलेशनशिप्स' में छपे ओहायो विश्वविद्यालय के एक शोध से इस वास्तविकता का पता चला. इस विश्वविद्यालय ने एक ही लिंग के छात्रों के 164 जोड़ों पर ध्यान केंद्रित किया. ये शोध 'डेटिंग' या मिलन पर भी लागू हुआ. शोधकर्ताओं में से एक प्रोफ़ेसर आर्टिमियो रामिरेज़ ने बताया कि हम सब किसी भी व्यक्ति को देखते ही सोच लेते हैं कि हम उससे किस तरह का रिश्ता चाहते हैं. यदि हम दोस्ती करना चाहता हैं तो सामने वाले से ज़्यादा बातें करना चाहेंगे. अपने बारे में ज़्यादा जानकारी देना चाहेंगे और कुछ इस तरह सक्रिय हो जाएंगे कि तुरंत दोस्ती हो जाए. यदि किसी रिश्ते को लेकर सकारात्मक रवैया नहीं तो कम बातचीत करेंगे और उसे पनपने नहीं देंगे. यह सब तुरत-फुरत में घट जाता है, यानी कुछ ही मिनट में हो जाता है. लोग चुटकी बजाते ही फ़ैसला कर लेते हैं कि कुछ ही क्षण पहले मिले व्यक्ति के साथ वे कैसा बर्ताव करना पसंद-नापसंद करेंगे.
प्यार-व्यार का फ़ार्मूला
प्यार कामदेव का तीर है या कोई अद्भुत नशा? सवाल अब पेंचीदा नहीं रहा. प्रोफेसर एप्सटेन ने भी प्यार की व्याख्या के लिए नए प्रयोग किए. प्रयास किए कि प्यार को कैसे पैदा किया जाए. ठीक उसी तरह जिस तरह कोई वाद्य यंत्र सीखा जाता है, लोगों के दिलों में प्यार की हिलोरें पैदा की जाएँ. अमरीकी एप्सटेन ने एक ऐसी प्रक्रिया तैयार की, जिसमें छह महीनों में एक दूसरे के प्रति प्यार पैदा किया जा सके. उन्होंने यह साबित करना चाहा कि प्यार एक शारीरिक प्रक्रिया है. प्रायः लोग एक-दूसरे को समझने का प्रयास जब तक करते हैं, देर हो चुकी होती है और शादी अथवा संबंध टूट चुका होता है. जोड़े स्वर्ग में नहीं, यहीं पृथ्वी पर बनते-बिगड़ते हैं. ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कॉलिन बैल्कमोर के अनुसार जब लोग अपना साथी चुनते हैं, वे अनचाहे अपने बच्चों के पिता को चुनते हैं. इसमें प्यार कहीं फिट नहीं होता. लेकिन प्रोफेसर एप्सटेन कहते हैं कि ज्यादातर सफल शादियाँ तय की हुई होती हैं. वे भारत का उदाहरण देते हैं कि वहाँ तय शादियाँ बेहद सफल होती हैं और तलाक़ की दर मामूली होती है. यहाँ लोग शादी के बाद प्यार करना सीखते हैं. चार बच्चों के तलाक़शुदा पिता प्रोफेसर एप्सटेन ने प्यार के अपने प्रयोग के लिए जब एक विज्ञापन जारी किया तो सबकी निगाहें उनके प्रयोग, प्यार के फ़ॉर्मूले पर जा टिकी थीं.
जब उनका जिया जले
यह एक अध्ययन का एक और खुलासा है. जिन लोगों के दोनों हाथों या दोनों पैरों का आकार एक जैसा नहीं होता, यानी एक दूसरे से कुछ बड़ा या छोटा होता है, उनमें जलन या ईर्ष्या की प्रवृत्ति ज़्यादा होती है. कुछ लोगों में हक़ जताने की आदत ज़्यादा होती है. कनाडा के शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तरह के लोग आमतौर पर दूसरे पर ज़्यादा हक़ जमाते हैं और उनमें जलन का माद्दा ज़्यादा होता है. वैसे पहले कुछ अनुसंधानों में कहा गया था कि जिन लोगों का एक हाथ दूसरे से बड़ा होता है वे विपरीत लिंग के लोगों को ज़्यादा आकर्षित नहीं करते और उनकी संतानोत्पत्ति की क्षमता भी कम होती है. गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में हार्मोन के अंसतुलन की वजह से कभी-कभी जो बच्चे पैदा होते हैं, उनका एक पैर दूसरे से बड़ा होता है. हैलीफ़ैक्स स्थित डलहौज़ी विश्वविद्यालय में अनुसंधानकर्ताओं विलियम ब्राउन और उनके सहयोगियों ने पाया कि इस तरह के लोगों में ईर्ष्या भी ज़्यादा होती है. उन्होंने समलिंगी और विपरीत लिंग के साथ संबंध बनाने वाले पचास पुरुषों और महिलाओं का अध्य्यन किया. उन्होंने उनके हाथों, पैरों और कानों जैसे शारीरिक अंगों का जायज़ा लिया और उनसे कुछ ऐसे सवाल पूछे जिनसे यह पता चले कि वे अपने प्रेम संबंधों में कितने ईर्ष्यालु हैं. इस शोध के अनुसार उन्हें शारीरिक असमानता और ईर्ष्या मे काफ़ी हद तक सामंजस्य नज़र आया. इस अध्ययन में एक ख़ास बात यह पता चली कि यह जलन या ईर्ष्या रोमांटिक संबंधों तक ही सीमित थी, यानी कामकाज में यह नज़र नहीं आती थी.