जनता ने झन्नाटेदार तमाचा जड़ा है। धृतराष्ट्र बाल ठाकरे को अब किसी पर विश्वास नहीं रहा, न जनता पर, न ईश्वर पर, क्योंकि उनका पुत्र राज ठाकरे की तरह हवा में तलवार भाजने, भैया लोगों पर ठीक से हमला करने में नाकाम रहा. ध्यान रखिएगा कि अगली बार तमाचा राज ठाकरे को पड़ना है। हार से पछाड़ खाए बाल ठाकरे की सुनिए.........
"अब हमारा किसी पर विश्वास नहीं रहा. न जनता पर, न मराठी मानुस पर, न ही देवी-देवताओं पर. इन चुनावों में शिवसेना को अन्य धर्मवालों अथवा परप्रांतियों के बजाय मराठियों ने दगा दिया है.जिस मराठी मानुस के लिए शिवसेना ने 44 बरसों तक आवाज़ उठाई, उसी मराठी मानुस ने शिवसेना की पीठ में खंजर घोपा. जब स्कूल-कालेज में दाख़िला करवाना हो, कचरा साफ़ करवाना हो, बाढ़-भूकंप में मदद की ज़रुरत हो तो लोग शिवसेना को याद करते है पर वोट देते वक़्त भूल जाते है.अगर 44 वर्ष के संघर्ष के बाद मराठी मानुस का मानस नहीं जागा तो क्या अगले 44 वर्ष तक शिवसेना को और कोशिश करनी होगी."
बाल ठाकरे को चाहिए कि जो जनता साम्प्रदायिक और फासीवादी बनने लायक न हो, दंगा फसाद, नस्लभेद करने लायक नहीं हो, वह उसे बदल दें। क्योंकि वह जनता अब उनके काम लायक नहीं रह गई है। राज ठाकरे लगे हुए हैं यूपी-बिहार की जनता को बदलने में। अगली बार कोई अचरज न होगा कि जनता उन्हें भी दूध की मक्खी जैसे बाल ठाकरे को निकाल फेंके।
Sunday, October 25, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)