Friday, March 26, 2010

जया की राह खोज रहे अमिताभ



(खबर सांसदजी डॉट कॉम sansadji.com से)

कुछ-कुछ इस बात से पर्दा हटने लगा है कि सदी के नायक अमिताभ बच्चन इन दिनों क्यों कुछ ज्यादा सियासी हवा खोरी के तलबगार हो चले हैं। सूत्रों की बात पर यकीन करें और पिछले महीने स्वयं सांसद जया बच्चन द्वारा कही इन बातों निहितार्थ टटोलने की कोशिश करें तो आभास मिल जाता है कि बिग बी की एक बड़ी जरूरत है जया बच्चन का सियासत में बने रहना, ताकि 'भूत-पिशाच निकट नहिं आवैं।' जयाजी ने फरवरी के प्रथम सप्ताह में उस समय अपनी ये मंशा प्रकट की थी, जब वह सपा निष्कासित अमर सिंह का खुल कर साथ देती हुई मंचों पर नमूदार होने लगी थीं और सपा की ओर कार्रवाई के अंदेशे जताए जाने लगे थे। तब मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए जया बच्चन ने कहा था कि 'पार्टी छोड़ने की उनकी कोई योजना नहीं है और वह राज्यसभा का अपना कार्यकाल सम्मानजनक तरीके से पूरा करना चाहती हैं। अपने करीबी मित्र अमर सिंह को पार्टी से निकाले जाने के एक दिन बाद जया बच्चन ने बताया था कि मैंने अपने परिवार से इस मुद्दे पर बातचीत की है और मैं राज्यसभा में बने रहना चाहूंगी। छह महीने का कार्यकाल बचा है और उसे मैं सम्मानजनक तरीके से पूरा करना चाहती हूं। मैं पार्टी नहीं छोड़ सकती, क्योंकि मैं अपना कार्यकाल पूरा करना चाहती हूं। यदि सपा अध्यक्ष मेरा इस्तीफा चाहते हैं, तो मैं उसी सूरत में इस्तीफा दूंगी जब मुलायम सिंह जी सामने आकर मुझ से इस्तीफा मांगे। राजनीति मेरे बूते का काम नहीं है। मैं बहुत स्पष्ट बात करने वाली हूं। मैं एक अच्छे राजनीतिज्ञ के बदले एक अच्छा इंसान हो सकती हूं। राजनीति में यदि आपके पास कोई विचार भी है तो उसे छुपाने के लिए आपके पास कौशल होना चाहिए। मैं ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि मैं बहुत मुखर हूं।' ये तो रहीं जया की बातें। जया का राज्यसभा का कार्यकाल निकट है। बच्चन घराने को शुरू से ही राजनीति का चस्का रहा है, अभिषेक के दादा के जमाने से। अमर सिंह सपा से अलग हो चुके हैं। अभी वह नई पार्टी बनाने की जुगत में व्यस्त हैं। बीच-बीच में वह कांग्रेस के पक्ष में बयान भी दे दे रहे हैं। कभी सोनिया गांधी, कभी राहुल गांधी की प्रशंसा करके। लगता है पूरी पूर्व पीठिका तैयार की जा रही हो। अमर सिंह सोनिया-राहुल की गाजियाबाद में प्रशंसा करते हैं और अमिताभ बच्चन महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार के बुलावे पर उसके समारोह में यह जानते हुए पहुंच जाते हैं कि इसके राजनीतिक अर्थ निकाले जा सकते हैं। जैसा कि उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखा। सांसद अमर सिंह भी ब्लॉग लिखते हैं। सपा से जोड़ी टूटने के बाद अमिताभ बच्चन भाजपा और कांग्रेस दोनों में जया की संभावनाएं तलाश रहे हैं। गुजरात के एम्बेस्डर तो वह बन ही चुके हैं, जल्द ही वह भाजपा शासित दूसरे राज्य मध्य प्रदेश में अपने स्वर न्योछावर करने वाले हैं। नर्मदा नदी के घाटों पर उनकी आवाज में नर्मदा की कहानी गूंजती सुनाई देने वाली है। पिछले दिनो उनकी सांसद पत्नी जया बच्चन ने नदी के प्रति जागरूकता लाने के नर्मदा समग्र के अभियान में सहयोग के तौर पर यह पेशकश की है। जया बच्चन नर्मदा और तवा नदी के पवित्र संगम स्थल बांद्राभान के तट पर आयोजित दूसरे अंतरराष्ट्रीय नदी महोत्सव के समापन सत्र को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर चुकी हैं। वहां उन्होंने कहा था कि उनका भोपाल और मध्यप्रदेश से जुड़ाव है। नर्मदा के इस अभियान में अपने पहले सहयोग के तौर पर वे चाहती हैं कि अपने पति की आवाज में नर्मदा की कहानी रिकॉर्ड की जाए। इससे नई पीढ़ी को नर्मदा की कहानी पता चल सकेगी और लोग पर्यावरण को लेकर जागरूक हो सकेंगे। भोपाल की अपनी बचपन की यादों को ताजा करते हुए वह कहती हैं कि एक समय मध्य प्रदेश के पहाड़ों और तालाबों का अलग मजा था। आज वे वैसे दिखाई नहीं देते। हम धरती का पानी खत्म कर रहे हैं और चांद पर पानी की तलाश कर रहे हैं। इस प्रोग्राम में सांसद अरुण यादव, सांसद राव उदयप्रताप सिंह आदि भी मौजूद थे। नर्मदा गीत को स्वर देना तो एक बहाना है, असली जरूरत है सत्तासीन भाजपा से निकटता ताकि जया का एक बार और संसद का रास्ता प्रशस्त हो सके।

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