Sunday, March 21, 2010

मुलायम के फरेब से मैं मुतमईनः अमर सिंह



(sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम)

बागी तेवर में समाजवादी पार्टी से अलग हुए राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने मुलायम सिंह यादव के लोहियावादी होने पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा है कि समाजवादी पार्टी मात्र एक परिवार की पार्टी बनकर रह गई है। पढ़िए अविकल रूप से मुलायम सिंह पर सांसद अमर सिंह की ताजा और धारदार टिप्पणी.............
"कल गढ़ मुक्तेश्वर में विधायक मदन चौहान जी के सौजन्य से एक भारी सभा हुई. मथुरा के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश की यह मेरी दूसरी बड़ी सभा थी. स्वर्गीय जनेश्वर जी मुझे अपनी म्रत्यु के एक पखवाड़े पहले मुझे मुलायमवादी से समाजवादी की बेशकीमती हिदायत दी थी. उनकी सलाह मानते हुए इधर लोहिया जी को जानने की कोशिश कर रहा हूँ. डॉ लोहिया के साथी जार्ज फर्नांडिस, मधु लिमये, मामा बालेश्वर, जनेश्वर मिश्र, जगदीश गुप्त, बद्री विशाल पिट्टी जैसे नेता थे. उनकी संगत में अतीक अहमद, अफजाल अंसारी, डी.पी. यादव, रमाकांत यादव, उमाकांत यादव जैसे सूरमाओं की जगह पढ़ने-लिखने वाले लोग होते थे. डॉ लोहिया अन्तोदय यानी अंतिम सबसे पिछड़े व्यक्ति के उदय की बात करते थे. ग्वालियर की महारानी श्रीमती विजय राजे सिंधिया के विरुद्ध उन्होंने एक दलित महिला को चुनाव में खडा करके यह साबित करने का प्रयत्न किया कि हिन्दुस्तान की आजाद लोकशाही में जीत हो या हार महारानी का मुकाबला एक दलित महिला से संभव है. लोहिया जी को भी मेरी तरह 1955 में उनकी ही पार्टी से निकाला गया था. अजीब बात है, लोहिया अपनी पार्टी के सदर बन सकते थे पर नहीं बने और सदर बनाया श्री एस.एम्. जोशी को जिनका नाम उनके मुकाबले बिलकुल गुमनाम था. लोकसभा में नेता के पद पर बिठाया श्री रामसेवक यादव को. जोशी जी और रामसेवक जी उस समय के कद्दावर नेताओं से काफी लघु आकार और व्यक्तित्व के थे लेकिन लोहिया जी ने उन सबको बड़ो के ऊपर बिठा कर बड़ा बनाया. मेरे पुराने दल में तो एक ही परिवार के मुलायम, रामगोपाल, शिवपाल, अखिलेश और धर्मेन्द्र के अलावा पूरब का भी कोई यादव मेरे भूतपूर्व नेता को सूझता ही नहीं है. सारी नेतृत्व क्षमता और गुणवत्ता मात्र परिवार और परिवारवाद में ही है. मेरी गलती है कि चौदह सालों से लगातार हो रही इस धांधली को मैने क्यूँ नहीं देखा, जवाब सिर्फ इतना है कि,
“मेरे ख़ुलूस ने मुझे रखा अँधेरे में, तेरा फरेब मुझे रोशनी में ले आया”
मुलायम सिंह जी के नाशुकराना अंदाज और फरेब से अब मैं मुतमईन हो गया हूँ. आज जौनपुर मुलायम सिंह जी के एक बड़े नेता पारस यादव जी की छाती पर मूंग दलने जा रहा हूँ. सुना है, एक बड़े कुख्यात माफिया का कुख्यात शूटर पारस जी का चेला है और जो अभी हाल में ही मुंबई में पकड़ा गया, प्यार से पारस उसे मुन्ना कहते है. खबर है पारस ने उसे मेरे पीछे लगा दिया है, “जाको राखे साइयां, मार सके न कोय”.
लोहिया पार्क में खुदा बद्री विशाल पित्ती का परिचय पढ़ने पर पता चला कि छोटे राज्यों का समर्थन तो खुद डॉ लोहिया करते थे. बद्री विशाल जी द्वारा आयोजित तेलंगाना के हिमायत की रैली में लोहिया जी खुद गए थे. मुलायम सिंह जी या तो आप लोहियावादी नहीं है या फिर आप अपने स्वार्थी मुलायमवाद का सफ़ेद झूठ लोहिया जी पर मढ़ना चाहते है. तेलंगाना समर्थक डॉ लोहिया पूर्वांचल के गठन के खिलाफ हो ही नहीं सकते. 23 तारीख को डॉ लोहिया का जन्मदिन और शहीद भगत सिंह की शहादत का दिन सायं 6 बजे निजामुद्दीन की ग़ालिब अकादमी में सम्पन्न कर रहा हूँ. परिवारवाद, जातिवाद, तानाशाही करने वालों को लोहिया के समाजवाद को बदनाम करने का कोई अधिकार नहीं है. मेरी सेहत की मेरे पुराने साथियों और आज के सबसे बड़े सियासी दुश्मनों को बड़ी फ़िक्र है. फ़िक्र ना करे 2012 तक समाजवादी परिवार द्वारा क़त्ल किये हुए अमर सिंह की भटकती रूह का साया आपकी खिदमत में रोजबरोज हाजिर रहेगा क्यूंकि,
“क्यों अपनी तरह जीने अंदाज छोड़ दे, क्या है मेरे पास और इस अंदाज के सिवा”

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