Saturday, April 3, 2010

सांसद अमर, सांसद जया, और अब संजू बाबा!


(sansadji.com)

पहले सांसद जया बच्चन, फिर सांसद अमर सिंह और अब छोटे भाई संजय दत्त उर्फ मुन्ना भाई। एक सप्ताह के भीतर तीनों फिल्मी-सियासी शख्सियतों के साथ अदालत और जांच-पड़ताल की बातें जुड़ जाना संयोग भी हो सकता है, सच्चाई भी। बॉलीवुड अभिनेता ‘मुन्ना भाई’ यानी संजय दत्त ने ‘बड़े भाई’ अमर सिंह के साथ सपा से रिश्ता भले समेट लिया, तनाव कायम है। पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान सपा की दोस्ती और भाषणबाजी अब संजू बाबा को खामख्वाह भारी-सी पड़ रही है। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री मायावती के बारे में कथित ‘‘पप्पी झप्पी’’ टिप्पणी के बारे में प्रतापगढ़ जिले की मुख्य दंडाधिकारी अनिरुद्ध कुमार तिवारी ने उन्हें सम्मन जारी करते हुए 24 अप्रैल को अदालत में हाजिर होने के आदेश दिया है। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने उक्त मामले में हाल में ही दाखिल आरोप पत्र का संज्ञान लेते हुए ये आदेश दिया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार मुख्यमंत्री मायावती के बारे में कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर दत्त के खिलाफ पिछले साल 16 अप्रैल को आईपीसी की धारा 294 के तहत प्रतापगढ़ नगर कोतवाली थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी। प्राथमिकी की जांच कर रहे पुलिस उपनिरीक्षक ने इस साल 18 मार्च को ही मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी अनिरुद्ध कुमार तिवारी की अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था।
यहां ये भी उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि प्रवर्तन निदेशालय जरूरत पड़ने पर समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले की जांच कर सकता है। न्यायमूर्ति विनोद प्रसाद और न्यायमूर्ति राजेश चंद्र की खंडपीठ ने कानपुर के निवासी शिवकांत त्रिपाठी की रिट याचिका पर यह व्यवस्था दी। त्रिपाठी ने पिछले साल 15 अक्टूबर को अपने शहर के बाबूपुरवा थाने में सपा के पूर्व नेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। एफआईआर में सिंह पर उत्तर प्रदेश विकास परिषद के चेयरमैन के पद पर रहते हुए वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाया गया। उस समय अभिनेता अमिताभ बच्चन पर भी अमर सिंह का साथ देने के आरोप लगे थे, लेकिन अमिताभ ने इन आरोपों से इनकार कर दिया था। अमिताभ का कहना था कि अमर सिंह के साथ उनके रिश्तों की वजह से उन पर निशाना साधा जा रहा है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि अमर सिंह से दोस्ती पर उन्हें कोई शर्म नहीं है। अमर सिंह से नजदीकी के कारण मुझे राजनीतिक दुश्मनी का शिकार होना पड़ रहा है। उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। अमर सिंह ने आरोपों से इनकार किया। त्रिपाठी इस दलील के साथ अदालत की शरण में गए थे कि प्रवर्तन निदेशालय अमर सिंह के खिलाफ मामले की जांच करे। फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा जांच की जा रही है। अदालत ने ऐसा कोई निर्देश देने से इंकार कर दिया हालांकि उसने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय को जब भी जरूरत महसूस होगी, वह मामले की जांच कर सकता है। अदालत ने पिछले वर्ष पांच दिसंबर को एफआईआर के सिलसिले में अमर की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए स्पष्ट कर दिया था कि राज्यसभा सदस्य को भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत लगाए गए आरोपों पर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता हालांकि राज्य सरकार धनशोधन निरोधक कानून के तहत उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों के सिलसिले में केन्द्र सरकार के पास जा सकती है, जो सुनवाई के क्रम में उपयुक्त कार्रवाई कर सकती है। इस बीच अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 10 मई निर्धारित की और राज्य सरकार से एफआईआर की जांच संबंधी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी द्वारा इस संबंध में भेजे गये प्रस्ताव को मानते हुए गृह विभाग ने देर रात सपा सांसद के विरुद्ध उक्त प्राथमिकी की जांच ईओडब्ल्यू से कराये जाने का आदेश जारी किया था। कानपुर पुलिस ने इस प्रकरण की जांच में कई तरह की दिक्कतों का उल्लेख किया था, जिसको संज्ञान में लेते हुए डीजीपी कार्यालय ने शासन से इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को सौंपे जाने का आग्रह किया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि चूंकि मामला कई कंपनियों और उनके शेयर धारकों द्वारा करोड़ों रुपये की कथित हेराफेरी का है, इसलिए मामले की जांच ईओडब्ल्यू से अथवा किसी अन्य जांच एंजेसी से कराया जाना उचित होगा। बाद में पूरा विवरण केन्द्रीय प्रवर्तन निदेशालय के मांगने के साथ ही इस हाई प्रोफाइल मामले की जांच में केन्द्र सरकार भी उसी समय कूद गई थी। इस मामले से जुडे़ दस्तावेजों को केन्द्रीय प्रवर्तन निदेशालय ने मांग लिया था। उत्तर प्रदेश पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने आवश्यक कागजात तत्काल भेज दिए थे। उस समय राज्य के आला अफसर शशांक शेखर ने बताया था कि अमर सिंह पर अरबो रुपयों के आर्थिक घोटाले के आरोप की सूचना मिलने के बाद भारत सरकार के प्रवर्तन निदेशालय ने आर्थिक अपराध शाखा से अग्रिम कार्रवाई के लिए विस्तृत विवरण मांगा था। रिपोर्ट में अमर सिंह व उनके सहयोगियो द्वारा कूट रचित दस्तावेज तैयार करने लोक सेवक होते हुए गलत ढंग से धन अर्जित करने तथा इन्कम टैक्स की गलत आयकर विवरणी अंकित करने का आरोप है।
चालू सप्ताह के अतीत पर एक नजर और डालें तो सांसद जया बच्चन से जुड़े एक जांच प्रकरण की सुर्खियां ताजा हो जाती हैं। चर्चाएं गर्म होती हैं कि जया एक बार फिर मुसीबत में पड़ सकती हैं। 24 जून 2008 को राज्य सभा चुनाव के निर्वाचन अधिकारी के रूप में तत्कालीन प्रमुख सचिव विधानसभा का आदेश है कि श्रीमती जया बच्चन, निवासी प्रतीक्षा, नार्थ साउथ रोड नम्बर 10, जुहू मुंबई के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराकर कार्रवाई प्रारम्भ की जानी चाहिए। बताया जाता है कि अभी तक उस आदेश पर अमल नहीं हुआ है। ऐसे में अब सरकार से जन सूचना अधिकार के तहत यह सवाल हुआ है कि वह इस आदेश पर अमल करने से क्यों बच रही है? मुख्य सूचना आयुक्त और केंद्रीय निर्वाचन आयोग के समक्ष भी प्रत्यावेदन दाखिल हुए हैं। सूत्रों के अनुसार सरकार ने आनन-फानन में सारे दस्तावेज तलब किए हैं। विधिक राय ली जा रही है। जया बच्चन ने वर्ष 2006 में जब राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया था तो शपथ पत्र में अपने पति के नाम की बाराबंकी की जमीन का उल्लेख नहीं किया था। इसको लेकर स्थानीय कांग्रेसी नेता अमीर हैदर ने 28 जून 2006 को केंद्रीय निर्वाचन आयोग में शिकायत की। आयोग ने इस प्रकरण को निर्वाचन अधिकारी के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव के पास भेज दिया। लम्बी जांच पड़ताल, तर्क-वितर्क के बाद प्रमुख सचिव, विधानसभा ने 24 जून 2008 को अपना फैसला सुनाया और लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि श्रीमती जया बच्चन ने दिनांक एक जून 2006 को रिटर्निग आफीसर को दिए गए, शपथ पत्र में सही तथ्यों का उल्लेख नहीं किया है और उसमें श्री अमिताभ बच्चन के नाम की दो जमीनों का उल्लेख न करने के तथ्यों को छिपाया है। यदि नामांकन पत्र के साथ रिटर्निग आफीसर को दाखिल किए गए शपथ पत्र में अभ्यर्थी द्वारा सही तथ्य नहीं दिए गए हैं तो भारतीय दण्ड विधान की धारा 177 के तहत दण्डनीय अपराध है। तदनुसार श्रीमती जया बच्चन, निवासी प्रतीक्षा, नार्थ साउथ रोड नम्बर 10, जूहू मुंबई के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराकर कार्रवाई प्रारम्भ की जानी चाहिए। अमीर हैदर का कहना है कि उसके बाद से वह लगातार लखनऊ के वरिष्ठ अधीक्षक से सम्पर्क कर यह जानने की कोशिश करते रहे कि एफआईआर कब दर्ज होगी? एफआईआर दर्ज करने में क्या अड़चन है? बकौल अमीर हैदर, उन्हें जब कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तब उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से आरटीआई एक्ट के तहत जानकारी मांगी, निर्धारित समय के अंदर जवाब न मिलने पर उन्होंने अपीलीय अधिकारी आईजी लखनऊ के यहां प्रत्यावेदन दिया लेकिन वहां से भी कोई जानकारी नहीं दी गई। इसकी वजह से उन्हें सूचना आयोग के समक्ष याचिका दायर करने का अधिकार मिल गया। अमीर हैदर ने आयोग में तो याचिका दायर की है, साथ ही इस मामले पर सरकार को घेराबंदी शुरू कर दी है। उन्होंने शासन स्तर पर एक प्रत्यावेदन देकर सरकार से जानना चाहा है कि आखिर वह वजह क्या है कि एफआईआर दर्ज नहीं हो रही है? उन्होंने केंद्रीय निर्वाचन आयोग के समक्ष भी प्रत्यावेदन भेजा है। उनका कहना है कि उन्हें सिर्फ इस सवाल का जवाब चाहिए कि आखिर जया बच्चन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से क्यों बचा जा रहा है?

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