Wednesday, March 31, 2010

संसद और देशः सानिया नहीं, सोनिया को सोचिए! आज रायबरेली गई थीं....



(sansadji.com)

देश सोनिया गांधी से चलता है, सानिया मिर्जा से नहीं। होशोहवास दुरुस्त रखकर बात पते की करें तो सूचनाएं इसी सिरे से आती हैं। उत्तर प्रदेश के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं सोनिया गांधी, कौन नहीं जानता! जो जानते हैं, अनजान बने रहना चाहते हैं, जो नहीं जानते, उन्हें उत्तर प्रदेश से ज्यादा जानने की फुर्सत नहीं है। बात बसपा बनाम मायावती के माला प्रकरण से होती हुई नोटो की माला से लदी सोनिया गांधी के उस फोटो तक पहुंच जाती है, जो बसपा प्रतिशोध के अंदाज में पिछले दिनों जारी करती है। मीडिया के लिए यह सुरसुरी हो सकती है और पाठकों-दर्शकों के लिए दीदाफाड़ अचंभा। लेकिन नतीजे बहुत आगे पहुंच कर छाती पीटने, लगते हैं कि आज सोनिया गांधी रायबरेली में थीं। बहुतों के लिए अपने-आप में यही बहुत बड़ी बात हो सकती है। इससे भी बड़ी बात ये कि दो दिन पहले राहुल गांधी भी उत्तर प्रदेश के अमेठी इलाके में गए थे। दोनों यात्राएं बसपा के लिए सवाल हो सकती हैं कि इतनी जल्दी-जल्दी दोनों परिजन-सांसदों के 'हमारे प्रदेश' में आने का मतलब आखिर क्या हो सकता है! जैसे मायावती के इतनी भारी माला पहनने का मतलब क्या हो सकता था, कांग्रेस वाले आज तक नहीं जान पाए हैं!! राजनीति में ऐसे अबूझ सवाल चलते रहते हैं। कोई नई बात नहीं। न ही जानें तो ठीक। बस 'जनता जनार्दन नामक मतदाता' को पगलाने वाले तरीके का जरा कमाल होना चाहिए। सो, कई तरह के कमाल इन दिनों हो रहे हैं। ........तो सुनिए कि सोनिया जी ने आज कहा..........मनरेगा नहीं, दिस इज रांग वर्ड, महात्मा गांधी नरेगा बोलिये...यह कहते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी रायबरेली में जिला निगरानी व सर्तकता समिति की बैठक में अधिकारियों को योजना का सही नाम लेने की नसीहत देती हैं। बैठक की अध्यक्षता करते हुए सोनिया केन्द्र सरकार की योजनाओं के अमल पर लापरवाही पर अफसोस जताती हैं। वह कहती हैं कि योजना में गड़बड़ियों की व्यापक स्तर पर सोशल आडिट होनी चाहिए। धांधलियों के बारे में जनता को भी पता चलना चाहिए। बैठक में कांग्रेस विधायकों आरोप लगाते हैं कि राज्य सरकार जिले की प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजनाओं का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को नही भेज रही है। आदि-आदि। बैठक की शुरूआत में रायबरेली के डीएम चरनजीत बख्शी जैसे ही मनरेगा का जिक्र करते हैं, सोनिया टोकते हुए कहती हैं कि मनरेगा कोई शब्द ही नही है। इसके बाद वह नरेगा में जॉब कार्ड के लिए रिजेक्ट किये गए 16 हजार फार्मों पर भी एतराज करते हुए रिजेक्ट प्रार्थना पत्र विकास विभाग से तलब कर लेती हैं। और कहती हैं कि वे खुद इस बात की जांच करेगीं कि जॉब कार्ड के प्रार्थना पत्र क्यों रद्द किये गए! ये बड़ी मुश्किल बात हो जाती है। भ्रष्टाचार को सींचने वाले कथित हलालखोर (?) बाहर सूंघते रहते हैं कि अंदर क्या चल रहा है! सोनिया नरेगा में सिर्फ 5 प्रतिशत महिलाओं को काम दिये जाने पर भी नाराजगी जताती हैं। कहती हैं कि योजना में कम से कम 33 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी होनी चाहिए। यह चेतावनी दिल्ली पहुंच जाती है। लखनऊ भी। पटना भी। लालू-मुलायम उधर जो हैं। संभव है कोलकाता तक पहुंच गई हो। लेकिन ममता बनर्जी अपने सांसद कबीर सुमन को लेकर अचानक अचंभित और हैरान हैं। जितनी की रेल बजट पर दादा की नाफरमानी से परेशान नहीं थीं। आखिर क्यों? सियासत की परिभाषा महादेवी वर्मा बहुत पहले बयान कर चुकी हैं। सो, रायबरेली में आज संप्रग सुप्रीमो की करीब पांच घटें चली बैठक में हर योजना की अलग-अलग समीक्षा की गई। बैठक में जिले के विधायक, जिला पंचायत सदस्य व ब्लाक प्रमुख मौजूद थे। बैठक में केन्द्र सरकार की मदद से बन रही सड़कों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना व परिवारिक लाभ योजना पर गहन चर्चा की गई। बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने राजीव गांधी ट्रस्ट की ओर से बनाए गए गेस्ट हाउस का लोकार्पण भी किया। उत्तर प्रदेश में लोकार्पण?? संदेश मायावती तक पहुंच चुका है। पुल नहीं, गेस्ट हाउस था, कोई बात नहीं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी के नीचे के स्तर की बात है। ....और इस बीच पता चलता है कि 'राष्ट्रीय दल और क्षेत्रीय दल' नामक शीर्षक सांसद अमर सिंह के बहुचर्चित ब्लॉग पर पिछले पांच दिनों से झूल रहा है। क्षत्रिय महासभा, सांसद जया बच्चन, पूर्व सांसद अमिताभ बच्चन आदि प्रकरणों ने इतना कोहरा बिछा दिया है कि लिखने की फुर्सत ही नहीं मिल रही। सपा से कांग्रेस तक इतने ताने-बाने हैं कि बोलने और लिखने का तारतम्य न चाहकर भी बड़े भद्दे तरीके से उलझ गया है।
उफ्, ये राजनीति!!!

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