Wednesday, March 31, 2010
फिर तो लालू की खुशी का ठिकाना नहीं!
(sansadji.com)
दल छोटा है तो क्या हुआ, दिल्ली तो है। दिल्ली का दिल बहुत बड़ा है। औरों के लिए हो, न हो, सांसदों के लिए इतना बड़ा है कि अपुन पार्टी में तीन-चार सांसद भी हों तो चलेगा। संपदा निदेशालय जो है। दे देगा पटेल हाउस में कोई-न-कोई ठीया। ऐसी ही सूचना पिछली 15 मार्च को नमूदार हुई है, जो मुई 31 मार्च को मीडिया के हाथ लगी। तो पता चला है कि छोटे राजनीतिक दलों को फायदा पहुंचाने वाले एक निर्णय में सरकार ने दिल्ली में उन क्षेत्रीय दलों को दफ्तर के लिए स्थान आवंटित करने का फैसला किया है, जिनके कम से कम चार सदस्य संसद के किसी भी सदन मे हों। इससे राजद की खुशी का ठिकाना नहीं है। थोड़ी-बहुत खुशी इससे रामविलास पासवान को भी हो सकती है। भले झोली में झक्कास कंगाली हो। तो संपदा निदेशालय ने 15 मार्च को जारी की थी सूचना कि केवल उन मान्य राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों के नाम पर विट्ठलभाई पटेल हाउस में दफ्तऱ-आवास के आवंटन के लिए विचार किया जा सकता है, जिनके कि कम से कम चार सदस्य संसद के दोनों सदनों में हों। सो, तो हैं ही कई के। इससे पहले यह प्रावधान संसद के दोनों सदनों में कम से कम सात सदस्यों वाले दलों के लिए लागू था और चार मई 2001 के कार्यालय आदेश में इसका जिक्र किया गया था। इस कदम से गिने-चुने दो-तीन सांसदों वाले रालोद और इससे थोड़ी ज्यादा सांसदों वाले जनता दल-सेकुलर एवं नेशनल कांफ्रेंस को फायदा हो सकता है। इस फैसले से लालू प्रसाद को फायदा तय माना जा रहा है, क्योंकि अगले कुछ महीनों में राज्यसभा में इसके सदस्यों की संख्या कम होने पर इसके पास वीपी हाउस में पहले से ही मौजूद कार्यालय बना रह सकता है। बने रहना चाहिए। महिला आरक्षण विधेयक आ रहा है। परमाणु विधेयक आ रहा है। शिक्षा नामक विधेयक आ रहा है.......आदि-आदि। चलो ठीक ही हुआ। भगवान सबका भला करे। संसद जो है अपने देश की!
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