Friday, April 2, 2010

जद यू में घमासान चालू आहे, सांसद तिवारी बोले- ललन को मना लूंगा


(sansadji.com)

बिहार और झारखंड में अंदरूनी कलह से जूझ रही जनता दल (युनाईटेड) अब राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह और प्रभुनाथ सिंह जैसे पार्टी के असंतुष्टों के साथ मेलमिलाप की राह पर चल पड़ी है। पार्टी के प्रवक्ता सांसद शिवानंद तिवारी ने आज कहा कि लल्लन और अन्य असंतुष्ट नेताओं के साथ मेलमिलाप के लिए ईमानदार और ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। लंबे समय से लल्लन के करीबी माने जाने वाले तिवारी ने उनसे व्यक्तिगत संपर्क रखने का हवाला देते हुए कहा कि मुझे लगता है कि मैं उन्हें समझाने में कामयाब हो जाऊंगा। मौके पर मौजूद जदयू के प्रदेश अध्यक्ष विजय चौधरी ने कहा कि इस संबंध में आगामी छह अप्रैल को वरिष्ठ नेताओं के साथ एक बैठक भी आहूत की गई है। हालांकि उन्होंने लल्लन और प्रभुनाथ सिंह द्वारा दो मई को राजद नेता अखिलेश प्रसाद सिंह, नागमणी, शंभुनाथ श्रीवास्तव और निर्दलीय सांसद दिग्विजय सिंह के साथ मिलकर ‘महाकिसान पंचायत’ का आयोजन करने की आलोचना भी की।
बिहार जदयू में कलह कोई नई बात नहीं है। अप्रैल 2008 में सत्ताधारी जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के नवनियुक्त उपाध्यक्ष मोनाजीर हसन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उसी सप्ताह उन्हें राज्य के मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। हसन मुख्यमंत्री नीतिश कुमार द्वारा मंत्री पद से हटाए जाने से नाराज थे। नीतिश ने मंत्रिमंडल से हटाए जाने के तुरंत बाद उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया था। हसन ने कहा था कि उन्होंने राज्य के 8.3 करोड़ जनसंख्या में 16.5 प्रतिशत मुसलमानों की दयनीय स्थिति के विरोध में इस्तीफा दिया। नीतिश कुमार की सरकार ने भी राज्य के मुस्लिम समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ नहीं किया। हसन के इस्तीफे से राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने के नीतिश के प्रयास को झटका लगा था। नीतिश ने उन दिनों सरकार के कामकाज में सुधार के लिए 10 मंत्रियों को मंत्रिमंडल से हटा दिया था और उनकी जगह पर 19 नए मंत्रियों की नियुक्ति कर ली थी। इसके बाद नीतीश कुमार के खास कहे जाने वाले प्रदेश जदयू अध्यक्ष और सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह नाराज हो गए। उन्होंने पार्टी में लोकतांत्रिक अभाव का मुद्दा उठाते हुए प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश कर दी। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव से उन्हें पदमुक्त करने का अनुरोध किया। उनकी शिकायत थी कि दल में बाहर से आने वालों को अधिक महत्व मिल रहा है जबकि पुराने लोग उपेक्षित हैं। लोकसभा चुनावों में नीतीश कुमार से रिश्तों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के निशाने पर रहे और चर्चाओं के केन्द्र बने ललन सिंह हालांकि पार्टी में बने रहे। ललन का कहना था कि पार्टी में लोकतंत्र की स्थापना के लिए हरसंभव संघर्ष करेंगे। शरद यादव का कहना था कि पार्टी की बात पार्टी के अन्दर ही समझाएंगे। उन्होंने नई दिल्ली में स्वीकार किया था कि दल के अंदर बहुत कुछ ठीक-ठाक नहीं है। ललन सिंह लंबे समय से नाराज चल रहे थे। उनकी तात्कालिक नाराजगी पार्टी से बाहर जा चुके नेता उपेन्द्र कुशवाहा की फिर से सम्मानजनक वापसी बताई जा रही थी। कुशवाहा पिछले जदयू में वापस लौटे और नीतीश कुमार ने उन्हें खासा महत्व भी देना शुरू किया। सरकार और संगठन में ललन सिंह की जबर्दस्त चलती रही थी, लेकिन नीतीश ने जब उन्हें महत्व देना छोड़ दिया, सरकारी पदों पर पदस्थापन और नियुक्तियों में उनके सुझाव नहीं माने, अपनी मर्जी से पसंदीदा अफसरों और दूसरे नेताओं को महत्व दिए, राजद तथा दूसरे दलों से आए पिछड़ी और अतिपिछड़ी जाति के नेताओं को महत्वपूर्ण ओहदे देने शुरू किए, खासकर सवर्ण जातियों की उपेक्षा की जाने लगी तो ललन सिंह को अध्यक्ष पद से अलग होना पड़ा। इसके बाद पार्टी में एक बार फिर उस समय सांगठनिक नैया डांवाडोल हो चली, जब महिला आरक्षण बिल के मुद्दे पर शरद और नीतीश पक्ष-विपक्ष बन गए। इससे शरद यादव को झटका लगा। पार्टी मीडिया की सुर्खियां बनी। नीतीश ने शरद के लोगों की अनदेखी कर बिहार में रैली कर डाली। इससे मनोमालिन्य और बढ़ गया। बिहार के साथ ही झारखण्ड जद यू में भी कलह खुल कर सामने आ गई है। तमार से विधायक राजा पीटर प्रदेश अध्यक्ष दल के नेता नहीं बनाए जाने से नाराज चल रहे हैं। नाराज़गी ऐसी कि इस बार बजट सत्र में एक बार भी सदन नहीं गए। मान मनव्वल का लम्बा दौर चला, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। कई बार बैठकें हुईं, लेकिन नहीं माने। पार्टी के कई पदाधिकारियों ने केंद्रीय नेतृत्व को पत्र भेज कर राजा पीटर को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की भी मांग की। राजा पीटर ने कहा कि उन्हें अब जाकर शीर्ष नेताओं से विधायक दल का नेता बनाए जाने का आश्वासन मिला है। वो मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो की कार्यशैली से नाराज हैं। ये वही राजा है जिन्होंने तमार विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को हरा कर इतिहास रच दिया था।

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