Thursday, March 18, 2010

सड़क से संसद तक बगावत के बगूले




(sansadji सांसदजी डॉट कॉम से)

पिछले एक सप्ताह पर ही नजर दौड़ा लें, अच्छी-खासी फेहरिस्त मिल जाएगी ऐसे नामों की, मीडिया की सुर्खियां बने, पार्टियों की किरकिरी बने, देश की मुश्किल बने, और जाने क्या-क्या! बात शत्रुघ्न सिह्ना के बहाने शुरू होती है और पश्चिम बंगाल के तृणमूल कांग्रेस सांसद कबीर से लगायत बिहार के सांसद एजाज अली, यूपी के आमिर आलम तक पहुंच जाती है। बेचारे एजाज अली की तो रुपये की माला ही लुट गई। पहले संसद में बगूले रेल बजट, आम बजट के बर्तनी पर मुखर होते हैं, फिर महिला आरक्षण बिल पर, सांसदों के निलंबन पर, कांग्रेस-भाजपा-माकपा की एका बनाम राजग-सपा-जदयू की अजीबोगरीब जुगलबंदियों पर। संसद चलती रहती है, बगूले फूटते-फैलते रहते हैं, देश सब टुकर-टुकर बर्दाश्त करता चलता है। इसी बीच अचानक उत्तर प्रदेश से बसपा सांसदों को मुख्यमंत्री मायावती का बुलावा आता है। बीते बुधवार की सुबह मीटिंग होती है और बहनजी फिर नोटों की माला ओढ़े मीडिया से रू-ब-रू होती हैं। खुदा खैर करे कि इस बीच संसद नहीं चल रही होती है। तो बसपा सांसदों को कहा जाता है कि जाइए, आप लोग जिले-जिले पर्दाफाश करिए, विपक्ष माला को हौवा बना रहा है, मीडिया हमें हांकना चाहता है, 'अपनी जनता' को समझाइए कि ये ठीक नहीं हो रहा है। मैनपुरी के सांसद और सपा सुप्रीमो, पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यह सब सुनकर तिलमिला जाते हैं। लेकिन करें क्या! वैसे भी बहुत सारे लोग तिलमिला रहे हैं। दिग्विजय सिंह वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी से कानाफूसी कर आए, कोई बात नहीं बनी। कौन जांच करे माला वाले नोटों की। संसद में ढेरों फच्चर फंसे पड़े हैं, पहले कांग्रेस इसे देखे कि यूपी की आंय-बांय में जान घुसेड़े। मुलायम कहते हैं 12 अप्रैल से पहले जांच करा लीजिए, नहीं तो संसद में मेरे सवालों का जवाब देना पड़ेगा। कांग्रेस जानती है कि तोहमत लगाने वालों से भी तो कई सवाल जुड़े हैं, जो उसकी 'खलत्ती' में ठंडे पड़े हैं। वैसे भी सपा-बसपा के बगूले उत्तर प्रदेश में दशकों से फूट रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की छाती थोड़ी ठंडी पड़ी है। अमेठी के सांसद राहुल बाबा कुछ नहीं बोल रहे हैं। बस्स, अपने काम-से-काम। नहीं फोड़ने फालतू के बगूले-फगूले। वैसे ही घर में आफत कम है क्या? सांसद सत्यव्रतजी सुस्त पड़े हैं। पवार साहब रह-रहकर कभी दिल्ली, कभी मुंबई में बाल ठाकरे के घर तक कुछ-न-कुछ बोल आ रहे हैं। ममता दीदी अलग बगूले फोड़ रही हैं। बहन दासमुंशी (प.बंगाल की कांग्रेस सांसद) को जगाना पड़ा है। समर्थन करते-करते बिहार के सांसद लालूजी ऐसा गरजने-तरजने लगे हैं कि पार्टी की कुछ समझ में नहीं आ रहा, उनको आखिर हो क्या गया है। पहले तो इतना नहीं कूदते थे। किसी ने बता दिया है, अरे बिहार में चुनाव आ रहे हैं न। सो, मुंहजुबानी धुलाई-पोंछाई चल रही है। पिछले चुनाव में सिर्फ चार सांसद लेकर आए हैं। विधानसभा उप चुनावों में थोड़ा सा दम बंधा है, तभी से होकड़ने लगे हैं। वैसे भी जातीय जुगलबंदी आज के राजनीतिक जमाने में बहुत बड़ी चीज होती है। जहां चार यार मिल जाएं, वहीं.........शरद यादव, मुलायम यादव, लालू यादव। पूरी संसद हिलाए पड़े हैं। नीतीश जी भौचक्के हैं। अरे, ये क्या हो रहा है भाई!! बिहार के जदयू सांसद ललन ने शरद भैया को चिट्ठी लिखी है। संभालिए, नहीं तो सब डूब जाएगा। तहस-नहस हो जाएगा।इन्हें यूपी के सांसद अमर सिंह से कम मत समझिए। फिर मत कहिएगा कि बताया नहीं। नीतीश जी का हवा-बतास बड़ी तेजी पर है। ऐसे ही दिल्ली में मौनी बाबा बने बैठे रहे तो इधर ई बिहार में विधानसभा चुनाव तक सब सफाचट हो लेगा। बिहार में और भी कई तरह के बगूले फूट रहे हैं। उसी में आज गड़गड़ाकर शत्रुघ्न का गोला गिरा है भाजपा के माथे पर। गोले से यशवंत रागिनी छिटकी है। तो मामला ये है। यहां भी सिह्नावाद चल रहा है। उधर से दो ही सिह्ना सांसद, दोनों जुदा-जुदा कैसे रह सकते हैं। राजस्थान में टीम गडकरी की चांदनी जबसे छिटकी है, ज्यादातर भाजपा सांसद बाएं-दाएं देख-जान कर आपस में ही बगूले फोड ले रहे हैं। यूपी की बात पर गाजियाबाद के सांसद राजनाथजी चुप हैं। मीडिया ने पुत्र पंकज सिंह की बात बो दी है। कह दिया है कि वो तो वरुण गांधी के दोस्त हैं। यूपी में फहरना है तो कोई तो जुगलबंदी बनानी पड़ेगी अभी से फूंक-फूंक कर। सोनी जी नाराज होते हैं तो हों। ये सांसद विनय कटियार के बारे बात करने का टाइम नहीं है। चुप रहिए। बगूले फोड़ना है तो जाकर संसद में फोड़िए। सुषमा जी से मिल लीजिए। सुषमा जी वैसे ही नाराज हैं कि गडकरी जी ने बिना उनसे कुछ पूछे-जांचे पताका फहरा दी। बगूले तो मेरे सिर फूटेंगे। खैर, जो चले नहीं, वो बहस कैसी। तो बाहर बहस चल रही है कि ये संसद में क्या हो रहा है। भीतर बहस हो रही है कि लखनऊ में, बिहार में, पश्चिमी बंगाल के जंगलों में क्या हो रहा है। छिः। महंगाई पर बात करने की फुर्सत नहीं। लेकिन है। भाकपा सांसद डी. राजा कल बड़ी फुर्सत और तसल्ली से महंगाई पर बोले। सरकार की नीति, नीयत दोनों ठीक नहीं हैं। अब नहीं है तो नहीं है, सब पचास साल पहले से जानते हैं। करना क्या है, ये तो बताइए। चिरौरी-विनती तो बहुत हो चुकी। आप ही आह्वान करिए न कि जनता मुनाफाखोरों, जमाखोरों के खिलाफ सड़क पर उतरे। महंगाई के खिलाफ जाने कितने बगूले रोज फुस्स हो रहे हैं। कांग्रेस को सब पता है। बात करिए 12 अप्रैल की। प्रधानमंत्री जी फोन कर-करके थक गए। भाजपा सुन ही नहीं रही। आने तो दीजिए परमाणु क्षतिपूर्ति विधेयक। महिला आरक्षण विधेयक पर हमारा कुनबा बिखर गया था, अब फिर जुटाना है। सांसद एवं विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने आगाह कर दिया है। असली बगूले तो 12 अप्रैल से फूटने हैं। अमेरिका के हिसाब से सोचने पर हमे क्या फायदा होना है,.... ऐं!!

1 comment:

Ghost Buster said...

एक ही पैराग्राफ़ में इतना सब कुछ. पढ़ना शुरु करने की हिम्मत ही नहीं हुई. माफ़ी.