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(sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से)
अंदेशा गहराता जा रहा है कि दादा-दीदी की रार कहीं विस्फोटक न हो जाए। लेकिन राजनीति के जानकार कहते हैं कि सारे शब्दवेधी वेस्ट बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों और वामदलों को ध्यान में रखते हुए चले जा रहे हैं। बहरहाल, ये रिहर्सल कहीं दोनों को भारी न पड़ जाए और चुनाव बाद माकपा एक बार फिर की सत्ता की राह पकड़ ले। रेलमंत्री ममता बनर्जी और वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की तनातनी पश्चिमी बंगाल में ही नहीं, केंद्र की सियासत में भी कांग्रेस के लिए मुफ्त की मुश्किल बनती जा रही है। पहले रेल बजट को लेकर वित्तमंत्री की जिच, फिर पीएम का अंदरूनी तौर पर हस्तक्षेप, फिर आम बजट के बाद दीदी की नाराजी और कोलकाता चले जाना, तृणमूल कांग्रेस के पार्टी प्रवक्ता का बजट मुद्दे पर दो टूक टिप्पणी और ममता की नाखुशी हवाला, फिर पश्चिमी बंगाल में पार्टी कार्यकर्ताओं को महंगाई विरोधी आंदोलन का रास्ता पकड़ने के लिए आगाह करना, और इस मुखर विरोध के शमन के लिए प्रियरंजन दासमुंशी की सांसद-पुत्री दीपा दासमुंशी का तृणमूल विरोधी बयान, ये सब बातें दोनों तरह की कांग्रेस के बीच किसी नए दंगल का पूर्वाभास लगती हैं। आज ममता बनर्जी के एक बयान से दोनों दलों के मन में पलती बेचैनी से एक मामूली धुंध छंटती जान पड़ी। कोलकाता में रेल मंत्री ने कहा कि उनका पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनने का इरादा नहीं है। वो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहतीं। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस सूत्रों का अंदेशा है कि इसीलिए ममता अपनी पार्टी के पक्ष में हवा बनाने के लिए पेट्रोलियम मूल्य-वृद्धि को ज्यादा तूल दे रही हैं। ममता ये भी कह जाती हैं कि मैं क्लर्क के तौर पर काम करना पसंद करती हूं और मुझे अधिकारी बनने का कोई शौक नहीं है। यदि जनता प्रणब मुखर्जी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना चाहती है तो मुझे उनके अधीन बतौर क्लर्क काम करने में कोई आपत्ति नहीं होगी। कांग्रेस से किसी प्रकार के मतभेद का उनका कोई इरादा नहीं है। वह तो बस इतना चाहती हैं कि आम आदमी को महंगाई की मार से बचाने के लिए प्रधानमंत्री पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों को वापस ले लें। उधर, वामदल कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच हो रही एक-एक हरकत पर नजर गड़ाए हुए हैं। महंगाई के खिलाफ नई दिल्ली में 12 मार्च को होने वाली रैली के लिए वामपंथी दलों ने अपने कार्यकर्ताओं को विशेष ट्रेनों की बजाय बसों से भेजने की योजना बनाई है। कहा तो जाता है कि रेल मंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के संभावित दुष्प्रचार और ऐन मौके पर विशेष ट्रेनों की अनुमति वापस लिए जाने की आशंका के चलते वे ऐसा कदम उठा रहे हैं। लेकिन इसके सियासी संदेश कुछ और ही हो सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि विशेष ट्रेनों के लिए बुकिंग करानी होती है। इसके लिए माकपा और भाकपा नेता तैयार नहीं हैं। माकपा सूत्र कहते हैं कि ट्रेनों से दूरी बनाने के दो कारण हो सकते हैं। बातचीत का मतलब किराए में रियायत नहीं है, लेकिन हमें यकीन है कि तृणमूल इसे गलत तरह से प्रचारित करेगी कि रैली को सफल बनाने के लिए वामदल रेलवे के आगे झुक गए हैं। हम उन्हें कोई भी मौका नहीं देना चाहते। मान लीजिए कि हम बातचीत के बाद विशेष ट्रेन बुक करते हैं और अंतिम समय पर अनुमति वापस ले ली जाती है तो इससे पूरी रैली गड़बड़ा जाएगी। इसलिए बेहतर है कि हम अपने कैडरों के लिए बसों का इंतजाम करें। बात तो ठीक है लेकिन कहते हैं कि वेस्ट बंगाल में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और वामदलों का त्रिकोण सारी गतिविधि आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर तेज करता जा रहा है।
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nice
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