Friday, March 5, 2010

डिप्टी स्पीकर हाउस में सांसदों का जमावड़ा

जागो, दलितों जागों......सांसदों ने जगायाः ...... चार मार्च कीशाम। उधर, संसद चल रही थी, इधर एक और संसद। साझाकांफ्रेंस। मुद्दाः निजी क्षेत्र में एससी/एसटी की आनुपातिकहिस्सेदारी मांग। अब देखिए सदन का व्यस्त समय होने केबावजूद कितने सांसदों ने यहां शिरकत की। कांग्रेस महासचिवऑस्कर फर्नांडिस ने प्रोग्राम की अध्यक्षता की। इनके अलावापूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया, योजना आयोग केसदस्य नरेंद्र जाधव, सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो की सदस्यवृंदा करात, सीपीआई सांसद डी. राजा, कांग्रेस सांसद प्रदीपटमटा एवं रवनीत सिंह बिट्टू, सपा सांसद शैलेंद्र कुमार, घनश्याम अनुरागी एवं मिथिलेश, भाजपा सांसद अर्जुनराम मेघवाल एवं वीरेंद्र कश्यप, सांसद मोहन जेना (बीजूजनता दल), योजना आयोग के सदस्य नरेंद्र जाधव आदि मौजूद रहे। इससे निश्चित ये संकेत मिलता है कि कांफ्रेंसमहत्वपूर्ण थी और दलित वोट बैंक का इच्छुक वह कोई भी सांसद इसमें शामिल होने से चूकना नहीं चाहता था, जिसे कि यहां आमंत्रित किया गया था। यही नहीं, कांफ्रेंस में योजना आयोग के सदस्य भी यहां नमूदार रहे। इसपॉलिसी डॉयलॉग का आयोजन नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ दलित ऑर्गेनाइजेशन्स (नैक्डोर), जो देश में सक्रियदलित संस्थाओं, एससी/एसटी इम्पलाइज एसोसिएशंस दलितों के सामुदायिक संगठनों का राष्ट्रीय मंचहै, की ओर से किया गया। कार्यक्रम में चर्चा का केंद्रीय विषय रहा अर्थव्यवस्था में पिछड़ों की भागीदारी, दृ्टिकोण, कार्यक्रम और चुनौतियां। इस पॉलिसी डॉयलाग का उद्देश्य दलितों एवं पिछड़े वर्गों से आने वाले संसदीय, गैरसंसदीय जनप्रतिनिधियों को सरकारी-गैरसरकारी आरक्षण के हालात तथा हाशिये पर पड़े संसाधनहीन-बेरोजदार करोड़ों-करोड़ वंचितों के हालात से आगाह कराना था। साथ ही इस बात से अवगत कराना कि निजी क्षेत्रके संसाधनों में दलितों-पिछड़ों की हिस्सेदारी तथा आरक्षण सुनिश्चित कराना अब बहुत जरूरी हो चला है। इस परऔर अधिक चुप नहीं बैठा जा सकता। आरक्षण नीतियों का लाभ सिर्फ देश की सरकारी सेवाओं में ही संभव हो पारहा है। निजीकरण के विस्तार से सार्वजनिक क्षेत्र में अब ऐसे अवसर सिमट रहे हैं। अतः जरूरी हो गया है किनिजी क्षेत्र में दलितों के लिए आरक्षण तथा संसाधनों में साझेदारी का मसला जल्द से जल्द तय किया जाए। चर्चामें मांग की गई कि अर्थ व्यवस्था और सामाजिक न्याय के बीच की दूरी क्रमशः कम करते हुए इसे हमेशा के लिएसमाप्त किया जाना चाहिए।
1200 इसके अलावा कार्यक्रम में यह भी मांग उठी कि देश के प्रत्येक दलित-वंचित व्यक्ति के लिए सम्मानजनक वेतनपर साल में कम से कम 250 दिन की आजीविका की गारंटी हो। न्यूनतम मजदूरी दर को घरेलू प्रयोग की चीजों कीमूल्य वृद्धि से जोड़ा जाए। सरकारी नौकरियों एवं क्षेत्रों में आरक्षण कोटा पूरा किया जाए। सेना, न्यायपालिका मेंहरेक स्तर पर आरक्षण व्यवस्था लागू हो। दलित प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण कोटे से 50 प्रतिशत की सीमाहाटाई जाए और आनुपातिक आरक्षण सुनिश्चित किया जाए। इन समुदायों के नौजवानों को काबिलियत केअनुसार बेरोजगारी भत्ता दिया जाए। दलित समाज के लोगों को प्रशिक्षित कर स्वरोजगार से जोड़ा जाए। विकासकार्यक्रम में दलित संगठनों को शामिल किया जाए। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के विकास के लिए जोकार्यक्रम बने, उसमें सिर्फ कागजी खानापूरी कत्तई रोकी जाए। लघु उद्योगों को टैक्स के दायरे से बाहर रखा जाए।मुस्लिम दस्तकारों के विकास के लिए सरकार उचित और जरूरी कदम उठाए। देश के संसाधनों पर चलने वालेनिजी क्षेत्र को देश के सामाजिक सरोकारों से मुक्त नहीं किया जा सकता। लगातार सार्वजनिक क्षेत्र सिमटता जारहा है और निजी क्षेत्र का संसाधनों पर एकाधिकार होता जा रहा है। इस विकास प्रक्रिया से सबसे ज्यादा दलितोंऔर पिछड़े वर्गों के आर्थिक हितों को चोट पहुंच रही है। आज के हालात में जरूरी हो गया है कि निजी क्षेत्र औरसंसाधनों में दलितों की आनुपातिक हिस्सेदारी और आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।



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