Tuesday, June 3, 2008

मुहफट की चंद लुभाइयां

इक्का.......

झूठ-साच की
धुनी रमाने,
एक फलाने,
सूद कमाने,
चले शहर कलकत्ता।

रुपया-पैसा खूब कमाकर
पूंछ की तरह मूंछ बढ़ाकर
मंकी-कट कंटोप लगाकर
और एक दिन कूट-कुटाकर
घर को आये
मुंह बनाये
लगे बीनने लत्ता।...

पीछे से बंगालिन आयी
संग में मोड़ी-मोड़ा लायी
बिरादरी में छिड़ी लड़ाई
हाथापाई, मार-पिटाई।
मेहरी-लरिका आगे-आगे
फिर से गांव छोड़कर भागे
ठाट-बाट की
गई गांठ की
हुलिया हुआ चकत्ता।....


दुक्का....

ओक्का-बोक्का
तीन चलोक्का।

एक चलोक्का दिल्ली में,
अपने पिल्ला-पिल्ली में,
मस्त है डंडा-गिल्ली में,
छमछम नाचै टीवी में,
पब्लिक मरै गरीबी में...तुनतुन तारा।

एक चलोक्का अफसर है,
जैसे लाल टमाटर है,
लाल हुआ कमाकर है,
डाकू जैसा सुंदर है,
खुला बैंक में लॉकर है....तुनतुन तारा।

एक चलोक्का साधू है,
मन का बड़ा सवादू है,
लगा पेंच-में-पेंच रहा,
जमकर दमड़ी खेंच रहा,
छुरा-तमंचा बेंच रहा,....तुनतुन तारा।

2 comments:

हरिमोहन सिंह said...

अब क्‍या कहे ! चौथे बैठे हम है

महेन said...

मज़ेदार लिखते हैं आप मगर शायद सिफ़ मज़े के लिये नहीं लिखते। जैसी उम्मीद की थी वैसा ही पाया।
शुभकामनाएं।