Friday, March 13, 2009

दुनिया भर की लड़कियां


1
लड़कियां
लड़ रही हैं,
लड़कियां
रच रही हैं दुनिया को,
सब कुछ संवार रही हैं
लड़कियां,
कोई नहीं पहुंच पाता
उनकी उड़ानों के आखिरी सिरे तक,
लड़कियां
हर समय की रंग हैं,
लड़कियां
हर सुबह की लौ होती हैं,
लड़कियां वक्त की,
शब्द की,
अर्थ की,
गूंज-अनुगूंज की,
मुस्कराती चुप्पियों
और पूरी प्रकृति की
सबसे खूबसूरत
इबारत हैं,
ऐसा-वैसा कुछ कभी न कहना
किसी लड़की बारे में.


2
लड़किया
गांव की, शहर की,
आंगन की, स्कूल की,
राह की,
रात-दिन की,
न हों तो खाली और गूंगी हो जाती है
हंसी-खुशी
दुख-सुख
बोलचाल की दुनिया,
लड़कियां
कहीं दूर से आती हुई
हंसी की तरह बजती हैं रोज-दिन,
उस शायर ने भी
कहा था एक दिन कि..
वह घर भी कोई घर है
जिसमें लड़कियां न हों.


3
लड़कियां
जब आंखें झपकाती हैं,
चांद की खिड़कियां खोलती हैं,
पूरब की किरणों में महकती हैं,
पश्चिम को अगले दिन के लिए आश्वस्त करती हैं,
केसर की तरह पुलकती हैं,
आईने की आत्माओं में प्रतिबिंबित होती हैं,
अंतस को गहरे कहीं छू-छूकर भाग जाती हैं,
सब-कुछ सुनती-सहती
और गीतों की तरह गूंजती रहती हैं,
आंसुओं की तरह बरस कर भी
इंद्रधनुषाकार पूरे क्षितिज पर छा जाती हैं,
आंख मूंदकर
युगों का गरल पी लेने के बाद
झूम-झूम कर, चूम-चूम कर नाचती हैं,
जरा-जरा-से इशारों पर
कटीली वर्जनाओं,
लक्ष्मण रेखाओं के आरपार
जोर-जोर-से हंसती-खिलखिलाती हैं
लड़कियां.


4
आत्मा के रस में,
अपार संज्ञाओं से भरे संसार में,
सन्नाटे की चौखट पर,
शोर की सिराओं में,
संग-संग चलती हैं, होती हैं लड़कियां,
सांसों में,
निगाहों में,
बूंदों और मोतियों में,
सादगी की गंध
और शाश्वत सजावटों में,
ऊंची-ऊंची घास की फुनगियों पर,
ग्लेशियर की दूधिया परतों में
कितने तरह से होती हैं लड़कियां.
दिशाओं से पूछती हैं
और आगे बढ़ जाती हैं,
हवाओं से हंस-हंस कर बतियाती हैं
और चारों तरफ फैल जाती हैं
लड़कियां जाने कितनी तरह से
जाने कितनी-कितनी बार
रोज सुबह-शाम
दिन भर
चांद-सितारों के सिरहाने तक.


5 ये हैं
समय के पहले से
समय के बाद तक के लिए
हमारी अमोल निधियां,
हमारी अथाह स्मृतियां,
हमारी सानेट और चौपाइयां,
हमारी दोहा-छंद-कवित्त,
हमारी समस्त चेतना की शिराएं,
हमारी बहुरूपिया अवास्तविकताओं की
सबसे विश्वसनीय साक्षी
हम-सब की लड़कियां.
सोचता हूं कितना लिखूं, लिखता ही रहूं
इनके
...अपर्णा, आयुषी, रंजना, रोशनी, खुशी, वंदना
आदि-आदि के लिए
इन लड़कियों के लिए.
शायद
कभी न पूरी हो सके
लड़कियों पर
लिखी कोई भी कविता!

21 comments:

L.Goswami said...

तारीफ में शब्द कम पद गएँ हैं ..बहुत सुन्दर!!

आवारा प्रेमी said...

समय के पहले से
समय के बाद तक के लिए
हमारी अमोल निधियां,
हमारी अथाह स्मृतियां,
हमारी सानेट और चौपाइयां,
हमारी दोहा-छंद-कवित्त,
हमारी समस्त चेतना की शिराएं,
हमारी बहुरूपिया अवास्तविकताओं की
सबसे विश्वसनीय साक्षी
हम-सब की लड़कियां.
सोचता हूं कितना लिखूं, लिखता ही रहूं

इस तरह भी लड़कियों के बारे में लिखा जा सकता है.आपके शब्दार्थ को नमस्कार.

सीता खान said...

हमारी दुनिया पर कितनी सुंदर कविता है.

न हों तो खाली और गूंगी हो जाती है
हंसी-खुशी
दुख-सुख
बोलचाल की दुनिया,
लड़कियां
कहीं दूर से आती हुई
हंसी की तरह बजती हैं रोज-दिन.

mamta said...

बहुत सुंदर रचना ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

मुंहफट भाई
बहुत ही सुंदर कविता है बहुत-बहुत बधाई और हां मेरे ब्लाग पर आपने अपनी टिप्पणी के साथ एक प्रश्न भी किया था मैंने अपनी अल्पबुद्धि के अनुसार उसका उत्तर दे दिया है आप उसे वहीं अपनी टिप्पणी के नीचे की ऒर पढ़ सकते हैं णद्यपि मैं आप को मेल कर देता पर आपका इमेलआइडी नहीं मिला
शेष शुभ
पुनः शुभकामनाएं

समयचक्र said...

बहुत सुन्दर

Unknown said...

हुत बढ़िया भई । कितने सुन्दर स्वरूप दिया आपने कविता में । बधाई

ghughutibasuti said...

इतना कुछ कह दिया अब बस यही कहना बचा है कि
सबकी तरह मनुष्य ही होती हैं लड़कियाँ
देवी नहीं व्यक्ति बनना चाहती हैं लड़कियाँ।
घुघूती बासूती

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचनाएं ..;

मुंहफट said...

घुघूती बासूती जी,
मुझे नहीं लगता कि लड़कियों के मनुष्य होने में किसी को संदेह हो सकता है. (मनुष्य और व्यक्ति शब्द उभयलिंग में इस्तेमाल होते हैं), लड़कियों के बारे में इतना-कुछ कह देना आपको अन्यथा लगा हो तो मेरी पक्षधरता निस्संदेह अब भी अपनी रचना के साथ है.लड़कियों को मनुष्य रहने भर की ईमानदारी से गुंजायश बनती जाए, वही काफी होगा. उन्हें देवी बनाकर पूजना एक तरह की शव-साधना हो सकती है, मनुष्यता की तरफदारी नहीं.और स्त्री आज भी घर-बाहर जिंदगी के दोराहों-चौराहों पर जितने तरह की बटमारियों से जूझ रही है,उसके और उसके स्वाभिमान के लिए ऐसी रचनाएं, मैं नहीं समझता स्वीकार्य नहीं होंगी.

Udan Tashtari said...

वाह जी वाह!! अति उत्तम..आनन्द आ गया-बेहतरीन!!!

हमारी बहुरूपिया अवास्तविकताओं की
सबसे विश्वसनीय साक्षी
हम-सब की लड़कियां.
सोचता हूं कितना लिखूं, लिखता ही रहूं

दिनेशराय द्विवेदी said...

हम लड़कियों को देवी बना कर तो देख चुके हैं। नतीजा सिफर। लड़कियों को इन्सान भर बने रहने दिया जाए, इतना ही बहुत है। सुन्दर कविताएँ हैं। बधाई!

pallavi trivedi said...

bahut sundar kavitaayen...dil ko chhoone wali!

mukti said...

लड़कियों पर इतनी सुन्दर कविता लिखने के लिए बधाई. आपने मेरी कविता पर एक टिप्पणी लिखी है ,उसका उत्तर यहीं दे रही हूँ .ये कविता मैंने एक विशेष सन्दर्भ में लिखी थी. दरअसल,पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में लिंगानुपात औरतों के पक्ष में है .इस पर कुछ लोगों को इतराते देखा तो सोचा कि उनको इस कड़वे सच से अवगत करा दूँ कि हमारे इस क्षेत्र में आज भी ऐसी परिस्थितियां हैं कि मुझे इतनी कड़वी कविता लिखने के लिए मजबूर होना पड़ा .हम लड़कियों को गर्भ में नहीं मारते, बल्कि उनको पैदा करने के बाद कुपोषण और अशिक्षा के अंधेरों में धकेल देते हैं .मैं निराशावादी नहीं हूँ और आपकी कविता पढ़कर खुश हूँ कि आप जैसा सोचने वाले लोग भी हैं भारत में ,पर शायद हकीकत इतनी सुन्दर नहीं .ये मेरी कल्पना नहीं आँखों देखा सच है .

Anonymous said...

महोदय कोरे आदर्श पर न इतराइये /'प्रसाद 'को न दुहराइये/ कृपया यथार्थ पर आइये /हरियाणा -पंजाब को समझाइये /तब लड़कियों पर गीत गाइए .

ghughutibasuti said...

क्षमा कीजिए, मेरी भाषा में कुछ गलती रह गई। मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि आपने बहुत सुन्दर शब्दों में लड़कियों के लिए लिखा, सही भावना से लिखा, अच्छा लिखा, सही कहूँ तो अच्छा लगा। कविताएँ इतनी अच्छी थीं कि मेरा कुछ कहना 'हाथ कंगन को आरसी क्या' वाली बात होती। बस दो पंक्तियाँ मैंने जोड़ीं चित्र को पूरा करने के लिए।
कारण यह नहीं कि मुझे उनके व्यक्ति होने में संदेह है परन्तु यह कि आज भी बहुत से लोग उसे देवी बनाने को तो तुले रहते हैं किन्तु व्यक्ति के अधिकारों को देने से हिचकिचाते हैं।
आशा है कि अब बात साफ हो गई होगी। यदि मेरी टिप्पणी से कोई कष्ट हुआ तो क्षमा कीजिएगा। यदि कोई स्त्री पर सकारात्मक विमर्श भी करे तो मुझे खुशी होती है फिर आपकी कविताएँ तो सकारात्मक से भी अधिक कह रही हैं।
आपने अच्छा किया कि मेरा ध्यान मेरी अधूरी बात कहती टिप्पणी की ओर खींचा।
धन्यवाद।
घुघूती बासूती

अनूप शुक्ल said...

बहुत सुन्दर कवितायें!

Arun Arora said...

लडकिया
प्यारी सी बेटी है
प्यारी सी बहन भी
प्रेयसी भी
प्यारी सी मा भी है
प्यारी सी सीमा भी है .......
इस सृष्टी की जनमदाता भी है
ये वो है जो सीचती है हमारे कल को
जो बनाती है हमारे आज को
ये चाहे तो बदल दे
हमारे आने वाले कल को
बस एक बार सोच तो ले
कैसे ढालना है आने वाले कल को ?

निर्मला कपिला said...

adbhut rachna hai sunder abhivyakti badhaai

Batangad said...

कमाल हैं ये दुनिया भर की लड़कियां

मोनिका गुप्ता said...

मुंहफट भाई,
आपने इस कविता में एक-एक शब्द इतनी सच्चाई से पिरोये है कि उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं हो सकती। लड़कियों के न होने की कल्पना ही हमें असहज बना देती है। लेकिन अफसोस इस बात का है लोग पुत्रप्रेम में आज भी लड़कियों के ही दुश्मन बने बैठे है।