Sunday, March 8, 2009

ननों के यौन शोषण,समलैंगित से भूचाल



सिस्टर जेस्मी ने लिखी है चर्च में यौन शोषण, समलैंगिता पर किताब. बताती हैं, ने मुझेआलिंगन में जकड़ लिया. उसने लाल बाग में प्रेमी जोड़ों को दिखाया. मैं 30 साल की थी. पुरुष शरीर देखने की इच्छा थी. पहले मैंने नहीं देखा था. उस समयलाल बाग में पेड़ों के नीचे जोड़े अंतरंग मुद्रा में बैठे थे. उसकेबाद वह पादरी मुझे शारीरिक प्रेम के लिए उपदेश देने लगा. उसने सहसा ही मुझे जोर से भींच लिया. मेरे स्तनों को मसला और मुझे अपने स्तन दिखाने को कहा. उसने मुझेचारपाई पर धकेल दिया और मुझसे पूछा कि क्या मैंने किसी पुरुष का शरीर देखा है. और उसने अपने कपड़ेउतारने शुरू कर दिए. थोड़ी देर बाद उसने मुझे दूध जैसा द्रव्य दिखाया और मुझे बताने लगा कि किस तरह इसमेंलाखों जीवन छिपे हैं.
जेस्मी लिखती हैं कि धीरे-धीरे मुझे एहसास हो गया कि सिस्टर विमी मेरी ओर ध्यान अधिक देने लगी हैं. वह मुझेकई पृष्ठों के प्रेम पत्र लिखती हैं. जब मैंने जवाब नहीं दिया तो सिस्टर विमी मेरे खिलाफ हो गईं. इस तथ्य को देखतेहुए कि वह काफी प्रभावशाली हैं, मेरे सामने कोई विकल्प नहीं रह गया, मैं कुछ समय तक उसके यौनाचार काशिकार बनती रही. रात को जब सब सो जाते तो सिस्टर विमी अक्सर मेरी चारपाई पर जाती, और सब अभद्रहरकतें करतीं. मैं उसे वह सब करने से रोक नहीं पाती थी. उसने मुझसे कहा कि वह इस बात को लेकर काफीसावधान रहती है कि ऐसे संबंध महिलाओं से ही बनाए.
जेस्मी की किताब इस चर्च जगत में भूचाल मचाए हुए है. जेस्मी अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी हैं. उन्होंने कविताओंकी भी तीन किताबें लिखी हैं. वह त्रिशूर (साइरो-मलाबार) के मशहूर विमला कालेज की प्रिंसिपल रह चुकी हैं. यहभारत का सबसे बड़ा कैथोलिक चर्च है. वह अपनी किताब में बताती हैं कि चर्च में किस तरह वरिष्ठ ननों ने उन्हेंयौन संबंध के लिए मजबूर किया और पादरियों ने उनका यौन शोषण किया. वह बताती हैं कि समलिंगी संबंध अबननों में आम बात हो गई है. मजबूरन इस सबका लिखकर भंडाफोड़ करने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी. किताबमें वह लिखती हैं कि वह जितने भी पादरियों और ननों को जानती हैं, उनमें यौन संबंध थे और वे भ्रष्टाचार में लिप्तथे. विरोध करने पर उन्हें (जेस्मी) जबर्दस्ती मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया. उन्हें लगा कि अब मेरा जीवनखतरे में है. यह किताब प्रकाश में आने के बाद केरल में चर्च के खिलाफ वामपंथियों ने खुली लड़ाई छेड़ दी है.

10 comments:

ab inconvenienti said...

कोई दूध का धुला नहीं है, आखिर ये धर्म के ठेकेदार भी तो इसी रुग्ण समाज के ही सदस्य हैं. सभी बीमार हैं तो इनसे स्वस्थ्य बचाय रखने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

चर्च के साथ साथ आश्रमों, जैन-बौद्ध मठों, मुल्लों के व्यभिचरण के किस्से आम हैं ही.

Unknown said...

चलो शुक्र है कि वामपंथियों को "हिन्दुओं" के अलावा कहीं तो भ्रष्टाचार दिखा…

निशाचर said...

सुरेश जी की बात से सहमत.
करोडों डालर के दान से खड़े हो रहे ये चर्च आखिर धर्मं को कब तक बचाते....

निशाचर said...

कमेन्ट मोदेरेशन, आपातकाल के सेंसर जैसा लगता है.... यदि आप आलोचना से नही घबराते तो कृपया इसे हटा दे.... अन्यथा पहले ही लिख दें कि "केवल अनुकूल टिप्पणिया ही मान्य होंगी"

"अर्श" said...

bachpan me maine padha tha ke satya bolo priya bolo,apriya satya mat bolo... agar aaj ye saabit ho gaya hai ke apriya ho ya priya satya to satya hai use bolo aur barabar bolo...

yahi hai wo satya ke pichhe ka satya.. dukhdai raha ye saara jiwan...


dukhi hun...

Anonymous said...

अब क्या कहोगे ? हर मिनार के नीचे गंदगी छिपी है

Sudhir (सुधीर) said...

पूर्व में चर्च इसी तरह के कई विवादों से घिरे रहें हैं...चाहे वो छोटे बच्चों का यौनशोषण हो या ननों का ..इस तरह के कांड धर्म विशेष को ही नहीं सरे समाज पर कालिख पोत देते हैं।

Satish Chandra Satyarthi said...

कई बार लोग सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए भी ऐसी उतेजक और संवेदनशील बातें अपनी किताबों में लिख देते है. पर ऐसा सच भी हो तो कोइ बड़ी बात नहीं. इस कलियुग में जो हो वह कम ही है.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

कलयुग है भैइये! हर प्रकार के शोषण से ही तो दुनिया डूबेगी। और फिर, हर प्रकार के शोषण के गढ ही तो बन गए हैं हमारे दल- चाहे वो धर्म के हो या राजनीति के:)

Kavita Vachaknavee said...

बढ़िया

क्षोभनीय।

बढ़िया इसलिए कि इन लोगों की नंगई खुलना बेहद जरूरी है।
क्षोभ के लिए कारण तो स्वत: स्पष्ट हैं।

एक बात और,जब हम कहते हैं कि देश दुनिया में महिलाओं के साथ सब ठीक है,या नगरों में पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ बेकार स्त्रीविमर्श के नाम पर हल्ला करती हैं, कहीं कोई अत्याचार, अन्याय, या शोषण उनके साथ नहीं है, तो एक तरह से अपनी ही् उथले होने का प्रमाण देते हैं.वास्तविकता स्त्रियों के हृदय में जाने कितने तालों में बन्द पड़ी है। उसे देखने के लिए हजारी प्रसाद द्विवेदी की ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ जैसा चरित्र अपनाना होगा।