Wednesday, June 4, 2008

उनमें हिंदुस्तान के चार बड़े बटमार...

नेता करे चाकरी, अफसर करे काम।
दास मलूका कह गए सबके दाता राम।


देश के इन महान नमकहरामियों और संभ्रांत गुंडा-मवालियों के नाम अपनी भी कुछ पंक्तियां लोकतंत्र के योगदानस्वरूप.....

महंगाई की मार से है जनता हैरान।
नेता तोड़ें कुर्सियां, अफसर तोड़ें तान।

हुई रोम में भुखमरी पर एफओ की मीट।
कहा जैक ने, शस्त्र पर मत कर कुकर-घसीट।

नाबदान में बह रहा है खरबों का अन्न।
उधर, विश्व में भूख से लाखों मरणासन्न।

शस्त्रों के बाजार पर लट्टू हैं जैकाल।
दो सौ खरब लुटा रहे डालर में हर साल।

बारह खरब दे रहे लेने को खाद्यान्न।
लोग भूख से मर रहे. मस्ती में शैतान।

दुनिया में हैं दस बड़े जो सरमायेदार।
उनमें हिंदुस्तान के चार बड़े मटमार।

उड़ा रहे कुछ भेड़िये सारा मोहनभोग।
बीस टका में जी रहे सत्तर फीसद लोग।

4 comments:

मैथिली गुप्त said...

उड़ा रहे कुछ भेड़िये सारा मोहनभोग।
बीस टका में जी रहे सत्तर फीसद लोग।
बहुत अच्छा लिखा है मुंहफट जी

Shiv Kumar Mishra said...

वाह वाह! बहुत खूब लिखा है आपने. पढ़कर आनंद आया.
बहुत खूब लिखते है आप. पहली बार आप के चिट्ठे पर आया, लेकिन पिछली सारी पोस्ट पढी..बड़ी प्रसन्नता हुई.

हरिमोहन सिंह said...

वाह जी । पूरा खुन्‍दक खाये है

बालकिशन said...

बहुत जोरदार और कड़ा लिखा आपने.
अपने नाम को चरितार्थ कर दिया.
बधाई.