Tuesday, May 27, 2008

बाबू, पिछवाड़े के पीपल पर रार मत करना

प्रणाम बाबूजी,
आपकी चिट्ठी मिली। अत्र कुशलम तत्रास्तु के पश्चात विदित हो कि यहां सब लोग ठीकठाक हैं, कुशल से हैं। आपकी और अम्मा की और गांव-पुर की कुशलता के लिए मां दुर्गा से नेक मनाया करता हूं।
आपने चिट्ठी में लिखा है कि पिछवारे वाला बुढ़वा पीपर का पेड़ दयाद लोग काटने पर उतारू हैं तो हमारा तो यही कहना है कि उन लोगों के जो जी में आये करने दीजिए। कोई रार-झगड़ा मत करिएगा। नहीं तो बिना वजह थाना-पुलिस के झंझट में फंसना पड़ेगा। और गांव के बाकी लोग भी मजा लेंगे। चुटकी उड़ाएंगे। बड़ी जगहंसाई होगी और वह सब सुन-जान के हमको भी अच्छा नहीं लगेगा। खेतीबारी में तनी हर्ज हो जाय मगर कोई चिंता मत करिएगा। अम्मा कुछ उल्टा-सीधा कह दें तो उनकी बात का बुरा मत मानिएगा।
यहां अभी हमको कारखाने से छुट्टी नहीं मिल रही है। बाहर से माल का बहुत बड़ा आर्डर आया है। किसी मजदूर को छुट्टी नहीं मिल रही है। तब तक कुछ रुपया खादपानी के लिए हम भेज रहे हैं। इसी से जोग-जतन से काम चलाइएगा। फिर छुट्टी पर आएंगे तो बाकी सब देखेंगे।
यहां छुटकी एक हफ्ता से बीमार है। उसकी मां को शहर की कोई नई बीमारी लग गई है। एक बंगाली डाक्टर से इलाज करा रहे हैं। थोड़ी-थोड़ी फायदा हो रहा है।
बाबू शहर में अम्मा की बड़ी याद आती है। शाम को रुलाई आती है। बाबू अम्मा को कुछ मत कहिएगा। आऊंगा तो अम्मा को साड़ी-सया और आपको थोती-कुर्ता-गमछा और रेडियो जरूर ले आऊंगा।
बाकी सब ठीक है। थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना।

आपका अभागा पुत्र
सानूलाल
दिल्ली।

5 comments:

शोभा said...

बहुत सुन्दर और प्रभावी लेख। लिखते रहें।

आलोक said...

मुंहफट जी रार का मतलब क्या होता है?

Amit K Sagar said...

मर्म स्पर्शी. अच्छा. शुभकामनाये. लिखते रहिये.
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ultateer.blogspot.com

मुंहफट said...

आलोक जी
रार यानी विवाद, तकरार.....

आलोक said...

मुँहफ़ट जी, शब्दार्थ के लिए धन्यवाद।