Tuesday, February 24, 2009

पाहुन ज्यों आए-से फागुन के दिन आए

रंग में नहाए-से
फागुन के दिन आए.
रूप में लजाए-से
फागुन के दिन आए.
चूनर धानी
पहने,
अंग-अंग पर
गहने फूलों के क्या कहने....
बेसुध बौराए-से
फागुन के दिन आए.

कोई बहके-बहके
सुधियों में
रह-रह के,
थाम ले विदा कहके
पाहुन ज्यों आए-से
फागुन के दिन आए.
रंग में नहाए-से
फागुन के दिन आए.

2 comments:

seema gupta said...

रूप में लजाए-से फागुन के दिन आए. चूनर धानीपहने,अंग-अंग परगहने फूलों के क्या कहने....बेसुध बौराए-सेफागुन के दिन आए.
"बेहद खुबसुरत चित्र और ये पंक्तियाँ...."

Regards

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर लगा....