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आग बटोरे चांदनी, नदी बटोरे धूप.
हवा फागुनी बांध कर रात बटोरे रूप..
नख-शिख उमर गुलाल की देख न थके अनंग.
भरी-भरी पिचकारियां मारे सगरो अंग..
पुड़िया बंधी अबीर की मौसम गया टटोल.
पोर-पोर पढ़ने लगे मन की पाती खोल..
फागुन चढ़ा मुंडेर पर प्राण चढ़े आकाश.
रितु रानी के चित चढ़ा रितु राजा मधुमास..
गांव-गली की गंध में रिश्ते-नाते भूल.
छोरी मारे कनखिया, छोरा मारे फूल..
3 comments:
इतने 'मादक और मारक' दोहों से तो आपने ब्लाग पर ही होली रच दी।
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आग बटोरे चांदनी, नदी बटोरे धूप.
हवा फागुनी बांध कर रात बटोरे रूप..
" fantastic..."
Regards
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