Wednesday, January 21, 2009

ओबामा..ओ..ओ..ओ....बाआआआआमा ....ओसामा

ओबामा ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है. चिरकुट टाइप खबरों के भूखे-दूखे भारतीय मीडिया के एक दिन का अहा-अहा वाला तमाश सम्पन्न हुआ. रंगभेद परिभाषा है गोरा या सांवला होना. ओबामा गहरे सांवले हैं इसलिए गरीबों के मसीहा हो सकते हैं. चलो इसी बहाने अमेरिका की चापलूसी का अवसर मिला. सवाल उठता है कि दुनिया भर में अमेरिकी की पैदा की हुई जनसमस्याओं के मामले में ओबामा कितने भले साबित होते हैं. जाहिर है एक दिन भी कुर्सी पर नहीं टिक पाएंगे. ओबामा की ताजपोशी पर वाह-वाह करने वालों, खास कर अपने मुल्क वालों की अक्ल पर तरस आता है. कहावत है, उधारी पर नाचैं जेठानी के पूत. सूप तो सूप मगन, फटी-फटी चिल्लाने वाली चलनिया ने भी खूब ताली बजाय डाली. तो जान लीजिए. ओबामा वही करेंगे, वही बोलेंगे जो मनुष्यता का सबसे बड़ी संहारक अमेरिकी नीतियां गंवारा करेंगी. अभी साल-छह महीने बीत जाने दीजिए. असली अमेरिकी ओबामा के तब दर्शन होंगे. बुश बेवकूफ था. ओबामा चालाक है. अमेरिकी लुटेरों को गोरे-काले का ढिंढोरा पीटकर अपनी छवि सुधारने की बड़ी जरूरत थी, मीडिया के चड्ढीउतार अभियान से सो पूरी हुई. देखना इसरायल, ईरान, इराक, कश्मीर, श्रीलंका-तमिल मसलों पर ओबामा के कौन-से रंग देखने को मिलते हैं. तमिल भी तो गहरे सांवले हैं. ओबामा की तरह. पाकिस्तान, चीन, नेपाल, वर्मा, जापान लॉबी, योरप लॉबी, तरह-तरह के बॉबियों के बीच ओबामा क्या व्यापक जनहित के लिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था के कृष्णपक्ष से किनारा कसने की हिम्मत कर पाएंगे?....ओ बामा....रे बामा....हुंह!

2 comments:

रंजना said...

Hame to bas apne desh ke muddon se matlab hai,jo hamare liye achcha sochega uski waah waahi karenge.Nahi socha to gora ho ya kala,hame usse kya.

Sachin Jain said...

well said...........:) I have similar to that thought.........http://sachinjain7882.blogspot.com/