नारा है....
जो जागे, सो आगे
भ्रष्टाचार के विरुद्ध
हम करेंगे युद्ध.....
जागता शहर
नाम है उस ताजा जुनून का, जो उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के कुल इकत्तीस जिलों में भ्रष्टाचार केखिलाफ मीडिया-हुंकार भरने जा रहा है।
जागता शहर नाम है उस साप्ताहिक न्यूज मैग्जीन का, जिसके भीतर छिपी आग की लपटें अभी से सुदूर तक नएतरह के जन-कोलाहल का संकेत देने लगी हैं।
जागता शहर हिंदी समाचार साप्ताहिक के संपादक है अनिल शुक्ला, जिनकी खोजी रपटों ने किसी जमाने में रविवार के पन्नों से ठहरे वक्त को ललकारा था।
वह जमाना था जाने-माने पत्रकार और रविवार के संपादक एसपी सिंह का, जिन्होंने राजेंद्र माथुर के बाद हिंदी पत्रकारिता को नयी दशा-दिशा का एहसास कराया था।
अमर उजाला आगरा से कुछ ही समय बाद मुंह मोड़ कर अनिल शुक्ला एसपी सिंह की टीम में शामिल हो गए थे, फिर संडे मेल, दूरदर्शन आदि में कुछ समय रहे।
अनिल शुक्ला, जिन्होंने यह कहते हुए संडे मेल से त्यागपत्र दे दिया था कि मैं मूर्ख संपादकों को झेलते-झेलते आजिज आ गया हूं, उनकी चाकरी नहीं करूंगा।
जागता शहर के संपादक अनिल शुक्ला ने रविवार के लखनऊ, जयपुर ब्यूरो प्रमुख का दायित्व संभालने के दौरान ही लिया था रिजनल न्यूज मैग्जीन का संकल्प।
रीजन फोकस न्यूज मैग्जीन, सप्ताह में एक बार, महीने में चार बार उत्तर प्रदेश के नौ मंडलों, राजस्थान के चार जिलों और मध्य प्रदेश के तीन जिलों में पहुंचेगी।
उत्तर प्रदेश में जागता शहर का पाठक वर्ग होगा वेस्ट यूपी के 26 जिलों में...आगरा, मथुरा, फीरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, फर्रुखाबाद, एटा, कांसीराम नगर, हाथरस, अलीगढ़, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मुरादाबाद-बरेली मंडल।
राजस्थान में जागता शहर के पाठक होंगे धौलपुर, बयाना, भरतपुर, बाड़ी के लोग और मध्य प्रदेश में ग्वालियर, भिंड, मुरैना आदि के पाठक इसे पढ़ सकेंगे।
जागता शहर सिर्फ साप्ताहिक न्यूज मैग्जीन नहीं, संपादक अनिल शुक्ला के जीवन का वह आखिरी मोर्चा है, जिसका नारा है, भ्रष्टाचार के विरुद्ध हम करेंगे युद्ध।
जागता शहर में होंगी ऐसी स्टोरी, जो उसके पाठक वर्ग ने कभी किसी अखबार या चैनल पर देखी-सुनी नहीं होगी, साथ में यूथ, महिलाओं और खेल के पन्ने भी।
जागता शहर का नारा है..जो जागे सो आगे। उसकी खोजी रपटें उन लोगों को झकझोरेंगी, जगाएंगी जो व्यवस्था की मार से थकने और ऊंघने लगे हैं।
जागता शहर में हर हफ्ते खुलेगी उनकी पोल, जो अजगर की तरह अपने आसपास को लपेटे हुए हैं। अजगर अफसर, मंत्री, नेता, अपराधी।
जागता शहर यानी जनतंत्र का प्रहरी, ढुलमुलाते लोकतंत्र की आवाज, भ्रष्ट नौकरशाहों और राजनेताओं का दुश्मन और आम आदमी की जुबान।
जागता शहर अपने जन्म से पहले ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए मीडिया-परिदृश्य की तरह सुलगने लगा है। उसकी चिंगारियां अटकलों में गूंजने लगी हैं।
जागता शहर के संपादक अनिल शुक्ला की संपादकीय टीम में हैं ऐसे पत्रकार, जिन्हें सेठों और उनके पायताने बैठे समर्पणकारियों की चाटुकारिता रास न आयी।
उन पत्रकारों की टीम, जिन्होने जीवन भर देश के चार बड़े हिंदी अखबारों के भीतर समय गुजारते हुए भी अपनी सोच और शब्द-संपदा को सुरक्षित रखा।
वे पत्रकार, जिन्होंने बड़े-से-बैनर को बात-बात पर ठोकरें मारीं, कभी उनकी झांसा-पट्टियों में नहीं आए। वे जहां भी रहे, पेशे की लड़ाई लड़ते रहे।
...तो ऐसा है जागता शहर परिवार। पत्रकारिता में नयी संभावनाओं का वारिस। पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूरे प्रदेश और फिर चार राजधानियों तक होगा उसका सफर।
इसी संकल्प के साथ वेस्ट यूपी में नयी कोलाहल पैदा करने जा रहा है जागता शहर। अपने करोड़ों पाठकों की उम्मीदों की सुबह लिये आ रहा है वह शीघ्र सितंबर में.....
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1 comment:
भाई अनिल सहित जागता शहर की पूरी टीम के लिए शुभकामनाएं। वैसे भी आप सभी मुझे भी भाई अनिल के रंगकर्म का हिस्सा ही माने।
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