Wednesday, September 10, 2008

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली / मीना कुमारी

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जितना-जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा सी जो बात मिली

6 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत अच्छा।

Unknown said...

मीना जी आप ने बहुत ही अच्छालिखा है पर पोस्ट सही किया करिये जिससे पढ़ने वालों को आसानी हो।

Shastri JC Philip said...

"चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते,"

बहुत सुंदर!!



-- शास्त्री जे सी फिलिप

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Manvinder said...

होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा सी जो बात मिली
bahut sunder....
khoobsurat

Udan Tashtari said...

पढ़वाने का आप को बहुत शुक्रिया.


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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.

वीनस केसरी said...

अच्छे भाव
बेहतरीन ग़ज़ल

खास कर से शेर
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जितना-जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली

वीनस केसरी