कुटिल कानाफूसियों का दौर..........
फिर से नजदीकियों के लिए भाजपा बेचैन.............
सांसद निलंबन मसले पर राजद-सपा की हां-में-हां मिला रहे जेटली, मुंडे और सुषमा स्वराज.............
बिल-विरोधी कांग्रेसी सांसद चुपके-चुपके मिल रहे भाजपा असंतुष्टों से..............
तीनों पार्टी अध्यक्ष-यादवों की एकजुटता से पीएम से मुलाकात के बहाने रची गई कांग्रेस की रणनीति बिखर गई...........
(sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से साभार)
कहावत है कि कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना। संसद में पार्टियां इन दिनों कुछ इन्हीं अर्थों में अपने-अपने मंसूबों को आकार देने में हैं। मसलन, भाजपा की मंशा है कि चाहे जैसे भी एक बार पूरा विपक्ष फिर उसी तरह उसके साथ आ जाए, जैसे संसद में आम बजट पेश किए जाने के दिन महंगाई के मुद्दे पर आ जुटा था। अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, दलितों की राजनीति करने वाले कांग्रेस के कुछ बड़े नेता महिला आरक्षण विधेयक से असंतुष्ट भाजपा सांसदों से इसलिए संपर्क साध रहे हैं कि बिल पारित न हो। उधर, पहली बार महिला आरक्षण विधेयक को लेकर राष्ट्रीय लोकदल सुप्रीमो चौधरी अजित मुखर हुए हैं। कहते हैं कि अपनी सीट महिलाओं की झोली में जाने की आशंका रखने वाले सांसद तो अपने क्षेत्र के विकास कार्यों से ही मुंह मोड़ लेंगे। सूत्र बताते हैं कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली पहले जैसी विपक्षी एकजुटता की तलब के चलते ही सरकार से मांग कर रहे हैं कि उच्च सदन से निलंबित सात सदस्यों को मार्शलों के जरिए सदन से बाहर निकालवाने के लिए वह माफी मांगे। उल्लेखनीय है कि मंहगाई के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ बनी एकता महिला आरक्षण विधेयक पर बिखर चुकी है। महिला आरक्षण विधेयक पर सत्ता पक्ष और भाजपा तथा वाम दल एक हो गए जबकि सपा, राजद और बसपा उसके विरोध में हो गए। इसी पटने-पटाने के क्रम में लोकसभा में भाजपा के उप नेता गोपीनाथ मुंडे भी कहते हैं कि हम चाहते हैं, सरकार सदन (राज्यसभा) में मार्शल बुलाने के लिए माफी मांगे। निम्न सदन में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज कहती हैं कि किसी विधेयक को पारित कराने के लिए भाजपा लोकसभा में मॉर्शल का इस्तेमाल किए जाने की कत्तई मुखालफत करती है। उधर, महिला आरक्षण विधेयक रोज-ब-रोज नए-नए गुल खिलाता रहा है। बिल के प्रारूप से डरे और नाखुश कुछ कांग्रेस सांसद अनुशासन के भय से खुल कर तो नहीं बोल पा रहे, लेकिन अंदरूनी तौर पर विरोधी सुर में सुर मिलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। विरोध करने वालों को शाबासी दिए जा रहे हैं कि किसी भी सूरत में वह इस विधेयक को पारित न होने दें। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के ऐसे कई असंतुष्ट नेताओं ने भाजपा के बिल-विरोधी नेताओं से संपर्क साधे हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की बातों पर यकीन करें तो उनसे कांग्रेस के दो बड़े सांसद मिलने पहुंचे थे। उनका कहना था कि वे तो अपनी पार्टी में बंधुआ मजदूर की तरह हैं, इसलिए महिला आरक्षण विधेयक का विरोध नहीं कर सकते। हो सके तो आप लोग इस विधेयक को रुकवा लीजिए। इसे लोकसभा से पारित मत होने दीजिए। उधर, बिहार से कांग्रेस सांसद मोहम्मद असरारुल हक खुलकर बिल का विरोध करने ही लगे हैं। उधर, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह पहली बार महिला आरक्षण बिल पर मुखर हुए हैं। वह कहते हैं कि बिल में एक सीट पर यदि पुरुष सांसद है और अगली बार उस सीट को महिला के लिए रिजर्व हो जाना है तो भला वो सांसद काम क्यों करेगा क्योंकि उसे पता है, अगली बार वो उस सीट से नहीं जीतकर आने वाला। मान लीजिए कोई सीट महिला के लिए रिजर्व है और महिला सांसद उस क्षेत्र में अच्छा काम करती है तो अगली बार उस सीट के जनरल होने पर भी वो चुनाव लड़ सकती है और जीत सकती है। ऐसे में तो संसद में पुरुषों की संख्या कम हो जाएगी। इससे बिल पारित कराने में जुटी कांग्रेस फंस गई है। अगर वो यादव नेताओं की कोटे के अंदर कोटे के बात मानती है तो इसका पूरा श्रेय यादव तिकड़ी के हाथ चले जाने का डर है वहीं अगर वह बिना बहस के किसी तरह बिल को पारित करने पर अड़ती है को बीजेपी के विरोध का डर। ऐसे में अब पार्टी के रणनीतिकार सर्वदलीय बैठक बुलाने पर विचार कर रहे हैं। एक बात ये भी पता चली है कि राजद-सपा और जदयू अध्यक्षत्रयी से मिलने की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की रणनीति कुछ और थी, जो कामयाब नहीं हुई। प्रधानमंत्री चाहते थे कि तीनों पार्टी अध्यक्ष उनसे अलग-अलग मिलें। लेकिन आमंत्रण के इस तरीके पर तीनों नेताओं के कान खड़े हो गए और उन्होंने एक साथ मुलाकात की रणनीति बना ली। मुलाकात वाली सुबह कई-एक मुस्लिम संगठनों के नेता लालू यादव के निवास पर इकट्ठे हुए थे। फिर मुलायम सिंह भी लालू यादव के घर पहुंच गए, फिर दोनों पार्टी अध्यक्ष शरद यादव को साथ लेकर पीएम से मिले, इससे कांग्रेस की रणनीति बिखर गई।
Friday, March 12, 2010
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1 comment:
। बात चाहे जो हो पर नेताओं को लग रहा है कि उनका हक छिन जाएगा। आखिर ये लोग आज तक महिलओं की हकमारी करते आए है। आखिर महिलाऐें इन्हीं की सीटों पर तो चुनाव लड़ेेगी।
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