Thursday, March 11, 2010

बिल के बखेड़े ने बिगाड़ा सबका जायका

अचानक घर में भभकते चिरागों से भाजपा भौचक्का।
सबसे सबल समर्थक की दशा पर कांग्रेस पसीने-पसीने।
बिल विरोधी अपने साझा एजेंडे की कामयाबी की ओर।
दलित-मुस्लिम-पिछड़ों की सियासत में पड़ी नई जान।


(sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से साभार)

महिला आरक्षण बिल पर एक-एक दिन भारी पड़ता जा रहा है। सोमवार से गुरुवार के बीच देश के सियासी माहौल में जमीन-आसमान का फर्क चुका है। लोकसभा में पिछले चार दिनों से चल रही महाभारत ने कमोबेश हर पार्टी का सियासी जायका खराब कर दिया है। बिल का प्रारुप बदले--बदले, रफ्ता-रफ्ता कामयाबी समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के एजेंडे का रुख लेती जा रही है। बिल के बहाने दोनों पार्टियां अपने-अपने हिस्से के निकट भविष्य की राजनीति जिस दिशा में हांकना चाह रही थीं, उसमें उन्हें फिलहाल तो सफलता मिलती दिख रही है। मसलन, वे देश के दलित, मुस्लिम, पिछड़े मतदाताओं और बुद्धिजीवियों तक ये संदेश पहुंचाने में सफल रही हैं कि बिल दूध का धुला नहीं। उसके माध्यम से पिछड़े, मुस्लिम, दलित समुदायों का राजनीतिक हक मारने का छल किया जा रहा है। मुस्लिम संगठन एकजुट होने लगे हैं। उनकी अंगड़ाई को ताजगी दी है राजद-सपा-जदयू अध्यक्षत्रयी के बिल विरोधी अभियान ने। उनकी सफलता का दूसरा पड़ाव गुरुवार को तब देखने-सुनने को मिला, जब भाजपा के अंदर से वैसी ही गूंज बाहर आने लगी। पार्टी की सुबह की मीटिंग में जितने सांसद बिल के मौजूदा प्रारूप पर ऐतराज जता रहे थे, शाम को आडवाणी के घर दोबारा हुई पार्टी की मीटिंग में एक नाम और जुड़ गया मेनका गांधी का। उधर, कांग्रेस के एक मुस्लिम सांसद ने भी अपनी पीड़ा सरेआम कर दी। भाजपा-कांग्रेस की इन चिंगारियों पर लोकसभा घी उड़ेल दिया राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने। लालू ने कहा कि कहा कि विधेयक का समर्थन कर रही सभी पार्टियों के अधिकांश सांसद इसके विरोध में हैं और व्हिप के भय से खुलकर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं। उन्हें निजी बातचीत में कई सांसदों ने बताया है कि उन्होंने बिल नहीं, अपने 'डेथ सर्टिफिकेट' पर हस्ताक्षर किए हैं। लालू आज लोकसभा में पूरे तेवर में नजर आए। उन्होंने अपने खिलाफ श्वेतपत्र लाने वाली ममता बनर्जी को यह कर कर मुस्कराने के लिए मजबूर कर दिया कि वेस्ट बंगाल में उन्होंने (ममता) वामदलों से बढ़त ले ली है और भविष्य में उनसे सहयोग की उम्मीद है। इसके अलावा लालू ने राहुल गांधी के कामकाज की भी सराहना की। लालू ने माकपा नेता बासुदेव आचार्य द्वारा टोकाटाकी किए जाने पर उन्हें आड़े हाथ लेते हुए कहा कि यहां तीन यादवों की बात हो रही है, हम सब अपनी अपनी पार्टी के सुप्रीमो हैं। आपके यहां तो सब सुप्रीम खत्म हो गया है। आप तो पाकिस्तान में हैं और ही भारत में। ममता जी आपसे लीड ले गयी हैं। महिला विधेयक के विरोध में पिछले चार दिनों से बार बार आसन के समक्ष आने पर अध्यक्ष मीरा कुमार की नाराजगी पर भी उन्होंने कहा कि हम लोगों का फैशन नहीं है कि आपकी सीट तक जाएं लेकिन जब कोई नहीं सुनता है तो नजदीक जाना पड़ता है। इसको अन्यथा ना लें। लालू के सुर में सुर मिलाते हुए आज मुलायम सिंह और शरद यादव भी चुप नहीं बैठे। जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने सदन में दावा कर दिया कि अधिकतर सांसद इस विधेयक के विरोध में हैं और अगर पार्टियों के व्हिप के बिना मतदान कराया जाए तो 70 फीसदी इसके विरोध में मत देंगे और ऐसा नहीं हुआ तो मैं इस्तीफा दे दूंगा।समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने लालकृष्ण आडवाणी पर चुटकी लेते हुए कहा कि महिला आरक्षण होने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ना है, क्योंकि वह तो रिटायर हो रहे हैं।

इसे भी सपा और राजद की बिल विरोधी राजनीति की गुरुवार तक की बड़ी कामयाबी ही मानना होगा कि वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में चर्चा के दौरान कह दिया, अब केन्द्र सरकार महिला आरक्षण विधेयक के सभी मुद्दों पर बहस के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने को तैयार है। सरकार चाहती है कि इस विधेयक पर सभी मतभेदों को सुलझाकर आम सहमति बना ली जाए। तभी विधेयक लोकसभा में पेश किया जाए। इस मसले पर प्रधानमंत्री भी विरोध करने वाले नेताओं से बात कर चुके हैं। कल राज्यसभा में ध्वनिमत, फिर 1 के मुकाबले 186 मतों की वोटिंग से बिल पारित हो जाने पर कांग्रेस जिस जश्न के माहौल में डूबने जा रही थी, आज उस पर बिल-समर्थक भाजपा के भीतर से उठी बिल-विरोधी चिंगारी ने मायूसी थोप दी। इस पूरे बिल-समर्थक-विरोधी अंधड़ में वामदल की आवाज कहीं दबी-दबी सी पड़ी है। तृममूल कांग्रेस बार-बार यू टर्न ले रही है, लेकिन भाजपा के भीतर के तूफान ने बिल समर्थकों की नींद हराम कर दी है। अब सवाल सिर्फ बिल के पास होने, होने तक नहीं रह गया है। दोनों दलों, खासकर कांग्रेस की निगाहें अपने निकट भविष्य के दलित-पिछड़े-मुस्लिम वोट बैंक को सहमी निगाहों से टोहने लगी हैं। पार्टी कर्णधारों को लगने लगा है कि दो-चार दिनों तक ऐसी ही फिंजा बनाने में राजद-सपा-जदयू अध्यक्षत्रयी कामयाब रही तो आगे ये पलीता बुझाए नहीं बुझने वाला हो सकता है। दरअसल, भाजपा के भीतर की ताजा दरार ने कांग्रेस को तत्काल लचीला रुख अख्तियार करने को विवश कर दिया है। वह इसलिए कि कहीं आधी छोड़ सारी पर धावै वाली कहावत चरितार्थ हो जाए। (आधी मिलै पूरी पावै)

विपक्ष की नेता नेता एवं भाजपा सांसद सुषमा स्वराज भले कहें कि उनकी पार्टी ने लोकसभा में भी इसका समर्थन करने का फैसला किया है और इसी संबंध में पार्टी मुख्यालय पर आज सुबह हुई बैठक में वरिष्ठ नेताओं ने ये निर्णय ले लिया है और अरूण जेटली, रमेश बैस, मुरली मनोहर जोशी, अनंत कुमार आदि की मौजूदगी में बिल के समर्थन के लिए जरूरत पड़ी तो व्हिप भी जारी किया जाएगा। लेकिन बिल के मौजूदा प्रारूप पर अचानक खुली जुबान से उंगली उठाने लगे नाराज भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ, सांसद यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, हुकुमदेव नारायण आदि के साथ शाम की मीटिंग में मेनका गांधी भी शुमार हो गईं। उनके विरोध की आवाज तत्काल पूरे देश में गूंज गई। सांसद योगी भाजपा की सुबह की ही मीटिंग में ऐतराज जता चुके थे कि बिल के समर्थन के लिए व्हिप जारी करना ठीक नहीं होगा। सांसद हुकुमदेव नारायण कह चुके थे कि महिला आरक्षण बिल में दलित और पिछड़े वर्ग के लिए विशेष प्रावधान होना बहुत जरूरी है। मामला गंभीर होते देख दोबारा शाम को लालकृष्ण आडवाणी के ठिकाने पर हुई मीटिंग में मेनका गांधी ने बिल के मौजूदा प्रारूप की जोरदार मुखालफत कर दी। यद्यपि लोकसभा में भाजपा के उपनेता गोपीनाथ मुंडे ने भी अपने 70 फीसदी सांसदों के महिला आरक्षण विधेयक के खिलाफ होने की खबरों का खंडन करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर पार्टी में कोई मतभेद नहीं है। हां, इस मुद्दे पर पार्टी के कुछ सदस्यों की व्यक्तिगत राय भिन्न हो सकती है। जबकि सांसद योगी ने गुरूवार को भी दोहराया कि इस मुद्दे को लेकर पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का परिचय दिया जाना चाहिए। उन्होंने चेतावनी भी दे डाली कि अगर राज्यसभा की तरह लोकसभा में भी मार्शलों के साए में यह विधेयक पारित कराने की कोशिश की गई तो वह इस्तीफा दे देंगे।

महिला आरक्षण विधेयक के विरोध के पीछे पिछड़े एवं दलित-मुस्लिम राजनीति का चुनौतीपूर्ण एजेंडा काम कर रहा है। सपा को जहां अपने खोए मुस्लिम जनाधार की चिंता रही है, वही बिहार में लालू प्रसाद यादव आगामी विधानसभा चुनाव में पिछड़े एवं मुस्लिम फैक्टर पर नजर गड़ाते हुए बिल विरोध को हवा दे रहे हैं। कांग्रेस, भाजपा के दलित, मुस्लिम एवं पिछड़े समुदायों से आए सांसदों का अंदरूनी तौर पर मुखर होने की एक वजह यही है। विरोध के स्वर में वे सांसद भी स्वर मिलाए हुए हैं, जिन्हें डर है कि उनकी सीट महिला नेताओं के हवाले हो सकती है। फिलहाल सबसे बड़ी सूचना ये मिल रही है कि इस विधेयक के खिलाफ देश भर के मुस्लिम संगठन एकजुट होने जा रहे हैं। बिल पास कराने से कांग्रेस और भाजपा जिस वाहवाही की वारिस बनीं, अब वही उनके दलित-मुस्लिम वोट बैंक के गले का फांस बनने वाला है। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम वोट बैंक संभालने-सहेजने में जुटे हैं, उधर भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में दलितों को गले लगाने का संदेश दे चुके हैं। अब महिला आरक्षण-बिल ने कांग्रेस-भाजपा दोनों के दलित-मुस्लिम समीकरण को डांवाडोल दिशा में मोड़ दिया है। उसी (बिहार और यूपी में मुस्लिम-यादव एका की संभावना) को हवा देने में जुटे हैं सपा, राजद और जदयू अध्यक्ष। बसपा सधे पांव इस हालात पर आगामी रणनीति तैयार करने में व्यस्त है। ताजा सूचना के अनुसार चार मुस्लिम एवं दलित संगठनों ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल, मूवमेंट फॉर इम्पावरमेंट ऑफ इंडियन मुस्लिम, सामाजिक न्याय मोर्चा और डॉक्टर भीमराव आंबेडकर सेवादल ने एक साझा बयान में कहा है कि महिला आरक्षण विधेयक वास्तव में मुसलमानों को राजनीतिक रूप से खत्म करने की साजिश है। इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद महिलाओं के लिए भी सीटें आरक्षित हो जाएंगी। इस आरक्षण से पहले से ही राजनैतिक रूप से कमजोर मुसलमानों की सियासत में हिस्सेदारी घटेगी। सेक्युलर फ्रंट के अध्यक्ष और समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य जमशेद जैदी का कहना है कि महिला आरक्षण बिल के जरिए भाजपा अपने मुस्लिम विरोधी एजेंडे को लागू करना चाहती है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय मुस्लिम संगठन जल्द एक साथ इस विधेयक का विरोध तेज करने जा रहे हैं। राजद, सपा, जदयू अध्यक्ष की असली चिंता दलित नहीं बताए जाते हैं। उनका मकसद पिछड़ों एवं मुस्लिमों को एक मंच पर लाना लग रहा है। दलित सांसद अलग मोरचेबंदी के जरूरतमंत बताए जाते हैं। इस तरह के मोरचे की तस्वीर भी जल्द सामने सकती है। ऐसी सुगबुगाहट पार्टियों के भीतर चल रही बताई जाती है।

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