Saturday, March 13, 2010

नरेश अग्रवाल ने राज्यसभा का पर्चा भरा



जनेश्वर मिश्र के निधन से खाली हुई थी सीट।
लखनऊ राजनीतिक फिंजा में ताजा सर्गर्मी।
बसपा में अखिलेश की वैश्य-सियासत पर ग्रहण।

(sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से साभार)

समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र के निधन से खाली हुई राज्यसभा की एक सीट पर आज बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव नरेश अग्रवाल ने लखनऊ स्थित विधानसभा के सेन्ट्रल हाल में बसपा राज्यसभा प्रत्याशी के रूप में अपना पर्चा दाखिल कर दिया। इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर, बसपा प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य, कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के अलावा मंत्रिमंडल के कई और सदस्य उपस्थित रहे। नरेश अग्रवाल लखनऊ के पड़ोसी जिले हरदोई के रहने वाले हैं। उन्होंने हरदोई विधानसभा से कई प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव जीते हैं। इसके अलावा हरदोई और लखनऊ की राजनीति और वैश्य समाज में काफी प्रभाव रखते हैं। नरेश अग्रवाल की भी शुरू से इच्छा रही है कि मौका मिले तो लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ें। बसपा से राजनीतिक जोड़तोड़ में देर कर जाने के कारण नरेश अग्रवाल को लखनऊ लोकसभा से चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल सका। लखनऊ से बसपा प्रत्याशी के रूप में एक अवसर उनके हाथ आया था जिस पर अखिलेश दास ने मौका मार दिया। नरेश अग्रवाल हरदोई और लखनऊ छोड़कर किसी अन्य जगह में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं। लखनऊ में वह रहते हैं और यहां पर उनके व्यवसाय से लेकर सामाजिक संबंधों का व्यापक क्षेत्र है। ज्यादातर नरेश अग्रवाल की गिनती सीधे चुनकर आने वाले नेताओं में रही है। नरेश अग्रवाल के पुत्र भी राजनीति में सक्रिय हैं। श्री अग्रवाल के पर्चा दाखिल करने से पार्टी में उनके वैश्य प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले राज्यसभा सांसद अखिलेश दास के लिए बेचैनी की खबर मानी जा रही है।
अखिलेश दास और नरेश अग्रवाल उत्तर प्रदेश की वैश्य राजनीति के ऐसे मोहरे हैं जिन्होंने आगे बढ़ने के लिए सर्वाधिक जोड़तोड़ का सहारा लिया। बसपा में ये दोनों नेता यूं ही नहीं आ गए हैं। इन दोनों नेताओं ने वैश्य समाज को बसपा से जोड़ने की राजनीति शुरू की थी। इसके साथ इन दोनों नेताओं में एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी सर उठाती रही, जिसमें इन दोनों के सामने अपने-अपने चुनाव क्षेत्रों में सफल होने की बड़ी चुनौतियां आती रहीं। अटकालबाज अब तो ऐसे भी सवाल उठाने लगे हैं कि आगे देखिए, नरेश अग्रवाल बसपा की राजनीति में अखिलेश दास को गुरु मानते हैं या उन्हें बाहर करके पार्टी के एकछत्र वैश्यनेता बन बैठते हैं।

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