Wednesday, March 10, 2010

अब सुनिए, अविश्वास प्रस्ताव की पदचाप!




आगे बारी लोकसभा में घमासान की
अध्यक्षत्रयी निर्णायक मुठभेड़ की रणनीति बनाने में जुटी।
बसपा को वक्त का इंतजार।
साधू यादव कांग्रेस से निलंबित।
नीतीश की निगाहें नई पार्टी की संभावना पर।
पूरे हालात पर भाजपा की कुटिल-टकटकी.........

(खबर sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से साभार)


रेल बजट, आम बजट और महिला आरक्षण बिल। संसद के चालू सत्र में पिछले दिनों के इन तीन मुद्दों को खंगालें तो साफ झलक जाएगा कि आने वाले समय में देश की सियासत किधर जा रही है। कोई सुने, सुने उसकी पदचाप अभी से साफ सुनाई दे रही है। मसलन, रेल बजट पर तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस (ममता बनर्जी-प्रणब मुखर्जी) का मनमुटाव, आम बजट पर लगभग अपने सभी समर्थक दलों से कांग्रेस का मनमुटाव, महिला आरक्षण बिल पर खुल्लमखुल्ला देश की चार प्रमुख पार्टियों के सांसदों (राजद, सपा, बसपा, जदयू) का कांग्रेस से महाभारत जैसा विरोध, और अब आगे लोकसभा में धर-पछाड़ने की तैयारी। कुछ और ताजा सूचनाएं पीछे की सुर्खियों को ही पर लगाती हुई। जैसेकि, पता चला है, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव आज राष्ट्रपति से मिल कर समर्थन वापसी का पत्र सौंपने वाले हैं। वह कहते हैं- राज्यसभा में बिल जबरदस्ती पास कराने की कांग्रेस की तानाशाही को बिलकुल नहीं सहा जाएगा। लालू से जुड़ी दूसरी सूचना है कि उनके निश्तेदार-सांसद साधु यादव महिला आरक्षण बिल पर विरोधी लॉबी में होने के बहाने कांग्रेस से निलंबित कर दिए गए हैं। बहाना बिल का है, हकीकत ये पता चली है कि साधु यादव फिर लालू के निकट हो चले हैं। बिहार के निकट भविष्य की राजनीति के लिए यही दोनों के समय का तकाजा है। आरक्षण बिल से ही शुरू हुआ है जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का अंदरूनी घमासान। पता चला है कि बिल पर जदयू अध्यक्ष शरद यादव से मतभेद के चलते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पार्टी से अलग होने का मन बना चुके हैं। यानी जदयू दो फाड़ होने जा रहा है। शरद भी आरपार की लड़ाई के मूड में हैं। इनके लिए भी बिल बहाना है, दरअसल निगाहें आगामी विधानसभा चुनावों के सियासी गणित पर हैं। मौजूदा दौर में नीतीश की सियासत कमजोर, शरद की मजबूत दिशा में जाती दिख रही है। यद्यपि बिल पर सांसद शिवानंद तिवारी, एन.के. सिंह, अली अनवर, महेन्द्र प्रसाद और भगवान सिंह ने नीतीश कुमार के तरफदार हो चले हैं। आरक्षण बिल पारित होने के बाद तीसरी बड़ी खबर रही है कि मुलायम सिंह, लालू यादव और शरद यादव (अध्यक्षत्रयी) अब केंद्र सरकार को लोकसभा में देख लेने की रणनीति बनाने में मशगूल हो गए हैं। इस दौरान हल्की सी भनक ये भी है कि ऐसे में कांग्रेस को ठाकुर अमर सिंह का संकेतक पढ़ना रास सकता है। बहरहाल, सपा-राजद-जदयू अध्यक्षत्रयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की संभावना तलाशने में व्यस्त है। तकनीकी तौर पर बताया जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए उन्हें स्वीकृति तभी मिलेगी, जब वे 50 सांसदों की सूची सौंपने में समर्थ हों। इसी से जुड़ा आगे गणित ये बताया जाता है कि संप्रग के पास 320 सांसद हैं। अध्यक्षत्रयी के छिटकने से आकड़ा लुढ़ककर (सपा सांसद-22, राजद-4) 294 पर टिका है। उधर, दलित-जनदबाव में बसपा (सांसद-21) भी महिला आरक्षण बिल पर विरोधी मोरचे पर मुखर है और तृणमूल कांग्रेस (सांसद-19) पहले से भृकुटियां ताने हुए है। इन्होंने विपक्ष की जुगलबंदी बनाई तो संप्रग का आकड़ा उतर कर सकता है 254 पर। यानी जरूरी संख्याबल 272 से 18 कम। तो लोकसभा में शक्ति-परीक्षण का साझा बहाना क्या हो सकता है? एक नहीं, कई-एक बहाने धरे रखे हैं, लेकिन सरकार पलटना इतना आसान नहीं। सचमुच जरूरत पड़ी तो संप्रग के तरकस में तीर इतने कि समा नहीं पाएंगे। अविश्वास प्रस्ताव की रणनीति बनाने वाले भी इससे वाकिफ हैं। उनके दोनों हाथ में लड्डू कहा जा सकता है। आगामी विधानसभा चुनावों में उन्हें जनता की अदालत में जाना है। विधानसभाओं में हंगमों के बीच पिछले दो दिनों से महिला आरक्षण बिल पर समर्थन-विरोध के तीर छोड़े भी जाने लगे हैं। कांग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल में बढ़त लेती जा रही है। तो इसके खिलाफ अभी से लंगोट कसनी तो पड़ेगी, वरना रही-सही भी डूब सकती है। यही जरूरत सपा, बसपा, राजद, तृणमूल, माकपा, भाजपा यानी पूरे विपक्ष को कांग्रेस के खिलाफ लामबंद कर डाले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस पूरे हालात पर भाजपा सतर्कता से नजर गड़ाए हुए है। याद रखिए, महंगाई का मुद्दा मरा नहीं है। इसी महीने कई पार्टियां संसद घेरने का एलान कर चुकी हैं।

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