Sunday, March 7, 2010

महिला आरक्षण बिल की उल्टी गिनती शुरू

महिला आरक्षण की राजनीति का नतीजा अब सिर्फ एक दिन दूर है। कल 8 मार्च को महिला दिवस पर राज्यसभा से इसकी अनुगूंज पूरे देश को सुनाईदेगी। कह सकते हैं कि इस ऐतिहासिक बिल की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है।इसे लेकर सबसे ज्यादा बिहार की सियासत में सर्गर्मी दिख रही है। लोकसभामें सरकार के पास संप्रग की अपनी सदस्य संख्या 274 है, जबकि बहुमत केलिए उसे 272 की जरूरत है।

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कल राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने एक बार फिर अपनी वही अडिग मंशा दुहरा दी है कि बिल के मौजूदा स्वरूप के विरोध में हैं। कल के मुख्यमंत्री के बयान को काटते हुए राजद प्रमुख कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब महिला आरक्षण पर गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य थे तो इसपर उनकी राय विपक्ष में थी। आल इण्डिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सांसद डा. एम.एजाज अली ने कहा कि आरक्षण के भीतर आरक्षण का प्रावधान किए बिना यदि विधेयक सदन में पारित होगा तो सम्पूर्ण भारतीय समाज बंट जायेगा। उधर लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया रामविलास पासवान ने लालू के सुर में सुर मिला दिया है। रामविलास कहते हैं कि वर्तमान स्वरूप में महिला आरक्षण बिल उन्हें स्वीकार्य नहीं है। उनके मुताबिक बिल में दलित महिला जनाधार की अनदेखी की जा रही है। जदयू के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरक्षण का समर्थन किया है तो पार्टी अध्यक्ष शरद यादव विरोध पर कायम हैं। इससे पार्टी के सांसदों के बंटने का अंदेशा है। यह बिल पास होने के बाद महिला आरक्षण के साथ पहला चुनाव बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल में ही होने जा रहा है। इसलिए भी इसका उन दलों के लिए खासा महत्व होगा, जो इन राज्यों की सियासत में व्यापक दखल रखते हैं। जेडीयू के राज्यसभा में 7 और लोकसभा में 20 सदस्य हैं। पता चला है कि सपा से निष्कासित रामपुर की सांसद जयाप्रदा, जो अब अमर सिंह के साथ हैं, से इस मसले पर कांग्रेस की कानाफूसी पक चुकी है। वह बिल सोमवार को बिल का समर्थन कर सकती हैं। इसी तरह की अटकलें झारखंड के भी एक सांसद को लेकर हैं। यानी कांग्रेस छिटपुट जोड़-घटाने में भी जुट गई है ताकि किसी भी कीमत पर बिल पास हो जाए। इस मसले पर भाजपा, कांग्रेस, माकपा, भाकपा आदि पहले से एक-सुर हैं। दिल्ली में शनिवार को महिला नेतृत्व शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह अपनी मंशा दुहरा चुके हैं। फिलहाल, आकड़े सरकार के पक्ष में हैं। पंजाब से अकाली दल ने भी व्हिप जारी कर दी है। कांग्रेस, भाजपा पहले ही व्हिप जारी कर चुकी हैं। डीएमके, नैशनल कॉन्फ्रेंस, बीजेडी ने भी इस विधेयक के समर्थन का ऐलान कर दिया है। इन तीनों के राज्यसभा में नौ एमपी हैं। उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी विरोध में संसद पर प्रदर्शन का ऐलान कर चुकी है। बसपा भी विरोध में है। कल्याण सिंह पिछड़ों की राजनीति को ध्यान में रखते हुए बिल के विरोध में जा खड़े हुए हैं। दक्षिण से तेलगु देशम पार्टी का इरादा भी सरकार की रणनीति के खिलाफ है, लेकिन कई अन्य छोटे दल कांग्रेस की पकड़ में बताए जाते हैं, फिर भी यूपीए सरकार पूरी तरह आश्वस्त नहीं। लगता है कि जैसे वह अभी वह बजट सत्र के महंगाईनामा के दबाव से बाहर नहीं सकी है। संदेह इस बात का है कि बिल का समर्थन करने वाले दलों के वे सांसद अंदर से नाखुश हैं, जो दलित, पिछड़े, मुस्लिम तबकों से चुन कर आए हैं। उन्हें अपने वोट बैंक की चिंता सता रही है। भीतर ही भीतर इस बिल की मुतल्लिक राजनीतिक श्रेय लेने की आवाज भी तेज होती जा रही है। बिल पारित हो जाता है तो कांग्रेस को तो वैसे ही श्रेय मिल जाएगा, लेकिन भाजपा और माकपा भी ऊंचे स्वर से इस बात को कल से कुछ ज्यादा ही दुहराने लगी हैं कि उन्हीं की मदद से महिलाओं को इतना बड़ा राजनीतिक अधिकार मुहैया होने जा रहा है। जहां तक देश के बुद्धिजीवियों का सवाल है, वे भी राजनीतिक दलों की तरह दो पक्षों में साफ बंटे नजर रहे हैं। पिछड़ों और दलितों की सियासी चिंता रखने वाले बिल के खिलाफ हैं, लेकिन प्रोग्रेसिव संगठनों में विश्वास रखने वाले बुद्धिजीवी चाहते हैं कि बिल पास हो जाना चाहिए। बिल 14 साल से ठंडे बस्ते में पड़ा है। वैसे, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के शताब्दी वर्ष के मौके पर बिल पारित हो जाना ही देश की महिला-राजनीति के हक में होगा। लोकसभा में सरकार के पास संप्रग की अपनी सदस्य संख्या 274 है, जबकि बहुमत के लिए उसे 272 की जरूरत है।

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