Monday, May 3, 2010

'गाय और गंगा' के लिए गरजे वरुण गांधी


sansadji.com


जौनपुर बहुजन समाज पार्टी के गढ़ों में से एक है। धनंजय सिंह यहां से बसपा के सांसद हैं। इस जिले के सुजानगंज कस्बे में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एवं सांसद वरुण गांधी की सभा में जुटी भीड़ ने सियासी समीक्षकों को चौंका दिया है। लोगों ने नारा लगाया 'वरुण नहीं, ये आंधी है, दूसरा संजय गांधी है'। इस नारे के उल्टे-सीधे कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि ये नारा भाजपा को फायदा कम, नुकसान ज्यादा पहुंचा सकता है। भारतीय राजनीति में आज भी संजय गांधी को नेकनीयती से याद नहीं किया जाता है। वरुण की सभा में जुटी भीड़ ने भाषण पर चाहे जितनी तालियां बजाई हों और इससे स्थानीय आयोजकों को चाहे जितनी दिली खुशी मिले, लेकिन प्रदेश के कई बड़े नेता यूपी में भाजपाई राजनीति की इस ताजा शुरुआत से अचंभित कम, विचलित ज्यादा बताए जाते हैं। वजह साफ है, उन्हें भविष्य की अपनी राजनीतिक चमक धूमिल होती दिख रही है। वरुण गांधी जिस हिंदूवादी लहर के भूखे दिखते हैं, उसी हवा पर सवार होकर बीजेपी के कई बड़े संसद तक पहुंचे हैं। पीलीभीत की सभा में वरुण गांधी ने जो कुछ कहा था और उसके बाद उनके एटा तक के सफर को लेकर मंदिरमुखी सियासत करने के आदती पार्टी नेताओं में एक सांसद विनय कटियार इन दिनों वैसे भी पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ही नहीं, अन्य और कई आलाकमान संवाहकों से क्षुब्ध चल रहे हैं। दुनिया जानती है कि कटियार की छवि प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की है। यदि ये छवि कोई और ले-उड़ने की ताक में हो तो अंतर्कलह लाजिमी लगती है। उधर, उमा भारती के पार्टी में अभी तक न आ पाने की भरपाई यदि वरुण गांधी से हो जाती है तो आगे भाजपा यूपी को नए सिरे से तैयार करने में व्यस्त हो सकती है। 'वरुण-ब्रांड' बनाने के पीछे पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं गाजियाबाद से मौजूदा सांसद राजनाथ सिंह का विशेष हाथ माना जा रहा है। उन्हें महासचिव बनाने में भी राजनाथ की महत्वपूर्ण भूमिका मीडिया की सुर्खियां बन चुकी है। इसे लेकर भी कटियार जैसे और भी कई पार्टी नेताओं के मन में खासी खटास बताई जाती है। वरुण गांधी को अगर हिंदुत्ववाद के युवा-पैरोकार के रूप में भाजपा परोस रही है तो इसके पीछे पार्टी ही नहीं, वरुण गांधी की भी अपनी स्पष्ट रणनीति मानी जाती है। वरुण जान चुके हैं कि भाजपा में शिखर की राजनीति करनी है तो कट्टरता की भाषा बोलनी ही होगी। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव पूर्व वरुण ने जो तेवर दिखाए थे, अपने भाषणों में जिस तरह की तल्खियों की बानगी परोसी थी, उस पर पार्टी के आला नेताओं ने मूकनायक की मुद्रा अख्तियार कर ली थी। किसी भी बात के पक्ष-विपक्ष में न बोलने का सीधा सा मतलब होता है मूक-समर्थन। यानी वरुण के बड़बोलेपन को वरिष्ठ भाजपा नेताओं का शुरू से ही मूक समर्थन रहा है। वरुण गांधी के सियासी ग्लैमर के पीछे दूसरी वजह है, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि। वह इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे संजय गांधी एवं सांसद-बहू मेनका गांधी के पुत्र हैं। इससे अपने-आप पार्टी के अन्य नेताओं की तुलना में उनका कद जनसभाओं में अलग नजर आ रहा है। उनकी पीलीभीत, सहारनपुर, जौनपुर की सभाओं में भीड़ का यही मुख्य व्याकरण रहा है। न तो संजय गांधी उत्तर प्रदेश की जनता के लिए सरकारी स्तर पर कुछ करने की हैसियत में हैं, न पार्टी के कुछ बड़े नेता उन्हें इतनी औकात वाला बनाना चाहेंगे। एक बात और। भाजपा की चिंताएं दरअसल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महासचिव एवं अमेठी से सांसद राहुल गांधी की बढ़ती ताकत को लेकर है। इसलिए साफ तौर पर समझा जा सकता है कि वरुण की स्थापना संबंधी चिंताओं और आकांक्षाओं में सपा और बसपा की भी मूक सहमति भी चाहे-अनचाहे छिपी हुई है। या कहें कि समस्त गैरकांग्रेसियों की कमोबेश यही मंशा हो सकती है कि वरुण बनाम राहुल के फेर में उनकी लड़ाई आसान होने के चांस ज्यादा रहेंगे। इसलिए भविष्य में वरुण गांधी भाजपा के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक साबित हो लेते हैं, तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यही वरुण की आकांक्षा, संयोग और दूरदर्शिता कही जा सकती है। नेहरू परिवार के दोनों सांसद-राजकुमार उत्तर प्रदेश की राजनीति में नए तेवरों का आगाज कर चुके हैं, इसलिए इस सबसे बड़े सूबे की भविष्य की सियासत के एक तेवर इस रूप में भी देखने को मिल सकता है। फिलहाल, आइए सुनते हैं कि वरुण गांधी ने जौनपुर में क्या कहा।
भरी दोपहरी में मंच पर कदम रखते ही उन्होंने अपना भाषण 'गाय और गंगा' से शुरू करते हुए कहा कि इनकी रक्षा के लिए लोगों को आगे आना होगा वरना देश बर्बाद हो जाएगा। उन्होंने हर गांव में एक भव्य मंदिर बनाने और पुराने मंदिरों के जीर्णोद्धार का आह्वान किया। सभी विकास खंडों में पांच-पांच सचल चिकित्सा वाहन उपलब्ध कराने की बात की। भरोसा दिया कि इसके लिए वह प्रधानमंत्री से मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा कि जिस दिन केन्द्र में भाजपा की सरकार बनेगी, बेरोजगार युवाओं को दस-दस लाख रुपये बिना ब्याज के दिए जाएंगे। वे यहां तक बोल गए कि दो साल में मायावती का वजन बढ़ गया है और मेरा घटता जा रहा है। वे नोटों की माला पहनती हैं और मैं खादी का कुर्ता। जनता रोटी, कपड़ा, मकान के लिए मोहताज है तो इन्हें करोड़ो की लागत से अपनी मूर्तिया लगाने की चिंता है। गरीबों के वोट पर राज करने वाली मुख्यमंत्री आज अपराधियों की संरक्षणदाता हैं और गरीबों से मिलना तक पसन्द नहीं करतीं। अंत में उन्होंने संसद के कटौती प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए प्रकारांतर से सपा और राजग पर भी निशाना साधा। बोले कि कांग्रेस की जी हुजूरी करने वालों से जनता सावधान रहे।

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