Saturday, May 8, 2010
ए. राजा की अंतरात्मा साफ है??
sansadji.com
कथित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के संसद तक गूंज लेने के बाद केंद्रीय संचार मंत्री ए राजा कहते हैं कि इस मुद्दे पर मेरी अंतरात्मा साफ है। इतना नहीं, वे यहां तक कह जाते हैं कि वह सिर्फ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं द्रमुक अध्यक्ष एम करुणानिधि के प्रति जवाबदेह हैं। लोकतांत्रिक देश में एक सांसद और केंद्रीय मंत्री के इस कथन के भला क्या मायने हो सकते हैं!
पहला मायने यानी पहला प्रश्नः
क्या ए राजा जनता के प्रति जवाब देह नहीं हैं?
दूसरा मायने (प्रश्ऩ)
क्या ए राजा संसद में विपक्ष के प्रति जवाबदेह नहीं हैं?
तीसरा मायने (प्रश्न)
क्या ए राजा उस विभाग के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं, जिसके मंत्रालय (दूर संचार) की बागडोर उनके हाथ में है?
जब हम इस तरह के सवालों पर नजर दौड़ाते हुए ए राजा के चेन्नई में दिए गए ताजा बयान की गहराइयों में जाते हैं तो साफ-साफ सुनाई देता है कि जोड़-गांठ (संप्रग गठबंधन) कर कुर्सी पर सवार हो लेने के बाद हमारे मंत्री कितने बेलगाम और दबंगों की भाषा बोलने लगते हैं। जबकि ऐसे लोगों को देश के भाग्यनिर्माता का ओहदा मिला हुआ है। ए राजा कोई नई बात नहीं कर रहे। ज्यादातर मंत्रियों की कुंडली खंगालें तो इसी तरह की बातें प्रतिध्वनित होती हैं। जनभाषा में ए राजा के कथन का निहितार्थ लें तो डंके की चोट पर एक मंत्री की गर्वोन्नति देश को अचंभित करने वाली लगती है। ए राजा कहते हैं कि वह सिर्फ करुणानिधि और मनमोहन सिंह के प्रति जवाबदेह हैं। करुणानिधि के प्रति इसलिए जिम्मेदार हैं कि उन्होंने मंत्री की कुर्सी दिलवाई है और मनमोहन सिंह के प्रति इसलिए जिम्मेदार हैं कि हल्का सा हया का पर्दा रखना जरूरी है। हकीकत में तो उनकी गर्वोन्नति से लगता है कि वह पीएम के प्रति जो जवाबदेही की बात करते हैं, कोरी बकवास है। वह पीएम का भी लिहाज नहीं कर रहे हैं। पिछले दिनो वह ऐसा साफ-साफ कह भी चुके हैं। उनके कहने का मतलब साफ है कि वे संप्रग गठबंधन के मंत्री हैं और गठबंधन में उनकी पार्टी की भूमिका महत्वपूर्ण है। वह उसके बूते ही मंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं। और जब तक द्रमुक अध्यक्ष उनसे कुछ नहीं कहते, तब तक वह किसी के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं। द्रमुक अध्यक्ष का मतलब सिर्फ करुणानिधि नहीं, ए राजा का वह देश है, जो उनके अनुसार सिर्फ करुणानिधि के बूते चल रहा है।
अपने ताजा बयान में ए राजा आगे कहते हैं कि ‘मैं, मेरे प्रधानमंत्री और मेरे नेता करुणानिधि के प्रति जवाबदेह हूं। मेरी अंतरात्मा साफ है। मुझे 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बारे में कुछ नहीं कहना। दिल्ली में अपने हालिया दौरे में करुणानिधि ने मजबूती से राजा का बचाव करते हुए कहा था कि प्रभावशाली शक्तियां उनके (राजा के) खिलाफ द्वेषपूर्ण आरोप लगा रही हैं क्योंकि वह दलित हैं। सवाल उठता है कि करुणानिधि भी 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बारे में पार्टी की ओर से कोई तथ्यपरक बात कहने की बजाय दलित होने की दुहाई क्यों देते हैं? क्या किसी के दलित होने का यही मतलब होता है कि वह सिर्फ करुणानिधि के प्रति जिम्मेदार होगा, सिर्फ कथित तौर पर पीएम के प्रति जिम्मेदार होगा, वह देश के प्रति, उस सदन के प्रति जिम्मेदार नहीं होगा, जिसके लिए वह और राज्य के नियम-कानून जिम्मेदार हैं। क्या ए राजा देश की विधायिका, कानून व्यवस्था से भी ऊपर हैं? यदि हैं तो इस तरह के गैरजिम्मेदाराना बयान के लिए पड़ने वाली ऐसी परिपाटी के लिए सबसे ज्यादा दोषी संप्रग मुखिया सोनिया गांधी और देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को माना जा सकता है। संप्रग की मुश्किल ये है कि एक-एक कर उसके मंत्री निशाने पर आते जा रहे हैं। संसद में विपक्ष के हमलों से बचने के लिए उसे कभी दूसरी दलित नेता उन मायावती से कटौती प्रस्ताव पर मदद लेनी पड़ती है, जिन पर कुछ ही दिन पहले कांग्रेस माला प्रकरण पर निशानेबाजी करती दिखती है। वह पार्टी कटौती प्रस्ताव पर बसपा को गले लगा लेती है, जिसके युवराज बसपा के खिलाफ उत्तर प्रदेश की जनता (दलितों) को जगाने के अभियान पर निकल पड़ते हैं। ये सब क्या हो रहा है! यदि कांग्रेस को लगता है कि जनता ये सब नहीं समझ रही है तो ये उसकी बहुत बड़ी नासमझी हो सकती है। जब अपने पहले कार्यकाल में ए राजा ने अपनी करतूतों से एहसास करा दिया था कि पुनः वही कुर्सी उन्हें देने से पूर्व की कड़ी में कुछ और अवांछित अध्याय जुड़ जाने लाजिमी हैं, फिर उन्हें वह विभाग जानबूझ कर क्यों सौंपा गया? यदि ऐसा करना संप्रग सुप्रीमो सोनिया गांधी की मजबूरी थी तो उससे देश या विपक्ष को क्या लेना-देना? ऐसी ही नासमझियां कभी देश को इमेरजेंसी के दहाने तक ले गई थीं। ऐसी ही नासमझियां देश में बार-बार कांग्रेस का तख्ता पलट चुकी हैं। ऐसी ही नासमझियों ने राजग को भी बता दिया था कि ज्यादा मंदिर-मंदिर न चिल्लाएं, मंदिर से पेट नहीं भरता है, इसलिए राज्य की बागडोर हाथ में थामे हैं तो लोकतांत्रिक देश की जनता के हितों की बात करें। जनता के कहने का मतलब ये है कि न तो ए राजा, न उनके नेता करुणानिधि, न मनमोहन सिंह, न उनकी नेता सोनिया गांधी इस देश की खुदा हैं, जो इस तरह डंके की चोट पर हैरतअंगेज किस्म के बयानों से डराने की कोशिश करें। जनता की दिक्कत सिर्फ ये है कि वह करुणानिधि को झटकने के बाद जय ललिता की चौखट पर खड़ा होने को मजबूर हो जाती है और जय ललिता ने जिस तरह का यश कमाया है, वह भी लोकतांत्रिक देश के सबसे शर्मनाक वाकयों में से एक है।
यहां उल्लेखनीय है कि भाजपा, माकपा और अन्नाद्रमुक समेत विपक्षी दलों ने राजा के इस्तीफा की मांग करते हुए उन पर निशाना साध रखा है। ऐसे ही प्रहारों से घिरकर शशि थरूर से इस्तीफा लिया जा चुका है। ऐसे ही आरोपों से घिरकर केंद्रीय कृषि मंत्री और उड्डयन मंत्री तक सवालों की जद में आ चुके हैं। अब ए राजा निशाने पर हैं। इससे कांग्रेस की किरकिरी हो रही है। जब कर्म ऐसे हैं तो किरकिरी तो होगी ही, क्योंकि यह देश या इस देश का लोकतंत्र न तो इंदिरा गांधी की इमेरजेंसी की वंदना करने के लिए बना था, न मौजूदा सरकार के मंत्रालय संभाल रहे सोनिया-मनमोहन के सिपहसालारों के भ्रष्टाचार भोगने की करतूतों को वंदनीय मान कर चुप रह लेगा। यदि इस देश के विपक्ष में दम है तो सरकार को ए राजा पर उठे सवालों का जवाब देना ही होगा। यदि ऐसा नहीं तो देश में इतना दम है कि वह चार साल और झेलते हुए ए राजा समेत पूरे संप्रग गुट आने वाले चुनावों में इसका इकट्ठा जवाब दे डाले!! ए राजा या मायावती को सिर्फ दलित होने के नाते कुछ भी करने की छूट नहीं मिल जाती। देश, राज्य, मंत्रालय, देश का कोष, सब कुछ जनता का है, ए राजा या करुणानिधि या मायावती या संप्रग या सोनिया गांधी या किसी भी पक्ष-विपक्ष की पुश्तैनी जायदाद नहीं।
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