Saturday, May 8, 2010

अमर सिंह ने लिखा रामगोपाल चालीसा


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अमर सिंह किसी भी दिन मुलायम सिंह और उनके परिवार के बारे में कुछ न कहें, या न लिखें, भला ये कैसे हो सकता है! ले-देकर उनका एकसूत्री एजेंडा रह गया है सपा चालीसा। सो दनादन चल रहा है। अपनी ताजा पोस्ट में उन्होंने राज्यसभा के आखिरी दिन का रामगोपाल चालीसा-पाठ किया है। पोस्ट का शीर्षक है- राज्य सभा में अंतिम दिन।
आगे वह लिखते हैं कि-
" आज राज्यसभा का अंतिम दिन और मेरे कई पुराने साथियों के छः वर्षों के कार्यकाल का भी अंतिम दिन था. इस पूरे बजट सत्र में आज मेरा पहला दिन था. समाजवादी दल के नए दूल्हे रामगोपाल का पूरा जलवा दिख रहा था. हर विदा ले रहा समाजवादी सांसद रामगोपाल की चालीसा पढ़ रहा था. जनेश्वर जी की कुर्सी पर आखरी दिन बहैसियत नेता बने बैठे बृजभूषण तिवारी जी का कोई नाम लेवा ना था. कल मुलायम सिंह जी प्रणव मुखर्जी से मिले थे. अफवाह है रामगोपाल और अखिलेश, भाई और बेटा दोनों ही ममता बनर्जी की विदाई के हाल में यूं.पी.ए. मंत्रिमंडल के नए चेहरे बनेगे. बेचारी बहनजी, प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति बनाने के लिए मतदान दिया, सपा ने नहीं दिया; वामपंथियों को वादा देकर भले मुकरे हों, पर कट मोशन में भाग लिए, निश्चित वोट तो अबकी फिर मायावती जी ने ही यूं.पी.ए. को दिया. भाई, बेटे अगर मंत्री बने तो २०१२ के कांग्रेसी सपने का क्या होगा? हमारे जैसे आहत और घायल समाजवादी सैनिकों को मजबूरन ना चाहते हुए भी कोई दूसरा भयंकर विकल्प तलाशना होगा. सपा के मंत्रिमंडल में आते ही इस बात की क्या गारंटी कि भारतीय राजनीति की दो दुरूह महिला नेत्रियाँ माया-ममता इकट्ठी ना हो जाएँ. सत्ता के संतुलन में माया-मुलायम दोनों एक दूसरे को केन्द्रीय सत्ता के लड्डू से दूर रखने के लिए कांग्रेस का समर्थन करने को विवश है. लालू जी को चारा और नेता जी आय से अधिक संपत्ति का घोटाला भूत बन कर सता रहा है. कुछ करें या ना करें सबको बातों में उलझा कर रखें और १०१२ में खाली मैदान में राहुल गांधी के नेतृत्व में सत्ता का गोल, कम से कम योजना बनाई जाए तो मुलायम जी के साथी बराती सपाई सांसद ही करा देंगे. प्रणव दा के कमरे में प्रवेश करते ही कोची सूचना मिल गई. आदरणीय नेता जी आपके गैर कांग्रेसवाद की अब हवा क्यों निकल गई. जिस सपा ने संसद में अमर सिंह, अनिल अम्बानी, संजय डालमिया को सांसद बनाया, अतीक और अफजाल को लोकसभा भेजा, आज उसी के अवकाश ले रहे सांसद नंदकिशोर यादव पूंजीपति और अपराधी संसद में ना आयें. इसके रोकथाम के कानून की बात मनमोहन सिंह जी को गुहार लगाते हुए कह रहे थे. कथनी करनी का क्या भयंकर भेद. किसको मूर्ख बना रहे है,
“वो वक्त भी देखा है तारीख की आँखों ने,
लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई.” ..........."

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