Sunday, May 2, 2010

जया बच्चन और अमर सिंह संसद से लगातार गैरहाजिर


sansadji.com

अभी तक संसद में कांग्रेस सांसद अलागिरी की गैरमौजूदगी को लेकर भाजपा लाल-पीली होती रही है तो वह तो पार्टी के आंख तरेरने पर कटौती प्रस्ताव के दिन हाजिर हो लिए, लेकिन कई और सांसदों मीडिया कैमरे इन दिनो ढूंढते डोल रहे हैं, लेकिन उन्हें संसद में न तो ठाकुर अमर सिंह, न सांसद जया बच्चन दिख रही हैं। जया बच्चन वैसे भी जब से सपा सांसद बनी हैं, वह कभी भी अपने संसदीय दायित्व निर्वाह के कारण चर्चा में नहीं रहीं, उनकी चर्चाएं संसदेतर कार्य-कारणों को लेकर होती रही हैं। कभी उनके बीमार होने पर, तो कभी अमर सिंह के साथ होने-न-होने को लेकर। कभी अमर सिंह को नेताजी (मुलायम सिंह) के साथ बने रहने की सीख को लेकर तो कभी शिवसेना, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या बच्चन अथवा जमीन-जायदाद को लेकर। चर्चाएं ये कभी नहीं हुईं कि उन्होंने कभी संसद में जनहित के फलां-फलां मसले उठाए, चर्चाएं ये रहीं कि जमीन-जायदाद को लेकर, उनके निर्वाचन की खामियों को लेकर उनकी सांसदी बचेगी या जाएगी! जया बच्चन चाहे जितनी कामयाब अभिनेत्री रही हों, कामयाब राजनेता कत्तई नहीं बन सकीं, क्योंकि वह देश के सबसे धनी सांसदों में दूसरे नंबर पर हैं। वह दूसरी ऐसी सांसद हैं, जिनके पास अरबों की संपत्ति है। पहले नंबर सांसद राहुल बजाज हैं। जिसके पास इतना माल-असबाब है, स्वाभाविक है कि वह उन्हें संभालने-सहेजे रखने में ज्यादा व्यस्त होगा, जनसमस्याओं से उसे क्या लेना-देना। राजनीति तो उसके लिए एक आवरण है, सुरक्षा कवच है। ऐसे सांसद इस आवरण के बदले पार्टी को आर्थिक मदद करते रहते हैं। पार्टी भी ऐसे सांसदों की उपयोगिता मात्र इतनी ही मानकर चलती है। भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि ऐसे सांसदों को चुनाव के समय स्टार प्रचारक कहा जाता है। स्टार वैसे भी आसमान में रहते हैं। जमीन पर उतरते हैं तो मुफ्त में वाह-वाह करने वालों की कमी नहीं होती। इसी सियासी मसखरी ने लोकतंत्र का कबाड़ा किया है।
जहां तक सांसद अमर सिंह की बात है, वह संसद से भले गैरहाजिर हों, निष्क्रिय तो कत्तई नहीं हैं। लगातार जनता के बीच जा रहे हैं। अपने भविष्य की रणनीति में व्यस्त रह रहे हैं। वह संसद या जनता के बीच मिलें-न-मिलें, अपने ब्लॉग पर जरूर मिल जाते हैं। इधर कुछ दिनों से लगातार लिखने में व्यस्त हैं। लिखने का विषय भी उनका पारंपरिक हो चुका है। हर पोस्ट में मुलायम सिंह पर निशानेबाजी होती-ही-होती है। बल्कि साफ-साफ कहें तो उनके ब्लॉग की इतनी भर ही सार्थकता या निर्थकता नजर आती है। आज उन्होंने एक बार फिर मुलायम सिंह को निशाने पर लेते हुए लिखा है कि “आजकल देर रात तक सपा सांसदों की बैठके चल रही है. उनमे से कई आकर मुझसे मिल कर पूरी बाते बताकर मुझसे सलाह मंगाते है. आजकल सुना है कि मेरी पुरानी पार्टी मुद्दा और मुद्रा विहीन हो गई है. इसलिए चर्चा, पर्चा, खर्चा तीनो में जहां गम हों, वहां के अपने साथियों को एक ही सलाह है कि तीसरा मोर्चा देश में बनेगा ही नहीं।”
सांसद अमर सिंह आगे लिखते हैं कि " बधाई हो मुलायम सिंह जी, आखिर कब तक आप वामपंथी साथियों से यू.पी.ए.-1 का प्रतिशोध लेंगे? आपने तीन बार वामपंथियों को चूना लगा दिया है. पहली बार नरायणन की हामी भर कर कलाम का कलमा श्री प्रमोद महाजन के कहने पर अडवानी जी और अटल जी के साथ पढ़ कर आपने उस मोर्चे को तोड़ा जिसके आप स्वयं संयोजक और स्वर्गीय ज्योति दा अध्यक्ष थे. आप बदल गए लेकिन वामपंथी भाई नहीं बदले और कैप्टन लक्ष्मी सहगल को राष्ट्रपति पद का प्रतीकात्मक चुनाव लडवाया. दूसरी बार इंडिया-अमेरिका न्यूक्लियर डील का हर जगह विरोध करने के बाद आपने फिर वामपंथियों को ठेंगा दिखा कर यूं.पी.ए.-१ की सरकार में हुई अपनी उपेक्षा का जिम्मेदार वामपंथियों को ठहराते हुए सरकार को बचाया. तीसरी बार हाल में ही “कट मोशन” में कटिंग का वायदा कर आप लालू भैया के साथ भाग गए. मुझे Fanishwar Nath Renu का उपन्यास जिस पर राजकपूर साहब ने एक फिल्म “तीसरी कसम” बनाई थी आज बहुत याद आ रही है. क्या इस तीसरे धोखे के बाद वामपंथी भी इस उपन्यास के नायक की तरह आपसे दूरी बनाए रखने का इरादा करेंगे?"

आगे अमर सिंह लिखते हैं-"यूं.एन.पी.ए. के भी आप (मुलायम) अध्यक्ष हो गए थे, देश के तमाम भूतपूर्व मुख्यमंत्री मेरे निवास पर एकत्र हो कर आपको नेता मानते रहे. अंतिम बैठक की पत्रकार वार्ता मेरे ही घर पर थी और आप सभी भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों का हाँथ पकड़ कर कैमरे के सामने चींख-चींख कर कह रहे थे “हम साथ-साथ है”. हाय! फिर ना वह साथ रहा और ना ही वह हाथ. लोकसभा चुनावो के दौरान श्री ओमप्रकाश चौटाला जी का फोन आया, भाई हमें छोड़ कर चले गए, कोई बात नहीं पर अब हाँथ का साथ मुलायम को कहना ना छोड़े. उस समय सलमान खुर्शीद मेरे मित्र हो गए थे, उनकी पत्नी लुईस बड़ी भोली है, मिल कर कहने लगी वैसे तो फरुखाबाद समाजवादी पार्टी की सिटिंग सीट है पर अगर आप कहेंगे तो काम हो जाएगा. उधर वैसी ही हालत प्रमोद तिवारी जी की थी जो रत्ना सिंह के लिए प्रतापगढ़ में परेशान थे. मैने कहा दोनों ही सीटों पर रामगोपाल यादव के चहेते है, मै कुछ ना कर पाऊंगा. कांग्रेस आला कमान ने तय किया की मै और कांग्रेस के प्रतिनिधि, इन दोनों सीटों पर बात करेंगे. गुर्दा खराब होने के कारण उन दिनों अक्सर अस्पताल जाना पड़ता था, तबियत ढीली हुई अस्पताल गया और बिना कांग्रेस से पूंछे सपा ने प्रतापगढ़ और फरुखाबाद के सीटें घोषित कर दी. जय जय रामगोपाल! दूसरे दिन मेरी पुरानी पार्टी का निर्णय हुआ कि भाई राजनाथ सिंह की गाजिआबाद सीट, अजीत सिंह के पुत्र की मथुरा सीट, जगदम्बिका पाल की सीट, जितिन प्रसाद, आर.पी.एन. सिंह और कानपुर के जायसवाल जी की सीट मेरी पुरानी पार्टी छोड़ देगी. मुझे आदेश हुआ प्रेस करो, मैने सोचा “पल में तोला पल में माशा”, मेरे मुलायम जी पता नहीं कल क्या कह दे. विनम्रता से मैने कहा कि नेता जी आप ही प्रेस करो, उन्होंने की. स्वर्गीय जीतेंद्र प्रसाद जी की पत्नी कांता भाभी, जितिन, पाल, आर.पी.एन. ने मुझे धन्यावाद दिया, मैने भी लिया. कुछ ही छड़ों में पता चला नेता जी तो बदल गए. अब भाई उस काम को जो मेरी तबकी पार्टी ने कर के फिर नहीं किया, उसके लिए जितिन, पाल, आर.पी.एन. का धन्यवाद मेरे खाते में क़र्ज़ है जिसे नेता जी मुझे कभी ना कभी कांग्रेस को चक्रवृद्धि ब्याज के साथ लौटाना तो पडेगा ही ना, समझे की नहीं. इसीलिये हे नेताजी चाहे वह लालू जी हो, चाहे वामपंथी, चाहे शरद यादव जी हो, चाहे वह सोनिया जी हो और चाहे वह चौदह साल का आपका पुराना कट्टर समर्थक मै, सारा भारत आपको जान चुका है और लोहा मान चुका है. अतएव, जब तक आप है तीसरा मोर्चा अथवा धर्म निरपेक्ष राजनीति की व्यापकता खंडित विखंडित होती रहेगी, और इसके खंडन विखंडन के लिए आपको ढेरों बधाइयां."
आगे अमर सिंह लिखते हैं- "एक दुष्प्रचार और कि संक्रमण में मै आपको छोड़ कर भागा आपने निकाला नहीं, इसका उत्तर ब्लॉग में आपके ही हस्ताक्षर से मेरे निष्कासन की सूचना देने वाले राज्यसभा सचिवालय को लिखा आपका कृपा पत्र एवं सेक्रेटरी जनरल द्वारा दी गई इसकी सूचना देश और प्रदेश की अवाम के ज्ञानवर्धन के लिए डाल रहा हूँ. सीटी आप बजा ही रहे है बिना दुखी हुए एक गीत का मुखड़ा गुनगुनाइए कि “देखी ज़माने की यारी, बिछड़े सभी बारी-बारी”. क्या बेनी, क्या आज़म, क्या बब्बर और क्या अमर और रह गया इकठ्ठा सैफई का यादव परिवार, आप वरिष्ठ है मुझे और जया प्रदा को जो आज भी आपको पिता सामान कहती है, हमें निकाल कर बराए करम हम बावफओं को बेवफा ना बनाइये. सच बताइये आपने खंडित विखंडित मोर्चे को और अपनी आत्मा को भी क्योंकि,..............."

1 comment:

honesty project democracy said...

संसद जाकर करेंगे भी क्या / संसद में तो आम जनता को प्रश्न पूछने के लिए जाना होगा ,तब जाकर इस देश का भाग्य बदलेगा /अच्छी प्रस्तुती के लिए धन्यवाद / आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /